भगवान सर्वव्यापक हैँ । ऐसी कोई वस्तु नहीँ है जिसका पता उन्हेँ न हो । भगवान की सर्वव्यापकता कभी भी जीव के संकुचित ज्ञान मेँ समाहित नहीँ हो सकती । जिस व्यक्ति ने भगवान के चरणकमलोँ मेँ अपने मन को स्थिर कर लिया है , वही भगवान को कुछ हद तक समझ सकता है । मन का तो काम ही है कि वह इन्द्रियतृप्ति के लिए विविध विषयोँ के पीछे दौड़ता रहता है । अतः जो व्यक्ति अपने मन को निरन्तर भगवान की सेवा मेँ लगाये रहता वही मन को वश मे कर सकता है और भगवान के चरण कमलोँ मेँ स्थिर हो सकता है । भगवान के चरणकमलोँ मेँ मन की एकाग्रता समाधि कहलाती है । इस समाधि अवस्था को प्राप्त हुए बिना वह भगवान के स्वभाव को नहीँ समझ सकता। कुछ दार्शनिक या विज्ञानी विराट प्रकृति के एक एक अणु का अध्ययन कर सकते हैँ , वे इतने प्रगतिशील भी हो सकते हैँ कि विराट आकाश या आकाश के समस्त ग्रहोँ तथा नक्षत्रोँ के परमाणुओँ का , यहाँ तक कि सूर्य या कि आकाश , तारोँ तथा अन्य ज्योतिष्तकोँ के चमकीले अणुओ की गणना कर सकते हैँ । किन्तु श्रीभगवान के गुणोँ की गणना कर पाना सम्भव नहीँ है ।
No comments:
Post a Comment