Saturday, 14 June 2014

हर तरह की दौड़ छोड़ देनी होती है

दौड़ना छोड़ दो! अगर मुझे आपके पास आना हो तो दौड़ना पड़ेगा, चलना पड़ेगा और अगर मुझे मेरे ही पास आना हो तो फिर कैसे दौडूंगा और कैसे चलूंगा? अगर कोई आदमी कहे कि मैं अपने को ही पाने के लिए दौड़ रहा हूं, तो हम उसे पागल कहेंगे और उसे सलाह देंगे कि दौड़ने में तुम वक्त बर्बाद कर रहे हो। दौड़ने से क्या होगा? दौड़ते हैं दूसरे तक पहुंचने के लिए, अपने तक पहुंचने के लिए कोई दौड़ना नहीं होता। इसलिए अपने तक पहुंचने के लिए हर तरह की दौड़ छोड़ देनी होती है। क्रिया होती है कुछ पाने के लिए, लेकिन जिसे स्वयं को पाना है उसके लिए कोई क्रिया नहीं होती, सारी क्रिया छोड़ देनी होती है। जो क्रिया छोड़ कर, दौड़ छोड़ कर रुक जाता है, ठहर जाता है, वह खुद को पा लेता है और यह खुद को पा लेना ही सबकुछ पा लेना है। जो इसे खो देता है वह सब पा ले तो भी उसके पाने का कोई मूल्य नहीं। लगातार दौड़ने के बाद एक दिन वह पाएगा कि वह खाली हाथ था और खाली हाथ ही है। अज्ञान की स्थिति में ध्यान के सिवा कोई और मार्ग नहीं है, और ध्यान की अवस्था में जाना अज्ञानी के बस का नहीं है।

No comments:

Post a Comment