(आत्मा -परमात्मा )
आत्मा का निरूपण श्रीमद्भगवदगीता या गीता में किया गया है। आत्मा को शस्त्र से काटा नहीं जा सकता, अग्नि उसे जला नहीं सकती, जल उसे गला नहीं सकता और वायु उसे सुखा नहीं सकती।जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर नये वस्त्र धारण करता है, उसी प्रकार आत्मा पुराने शरीर को त्याग कर नवीन शरीर धारण करता है।
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‘ज्ञानाधिकरणमात्मा । सः द्विविधः जीवात्मा परमात्मा चेति।''''''''''''''''''''''''
इस दृष्टि से आत्मा ही केन्द्र बिन्दु है जिस पर आगे चलकर परमात्मा का भव्य प्रासाद निर्मित किया गयाआत्मा को ही बह्म रूप में स्वीकार करने की विचारधारा वैदिक एवं उपनिषद् युग में मिलती है। ‘प्रज्ञाने ब्रह्म', ‘अहं ब्रह्मास्मि', ‘तत्वमसि', ‘अयमात्मा ब्रह्म' जैसे सूत्र वाक्य इसके प्रमाण है। ब्रह्म प्रकृष्ट ज्ञान स्वरूप है। यही लक्षण आत्मा का है। ‘मैं ब्रह्म हूँ', ‘तू ब्रह्म ही है; ‘मेरी आत्मा ही ब्रह्म है' आदि वाक्यों में आत्मा एवं ब्रह्म पर्याय रूप में प्रयुक्त हैं।
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आत्मा और परमात्मा दोनो अलग-अलग है आत्मा रचना है और परमात्मा उसके रचीयता है इस आधार से दोनो मे पिता-पुत्र क नाता हो जाता है दोनो क स्वरूप भी एक जैसा ही है. आत्मा और परमत्मा दोनो के गुन भी समान ही है आत्म के गुन है घ्यान स्वरूप,प्रेम स्वरूप, पवित्रता स्वरूप,शान्त स्वरूप,सुख स्वरूप,आन्नद स्वरूप, एव शक्ति स्वरूप, परमत्मा के गुन है ग्यान के सागर, प्रेम के सागर, पवित्रता के सागर,शान्ति के सागर,सुख के सागर,आन्नद के सागर,एव सर्व शाक्तिमान है आत्मा जन्म-मरन मै आती है परमात्मा जन्म- मरन मे नहि आते , आत्मा पूरे कल्प मे ८४ जन्म लेता है .
आत्मा का निरूपण श्रीमद्भगवदगीता या गीता में किया गया है। आत्मा को शस्त्र से काटा नहीं जा सकता, अग्नि उसे जला नहीं सकती, जल उसे गला नहीं सकता और वायु उसे सुखा नहीं सकती।जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर नये वस्त्र धारण करता है, उसी प्रकार आत्मा पुराने शरीर को त्याग कर नवीन शरीर धारण करता है।
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‘ज्ञानाधिकरणमात्मा । सः द्विविधः जीवात्मा परमात्मा चेति।''''''''''''''''''''''''
इस दृष्टि से आत्मा ही केन्द्र बिन्दु है जिस पर आगे चलकर परमात्मा का भव्य प्रासाद निर्मित किया गयाआत्मा को ही बह्म रूप में स्वीकार करने की विचारधारा वैदिक एवं उपनिषद् युग में मिलती है। ‘प्रज्ञाने ब्रह्म', ‘अहं ब्रह्मास्मि', ‘तत्वमसि', ‘अयमात्मा ब्रह्म' जैसे सूत्र वाक्य इसके प्रमाण है। ब्रह्म प्रकृष्ट ज्ञान स्वरूप है। यही लक्षण आत्मा का है। ‘मैं ब्रह्म हूँ', ‘तू ब्रह्म ही है; ‘मेरी आत्मा ही ब्रह्म है' आदि वाक्यों में आत्मा एवं ब्रह्म पर्याय रूप में प्रयुक्त हैं।
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आत्मा और परमात्मा दोनो अलग-अलग है आत्मा रचना है और परमात्मा उसके रचीयता है इस आधार से दोनो मे पिता-पुत्र क नाता हो जाता है दोनो क स्वरूप भी एक जैसा ही है. आत्मा और परमत्मा दोनो के गुन भी समान ही है आत्म के गुन है घ्यान स्वरूप,प्रेम स्वरूप, पवित्रता स्वरूप,शान्त स्वरूप,सुख स्वरूप,आन्नद स्वरूप, एव शक्ति स्वरूप, परमत्मा के गुन है ग्यान के सागर, प्रेम के सागर, पवित्रता के सागर,शान्ति के सागर,सुख के सागर,आन्नद के सागर,एव सर्व शाक्तिमान है आत्मा जन्म-मरन मै आती है परमात्मा जन्म- मरन मे नहि आते , आत्मा पूरे कल्प मे ८४ जन्म लेता है .
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