शक्तिपात से व्यक्ति की शक्ति जाग उठती है |इसमें विशेषता यह होती है की बिना परिश्रम के ही शिष्य में गुरु कृपा से शक्ति का जागरण हो जाता है |शक्तिपात होने पर यौगिक क्रियाओं की अपेक्षा नहीं रहती है ,वह साधक की प्रकृति के अनुरूप रूप लेने लगती हैं |प्रबुद्ध कुंडलिनी ब्रह्मरंध्र की और प्रवाहित होने के लिए छटपटाती है ,इसी से सभी क्रियाएं स्वतः होने लगती हैं |ऐसा भी देखा गया है की जिन साधकों ने कोई अभ्यास नहीं किया था और न ही विशेष अध्ययन किया था ,वह क्रियाओं को ऐसे करने लगते हैं मानो वे वर्षों से इनका अभ्यास करते रहे हों ,अर्थात क्रियात्मक ज्ञान भी स्वतः शिष्य में शक्तिपात होने पर प्राप्त होने लगता है |हठयोग की क्रियाओं में थोड़ी सी भी त्रुटी हो जाने पर भरी हानि उठाने की संभावना रहती है ,परन्तु यह साधक के अभ्यास में आ जाती हैं और आसन-प्राणायाम-मुद्रा आदि वे अपने आप समझने लगते हैं |यह गुरु कृपा का प्रसाद ही तो है |
शक्तिपात से साधक के आध्यात्मिक क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन हो जाता है |उसमे भगवद्भक्ति का विकास ,चिदात्मा का प्रकाश होता है |मंत्र की सिद्धि होती है ,श्रद्धा और विश्वास का जागरण होता है |शास्त्रों का ज्ञान स्वतः हो जाता है |समस्त तत्वों को स्वायत्त करने की सामर्थ्य उसमे आ जाती है |शारीर भाव पूर्ण हो जाता है |शिवत्व का लाभ होता है ,निर्विकल्प बोध होता है ,अंततः उसे मुक्ति लाभ होता है |
कृष्ण के शक्तिपात से अर्जुन को किस प्रकार आत्मानुभूति हुई इसका ज्ञान गीता में है |तब भगवान ने अर्जुन को बायाँ हाथ फैलाकर अपने ह्रदय से लगा लिया ,दोनों ह्रदय एक हो गए ,जो कुछ एक में था वह दुसरे में उड़ेल दिया ,द्वैत भी बना रहा परन्तु अर्जुन को भगवान ने अपने जैसा बना लिया |यही गुरु कृपा का विशेष लाभ होता है |इसीलिए महाज्ञानी कबीर वर्षों तक गुरु के लिए भटकते रहे और अपनी लगन और श्रद्धा से अपने गुरु को अंततः उन्हें शिष्य स्वीकार करने पर मजबूर कर दिया ,क्योकि वह गुरु का महत्व जानते थे |स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने केवल स्पर्श मात्र से स्वामी विवेकानंद की कुंडलिनी जाग्रत कर दी और उन्हें महान बना दिया
शक्तिपात से साधक के आध्यात्मिक क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन हो जाता है |उसमे भगवद्भक्ति का विकास ,चिदात्मा का प्रकाश होता है |मंत्र की सिद्धि होती है ,श्रद्धा और विश्वास का जागरण होता है |शास्त्रों का ज्ञान स्वतः हो जाता है |समस्त तत्वों को स्वायत्त करने की सामर्थ्य उसमे आ जाती है |शारीर भाव पूर्ण हो जाता है |शिवत्व का लाभ होता है ,निर्विकल्प बोध होता है ,अंततः उसे मुक्ति लाभ होता है |
कृष्ण के शक्तिपात से अर्जुन को किस प्रकार आत्मानुभूति हुई इसका ज्ञान गीता में है |तब भगवान ने अर्जुन को बायाँ हाथ फैलाकर अपने ह्रदय से लगा लिया ,दोनों ह्रदय एक हो गए ,जो कुछ एक में था वह दुसरे में उड़ेल दिया ,द्वैत भी बना रहा परन्तु अर्जुन को भगवान ने अपने जैसा बना लिया |यही गुरु कृपा का विशेष लाभ होता है |इसीलिए महाज्ञानी कबीर वर्षों तक गुरु के लिए भटकते रहे और अपनी लगन और श्रद्धा से अपने गुरु को अंततः उन्हें शिष्य स्वीकार करने पर मजबूर कर दिया ,क्योकि वह गुरु का महत्व जानते थे |स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने केवल स्पर्श मात्र से स्वामी विवेकानंद की कुंडलिनी जाग्रत कर दी और उन्हें महान बना दिया
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