!!किस तरह से करें पूजा एवं मंत्र जाप!!
मंत्र जाप में शुद्ध शब्दों के बोलने का विशेष ध्यान रखें, जिन अक्षरों से शब्द बनते हैं। उनके उच्चारण स्थान पांच है जो पंचतत्व से संबंधित है।
1 होठ पृथ्वी तत्व
2 जीभ जल तत्व
3 दांत अग्नि तत्व
4 तालू वायु तत्व
5 कंठ आकाश तत्व
मंत्र जाप से पंचत्तवों से बनी यह देह प्रभावित होता है। शरीर का प्रधान अंग सिर है। वैज्ञानिक शोध के अनुसार सिर में दो शक्तियां कार्य करती है। पहली विचार शक्ति व दूसरी कार्य शक्ति।
इन दोनों का मूल स्थान मस्तिष्क है। इसे मस्तुलिंग भी कहते है। मस्तुलिंग का स्थान चोटी के नीचे गोखुर के बराबर होता है।
यह गोखुर वाला मस्तिष्क का भाग जितना गर्म रहेगा, उतनी ही कर्मेन्द्रियों की शक्ति बढ़ती है।
मस्तिष्क के तालू के ऊपर का भाग ठंडक चाहता है। यह भाग जितना ठंडा होगा उतनी है ज्ञानेन्द्रिय सामर्थ्यवान होगा। तैतरीयोपनिशत् में शिखा का नाम इंद्रयोनि रखा है।
1 मानसिक जाप अधिक श्रेष्ठ होता है।
2 जाप, होम, दान, स्वाध्याय व पितृ कार्य के लिये स्वर्ण व कुशा की अंगुठी हाथ में धारण करें।
3 दूसरे के आसन पर बैठकर जाप न करें।
4 बिना आसन के जाप न करें।
5 भूमि पर बैठकर जाप करने से दुख, बांस के आसन पर जाप करने से दरिद्रता, पत्तों पर जाप करने से धन व यश का नाश व कपड़े के आसन पर बैठ जाप करने से रोग रहता है। कुशा या लाल कंबल पर जाप करने से शीघ्र मनोकामना पूर्ण होती है।
6 जाप काल में आलस्य, जंभाई, निद्रा, थूकना, छींकना, भय, वार्तालाप करना, क्रोध करना, सब मना है।
7 लोभ युक्त आसन पर बैठते ही सारा अनुष्ठान नष्ट हो जाता है।
8 जाप के बाद आसन के नीचे जल छिड़ककर जल को मस्तक पर लगाना चाहिये। वरना जप फल को इन्द्र स्वयं ले लेते हैं।
9 स्नान कर माथे पर तिलक लगाकर जाप करें।
10 जनेऊ धारण कर ही जाप करें। पितृऋण, देवऋण की मुक्ति के लिये पांच यज्ञों को किया जाता है।
11 घंटे और शंखनाद का प्रयोग अवश्य किया जाना चाहिए। वै ज्ञानिक अनुसंधानों से सिद्ध हो गया है कि शंखनाद व घंटानाद से तपैदिक के रोगी, कान का बहना व बहरेपन का इलाज होता है। मास्कों सैनिटोरियम में केवल घंटा बजाकर टीबी रोगी ठीक किये गये थे।
12 1928 में जर्मनी की राजधानी बर्लिन में शंख ध्वनि से बैक्टीरिया नामक हानिकारक, जीवाणुओं को नष्ट किया गया था। शंखनाद-से-मिरगी, मूर्छा, गर्दन तोड़ बुखार, हैजा, प्लेग व हकलापन दूर होता है।
13 पूर्व व उत्तर दिशा में ही देखकर जाप करें।
माला-
1 मोतियों की माला विद्या प्राप्ति के लिये श्रेष्ठ है।
2 रुद्राक्ष माला सर्वसिद्ध है।
3 शंख की माला धर्म व धन दायक है।
4 तुलसी की माला सर्व रोगहरता है।
5 वशीकरण के लिये मूंगे की माला उत्तम है।
6 धन प्राप्ति के लिये स्फटिक माला ठीक है।
7 जाप की माला ढककर ही जाप करें।
8 पहली अंगुली का प्रयोग न करें।
दीपक-
1 घी की जोत जलाने से परिवार में सुख समृद्धि होती है, यह स्वस्थ्यप्रद है।
2 तिल की जोत सर्व रोगहरता है।
3 अरंडी के तेल से दाम्पत्य जीवन सुखी रहता है।
बाती-
1 रूई की बाती शुभ है।
2 कमल नाल से बनाई बत्ती, पित्तरों द्वारा किये पापों का नाश करती है।
3 केले के तने की छाल के रेशे से बनी बाती पितृशाप से मुक्ति देती है। संतान योग होता है। सुख शांति होती है।
4 जटामांसी की छाल से बनी भूत-प्रेत बाधा नष्ट करती है।
5 नयी पीली साड़ी के टुकड़े से बनी बाती से माँ की कृपा व आशीर्वाद प्राप्त होती है। बीमारियां दूर होती है।
6 लाल साड़ी के टुकड़े से बनी बाती जलाने से शादी में अड़चन व रुकावटें दूर होती है। बांझपन व ऊपरी बाधा (भूत-प्रेत) दूर होते हैं।
7 सफेद कपड़े को गुलाब जल में भिगोकर सुखाकर बनी बाती जलाने से सुख समृद्धि बढ़ती है।
8 नीम का तेल, घी वा महुआ का तेल मिलाकर जलाने से कुलदेवी व कुलदेवता प्रसन्न होते हैं। घर खुशहाली होती है।
9 नारियल का तेल, घी, अरंडी का तेल, नीम का तेल 47 दिनों तक भगवती की पूजन करने से माँ का आशीर्वाद प्राप्त होता है। दांपत्य जीवन सुखी व समृद्धि-मय होता है।
जोत जलाने का समय-
1 प्रात: 3 से 5 बजे तक जोत जलान से परिवार का कल्याण व समृद्धि होत है।
2 नौकरी की इच्छा वाले, अच्छा जीवन साथी अच्छी संतान की इच्छा वाले, घर में सुख-चैन की कामना करने वाले को गौधूली बेला में जोत जलानी चाहिए।
3 एक ज्योति जलाने से लाभ होता है। दो ज्योत जलाने से परिवार में एकता बढ़ती है।
4 तीन जोत जलाने से अच्छी संतान पैदा होती है।
5 चार जोत जलाने से पशुधन व जमीन जायदाद बढ़ती है।
6 पांच जोत जलाने से धन प्राप्ति व सर्व मंगलकारी व पांच देवताओं को प्रिय होती है।
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