Thursday, 31 July 2014

परमात्मा की मौजूदगी का एहसास होता है।

मन की शांति चाहिए तो कुछ ऐसे करें कोशिश
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शांति किसे मिलती है। तीन गुण जिसमें हो,
प्रकृति से निकटता, मौन और ध्यान। ये तीन गुण
व्यक्ति को भीतरी शांति प्रदान करते हैं।
भगवान शिव में ये तीनों ही गुण मौजूद हैं।
इसलिए रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने
उनकी तुलना खुद शांत रस से की है।
शिव के चेहरे पर शांति के ये ही मुख्य कारण हैं। वे
हमेशा प्रकृति के निकट रहते हैं। उन्हें इसीलिए
प्रकृति का देवता भी कहा जाता है। शिव
भीतर और बाहर दोनों ओर से शांत हैं क्योंकि मौन और
ध्यान दोनों उनके प्रमुख गुण हैं।
हम जब भी समय पाएं, थोड़ा मौन और ध्यान
की ओर जाएं। प्रकृति के निकट जाकर बैठने का प्रयास
करें। उसके संकेतों पर ध्यान दें। थोड़ी देर आंखें मूंदकर
बैठें। बस शांति स्वत: आपके भीतर प्रवाहित होने लगेगी।
भगवान शिव की दिनचर्या में ये बातें शामिल हैं। वे सुबह
शाम समाधि में रहते हैं। भ्रमण करते हैं। कैलाश पर्वत उनका निवास
है। हम भी ध्यान और मौन की ओर जाने
का प्रयास करेंगे तो जिस शांति की तलाश में हम
लाखों खर्च कर देते हैं वो सहज ही मिल सकेगी।
लाख सुविधाओं और साधनों के बाद भी मन अशांत
ही रहता है। इसका एक कारण है कि हम प्रकृति से
दूर हो गए हैं। शहरों में फैल रहे बेतरतीब
कांक्रीट के जंगलों के कारण
प्रकृति का दायरा सिमटता जा रहा है।
हम प्रकृति के स्पर्श से दूर हैं। प्रकृति में
ही परमात्मा का वास है। इसलिए जब भी हम
किसी पहाड़ी तलहटी या किसी बहती नदी के
किनारे खड़े होते हैं तो हमें
परमात्मा की मौजूदगी का एहसास होता है।
परमात्मा प्रकृति में ही बसता है। कोशिश करें
कि थोड़ा समय प्रकृति के निकट रहने के लिए निकालें। आप खुद
को भीतर से शांत पांएगे। थोड़ा मौन साधिए, थोड़ा ध्यान में
उतरिए, बस शांति खुद आपके भीतर प्रवेश कर जाएगी।

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