जैसे काठ का कीड़ा, काठ को भीतर ही भीतर खाकर जर्जर बना देता है, इसी प्रकार इस शरीर रूप काठ को कामादि काल, भीतर ही भीतर खाकर, जर्जर बना देते हैं । और मनुष्य - जन्म को निरर्थक ही खत्म कर देता है । दिनों - दिन इस जीव की इसी प्रकार ‘आयु’ कहिये उम्र घटती जाती है, परन्तु यह अज्ञानी जीव चेत नहीं करता है विषयासक्त जीव के शऱीरों को काल - भगवान, दिन - दिन, घड़ी - घड़ी, छिन - छिन, पल - पल, में श्वास - श्वास पर ग्रावसत् खा रहा है । परन्तु अज्ञानी जीव, काल से बचने के लिये प्रभु का स्मरण फिर भी नहीं करते ॥ एक पग उठाते ही, पलक खोलते ही, एक श्वास लेते ही, शब्द बोलते ही, कौन जाने काल की गति को, शरीर रहे या न रहे ? ब्रह्मऋषि कहते हैं कि हाथ में रोटी का ग्रास लेकर मुख में रखते ही अर्थात् न जाने, दूसरा ग्रास ले या नहीं ले, शरीर छूट जाय ? इस काल की गति को कोई भी नहीं जानते हैं ॥यह स्थूल शरीर रूप काया, कुम्हार के कच्चे घड़े की तरह देखते - देखते ही विनिष्ट होती जा रही है । इसलिये जब तक शरीर में प्राण हैं, तब तक सचेत होकर राम - नाम का स्मरण करना चाहिये ॥यह काया क्षण - भंगुर और कच्चे घड़े की तरह है । हमें इसका कोई विश्वास नहीं है कि यह स्थिर रहेगी ? और क्या कहैं ? हाथी के ऊपर बैठने वाले, मस्तक के ऊपर छत्रधारी, ऐसे ऐसे चक्र वर्ती राजाओं के भी शरीर एक क्षण में विनष्ट हो गये हैं ॥यह पंच भौतिक शरीर, अविद्या रचित कच्चे घड़े की तरह है । इसके नाश होने में कोई देर नहीं लगती है । ब्रह्मऋषि कहते हैं कि इस काया रूपी महल में बोलने वाला, आभास अन्तःकरण रूप प्राण, यह भी जाने वाला है । इसलिये राम - नाम के स्मरण द्वारा अपनी रक्षा करो चार पुरुषों ने एक कोटड़ी किराये ली । मकान मालिक ने कहा ~ मैं चाहूँगा, तभी खाली करवा लूंगा । एक ने उसमें तमाम घर का जखीरा ला कर भर दिया । दूसरे ने खाने - पकाने का सामान रखा । तीसरे ने केवल अपना बिस्तर ही लाकर रखा । चौथा उसमें खाली लेट लगाकर चला जावे । मकान मालिक ने एक रोज कहा ~ तुम लोगों ने तो अब तक किराया नहीं दिया, इसलिये कोटडी खाली कर दो । पहले नम्बर के मनुष्य को बहुत भारी दुःख हुआ । दूसरे को उससे कम दुःख हुआ । तीसरे को दूसरे से कम दुःख हुआ । चौथे को ना बराबर दुःख हुआ, क्योंकि वह कुछ रखता ही नहीं था ।
इसी प्रकार काल - भगवान से, यह शरीर नाम की कोटडी, पामर, विषयी, जिज्ञासु, मुक्त, इन चारों ने ली । पामर इसमें पूरा अध्यास कर बैठा, विषयी इसमें उससे कम, केवल विषय - सुख का उपभोग करने लगा । जिज्ञासु ने इसमें साधन साधने का ही अध्यास किया । मुक्त को इसमें किसी प्रकार का अध्यास नहीं था । काल - भगवान ने सहसा आदेश दिया कि कोटड़ी खाली कर दो । जितना जितना जिसको शरीर में अध्यास रूप ममत्व था, उतना उतना उनको दुःख हुआ । ज्ञानी को किंचित् भी अध्यास नहीं था, सो उसको इसके त्यागने में जरा सा भी दुःख नहीं हुआ ।
इसी प्रकार काल - भगवान से, यह शरीर नाम की कोटडी, पामर, विषयी, जिज्ञासु, मुक्त, इन चारों ने ली । पामर इसमें पूरा अध्यास कर बैठा, विषयी इसमें उससे कम, केवल विषय - सुख का उपभोग करने लगा । जिज्ञासु ने इसमें साधन साधने का ही अध्यास किया । मुक्त को इसमें किसी प्रकार का अध्यास नहीं था । काल - भगवान ने सहसा आदेश दिया कि कोटड़ी खाली कर दो । जितना जितना जिसको शरीर में अध्यास रूप ममत्व था, उतना उतना उनको दुःख हुआ । ज्ञानी को किंचित् भी अध्यास नहीं था, सो उसको इसके त्यागने में जरा सा भी दुःख नहीं हुआ ।
No comments:
Post a Comment