बुद्ध ने अनेक—अनेक रूपों में लोगों को जागने की ही शिक्षा दी है। कोई ज्यादा भोजन कर रहा है, तो उसे जगाया। कोई भूखा है—तो कैसे जाग पाएगा—तो भोजन दिया। कोई रागाग्नि में डूबा है, तो उसे झकझोरा, जगाया। कोई शब्दों में, रोने—धोने में, संबंधों में डूबा है, तो उसे हिलाया।
तोड़कर पुराने आभूषण
नहीं बनाया कोई नया आभरण
नकारकर स्थापित मूल्य
नहीं रचा कोई नया प्रतिमान
केवल दी मूर्च्छा—विमुक्त दृष्टि
सत्य को मुक्ति।
केवल दी मूर्च्छा—विमुक्त दृष्टि
बुद्ध का दान इतना ही है—मूर्च्छा—विमुक्त दृष्टि। तुम सोए—सोए न जीओ। जागकर जीओ। होश से जीओ। बुद्ध ने कोई प्रार्थना नहीं सिखायी किसी आकाश में बैठे परमात्मा के प्रति। न बुद्ध ने कहा भिखारी बनकर मांगो। न बुद्ध ने कहा याचक बनो, हाथ फैलाओ किसी परमात्मा के सामने। बुद्ध ने तो कहा, अपने भीतर जाओ और परमात्मा मिल जाएगा, तुम परमात्मा हो।
नहीं किसी याचक की प्रार्थना
कि देवता पूरी करें कामना
नहीं किसी संत्रस्त की गुहार
कि इंद्र करें रिपु का हनन
केवल नमन उनको
जो अरिहंत, जो संत,
भले ही उनका कोई धर्म कोई पंथ
मात्र समर्पण की वर्णमाला
एकमात्र मंत्र
एकमात्र मंत्र सिखाया—समर्पण की वर्णमाला। कैसे तुम अपने अंतस्तल के केंद्र पर अपनी परिधि को समर्पित कर दो। कैसे तुम व्यर्थ को सार्थक पर समर्पित कर दो। कैसे तुम बाहर को भीतर पर समर्पित कर दो।
मात्र समर्पण की वर्णमाला
एकमात्र मंत्र
और कोई मंत्र नहीं सिखाया बुद्ध ने।
नहीं किसी याचक की प्रार्थना
कि देवता पूरी करें कामना
नहीं किसी संत्रस्त की गुहार
कि इंद्र करें रिपु का हनन
केवल नमन उनको
जो अरिहंत, जो संत
भले ही उनका कोई धर्म कोई पंथ
मात्र समर्पण की वर्णमाला
एकमात्र मंत्र
अरिहंत शब्द बौद्धों का बहुमूल्य शब्द है। उसका अर्थ होता है, जिसने अपने शत्रुओं पर विजय पा ली। और शत्रुओं का जो प्रधान है, उसको बुद्ध ने प्रमाद कहा है, मूर्च्छा। जो जाग गया, वह अरिहंत। जो जाग गया, वही संत। फिर उसका क्या धर्म और क्या पंथ, इसका कुछ हिसाब रखने की जरूरत नहीं। जहा तुम्हें कोई अरिहंत मिल जाए, कोई संत मिल जाए, उसके पीछे चलो।
‘जैसे चंद्रमा नक्षत्र—पथ का अनुसरण करता है, वैसे ही धीर, प्रात, बहुश्रुत, शीलवान, व्रतसंपन्न, आर्य तथा बुद्धिमान पुरुष का अनुगमन करना चाहिए।
जहां संत मिल जाएं, उनकी छाया में उठो—बैठो। जहा संत मिल जाएं, उनकी तरंगों में डूबो। उनका रस पीओ। उनकी धारा में बहो, स्रोतापन्न बनो।
ये छोटी—छोटी कथाएं और इन कथाओं के मध्य में आए छोटे—छोटे सूत्र तुम्हारे समग्र जीवन को रूपातरित कर सकते हैं। लेकिन मात्र सुनने से नहीं, गुनो, करो। जैसे बुद्ध ने कहा न, कि भिक्षुओ, मैं आज से चार माह बाद परिनिवृत्त हो जाऊंगा, इसलिए जो करने योग्य है, करो। फिर बुद्ध चार माह रहें तुम्हारे साथ, कि चार साल रहें, कि चालीस साल, क्या फर्क पड़ता है। जो करने योह है, करो।
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