फ़ल तो ऋतु आने पर ही आवेगा किन्तु उसके लिये वर्षों पूर्व भूमि तैयार करनी पड़ती है। एक ही लक्ष्य को स्मरण रखते हुए निरन्तर आस-पास की खर-पतवार को दूर करते हुए, जानवरों से रखवाली करते हुए, कोमल पौधे के चारों ओर बाड़ लगाते हुए, खाद और जल के द्वारा निरन्तर सिंचन करते रहना होता है। यह सब यदि लगन से किया गया है और प्रक्रिया निरन्तर चल रही है तो नि:सन्देह ॠतु आने पर परिश्रम फ़लीभूत होगा ही। माली ने अपना कार्य किया अब प्रकृति का कार्य है। प्रकृति निराश भी नहीं करती। अवश्य ही प्रारब्ध-दोषों के फ़लस्वरुप भौतिक जगत में इच्छित वस्तु प्राप्त नहीं होती किन्तु भक्ति-मार्ग में निराशा है ही नहीं। बस, स्वयं को निरन्तर पात्रता की दिशा में उन्मुख रखना है। कृपा तो बरसेगी ही किसी न किसी दिन ! जिस प्रकार किसान अपनी भूमि को जोतकर आकाश के मेघों की ओर निहारता है ; उसी प्रकार भक्त, अपने को निरन्तर भौतिक दोषों से मुक्त करते हुए टकटकी लगाये श्रीहरि की अहैतुकी कृपा की बड़े ही संयम-धीरज से प्रतीक्षा करता है। कोई जल्दी नहीं ! अवश्य ही कृपा बरसेगी, उचित समय पर ! उचित समय? कौन सा? वे श्रीहरि ही जानते हैं ! संभवत: पात्रता में अभी कमी रह गयी हो? पात्र को ऐच्छिक न प्रदान करें; यह तो उनका स्वभाव नहीं ! अरे ! वे तो करूणावश, अपात्रों को भी सब दे डालते हैं सो पात्रता ही नियम हो, ऐसा भी नहीं किन्तु संभावनायें अवश्य ही बढ़ जाती हैं। अपात्र, कृपा का महत्व भी तो न समझेगा ! उसे अपने कल्याण के लिये भी तो प्रयोग न कर सकेगा ! बहुत संभव है कि पूर्व की अपेक्षा अपना और अधिक पतन कर ले ! सो, कुसंग रुपी खर-पतवार को निरन्तर दूर करते हुए, अपने भक्ति-रुपी पौधे को मायिक पशुओं से बचाते हुए, संतों के सानिध्य में, सत्संग रुपी जल से निरन्तर सिंचन करते हुए, एकमात्र श्रीहरि की ही कृपा का आश्रय ले और उनके ही बल से दास का यह कहने का साहस हो जाता है कि कोई भी निराश न होगा ! कृपा तो बरस ही रही है, अनवरत ! पात्र देख सकते हैं ! अनुभव कर सकते हैं ! तो तुम क्यों नहीं? आओ न ! वे तुम्हारे ही हैं ! खिलौना लेकर ऐसे न रम जाओ कि माँ का भी स्मरण न रहे ! पुकारो ! क्रन्दन करो ! वह तुम्हारे पास ही तो है तुम्हें गोद में उठाकर दुलारने के लिये ! तो फ़ेंक दो न खिलौना ! देखो ! माँ टकटकी लगाये तुम्हें ही तो निहार रही है किन्तु जब तक तुम खेल में मग्न हो तब तक माँ को न देख सकोगे ! यह मत कहो कि माँ को तुम्हारी चिन्ता नहीं है ! सत्य तो यह है कि तुम्हें उसकी ओर देखने का अवकाश ही नहीं है !
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