Sunday 24 April 2016

बुरे कर्मों का भोग समाप्त हो जाएगा।

कोई शनि , कोई बुध , कोई राहु , केतु , कोई मंगल हमारा अमंगल नही करता है । हमारा अपना कर्म - कुकर्म , अपने द्वारा किया धर्म - अधर्म जब हाथ धोकर कभी शनि बन कर तो राहु , केतु बन कर हमारे पीछे पड़ कर हमे दुख के भंवर में धकेल देता है तो हम लगते हैं बाप बाप करने और दौड़ने लगते हैं मंदिर मंदिर , ज्योतिष् के यहां , बड़े बड़े कर्मकाण्डी पण्डितों को यहां । फिर गंभीर रुप से ठगे जाते हैं । कोई जयोतिष , कोई पण्डित , कोई चढ़ावा किसी भी मंदिर में , हां नोट कर लीजिये , कोई भी चढावा हमारे दुर्भाग्य को सौभाग्य में नही बदल सका, न बदलेगा । भगवान घूस खोर नही हैं । संसार में रिश्वत चलती है भगवान के यहाँ नहीं। अपने किये गय कुकर्मो को मिटाने के लिये भगवान को खरीदने की भूल कदापि न करें । हम गुनाह करेंगें तो उसकी सजा निश्चित है। भगवान या कोई वास्तविक संत आपके पाप को मिटा नही सकता है । यह भगवान का कानून है । वह अपने कानून को खुद भी नही मिटा सकते । सामर्थ्य है परन्तु कदापि नही मिटायेंगे। अरे!प्रारब्ध तो महापुरुषों को भी भोगना पड़ता है साधारण कि कौन कहे।
यह गाना गाने से काम नही चलेगा कि - माँ मुरादे पुरी करदे हलुआ बाँटूंगी । मुर्ख है जिसने ये गाना बनाया और उससे भी बड़ा मुर्ख है जो ऐसे गानों को झूम-झूम के गाता है । एक अक्षर का सिद्धांत ज्ञान तत्त्व ज्ञान है नहीं, व्यापार बना दिया है भगवान को भी।
बदलना है तो अपने कर्मों को , अपनी सोच को , अपने धर्म को ठीक करिये , संकल्प करिये भगवान को साक्षी मान कर कि हे प्रभु हम अब आपकी शरण में है। वास्तविक ह्दय से मन से सदा के लिय अपने को , खुद को आपके चरणों में समर्पित करता हूं । और फिर दुबारा कभी गलत बात न करें न सोंचें । सब ठीक हो जाएगा । बुरे कर्मों का भोग समाप्त हो जाएगा। आप सजा भोग लेगें फिर सब ठीक हो जाएगा , वर्ना कुछ भी ठीक नही हो सकता।
भगवान अपने बनाए कानून में स्वयं बंधे हैं ।उन्होने अपने बाप दशरथ को नही बचाया , भांजे अभिमन्यु को नही बचाया तो हम आप कितने पाप करके बैठे हैं अनंत जन्मों में खुद नही जानते ।
केवल वास्विक शरणागति ही एक रास्ता है । वर्ना जबतक पूर्व जन्म का पुण्य पुँज है । सब मिलेगा । पाप करते करते पूर्वजन्म का पुण्य पुँज समाप्त ,अब तुम हो जाओगे भिखारी रातों रात , कोई पण्डित , ज्योतिष , ज्ञानी , विज्ञानी , तंत्र , मंत्र , गंगा स्नान , तीरथ वीरथ , तप , जप , पुजा पाठ , यज्ञ , हवन काम नही देगा ।
हमारा पाप ही जब खुद शनि, राहु केतु बन कर जब खड़ा हो जाएगा तो कोई शनि मंदिर में तेल वेल , दीया-दीपक कितना जलालें , कुछ काम नही देगा ।
कितने मुरख पण्डित होते हैं खुद देखें , मृत्यु शैया पर पड़े लोगों को बचाने के लिये महामृत्युंजय जाप करवाने के लिय बोलते हैं। जबकि महामृत्युंजय मंत्र का मतलब है पढ़िये अन्तिम पंक्ति मंत्र की :-

ऊरुवारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मोक्षीयमामृतात्

यानि हे प्रभु हमे जन्म मरण के चक्कर से मुक्त करो और मोक्ष दो ।

'यानि मरते हुये को शरीर से छुटकारा दिला कर हमेशा के लिय जन्म और मृत्यु के चक्कर से मुक्त कर दो '।
यह मंत्र यह कहीं नही कहता कि हे प्रभु इसको स्वस्थ करके जीवन दान दो।
तो जरा सोचिये कितने मूर्ख पण्डित लोग हैं। ज्योतिष लोग है जो खुद मंत्र के अर्थ तक को नही जानते।तो वो क्या कल्याण करेगा हमारा

Friday 18 March 2016

प्रथम भाव
उसमें काल पुरुख की मेष राशि यानी एरीज जोडिएक पड़ता है और जिसका के स्वामित्व हम मंगल गृह को मानते हैं , वह मंगल फिर अष्टम भाव का भी स्वामी मन जाता है क्यों की उसकी दूसरी राशि वृश्चिक वहां पड़ती है और दोनों राशियों का अपना अलग प्रभाव मन जाएगा , तो हम बात कर रहे थे पहले भाव की की वहां मेष राशी जिसका स्वामी मंगल को माना जाता है व रुधिर जिसे हम खून भी कहते है का शरीर में प्रतिनिधितव करता करता है और मंगल को हम उत्साह व उर्जा का कारक भी मानते हैं दुसरे वहां पर सूर्य उच्च का मन जाता है वह भी उर्जा का प्रकार मन जाता है तो दोनों मंगल और सूर्य उर्जा के कारक होने के साथ साथ अग्नि के कारक भी है इसलिए ये जीवन के संचालक गृह प्रथम भाव के कारक बनाये गए जो की पूरण तया तर्कसंगत मन जाएगा , अब मेडिकल साइंस के मुताविक भी इनका यही मतलव निकलता है क्यों को विज्ञान भी यही मानता आया है की ये सारा ब्रह्माण्ड एक उर्जा के आधीन है और प्रमाणित व प्रतक्ष रूप से सूर्य तो इसका प्रमाण है ही , अब विचारनिए बात यह है की जीवन जीने के लिए वो भी सही जीवन जीने के लिए हमें इस उर्जा का सही समन्वय करना पड़ता है नहीं तो हम कहीं न कहीं पिछड़ना शुरू हो जाते हैं सो हमें उर्जा का नेगेटिव या पॉजिटिव प्रयोग करना आना चाहिए , अपनी अपनी पर्सनल होरोस्कोप में देखने पर इन दोनों उर्जा युक्त ग्रहों का किस प्रकार से बैठे हैं , किन किन नक्षत्रों में , उप नक्षत्रों में और आगे उप उप नक्षत्रों में, नव्मंषा कुंडली में, षोडस वर्गों में, अष्टक वर्गों में , पराशर शास्त्र अनुसार की प्लेनेट और न जाने और कितनी विधियों अनुसार देखने के वाद ही ये पता चलता है के वे गृह कितने बलवान हैं , मात्र एक आधी विधि अपूरण मानी जाती गयी है , और विचारनिए बात ये भी है के आज के वक्त में इस पवित्र शास्त्र का मज़ाक बना कर रख दिया गया है मात्र सिर्फ भौतिकता के चलते ऐसा हो रहा है , क्यों के हर आदमी दो चार किताबें पढ़ कर अपने आप को ज्ञानी मानने लगता है और आज जब सब कुछ कोमर्शिअल यानी व्यावसायिक सोच सब पर हावी हो चुकी है तो हर चीज की सैंक्टिटी यानी पवित्रता ख़तम हो रही है , जब स्वार्थ हावी हो जाए तो अक्ल पर पर्दा पड़ना शुरू हो जाता है, तो हम यहाँ देखते हैं के इन दोनों ऊर्जायों का हम कैसे सही इस्तेमाल करते हैं और जैसे के अगर कहीं न कहीं कोई ग्रहों में कमी पूर्व जनित कर्मो के कारण आ गयी हो तो हम उसमे काफी हद तक सुधार भी ला सकते हैं , हालांकि वह सुधार अपनी अपनी बिल्पावेर यानि इच्छा शक्ति , करम और प्रभु पर पूरण भरोसा इसी के चलते पूरण हो पाती

Monday 4 January 2016

परंतु यह बिमारी का भी घर है

जन्म पत्रिका का अष्टम भाव वैसे तो मोक्ष का स्थान माना जाता है। परंतु यह बिमारी का भी घर है। कुछ योग ऐसे हं जो अष्टम स्थान में प्रभावशील होकर रोग उत्पन्न करते हैं। कौन से हैं वे रोग आइए जानते हैं।
1- अष्टम भाव मंगल, चंद्र और शुक्र हो तो जातक सेक्स संबधी एवं हर्निया रोग से ग्रसित होता है।
2- अष्टम भाव में शुक्र हो तथा प्रथम भाव में शनि हो तो पेंशाब में घात संबधी रोग होता है। शनि यदि अष्टम भाव में हो उस पर शुभ ग्रहों की दृष्टि ना हो तो भी पेशाब संबधी रोग होता है।
3- अष्टम भाव में मंगल, शुक्र की युति हो तो वीर्य संबंधी रोग होता है।
4- अष्टम भाव में शनि हो तथा उस पर मंगल की दृष्टि हो तो जलोदर नाम का रोग होता है।
5- मोक्ष स्थान अष्टम में केतु अशुभ होने पर वायु गोला रोग करता है, केतु पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो अल्सर भी हो सकता है।
6- अष्टम स्थान पर चंद्रमा नीच का हो, शत्रु या अशुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो सर्दी संबधी रोग होते हैं। हर्निया, गैस, हृदय रोग भी हो सकता है।
7- अष्टम स्थान पर नीच का मंगल राहु से युक्त हो, चंद्र कमजोर हो तो बाढ़ में बहने या जल में डूबने का खतरा रहता है।
8- अष्टम भाव में शनि या शुक्र नीच का होकर बैठा हो तथा उस पर कोई शुभ दृष्टि भी न हो तो जातक को शुगर, ब्लडप्रेशर, अपेन्डि़क्स जैसे रोग होते हैं।
शनि रोग का कारक बनता हो, जो जातक को लम्बे समय तक पीड़ित रखता है. यह और एक दर्द भी है कि राहु जब किसी रोग का जनक होता है, तो बहुत समय तक तो उस रोग की जांच (डायग्नोसिस) ही नहीं हो पाती है. डॉक्टर यह समझ ही नहीं पाता है कि जातक को क्या बीमारी है? और ऐसी स्थिति में रोग अपेक्षाकृत अधिक अवधि तक चलता है. प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में कभी न कभी रोगों से अवश्य पीड़ित होता है. कुछ व्यक्ति कुछ विशेष समय में अथवा माह में ही प्रतिवर्ष बीमार हो जाते है. ये सभी तथ्य प्राय: जन्मप्रत्रिका में ग्रहों की भागवत एवं राशिगत स्थितियों और दशा, अन्तदर्शा पर निर्भर करते हैं. इसके अतिरिक्त कई बीमारियां ऐसी हैं, जो होने पर बहुत कम दुष्प्रभाव डाल पाती हैं, जबकि कुछ बीमारियां ऐसी हैं, जो जब भी जातक विशेष को होती हैं, तो बहुत नुकसान पहुंचाती है. कई बार ऐसा स्थिति उत्पन्न होती है कि बीमारी होती तो हैं लेकिन उसकी पहचान भली प्रकार से नहीं हो पाती है. उन सभी प्रकार के तथ्यों का पता जातक की कुंडली को देखकर लगाया जा सकता है