Wednesday, 10 September 2014

वो ज्ञान मोक्ष ही होता हैं

**अलख निरंजन**
पंथ छोड़ बे पंथ जावे क्यों छोड़े सगी खुदाई ।
घर का माखन छोड़ के बंदे क्यों पीवे छाछ पराई ।।
""यहाँ वाणी बाबा शीलनाथ जी की हैं 
एक बार उनके शिष्य ने कहा गुरूजी ये ब्राह्मणदेव की पूजा हमें लुभाती हैं ग्यान सभा में सभी विराजमान थे तो श्री शीलनाथ जी मंद मंद मुस्कुराते हुए यहाँ वाणी कही और इसका अर्थ भी कहा की तुह्मारी जिज्ञासा उचित हैं पर यहाँ भेद भी जान लो हमारा जो नाथ पंथ हैं उसमे चारो वरण समाहित हैं ब्रह्माण, छत्रिय,वेश्य, शुद्र , ये चारो वर्ण नाथ पंथ में समाहित हैं परंतु नाथ पंथ इनमे समाहित नहीं हैं क्युकी जब ये चारो वरण कर्म के अनुसार थक जाते हैं और इनमे ग्यान का बीज उत्पन्न होता हैं वो ज्ञान मोक्ष ही होता हैं जब कोई भी वरण उत्तम ज्ञान पर पुहाच जाता हैं उसे उससे आगे ज्ञान को पाने वाले ज्ञान मोक्ष का ज्ञान को पाने ललाइत होता ।।
वा जो ज्ञान के अधिकारी और कोई नहीं शिव रूपा गोरख हैं भगवान शिव ने इस के विषय में कहा हैं सुनो देवी पारवती कोई भी मनुष्य चाहे लाख हवन करे या लाखो वर्षो तक तप या मंत्रो के करोडो जप पर वहा मोक्ष अधिकारी नहीं हो सकता इसे महाज्ञान को पाने के सिर्फ योग ही समर्थ रखता हैं जब तक मनुष्य इसे नहीं अपनाता तब तक कोई भी जतन करे उसे नहीं पा सकता इसलिय देवी आप महायोगी मोक्ष रूपा मेरा ही स्वुरूप गोरक्ष नाथ की शरण में जाकर उनकी शिष्या बनो और उस महाज्ञान को पाओ भगवान शिव के मुख से कहे इस परम भेद को जानकर देवी भावानी ने नाथ पंथ दीक्षा ली और उदयनाथ कहाई ।।इतना कहने के बाद श्री शिल्नाथ्जी आपने शिष्य से बोले अब आपही ही निर्णेय करो की पंथ भजो की बे पंथ इतना सुनकर शिष्य भाव्वीभोर होक नाथ जी के चरणों में बैठकर कर कहा गुरूजी छमा कर दो मुझसे भूल हो गई छमा करे कृपानिधान ।।
" श्री शीलनाथ ग्रन्थ "

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