जिस प्रकार से किसी भी जातक की कुंडली में सुख दायक योग होते है , उसी प्रकार से जातक की कुंडली में विभिन्न प्रकार के शारीरिक , मानसिक, आर्थिक कष्ट देने वाले योग भी होते है , जो निम्नानुसार :-
१. यदी लग्न का स्वामी कमजोर होकर ६, ८, १२ वे भाव में स्थित हो, तो , सुख में कमी होती है।
२. यदी ६, ८, १२, वे भाव के स्वामी कमजोर होकर लग्न में हो, तो , सुख की कमी रहती है।
३. यदी चतुर्थ भाव में पाप ग्रह हो तथा गुरू कमजोर होतो , जातक को सुख की कमी होती है।
४. यदी लग्न भाव में पाप ग्रह होतो, जातक सुख का अभाव महसूस करता है।
५. यदी लग्न में शनी , ८ वे भाव में राहू, ६ ठे भाव में मंगल हो तो , जातक सुख का अभाव महसूस करता है।
६. यदी ८ वे भाव का स्वामी १२ भाव में होतो , जातक दुःख सहता है।
७. यदी चतुर्थेश पाप ग्रह से युत होतो , धनी जातक भी दुःखी रहता है।
८. सूर्य या मंगल नीच राशी के या पाप ग्रह की राशी के होकर चतुर्थ भाव में हो तो।
९. यदी चंद्रमा के २ रे तथा १२ वे भाव में पाप ग्रह होहोतो।
१०. यदी पंचम भाव में सूर्य , बुध, राहू चतुर्थ में मंगल और ८ वे भाव में शनी हो तो।
१. यदी लग्न का स्वामी कमजोर होकर ६, ८, १२ वे भाव में स्थित हो, तो , सुख में कमी होती है।
२. यदी ६, ८, १२, वे भाव के स्वामी कमजोर होकर लग्न में हो, तो , सुख की कमी रहती है।
३. यदी चतुर्थ भाव में पाप ग्रह हो तथा गुरू कमजोर होतो , जातक को सुख की कमी होती है।
४. यदी लग्न भाव में पाप ग्रह होतो, जातक सुख का अभाव महसूस करता है।
५. यदी लग्न में शनी , ८ वे भाव में राहू, ६ ठे भाव में मंगल हो तो , जातक सुख का अभाव महसूस करता है।
६. यदी ८ वे भाव का स्वामी १२ भाव में होतो , जातक दुःख सहता है।
७. यदी चतुर्थेश पाप ग्रह से युत होतो , धनी जातक भी दुःखी रहता है।
८. सूर्य या मंगल नीच राशी के या पाप ग्रह की राशी के होकर चतुर्थ भाव में हो तो।
९. यदी चंद्रमा के २ रे तथा १२ वे भाव में पाप ग्रह होहोतो।
१०. यदी पंचम भाव में सूर्य , बुध, राहू चतुर्थ में मंगल और ८ वे भाव में शनी हो तो।
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