संसार का त्याग कर या जीवन से भाग कर ईश्वर को नही पाया जा सकता ,बल्कि संसार में रहकर ही ईश्वर में जिया जा सकता है ।कुछ लोगों ने इस विषय को इतना जटिल बना दिया है कि ईश्वर को पाने के लिये बहुत बडे त्याग की जरूरत है , जो लोग अपने को त्यागी और वैरागी मान बैठे है , उन्हें हम भगवान मान बैठे है ।हमारे धर्म -दर्शन को कुछ लोगों ने अपने लाभ के लिये पलायनवादी बना दिया है ।
वैराग्य की धारणा जैसे तत्वों की नासमझ के कारण हम अपने आस - पास के परिवेश की दशा से अपने को अलग रखने की पृवत्ति को बढावा दिया है ।जीवन से पलायन की इसी प्रवत्ति ने कई युवाओं को पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारी से भागने के लिये प्रेरित किया है ।श्री राम शर्मा ने बहुत पहले देश में लगभग 36 लाख बाबा होने का अनुमान लगाया था ,और यह विचार दिया था कि 5-6 बाबा प्रति गाँव के विकास एंव खुशहाली के लिये अपना समय दे सके तो देश की प्रगति को बहुत पहले ही सुनिश्चित किया जा सकता था ।
भौतिकता मे लिप्त मानव चेतना को यह कहें कि अगर ईश्वर को पाना है तो दुनिया के सुखों का त्याग करना पडेगा ...,. शायद ही कोई जिसे हम तैयार कर सके । एक गरीब को , एक युवा कभी प्रभावित नही होगा आपसे ।।
ये धर्म का गलत प्रचार है ।
युगों युगों से ढूँढ रहे है ,
सुरपुर के भगवान को
किन्तु ना खोजा अब तक
हमने धरती के इंसान को ।
चर्चा ब्रम्ह ज्ञान की करते
किन्तु पाप से तनिक न डरते,
राम -नाम जपते है दुख में ,
साथी है रावण के सुख में
प्रतिमायें रच कर देवों की
पूजा है पाषाण को
किन्तु न खोजा अब तक हमने धरती के इंसान को ।।
ज्ञान नितनूतन है आज की मानव चेतना की पृवत्तियों को समझ कर जो सत्य को सामने लायेगा उसी को लोग सुनना पसंद करगे ।
हमें लोगो से यह नही कहना कि ये पकडो , ये छोडों , सिर्फ यही कहना है जो तुम कर रहे हो वह ठीक है लेकिन सब कुछ करते हुये तुम्हे सत्य में जीने का अभ्यास भी करना है , जैसे जैसे हम अपने सत्य को देखते जायेगें , वैसे -वैसे हम अपने आपको बदलते जायेगें ।
बुरा जो देखन मै चला
मुझसे बुरा न कोय
वैराग्य की धारणा जैसे तत्वों की नासमझ के कारण हम अपने आस - पास के परिवेश की दशा से अपने को अलग रखने की पृवत्ति को बढावा दिया है ।जीवन से पलायन की इसी प्रवत्ति ने कई युवाओं को पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारी से भागने के लिये प्रेरित किया है ।श्री राम शर्मा ने बहुत पहले देश में लगभग 36 लाख बाबा होने का अनुमान लगाया था ,और यह विचार दिया था कि 5-6 बाबा प्रति गाँव के विकास एंव खुशहाली के लिये अपना समय दे सके तो देश की प्रगति को बहुत पहले ही सुनिश्चित किया जा सकता था ।
भौतिकता मे लिप्त मानव चेतना को यह कहें कि अगर ईश्वर को पाना है तो दुनिया के सुखों का त्याग करना पडेगा ...,. शायद ही कोई जिसे हम तैयार कर सके । एक गरीब को , एक युवा कभी प्रभावित नही होगा आपसे ।।
ये धर्म का गलत प्रचार है ।
युगों युगों से ढूँढ रहे है ,
सुरपुर के भगवान को
किन्तु ना खोजा अब तक
हमने धरती के इंसान को ।
चर्चा ब्रम्ह ज्ञान की करते
किन्तु पाप से तनिक न डरते,
राम -नाम जपते है दुख में ,
साथी है रावण के सुख में
प्रतिमायें रच कर देवों की
पूजा है पाषाण को
किन्तु न खोजा अब तक हमने धरती के इंसान को ।।
ज्ञान नितनूतन है आज की मानव चेतना की पृवत्तियों को समझ कर जो सत्य को सामने लायेगा उसी को लोग सुनना पसंद करगे ।
हमें लोगो से यह नही कहना कि ये पकडो , ये छोडों , सिर्फ यही कहना है जो तुम कर रहे हो वह ठीक है लेकिन सब कुछ करते हुये तुम्हे सत्य में जीने का अभ्यास भी करना है , जैसे जैसे हम अपने सत्य को देखते जायेगें , वैसे -वैसे हम अपने आपको बदलते जायेगें ।
बुरा जो देखन मै चला
मुझसे बुरा न कोय
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