Monday 13 April 2015

केवल खर्च कर सकते हो , कमाई नहीं कर सकते


एक महात्मा के पास कोई गया , उनसे पूछा " अमुक जगह कहाँ है ? " " उन्होंने कहा पार मे है " । वह बेचारा भोला - भाला आदमी था, नाव में बैठ गया । नाव वाले ने पूछा " किधर जाना है ? " वह बोला पार जाना है ।नाविक नाव को दूसरे किनारे पर ले गया । दूसरे किनारे पहुँच कर नाव वाले ने कहा " उतरो " , उसने कहा " पार आ गया ? " नाव बड़ी थी सैकड़ो आदमी चढ़े हुए थे , नाविक ने पहचाना नहीं कि वही आदमी है , सोचा कि इधर से ही चढ़ा होगा अतः उसने कहा " अच्छा , पार तो अभी जाएँगे " दूसरी तरब अर्थात् पहले वाले किनारे पर फिर आगए ,सब उतर गए , वह बैठा रहा , नाविक ने कहा " कहाँ जाना है ? " वह बोला - पार जाना है । नाविक ने कहा " अच्छा " । बहुत से आदमी थे पहचानने में आया नहीं तो बेचारा घण्टों इधर से उधर चलता रहा , सोचता रहा नजाने पार कब आएगा । इधर से चलो तो उघर पार है उधर से चल कर कहोगे तो इधर पारहो जाता है। इसी प्रकार मनुष्य पैदा होता है तो सोचता है कि स्वार्गादि लोक में ,वैकुण्ठ - लोक में पहुँच जाऊँगा तो पारहो जाऊँगा । वहाँ जाता है तो वहाँ वाले कहते है " अरे मनुष्य - लोक में जाओ , वहाँ ज्ञान और मोक्ष हो जाता है " । शास्त्रकार कहते हैं कि जीव देवता बनता हैतो सोचता है कि मनुष्य बन जाऊँ " गायन्ति देवा किलगीतकानि धन्यास्तुते भारतभूमिभागे " पुराण बताता है कि देवता लोग कहते है कि जो भारतवर्ष में जन्म लेते हैं वे धन्य हैं। ठीक जैसे यहाँ से अगर आप अमेरिका चले जायें तो वहाँ आप कमाई नही कर सकते । कमाई करेंगे तो वे तुम्हें जेल में बन्द करदेंगे । आप वहाँ घूमने गये हो , मौज- शौक खूब करो । परन्तु केवल खर्च कर सकते हो , कमाई नहीं कर सकते । कमाई करने के लिये आपको फिर यहीं आना पड़ेगा । अब तो पता नहीं परन्तु कुछ साल पहले सरकार का नियम था कि कम से कम तीनसाल के पहले वहाँ जाने की अनुमति नहीं देते थे । हमने सोचा , सरकार ने यह निर्णय किया है कि तीन साल में रुपया इकट्ठा करे तो ही वहाँ जा कर खर्च कर सकता है । इससे यदि कम समय में किया हैतो इसने कहीं न कहीं सेंध मारी है । तभी इसके पास इतनी जल्दी वहाँ जाकर खर्च करने का पैसा हो गया । ठीक इसी प्रकार से मनुष्य - लोक में कमाई कर सकते हो , देव लोक मेंजा कर खर्च करो , खर्च करके वापस कमाई करने यहीं आना पड़ेगा । देव लोँक में पहुँच कर पूछते हो पार कहाँ है ? तो देवता कहते हैं - मनुष्य लोक में जाओ कमाई करने के लिए । मनुष्य लोक में आकर पार के बारे में पूछते हो तो कहते है देव लोकमें जाओ भोग भोगने के लिए । जीव कभी देव लोक , कभी मनुष्य लो , फिर देव लोक , बस यों घुमता रहता है परन्तु पार कभी आता नहीं । यहाँ दुःख इस बात का हैकि भोग नहीं भोग सकते , मनुष्य शरीर में कोई ज्यादा भोग भोगने की सामर्थ्य नहीं है। सेर - भर दाल का हलबा खा लोबस , फिर और खाना भी चाहो तो खानहीं सकते ।

इस संसार में दुख इस बात का है कि भोग भोग नहीं सकते ,मनुष्य शरीर में कोई ज्यादा भोग भोगने की शक्ति भी नहीं है । अतः मनुष्य जब यहाँ आता है तो दुःख इस बात का है कि" मैं दुःख भोग नहीं सकता" । और इस जगत में आने पर भय भी है। उम्र बहुत कम है । पचीस वर्ष जिसको " गधा पचीसी कहते हैं " उसमें चले गए , उसके बाद आपने कमाई करना शुरू किया । पचहत्तर साल मेंबुड्ढे हो गए तो वैसे ही कुछ भोग करने लायक नहीं रह जातें पचास साल तो ऐसे निकलजाते है कहने को सौ साल की उम्र है । पचास साल बचे उसके अन्दर तो आठ घण्टे तो नींद आप लेंगें ही , एक - तिहाई समय आपका सोने में निकल गया । खाना - पीना - नहाना - धोना सब में चार घण्टे और निकल जाते हैं बेचारों के । यों आपके पास आधा समय बचा यानि पचीस साल बचे। उनमें भी कुछ न कुछ समय निकालना पड़ता है यहाँ दाल- रोटी के धन्धा करने का , उससेजो सभय बचा उसी में आप पुण्य करके सुख भोगने के लिए देव- लोक में जाऐगें। अतःयहाँ पर हमेशा भय लगता रहता है कि समय खत्म हो रहा है , जल्दी ही यहाँ से जाना पड़ेगा , हम बहुत कम पुण्य कर पाए । इस बात का भय है । जब यहाँ पहुँचते हैं तब दुख इस बात का है कि रोज खर्च ही खर्च हो रहा है । क्योंकि जीवदेवलोक में पहुँचकर प्रज्ञावाला होता है , इसलिए उसको हर क्षण पता रहता है कि अब उसका इतना पुण्य बच गया । घर सेदूरभाष द्वारा , टेलिफोन द्वाराचाहे जितनी देर बातें करते हो तो घबराहट नहीं होती क्योंकि तत्काल पैसा नहीं देनापड़ता । दूरभाष के उपयोग के लिये खुली दूकान मे { एस . टी . डी बूथ में } जाकर बात करो तो हर क्षण सामने लिखा आता रहता है किकितने पैसे खर्च हो गये अतः वहाँ ज्यादा देर बात नहीं की जाती , देर तक बाता करने का मजा किरकिरा हो जाता है ।देव लोक में सामने आता रहता है कि " अब इतना पुण्य खर्च हो गया , अब इतना खर्च हो गया " , अतः दुःक बना रहते से वहाँ भोग का मजा भी किरकिरा हो जाता है । इसलियेचाहे मनुष्य - लोग हो या देवादिलोक, सर्वत्र दुःख और भय हमेशा रहते हैं जिसके फलस्वरूप जीव आनंदपूर्ण नहीं रहपाता । अन्य कोई उपाय नहीं जिससे ये दुःख व भय सर्वथा मिट सके , एकमात्र परमात्मज्ञान से ही दूर होकरआनन्दस्थिति होती है । वह परमात्म - ज्ञान " ओंकार { ॐ } " से ही संभवहै यही इस तार की , प्रणव की ,ॐ की महत्ता है ।

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