Monday, 29 September 2014

यहां जाकर मन प्रत्यक्ष ब्रह्म में लीन हो जाता है

यह शब्द ‘ओम्’ है। विश्व के सभी धर्मों में इस शब्द की महिमा गाई गई है। बाइबिल में लिखा है - On the beginning was the work and the word with god and the word was god. यह 'Word' ओम ही है। मुस्लिम धर्म में इस शब्द को ‘कलमा’ ‘बांग’, ‘आवाजे खुदा’ आदि नामों से पुकारा गया है।
शास्त्रों में वर्णित है कि ॐकार से ही इस विश्व की सृष्टि हुई है। ‘शब्द’ पद का वैदिक अर्थ है - सूक्ष्म भाव (Subtitle Idea) सूक्ष्म भाव स्थूल पदार्थ का सूक्ष्म रूप है। इन्हीं भावों का आश्रय लेकर सभी स्थूल पदार्थों की सृष्टि होती है। भाव-शब्द ही स्थूल रूपों का जन्मदाता है। मन में उठने वाला प्रत्येक भाव अथवा मुख से उच्चरित होने वाला प्रत्येक शब्द विशेष - विशेष कंपन मात्र हैं। इन कम्पनों में खास-खास आकृति बनाने की क्षमता रहती है।  उच्चारण के साथ ही आकृति बन जाती है। अतः किसी भी स्थूल पदार्थ की सृष्टि होने से पूर्व उससे सम्बन्धित भाव विद्यमान रहता है और वही भाव स्थूलाकार में परिणत हो जाता है। सारी सृष्टि के लिए यही नियम लागू होता है। विभिन्न प्रकार के भावों या शब्दों से ही इस विचित्र बहुरूपात्मक विश्व की सृष्टि हुई है। विश्व निर्माणकारी ये सभी भाव एक ही शब्द अथवा भाव से निःसृत हुए हैं और वह शब्द है ‘ओम’। ‘ओम्’ सभी भावों की समष्टि है।
अब प्रश्न उठता है कि इसका क्या प्रमाण है कि विश्व निर्माणकारी सभी भाव ‘ओम’ से ही निःसृत हुए हैं। इसका सबसे बड़ा प्रमाण है - ब्रह्मज्ञ पुरुषों की प्रत्यक्ष अनुभूति। ब्रह्मज्ञ पुरुषों को समाधि की अवस्था में अनुभव होता है कि जगत् शब्दमय है और फिर वह शब्द गंभीर ओंकार ध्वनि में लीन हो जाता है। विभिन्न स्थितियां इस प्रकार वर्णित करते हैं योगी जना ‘घर्र-घर्र की आवाज, घंटा, वीणा की आवाज, सारेगम प द नी सा के स्वरों की आवाज, शंख ध्वनि’, इसके पश्चात् ॐकार की ध्वनि, फिर उसके बाद कोई स्वर नहीं। शब्दातीत स्थिति को अनादि नाद कहकर पुकारते हैं। यहां जाकर मन प्रत्यक्ष ब्रह्म में लीन हो जाता है। सब निर्वाक, स्थिर। समाधि से लौटते वक्त भी जब पहली अनुभूति होती है तो ओंकार शब्द ही सुनाई पड़ता है। यह अनुभूतिजन्य विवरण सभी ब्रह्मज्ञ पुरुषों का एक सा ही है।

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