Monday, 9 June 2014

तब सच्चा प्यार होगा

भक्ति सभी करते हैं क्योंकि यह हर मनुष्य
की फितरत है कि उसका लगाव किसी न किसी से
होता ही है। लोग समझते हैं कि भक्ति सिर्फ
भगवान की होती है और इसलिए कुछ
लोगों का कहना है कि हमें भक्ति-वक्ति से कोई
मतलब नहीं पर भक्ति हर मनुष्य करता है चाहे
वहभगवान की हो या फिर अन्य चीजों की जैसे
धन, स्त्री, पुत्र, समाज या फिर देश की भक्ति।
भक्ति का तात्पर्य है अनन्य प्रेम, एक
ऐसी दीवानगी कि जिससे प्रेम है उसके बिना,
उसका विरह अच्छा नहीं लगता। निश-दिन, हर पल
उसकी याद में खोया रहना ही भक्ति है। जिससे
प्रेम है, उसके लिए कुछ भी करने को तैयार
रहना ही भक्ति है और ऐसी भक्ति बिना जाने,
समझे नहीं होती।
अब बात आती है भगवान की भक्ति की। हर मनुष्य
भक्ति करता है बतौर प्रार्थना, पूजा-पाठ
तीर्थाटन और अन्य कर्मकांड। कोई मस्जिद
जाता है, नमाज पढ़ता है, हज जाता है तो कोई
चर्च व गुरुद्वारे जाता है, माला फेरता है। अपने
अपने तरीके से भक्ति हो रही है लेकिन इस
भक्ति का आधार कल्पना है, वास्तविकता नहीं।
भला जिस भगवान को, खुदा को, वाहे गुरु को,
यीशु को देखा नहीं, पहचाना नहीं, तो उससे प्रेम
कैसे होगा?
अब लोग बोलते हैं कि उसे
देखना पहचानना मुश्किल है और उससे प्रत्यक्ष
मिलने के लिए तो घर-गृहस्थी व धंधा-रोजगार सब
कुछ त्यागना पड़ेगा। नहीं, नहीं, नहीं।
यदि भक्ति का आनंद पाना है,
सच्ची भक्ति करनी है तो घर-गृहस्थी व सारेर्
कत्तव्य कर्म करते हुए सच्चा ज्ञान प्राप्त
करना होगा और सच्चा ज्ञान तब मिलता है जब
हम भी सच्चे जिज्ञासु होंगे और सच्चे सद्गुरु
का सान्निध्य मिलना भी जरूरी है।
नाना शास्त्र पठेन लोके, नाना देवत पूजनम।
आत्मज्ञान बिन पार्थसर्व कर्म निरर्थकम।’
अर्थात भक्ति के नाम पर क्या कुछ
नहीं किया लेकिन सब निरर्थक है
बिना ‘आत्मज्ञान’ के। मंदिर-मस्जिद भटका जाये,
बिन सद्गुरु ज्ञान कहां ते पाये। ज्ञान! खुद
का ज्ञान।
जो परमात्मा हमारे अंदर निवास करता है
उसका ज्ञान प्राप्त करने के लिए खुद का ज्ञान,
जिसे ‘आत्मज्ञान’ भी कहा, जरूरी है। जब
परमात्मा का ज्ञान होगा, तभी तो सच्चा प्रेम
जागृत होगा, तभी विश्वास का दीपक
प्रज्ज्वलित होगा और उस प्रेम-विश्वास- ज्ञान
के प्रकाश में समस्त संशय, भ्रम अज्ञान का अंधकार
नष्ट होगा तथा जीवन में जो खुशहाली आयेगी, वह
अद्वितीय होगी तथा जीवन का मकसद
पूरा होगा।
गोपी-ग्वालों को श्रीकृष्ण के साथ मक्खन
चुराना, गायों को चराना और अन्य बाल-
लीलाओं का खूब आनन्द मिला लेकिन ज्ञान
नहीं था कि यही भगवान है। अर्जुन भी उनमें से एक
थे पर जब कुरुक्षेत्र के मैदान में श्रीकृष्ण ने ज्ञान
दिया तब अर्जुन हक्के-बक्के रह गए और
क्षमा मांगी कि मैं आपको पहचान नहीं सका, आप
तो भगवानों के भी भगवान हैं। तो बात है ज्ञान
की।
संसार में भी हम किसी बच्चे
की फोटो या मूर्ति से प्यार नहीं करते और न
ही किसी महिला की तस्वीर से शादी करते हैं।
जीते-जागते से प्यार होता है न कि काल्पनिक
चीजों से। तो क्या भगवान जीता-
जागता नहीं है? अरे भाई हमारा जिंदा होना इस
बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि भगवान
जीता जागता है, आवश्यकता है सिर्फ उससे
प्रत्यक्ष मिलने की और इसके लिए चाहिए ज्ञान
और और जब ज्ञान प्राप्त होता है तब
सच्चा प्यार होगा और तभी सच्ची भक्ति होगी।
यह भी एक विडंबना ही है कि सरल व सहज
तथा सच्ची भक्ति को छोड़कर हम कठिन,
दुःखदायी व काल्पनिक भक्ति में पड़े हुए हैं और
भक्ति का जो रस मिलना चाहिए उससे हम वंचित
हैं।
बिना ज्ञान के भक्ति नहीं और ज्ञान
बिना सद्गुरु के प्राप्य नहीं होता। तो सर्वप्रथम
हमें सच्चे सद्गुरु की तलाश करनी चाहिए। यह बात
मैंने कई संत-महात्माओं से सुनी थी और ग्रंथों में
भी पढ़ा था कि ‘गुरु बिन होई न ज्ञान, सुख
की लहहिं हरि-भक्ति बिनु।’
सच्चा सुख भी हरि-भक्ति से मिलता है और
भक्ति ‘ज्ञान की होई वैराग बिनु’ ज्ञान से
वैराग होने पर प्राप्त होती है। कैसा वैराग्य? घर-
गृहस्थी छोड़ने का नहीं, बल्कि काम-क्रोध, मद-
लोभ-मोह से मुक्त होना और ज्ञानाग्नि में ये
सभी विकार नष्ट हो जाते हैं और तब प्रारंभ
होती है भक्ति जो कि सुख प्रदान करती है,
ऐसा सुख जो कभी कोई भी हमसे छीन
नहीं सकता।

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