Sunday, 31 August 2014

वह फिर कभी वापस नहीं आया

एक बार की बात है एक जंगल में सेब का एक बड़ा पेड़ था| एक बच्चा रोज उस पेड़ पर खेलने आया करता था| वह कभी पेड़ की डाली से लटकता कभी फल तोड़ता कभी उछल कूद करता था, सेब का पेड़ भी उस बच्चे से काफ़ी खुश रहता था| कई साल इस तरह बीत गये| अचानक एक दिन बच्चा कहीं चला गया और फिर लौट के नहीं आया, पेड़ ने उसका काफ़ी इंतज़ार किया पर वह नहीं आया| अब तो पेड़ उदास हो गया| काफ़ी साल बाद वह बच्चा फिर से पेड़ के पास आया पर वह अब कुछ बड़ा हो गया था| पेड़ उसे देखकर काफ़ी खुश हुआ और उसे अपने साथ खेलने के लिए कहा| पर बच्चा उदास होते हुए बोला कि अब वह बड़ा हो गया है अब वह उसके साथ नहीं खेल सकता| बच्चा बोला की अब मुझे खिलोने से खेलना अच्छा लगता है पर मेरे पास खिलोने खरीदने के लिए पैसे नहीं है| पेड़ बोला उदास ना हो तुम मेरे फल तोड़ लो और उन्हें बेच कर खिलोने खरीद लो| बच्चा खुशी खुशी फल तोड़ के ले गया लेकिन वह फिर बहुत दिनों तक वापस नहीं आया| पेड़ बहुत दुखी हुआ| अचानक बहुत दिनों बाद बच्चा जो अब जवान हो गया था वापस आया, पेड़ बहुत खुश हुआ और उसे अपने साथ खेलने के लिए कहा पर लड़के ने कहा कि वह पेड़ के साथ नहीं खेल सकता अब मुझे कुछ पैसे चाहिए क्यूंकी मुझे अपने बच्चों के लिए घर बनाना है| पेड़ बोला मेरी शाखाएँ बहुत मजबूत हैं तुम इन्हें काट कर ले जाओ और अपना घर बना लो| अब लड़के ने खुशी खुशी सारी शाखाएँ काट डालीं और लेकर चला गया| वह फिर कभी वापस नहीं आया| बहुत दिनों बात जब वह वापिस आया तो बूढ़ा हो चुका था पेड़ बोला मेरे साथ खेलो पर वह बोला की अब में बूढ़ा हो गया हूँ अब नहीं खेल सकता| पेड़ उदास होते हुए बोला की अब मेरे पास ना फल हैं और ना ही लकड़ी अब में तुम्हारी मदद भी नहीं कर सकता| बूढ़ा बोला की अब उसे कोई सहायता नहीं चाहिए बस एक जगह चाहिए जहाँ वह बाकी जिंदगी आराम से गुजर सके| पेड़ ने उसे अपने जड़ मे पनाह दी और बूढ़ा हमेशा वहीं रहने लगा| मित्रों इसी पेड़ की तरह हमारे माता पिता भी होते हैं, जब हम छोटे होते हैं तो उनके साथ खेलकर बड़े होते हैं और बड़े होकर उन्हें छोड़ कर चले जाते हैं और तभी वापस आते हैं जब हमें कोई ज़रूरत होती है| धीरे धीरे ऐसे ही जीवन बीत जाता है| हमें पेड़ रूपी माता पिता की सेवा करनी चाहिए ना की सिर्फ़ उनसे फ़ायदा लेना चाहिए

Saturday, 30 August 2014

इस अर्जी को न ठुकराना

कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे,
निर्धन के घर भी आ जाना ।
जो रुखा सूखा दिया हमें,
कभी इसका भोग लगा जाना ।

ना छत्र बना सका सोने का,
ना चुनरी तेरी सितारों जड़ी ।
ना बर्फी न पेड़ा माँ,
श्रद्वा के नयन विछाये खड़ा ।
इस अर्जी को न ठुकराना ।

जिस घर के दीये में तेल नहीं,
तेरी ज्योति जगाऊँ माँ कैसे ।
जहाँ मैं बैठूँ वहाँ बैठ कर हे माँ,
बच्चों का दिल बहला जाना ।

तू भाग्य बनाने वाली है,
मैं हूँ तकदीर का मारा माँ ।
हे दाती संभालो भिखारी को,
आखिर तेरी आँख का तारा हूँ ।
मैं दोषी तू निर्दोष है माँ,
मेरे दोषों को भुला जाना ।

कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे,
निर्धन के घर भी आ जाना ।

हर एक सांस में लेकर तुम्हारा प्यार चले,
दिलों को जीतने आए थे, ख़ुद को हार चले.
उदास दिल में तमन्ना है इक मुसाफ़िर की,
जो तुम नहीं तो सफ़र में तुम्हारा प्यार चले.
अगर नवाज़ रहा है तो यूं नवाज़ मुझे,
के' मेरे बाद; मेरा ज़िक्र, बार-बार चले.
ये जुगनुओं से भरा आसमां जहां तक है,
वहां तलक तेरी नज़रों का इक़्तिदार* चले.
ये जिस्म क्या है कोई पैरहन** उधार का है,
यहीं संभाल के पहना, यहीं उतार चले.
ॐ के 11 शारीरिक लाभ: ॐ अर्थात् ओउम् तीन अक्षरों से बना है, जो सर्व विदित है । अ उ म् । "अ" का अर्थ है उत्पन्न होना, "उ" का तात्पर्य है उठना, उड़ना अर्थात् विकास, "म" का मतलब है मौन हो जाना अर्थात् "ब्रह्मलीन" हो जाना। ॐ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और पूरी सृष्टि का द्योतक है। ॐ का उच्चारण शारीरिक लाभ प्रदान करता है। जानें, ॐ कैसे है स्वास्थ्यवर्द्धक और अपनाएं आरोग्य के लिए मात्र ॐ के उच्चारण का मार्ग... 1, ॐ दूर करे तनावः अनेक बार ॐ का उच्चारण करने से पूरा शरीर तनाव-रहित हो जाता है। 2. ॐ और घबराहटः अगर आपको घबराहट या अधीरता होती है तो ॐ के उच्चारण से उत्तम कुछ भी नहीं। 3. ॐ और तनावः यह शरीर के विषैले तत्त्वों को दूर करता है, अर्थात तनाव के कारण पैदा होने वाले द्रव्यों पर नियंत्रण करता है। 4. ॐ और खून का प्रवाहः यह हृदय और ख़ून के प्रवाह को संतुलित रखता है। 5. ॐ और पाचनः ॐ के उच्चारण से पाचन शक्ति तेज़ होती है। 6. ॐ लाए स्फूर्तिः इससे शरीर में फिर से युवावस्था वाली स्फूर्ति का संचार होता है। 7. ॐ और थकान: थकान से बचाने के लिए इससे उत्तम उपाय कुछ और नहीं। 8. ॐ और नींदः नींद न आने की समस्या इससे कुछ ही समय में दूर हो जाती है। रात को सोते समय नींद आने तक मन में इसको करने से निश्चित नींद आएगी। 9. ॐ और फेफड़े: कुछ विशेष प्राणायाम के साथ इसे करने से फेफड़ों में मज़बूती आती है। 10. ॐ और रीढ़ की हड्डी: ॐ के पहले शब्‍द का उच्‍चारण करने से कंपन पैदा होती है। इन कंपन से रीढ़ की हड्डी प्रभावित होती है और इसकी क्षमता बढ़ जाती है। 11. ॐ और थायरायडः ॐ के दूसरे अक्षर का उच्‍चारण करने से गले में कंपन पैदा होती है जो कि थायरायड ग्रंथि पर प्रभाव डालता है।

Friday, 29 August 2014

गीता में जीवन का संपूर्ण सार है।

 जो बिना इच्छा के अपने-आप प्राप्त हुए पदार्थ में सदा संतुष्ट रहता है, जो सुख-दुःख आदि द्वन्द्वों से सर्वथा परे हो गया है जो कर्म करते हुए भी उससे बंधता नहीं है- ऐसा सिद्धि और असिद्धि में सम रहनेवाला ही सच्चा कर्मयोगी कहलाता है।
भगवान ने पांचवें अध्याय में बहुत ही गुढ़ मंत्र कहा है जिसका तात्पर्य है :
जो पुरुष न किसी से द्वेष करता है और न किसी चीज की आकांक्षा करता है, वह कर्मयोगी ही सदा संन्यासी समझने योग्य है, क्योकि राग-दोषादि द्वन्द्वों से रहित पुरुष सुखपूर्वक सांसारिक बंधन से मुक्त हो जाता है।
योगेश्वर ने आगे कहा है कि बाहर के विषय-भोगों को चिंतन न करता हुआ बाहर ही निकालकर और दृष्टि को भृकुटी के मध्य स्थित करके नासिका में विचरने वाले प्राण और अपान वायु को सम करके रखता है। जिसकी इन्द्रियां, मन और बुद्धि जीती हुई है। जो मोक्षपरायण मुनि इच्छा, भय और क्रोध से रहित हो गया है। वह सदा भयमुक्त है।
भगवान कृष्ण ने उस दिव्य योग के दर्शन पहले ही संसार को करा दिए जिसे आज हम योगा के नाम से श्वास क्रिया के अनुलोम-विलोम को कहते है। उसी ध्यान योग को बरसों पहले भगवान ने बताकर मन को आकांक्षाओं और मोह-माया आदि से बचने का मार्ग दिखाया है। 
यूं तो उनके मुखारबिंदों से निकले श्लोकों से रची गीता में जीवन का संपूर्ण सार है।
ज्योतिष की दृष्टि से देखें तो भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के समय छ: ग्रह उच्च के थे, वहीं सूर्य स्वराशि का व राहु-केतु भी मित्र राशि के थे। यही वजह है कि देव सोलह कलाओं के ज्ञाता रहे। उनका पराक्रमेश जहां उच्च का है, वहीं लग्न का स्वामी भी उच्च का है। इस परमोच्च स्थिति के बनने से वे महाप्रतापी होने के साथ-साथ अखण्ड साम्राज्य के राजा भी थे। चतुर्थ भाव में सूर्य के होने से उन्होंने सदैव जनसमुदाय का नेतृत्व किया।
दशम भाव पर सूर्य की शत्रु दृष्टि पड़ने से पिता से दूर ही रहे। भाग्य में मंगल उच्च का होने से सौभाग्यशाली माने गए। वहीं गुरु तृतीय भाव में उच्च का होने से उनमें तत्व ज्ञान भी भरपूर था।
अंत में हम सभी जन्माष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण से प्रार्थना करें कि- हे देव! पिता जैसे पुत्र के, सखा जैसे सखा के, और पति जैसे प्रिय पत्नी के अपराध सहन करते हैं- वैसे ही आप भी मेरे समस्त अपराध को सहन करके मुझे सर्वथा योग्य बनाएं। जय श्रीकृष्ण!

तांत्रिक अभिकर्म से छुटकारा मिलेगा।

सम्मोहन शक्तिवर्द्धक सरल उपाय :

१. मोर की कलगी रेश्मी वस्त्र में बांधकर जेब में रखने से सम्मोहन शक्ति बढ़ती है।
२. श्वेत अपामार्ग की जड़ को घिसकर तिलक करने से सम्मोहन शक्ति बढ़ती है।
३. स्त्रियां अपने मस्तक पर आंखों के मध्य एक लाल बिंदी लगाकर उसे देखने का प्रयास करें। यदि कुछ समय बाद बिंदी खुद को दिखने लगे तो समझ लें कि आपमें सम्मोहन शक्ति जागृत हो गई है।
४. गुरुवार को मूल नक्षत्र में केले की जड़ को सिंदूर में मिलाकर पीस कर रोजाना तिलक करने से आकर्षण शक्ति बढ़ती है।
५. गेंदे का फूल, पूजा की थाली में रखकर हल्दी के कुछ छींटे मारें व गंगा जल के साथ पीसकर माथे पर तिलक लगाएं आकर्षण शक्ति बढ़ती है।
६. कई बार आपको यदि ऐसा लगता है कि परेशानियां व समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। धन का आगमन रुक गया है या आप पर किसी द्वारा तांत्रिक अभिकर्म'' किया गया है तो आप यह टोटके अवश्य प्रयोग करें, आपको इनका प्रभाव जल्दी ही प्राप्त होगा।
तांत्रिक अभिकर्म से प्रतिरक्षण हेतु उपाय
१. पीली सरसों, गुग्गल, लोबान व गौघृत इन सबको मिलाकर इनकी धूप बना लें व सूर्यास्त के 1 घंटे भीतर उपले जलाकर उसमें डाल दें। ऐसा २१ दिन तक करें व इसका धुआं पूरे घर में करें। इससे नकारात्मक शक्तियां दूर भागती हैं।
२. जावित्री, गायत्री व केसर लाकर उनको कूटकर गुग्गल मिलाकर धूप बनाकर सुबह शाम २१ दिन तक घर में जलाएं। धीरे-धीरे तांत्रिक अभिकर्म समाप्त होगा।
३. गऊ, लोचन व तगर थोड़ी सी मात्रा में लाकर लाल कपड़े में बांधकर अपने घर में पूजा स्थान में रख दें। शिव कृपा से तमाम टोने-टोटके का असर समाप्त हो जाएगा।
४. घर में साफ सफाई रखें व पीपल के पत्ते से ७ दिन तक घर में गौमूत्र के छींटे मारें व तत्पश्चात् शुद्ध गुग्गल का धूप जला दें।
५. कई बार ऐसा होता है कि शत्रु आपकी सफलता व तरक्की से चिढ़कर तांत्रिकों द्वारा अभिचार कर्म करा देता है। इससे व्यवसाय बाधा एवं गृह क्लेश होता है अतः इसके दुष्प्रभाव से बचने हेतु सवा 1 किलो काले उड़द, सवा 1 किलो कोयला को सवा 1 मीटर काले कपड़े में बांधकर अपने ऊपर से २१ बार घुमाकर शनिवार के दिन बहते जल में विसर्जित करें व मन में हनुमान जी का ध्यान करें। ऐसा लगातार ७ शनिवार करें। तांत्रिक अभिकर्म पूर्ण रूप से समाप्त हो जाएगा।
६. यदि आपको ऐसा लग रहा हो कि कोई आपको मारना चाहता है तो पपीते के २१ बीज लेकर शिव मंदिर जाएं व शिवलिंग पर कच्चा दूध चढ़ाकर धूप बत्ती करें तथा शिवलिंग के निकट बैठकर पपीते के बीज अपने सामने रखें। अपना नाम, गौत्र उच्चारित करके भगवान् शिव से अपनी रक्षा की गुहार करें व एक माला महामृत्युंजय मंत्र की जपें तथा बीजों को एकत्रित कर तांबे के ताबीज में भरकर गले में धारण कर लें।
७. शत्रु अनावश्यक परेशान कर रहा हो तो नींबू को ४ भागों में काटकर चौराहे पर खड़े होकर अपने इष्ट देव का ध्यान करते हुए चारों दिशाओं में एक-एक भाग को फेंक दें व घर आकर अपने हाथ-पांव धो लें। तांत्रिक अभिकर्म से छुटकारा मिलेगा।
८. शुक्ल पक्ष के बुधवार को ४ गोमती चक्र अपने सिर से घुमाकर चारों दिशाओं में फेंक दें तो व्यक्ति पर किए गए तांत्रिक अभिकर्म का प्रभाव खत्म हो जाता है।

अब मेरी लाज रख लीजिये

जब भक्त संकट में होता है, तो वो अपने भगवान् से करुण पुकार करता है और भगवान् भक्त को..........
अब मेरी राखौ लाज, मुरारी।
संकट में इक संकट उपजौ, कहै मिरग सौं नारी॥
और कछू हम जानति नाहीं, आई सरन तिहारी।
उलटि पवन जब बावर जरियौ, स्वान चल्यौ सिर झारी॥
नाचन-कूदन मृगिनी लागी, चरन-कमल पर वारी।
सूर स्याम प्रभु अबिगतलीला, आपुहि आपु सँवारी॥
जीव हर समय संकट में घिरा होता है और भगवान् हर समय अपने भक्तों को संकट से उबारने के लिये तत्पर रहते हैं। इसी भरोसे सूरदास जी ने भगवान् से संकट दूर करने की विनती की है। 
वह कहते हैं - हे मुरारी! अब मेरी लाज रख लीजिये। 
एक संकट तो था ही कि जीव संसार-चक्र में पड़ा था उसमें एक और संकट उत्पन्न हो गया। बुद्धि भी भ्रम में पड़ गयी। मृग (परमपद को ढूँढ़ने वाले जिज्ञासु) से उसकी स्त्री मृगी (बुद्धि) कहती है कि मैं और कुछ नहीं जानती, अत: आपकी शरण में आयी हूँ। (बुद्धि ने इस प्रकार जब जीव का ही आश्रय ले लिया,) तब पवन (प्राण) उलटे चलने लगे (चित्त की वृत्ति अन्तर्मुख हो गयी) इससे खेत जल गये (जन्म-जन्म के कर्म-संस्कार भस्म हो गये)। खेत का रखवाला कुत्ता (काम) सिर झाड़कर चला गया (कामनाएँ नष्ट हो गयीं)। मृगी (बुद्धि) नाचने-कूदने लगी (आनन्दमग्न हो गयी) और चरणकमलों पर न्योछावर हो गयी (भगवान् के चरणों में लग गयी)।
सूरदासजी कहते हैं -मेरे स्वामी श्यामसुन्दर की लीला जानी नहीं जाती। अपने-आप ही उन्होंने सेवक की गति सुधार दी

Thursday, 28 August 2014

यह आत्मा की एक शक्ति है

आत्म प्रशंसा एक बहुत बड़ा अवगुण है| कभी भूल से भी आत्मप्रशंसा ना करें|
आपके भीतर एक आध्यात्मिक चुम्बकत्व है, वह बिना कुछ कहे ही आपकी महिमा का बखान कर देता है| ध्यान साधना से उस आध्यात्मिक चुम्बकत्व का विकास करें|
वह चुम्बकत्व आप में होगा तो अच्छे लोग ही आपकी तरफ खिंचे चले आयेंगे, आप जहां भी जायेंगे वहां लोग स्वतः ही आपकी और आकर्षित होंगे, आपकी बातें लोग ध्यान से सुनेंगे, आपकी कही हुई बातो को लोग कभी भूलेंगे नहीं और उन पर आपकी बातों का चिर स्थायी प्रभाव पडेगा|
कभी कभी आप बहुत सुन्दर भाषण और प्रवचन सुनते है, बड़े जोर से प्रसन्न होकर तालियाँ बजाते हैं, पर पांच दस मिनट बाद उसको भूल जाते हैं| वहीं कभी कोई आपको एक मामूली सी बात कह देता है जिसे आप वर्षों तक नहीं भूलते| कभी कोई अति आकर्षक व्यक्ती आपसे मिलता है, मिलते ही आप उससे दूर हटना चाहते हैं, पर कभी कभी एक सामान्य से व्यक्ति को भी आप छोड़ना नहीं चाहते| यह व्यक्ती व्यक्ती का चुम्बकत्व है|
आध्यात्मिक चुम्बकत्व क्या है ???
यह आत्मा की एक शक्ति है जो उस हर वस्तु या परिस्थिति को आकर्षित या निर्मित कर लेती है जो किसी को अपने विकास या सुख-शांति के लिए चाहिए|
आप जहाँ भी जाते हैं और जिन भी व्यक्तियों से मिलते हैं उन के चुम्बकत्व का आपस में विनिमय होता रहता है, इसीलिए अपने शास्त्रों में कुसंग का सर्वथा त्याग करने को कहा गया है| सत्संग की महिमा भी यही है|
जब हम संत महात्माओं के बारे चिंतन मनन करते हैं तब उनका चुम्बकत्व भी हमें प्रभावित करता है| इसीलिए सद्गुरु का और परमात्मा का सदा चिंतन करना चाहिए और मानसिक रूप से सदा उनको अपने साथ रखना चाहिए|
किसी की निंदा या बुराई करने से उसके अवगुण आपमें आते हैं अतः परनिंदा से बचो|
अपने ह्रदय में निरंतर अपने इष्ट देव/देवी का, व भ्रूमध्य में अपने सद्गुरु का निरंतर ध्यान रखें| इससे आपके आध्यात्मिक चुम्बकत्व का विकास होगा| आप प्रायः शांत और मौन रहें, अपने चुम्बकत्व को बोलने दें|
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 

उस परमपिता का यही संदेश है।

परमपिता परमेश्वर ने जब सृष्टि की रचना की, तो धरती पर उसने कहीं भी सीमाएं नहीं बनाई, परंतु अफसोस है कि फिर भी मनुष्य ने कागज के नक्शे बनाकर समस्त मानव जाति को भिन्न-भिन्न सीमाओं और संप्रदायों में बांट रखा है। आज आवश्यकता है तो यह जानने और समझने की कि मानव धर्म के महासागर में कहीं भी गोता लगाओ, उसका स्वाद एक जैसा ही होगा। इस सर्वश्रेष्ठ मानव जीवन में हम भूल गए कि हम सब एक ही धागे से बंधे हुए हैं। यह धागा है-केवल इंसानियत का और प्रेम का। बहती हुई नदियां, लहराता पवन और हमारी यह पावन धरा-सब कुछ ईश्वर की अनमोल देन है। 1 आज आवश्यकता है तो पुजारी बनने की, उस मानवता के प्रति, जो आज हमारे बीच धड़कन बनकर धड़क रही है। हमारे देश की परंपरा ने हमेशा ही भावना, सद्भावना और प्रेममय वातावरण का निर्माण किया है। आज भी भारत महान है, क्योंकि इसकी संस्कृति और सभ्यता सदियों से शांति और प्रेम की पोषक रही हैं। शांति और प्रेम के पुजारी हमारे राष्ट्र ने हमेशा ही ऐसे बीज बोए हैं, जिनसे प्रेम के फूल मुस्कराते रहे हैं। उन फूलों से ही शांति की अनवरत सुगंध बहती रही है। हमें यह भी जानना चाहिए कि प्रेम और आनंद ही हमारी अनुभूतियों का संसार है। इसी से हमने समस्त विश्व को आलोकित किया है। हमारे जीवन का लक्ष्य इस परम अनुभूति को पाना है। परम-पिता परमेश्वर ने जब सृष्टि की रचना की थी, तो उसने मनुष्य को हर प्रकार की आध्यात्मिक और भौतिक संपदा से संपन्न किया था और आनंद की शक्ति से लैस किया था। सांसारिक संपदाओं में मनुष्य इतना उलझ गया है कि उसने मानवीय संवेदनाओं पर प्रहार करना शुरू कर दिया। जरा सोचिए! क्या उस परमपिता ने हमें यही शिक्षा दी है? क्या जीवन जीने का यही तरीका है? क्या सिर्फ शक्तिशाली को जिंदा रहना होगा और कमजोर को मरना होगा? अच्छा तो तब होगा, जब हम हर द्वेष, दुराव व मतभेद को मिटाकर नए युग में नई चेतना के सूत्रपात का संकल्प लें। जहां कोई लड़ाई न हो, अगर हो तो मात्र प्रेम, सौहार्द्र, एकता और भाईचारा। उस परमपिता का यही संदेश है।

Wednesday, 27 August 2014

इसका भान मुझे न होने पाए

***सच्चा संत***
एक संत थे बड़े निस्पृह, सदाचारी एवं लोकसेवी। 
जीवन भर निस्वार्थ भाव से दूसरों की भलाई में लगे रहते। 
एक बार विचरण करते हुए देवताओं की टोली उनकी कुटिया के समीप से निकली। 
संत साधनारत थे, साधना से उठे, देखा देवगण खड़े हैं।
आदरसम्मान किया, आसन दिया।
देवतागण बोले- “आपके लोकहितार्थ किए गए कार्यों को देखकर हमें प्रसन्नता हुई।
आप जो चाहें वरदान माँग लें।“
संत विस्मय से बोले- “सब तो है मेरे पास। 
कोई इच्छा भी नहीं है, जो माँगा जाए।“
देवगण एक स्वर में बोले- “आप को माँगना ही पड़ेगा अन्यथा हमारा बड़ा अपमान होगा।“
संत बड़े असमंजस में पड़े कि कोई तो इच्छा शेष नहीं है माँगे तो क्या माँगे, बड़े विनीत भाव से बोले- “आप सर्वज्ञ हैं, स्वयं समर्थ हैं, आप ही अपनी इच्छा से दे दें मुझे स्वीकार होगा।“
देवता बोले- “तुम दूसरों का कल्याण करो!”
संत बोले- “क्षमा करें देव! यह दुष्कर कार्य मुझ से न बन पड़ेगा।“
देवता बोले- “इसमें दुष्कर क्या है?”
संत बोले- “मैंने आजतक किसी को दूसरा समझा ही नहीं सभी तो मेरे अपने हैं।
फिर दूसरों का कल्याण कैसे बन पड़ेगा?”
देवतागण एक दूसरे को देखने लगे कि संतों के बारे में बहुत सुना था आज वास्तविक संत के दर्शन हो गये।
देवताओं ने संत की कठिनाई समझ कर अपने वरदान में संशोधन किया। 
“अच्छा आप जहाँ से भी निकलेंगे और जिस पर भी आपकी परछाई पड़ेगी उस उसका कल्याण होता चला जाएगा।“
संत ने बड़े विनम्र भाव से प्रार्थना की- “हे देवगण! यदि एक कृपा और करदें, तो बड़ा उपकार होगा। 
मेरी छाया से किसका कल्याण हुआ कितनों का उद्धार हुआ,इसका भान मुझे न होने पाए,अन्यथा मेरा अहंकार मुझे ले डूबेगा।“
देवतागण संत के विनम्र भाव सुनकर नतमस्तक हो गए।
कल्याण सदा ऐसे ही संतों के द्वारा संभव है।
बोलिये वृन्दावन बिहारी लाल की जय ।

यह तुम्हे नहीं मालूम

नमः शिवाय! बाबा जी कहते हैं: "जो भी शब्द तुम अपने मुख से निकालते हो, वह फलीभूत होता ही होता है क्योंकि मैं ही परब्रह्म हूँ| मेरे संचित कर्मों के कारणवश मेरे कहे हुए वचन कुछ देर बाद फलीभूत होते हैं पर होते अवश्य हैं| इसलिए अभ्यास डालो की हर समय अच्छा ही बोलो| कुछ लोगों को आदत होती है ऐसे कथन बोलने की - 'कहाँ मर गया वो? आया क्यों नहीं?', 'यह क्या कर दिया उसने, अब तो वा मरेगा', 'आय हाय यह कैसी सब्ज़ी है', 'पागल हो गया है क्या?', 'वो तो पूरा ही उल्लू / गधा / कुत्ता है',' 'दिमाग़ खराब है क्या तेरा?', 'दिमाग़ मत चाट' इत्यादि| इतना अभ्यास हो जाता है हमें ऐसे वाक्य बोलने का की हम अंजाने में ही बोल जाते हैं यह सब| तर्क देने वाले कहेंगे की इससे क्या होता है? देखो जो बोल तुम conscious mind से बोलते हो, वही तुम्हारे sub conscious में बैठ जाता है| तुम बेशक मज़ाक में ही क्यूँ ना बोल रहे हो पर दूसरे व्यक्ति की चेतना में किस रूप से जाके बैठ रहा है यह तुम्हे नहीं मालूम| जिस भी चीज़ का हम बार बार संकीर्तन, मनन और अध्ययन करते हैं वह हमारे मन में जाके बैठ जाती है और एक न एक दिन फलीभूत ज़रूर होती है| इसलिए कोई भी वचन तुम्हारे मुख से, हसी-हसी में भी ऐसा ना निकले जिसमें दुख हो, पीड़ा हो, किसी पशु से तुलना हो, किसी बीमारी का उल्लेख हो, घृणा की भावना हो और किसी को संताप पहुँचने का विचार हो| वाणी, पाप और पुण्य कर्म करने का एक शक्तिशाली माध्यम है| इसको किसी की प्रशंसा या फिर उससे भी उत्तम - उस शिव की जयजयकार करने में ही लगाना|"

जैसा वह बोये, वैसा ही काटे।"l

विधाता की अनोखी रचना...

उस समय की बात है, जब कि पृथ्वी पर मनुष्य का जन्म नहीं हुआ था।
आखिर विधाता ने चन्द्रमा की मुस्कान, गुलाब की सुगन्ध और अमृत की माधुरी को एक साथ मिलाया और मिट्टी के घरौदों में भर दिया। सब घरौंदे लगे चहकने और महकने।

देवदूतों ने विधाता की इस नई अनोखी रचना को देखा तो आश्चर्य से चकित रह गये। उन्होंने ब्रह्मा से पूछा, "यह क्या है?"

विधाता ने बताया, "इसका नाम है जीवन। यह मेरी सर्वश्रेष्ठ कृति है।"

विधाता की बात पूरी भी नहीं हो पाई थी कि एक देवदूत बीच ही में बोला पड़ा, "क्षमा कीजिये प्रभु! लेकिन यह समझ में नहीं आया कि आने इसे मिट्टी का तन क्यों दिया? मिट्टी तो तुच्छ-से-तुच्छ है, जड़ से भी जड़ है। मिट्टी न लेकर आपने कोई धातु क्यों नहीं ली? सोना नहीं तो लोहा ही ले लेते।"
विधाता के होठों पर एक मोहक मुस्कान खेल उठी। बोले, "वत्स! यही तो जीवन का रहस्य है। मिट्टी के शरीर में मैंने संसार का सारा सुख-सौंदर्य, सारा वैभव, उड़ेल दिया है। जड़ में आनन्द का चैतन्य फूंक दिया है। इसका जैसा चाहो, उपयोग कर लो। शरीर को महत्ता देने वाला मिट्टी की जड़ता भोगेगा; जो इससे ऊपर उठेगा, उसे आनन्द के परत-परत-परत मिलेंगे। लेकिन ये सब मिट्टी के घरौंदे की तरह क्षणिक हैं। इसलिए जीवन का प्रत्येक क्षण मूल्यवान् है। जो जितना सोयेगा, उतना ही खोयेगा। 

तुम मिट्टी के ही अवगुणों को देखते हो, गुणों को नहीं। मिट्टी में ही अकुंर फूटते हैं। मैंने शरीर का कर्मक्षेत्र बनाया है, उसमें कर्मों के अंकुर जमेंगे। इस भांति मैंने मनुष्य को खेती उसके अपने ही हाथ में दे दी है। जैसा वह बोये, वैसा ही काटे।"l

Tuesday, 26 August 2014

ग्रह पीड़ा निवारक

ग्रह पीड़ा निवारक टोटके-
सूर्य
१॰ सूर्य को बली बनाने के लिए व्यक्ति को प्रातःकाल सूर्योदय के समय उठकर लाल पूष्प वाले पौधों एवं वृक्षों को जल से सींचना चाहिए।
२॰ रात्रि में ताँबे के पात्र में जल भरकर सिरहाने रख दें तथा दूसरे दिन प्रातःकाल उसे पीना चाहिए।
३॰ ताँबे का कड़ा दाहिने हाथ में धारण किया जा सकता है।
४॰ लाल गाय को रविवार के दिन दोपहर के समय दोनों हाथों में गेहूँ भरकर खिलाने चाहिए। गेहूँ को जमीन पर नहीं डालना चाहिए।
५॰ किसी भी महत्त्वपूर्ण कार्य पर जाते समय घर से मीठी वस्तु खाकर निकलना चाहिए।
६॰ हाथ में मोली (कलावा) छः बार लपेटकर बाँधना चाहिए।
७॰ लाल चन्दन को घिसकर स्नान के जल में डालना चाहिए।
सूर्य के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु रविवार का दिन, सूर्य के नक्षत्र (कृत्तिका, उत्तरा-फाल्गुनी तथा उत्तराषाढ़ा) तथा सूर्य की होरा में अधिक शुभ होते हैं।
चन्द्रमा
१॰ व्यक्ति को देर रात्रि तक नहीं जागना चाहिए। रात्रि के समय घूमने-फिरने तथा यात्रा से बचना चाहिए।
२॰ रात्रि में ऐसे स्थान पर सोना चाहिए जहाँ पर चन्द्रमा की रोशनी आती हो।
३॰ ऐसे व्यक्ति के घर में दूषित जल का संग्रह नहीं होना चाहिए।
४॰ वर्षा का पानी काँच की बोतल में भरकर घर में रखना चाहिए।
५॰ वर्ष में एक बार किसी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान अवश्य करना चाहिए।
६॰ सोमवार के दिन मीठा दूध नहीं पूना चाहिए।
७॰ सफेद सुगंधित पुष्प वाले पौधे घर में लगाकर उनकी देखभाल करनी चाहिए।
चन्द्रमा के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु सोमवार का दिन, चन्द्रमा के नक्षत्र (रोहिणी, हस्त तथा श्रवण) तथा चन्द्रमा की होरा में अधिक शुभ होते हैं।
मंगल
१॰ लाल कपड़े में सौंफ बाँधकर अपने शयनकक्ष में रखनी चाहिए।
२॰ ऐसा व्यक्ति जब भी अपना घर बनवाये तो उसे घर में लाल पत्थर अवश्य लगवाना चाहिए।
३॰ बन्धुजनों को मिष्ठान्न का सेवन कराने से भी मंगल शुभ बनता है।
४॰ लाल वस्त्र लिकर उसमें दो मुठ्ठी मसूर की दाल बाँधकर मंगलवार के दिन किसी भिखारी को दान करनी चाहिए।
५॰ मंगलवार के दिन हनुमानजी के चरण से सिन्दूर लिकर उसका टीका माथे पर लगाना चाहिए।
६॰ बंदरों को गुड़ और चने खिलाने चाहिए।
७॰ अपने घर में लाल पुष्प वाले पौधे या वृक्ष लगाकर उनकी देखभाल करनी चाहिए।
मंगल के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु मंगलवार का दिन, मंगल के नक्षत्र (मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा) तथा मंगल की होरा में अधिक शुभ होते हैं।
बुध
१॰ अपने घर में तुलसी का पौधा अवश्य लगाना चाहिए तथा निरन्तर उसकी देखभाल करनी चाहिए। बुधवार के दिन तुलसी पत्र का सेवन करना चाहिए।
२॰ बुधवार के दिन हरे रंग की चूड़ियाँ हिजड़े को दान करनी चाहिए।
३॰ हरी सब्जियाँ एवं हरा चारा गाय को खिलाना चाहिए।
४॰ बुधवार के दिन गणेशजी के मंदिर में मूँग के लड्डुओं का भोग लगाएँ तथा बच्चों को बाँटें।
५॰ घर में खंडित एवं फटी हुई धार्मिक पुस्तकें एवं ग्रंथ नहीं रखने चाहिए।
६॰ अपने घर में कंटीले पौधे, झाड़ियाँ एवं वृक्ष नहीं लगाने चाहिए। फलदार पौधे लगाने से बुध ग्रह की अनुकूलता बढ़ती है।
७॰ तोता पालने से भी बुध ग्रह की अनुकूलता बढ़ती है।
बुध के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु बुधवार का दिन, बुध के नक्षत्र (आश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती) तथा बुध की होरा में अधिक शुभ होते हैं।
गुरु
१॰ ऐसे व्यक्ति को अपने माता-पिता, गुरुजन एवं अन्य पूजनीय व्यक्तियों के प्रति आदर भाव रखना चाहिए तथा महत्त्वपूर्ण समयों पर इनका चरण स्पर्श कर आशिर्वाद लेना चाहिए।
२॰ सफेद चन्दन की लकड़ी को पत्थर पर घिसकर उसमें केसर मिलाकर लेप को माथे पर लगाना चाहिए या टीका लगाना चाहिए।
३॰ ऐसे व्यक्ति को मन्दिर में या किसी धर्म स्थल पर निःशुल्क सेवा करनी चाहिए।
४॰ किसी भी मन्दिर या इबादत घर के सम्मुख से निकलने पर अपना सिर श्रद्धा से झुकाना चाहिए।
५॰ ऐसे व्यक्ति को परस्त्री / परपुरुष से संबंध नहीं रखने चाहिए।
६॰ गुरुवार के दिन मन्दिर में केले के पेड़ के सम्मुख गौघृत का दीपक जलाना चाहिए।
७॰ गुरुवार के दिन आटे के लोयी में चने की दाल, गुड़ एवं पीसी हल्दी डालकर गाय को खिलानी चाहिए।
गुरु के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु गुरुवार का दिन, गुरु के नक्षत्र (पुनर्वसु, विशाखा, पूर्व-भाद्रपद) तथा गुरु की होरा में अधिक शुभ होते हैं।
शुक्र
१॰ काली चींटियों को चीनी खिलानी चाहिए।
२॰ शुक्रवार के दिन सफेद गाय को आटा खिलाना चाहिए।
३॰ किसी काने व्यक्ति को सफेद वस्त्र एवं सफेद मिष्ठान्न का दान करना चाहिए।
४॰ किसी महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए जाते समय १० वर्ष से कम आयु की कन्या का चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लेना चाहिए।
५॰ अपने घर में सफेद पत्थर लगवाना चाहिए।
६॰ किसी कन्या के विवाह में कन्यादान का अवसर मिले तो अवश्य स्वीकारना चाहिए।
७॰ शुक्रवार के दिन गौ-दुग्ध से स्नान करना चाहिए।
शुक्र के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु शुक्रवार का दिन, शुक्र के नक्षत्र (भरणी, पूर्वा-फाल्गुनी, पुर्वाषाढ़ा) तथा शुक्र की होरा में अधिक शुभ होते हैं।
शनि
१॰ शनिवार के दिन पीपल वृक्ष की जड़ पर तिल्ली के तेल का दीपक जलाएँ।
२॰ शनिवार के दिन लोहे, चमड़े, लकड़ी की वस्तुएँ एवं किसी भी प्रकार का तेल नहीं खरीदना चाहिए।
३॰ शनिवार के दिन बाल एवं दाढ़ी-मूँछ नही कटवाने चाहिए।
४॰ भड्डरी को कड़वे तेल का दान करना चाहिए।
५॰ भिखारी को उड़द की दाल की कचोरी खिलानी चाहिए।
६॰ किसी दुःखी व्यक्ति के आँसू अपने हाथों से पोंछने चाहिए।
७॰ घर में काला पत्थर लगवाना चाहिए।
शनि के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु शनिवार का दिन, शनि के नक्षत्र (पुष्य, अनुराधा, उत्तरा-भाद्रपद) तथा शनि की होरा में अधिक शुभ होते हैं।
राहु
१॰ ऐसे व्यक्ति को अष्टधातु का कड़ा दाहिने हाथ में धारण करना चाहिए।
२॰ हाथी दाँत का लाकेट गले में धारण करना चाहिए।
३॰ अपने पास सफेद चन्दन अवश्य रखना चाहिए। सफेद चन्दन की माला भी धारण की जा सकती है।
४॰ जमादार को तम्बाकू का दान करना चाहिए।
५॰ दिन के संधिकाल में अर्थात् सूर्योदय या सूर्यास्त के समय कोई महत्त्वपूर्ण कार्य नहीम करना चाहिए।
६॰ यदि किसी अन्य व्यक्ति के पास रुपया अटक गया हो, तो प्रातःकाल पक्षियों को दाना चुगाना चाहिए।
७॰ झुठी कसम नही खानी चाहिए।
राहु के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु शनिवार का दिन, राहु के नक्षत्र (आर्द्रा, स्वाती, शतभिषा) तथा शनि की होरा में अधिक शुभ होते हैं।
केतु
१॰ भिखारी को दो रंग का कम्बल दान देना चाहिए।
२॰ नारियल में मेवा भरकर भूमि में दबाना चाहिए।
३॰ बकरी को हरा चारा खिलाना चाहिए।
४॰ ऊँचाई से गिरते हुए जल में स्नान करना चाहिए।
५॰ घर में दो रंग का पत्थर लगवाना चाहिए।
६॰ चारपाई के नीचे कोई भारी पत्थर रखना चाहिए।
७॰ किसी पवित्र नदी या सरोवर का जल अपने घर में लाकर रखना चाहिए।
केतु के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु मंगलवार का दिन, केतु के नक्षत्र (अश्विनी, मघा तथा मूल) तथा मंगल की होरा में अधिक शुभ होते हैं।

Monday, 25 August 2014

ना जी भर के देखा,ना कुछ बात की

ना जी भर के देखा,ना कुछ बात की, 
बड़ी आरजू थी, मुलाक़ात की
करो दृष्टि अब तो प्रभु करुना की, 
बड़ी आरजू थी, मुलाक़ात की....॥
गए जब से मथुरा वो मोहन मुरारी,
सभी गोपियाँ बृज में व्याकुल थी भारी
कहाँ दिन बिताया,कहाँ रातकी,
बड़ी आरजू थी, मुलाक़ात की....॥
चले आओ अब तो ओ प्यारे कन्हैया,
यह सूनी है कुंजन और व्याकुल है गैया
सूना दो अब तो इन्हें धुन मुरली की,
बड़ी आरजू थी, मुलाक़ात की....॥
हम बैठे हैं गम उनका दिल में ही पाले,
भला ऐसे में खुद को कैसे संभाले
ना उनकी सुनी ना कुछ अपनी कही,
बड़ी आरजू थी, मुलाक़ात की....॥
तेरा मुस्कुराना भला कैसे भूलें,
वो कदमन की छैया, वो सावन के झूले
ना कोयल की कू कू, ना पपीहा की पी, 
बड़ी आरजू थी, मुलाक़ात की....॥
तमन्ना यही थी की आएंगे मोहन,
मैं चरणों में वारुंगी तन मन यह जीवन
हाय मेरा यह कैसा बिगड़ा नसीब,
बड़ी आरजू थी, मुलाक़ात की....॥
ना जी भर के देखा, ना कुछ बात की,
बड़ी आरजू थी, मुलाक़ात की....॥

ज्ञान-विद्या का लाभ प्राप्त होना शुरू हो जाता है।

नीचे दिए गए मंत्र से मनुष्य की वाणी सिद्ध हो जाती है। समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाला यह मंत्र सरस्वती का सबसे दिव्य मं‍त्र है।

* सरस्वती गायत्री मंत्र : 'ॐ वागदैव्यै च विद्महे कामराजाय धीमहि। तन्नो देवी प्रचोदयात्‌।'

इस मंत्र की 5 माला का जाप करने से साक्षात मां सरस्वती प्रसन्न हो जाती हैं तथा साधक को ज्ञान-विद्या का लाभ प्राप्त होना शुरू हो जाता है। विद्यार्थियों को ध्यान करने के लिए त्राटक अवश्य करना चाहिए। 10 मिनट रोज त्राटक करने से स्मरण शक्ति बढ़ती है। एक बार अध्ययन करने से कंठस्थ हो जाता है।

यह असंभव है

अगर एक गांव में एक आदमी भी है, जो जानता है कि आत्मा अमर है, उस गांव का पूरा वातावरण, उस गांव की पूरी की पूरी हवा, उस गांव की पूरी की पूरी जिंदगी बदल जाएगी। एक छोटा-सा फूल खिलता है, और दूर-दूर के रास्तों पर उसकी सुगंध फैल जाती है। एक आदमी भी अगर इस बात को जानता है कि आत्मा अमर है, तो उस एक आदमी का एक गांव में होना पूरे गांव की आत्मा की शुद्धि का कारण बन सकता है।
लेकिन हमारे मुल्क में कितने साधु हैं और कितने चिल्लाने और शोरगुल करने वाले हैं कि आत्मा अमर है। और इनकी इतनी लंबी कतार, इतनी भीड़, और मुल्क का यह नैतिक चरित्र और मुल्क का यह पतन! यह सबूत करता है कि यह सब धोखेबाज धंधा है। यहां कहीं कोई आत्मा-वात्मा को जानने वाला नहीं है। यह इतनी भीड़, इतनी कतार, यह इतनी मिलिटरी और इतना बड़ा सर्कस साधुओं का सारे मुल्क में--कोई मुंह पर पट्टी बांधे हुए एक तरह का सर्कस कर रहे हैं, कोई डंडा लिए दूसरे तरह का सर्कस कर रहे हैं, कोई तीसरे तरह का सर्कस कर रहे हैं--यह इतनी बड़ी भीड़ आत्मा को जानने वाले लोगों की हो और मुल्क का जीवन इतना नीचे गिरता चला जाए, यह असंभव है।

Sunday, 24 August 2014

हे प्रभु! आप हमारे जीवन के दाता हैं

सुबह मां गायत्री का होता है यह दिव्य रूप, जिसके दर्शन से मिले यह शक्ति


मां गायत्री वेदमाता पुकारी जाती है। वेद ज्ञान रूपी शक्ति है। मान्यता है कि यह ज्ञानरूपी शक्ति ही ब्रह्मदेव के रूप में प्रकट हुई। ब्रह्मदेव द्वारा ही अलग-अलग लोक रचकर उनको चार वेदों के रूप में बांटी गई ज्ञान शक्ति से संपन्न किया। संसार व धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष भी यही शक्ति समाई है। इसलिए पूरा जगत ही गायत्री शक्ति का स्वरूप माना जाता है।

यही कारण है कि गायत्री साधना देव भाव से करना अहम माना गया है। किंतु अगर गायत्री के साकार रूप में उपासना की बात आती है तो शास्त्रों में मां गायत्री के तीन अलग-अलग काल में तीन रूप बताए गए हैं, जिनके दर्शन अलग-अलग शक्तियां देने वाले माने गए हैं। जानते हैं सुबह मां गायत्री के दिव्य रूप को - सुबह का वक्त ब्रह्ममुहूर्त भी पुकारा जाता है। इसलिए इस काल में मां गायत्री ब्राह्मी नाम से पूजनीय है। इसे कुमारिका रूप भी पुकारा जाता है। जिसमें उनका तेज उगते सूर्य के लाल रंग की भांति ही होता है। वह हंस पर बैठी तीन नेत्रों वाली होती है। साथ ही वह पाश, अंकुश, अक्षमाला, कमण्डलु, ऋग्वेद और ब्रह्मशक्ति से संपन्न होती है। मां गायत्री का यह दिव्य स्वरूप जीवन को प्रेरणा और शक्ति देता है। उनकी तरुणाई बचपन की तरह शुद्ध भाव व चंचलता, लाल आभा खून की तरह गति, हंस पर बैठना प्राणों पर नियंत्रण, पाश - बंधन, अंकुश - नियंत्रण, ऋग्वेद - ज्ञान शक्ति का प्रतीक है।

यही कारण है कि कि सुबह गायत्री साधना से ये सभी शक्तियां साधक को प्राप्त होती हैं। चूंकि गायत्री के इस रूप का निवास पृथ्वी लोक माना जाता है। प्रतीकात्मक रूप से शरीर भी आधार या भूलोक के समान है। इसलिए सूर्य उदय के काल में ब्राह्मी यानी गायत्री की साधना सूर्य की भांति ही शरीर को स्वस्थ्य, सुंदर व ऊर्जावान रख प्राणशक्ति देने वाली मानी गई है।

गायत्री मंत्र का वर्णं
ॐ भूर्भुवः स्वः
तत्सवितुर्वरेण्
भर्गो देवस्यः धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्

गायत्री मंत्र संक्षेप में
गायत्री मंत्र (वेद ग्रंथ की माता) को हिन्दू धर्म में सबसे उत्तम मंत्र माना जाता है. यह मंत्र हमें ज्ञान प्रदान करता है. इस मंत्र का मतलब है - हे प्रभु, क्रिपा करके हमारी बुद्धि को उजाला प्रदान कीजिये और हमें धर्म का सही रास्ता दिखाईये. यह मंत्र सूर्य देवता (सवितुर) के लिये प्रार्थना रूप से भी माना जाता है.

हे प्रभु! आप हमारे जीवन के दाता हैं
आप हमारे दुख़ और दर्द का निवारण करने वाले हैं
आप हमें सुख़ और शांति प्रदान करने वाले हैं
हे संसार के विधाता
हमें शक्ति दो कि हम आपकी उज्जवल शक्ति प्राप्त कर सकें
क्रिपा करके हमारी बुद्धि को सही रास्ता दिखायें

मंत्र के प्रत्येक शब्द की व्याख्या

गायत्री मंत्र के पहले नौं शब्द प्रभु के गुणों की व्याख्या करते हैं

ॐ = प्रणव
भूर = मनुष्य को प्राण प्रदाण करने वाला
भुवः = दुख़ों का नाश करने वाला
स्वः = सुख़ प्रदाण करने वाला
तत = वह, सवितुर = सूर्य की भांति उज्जवल
वरेण्यं = सबसे उत्तम
भर्गो = कर्मों का उद्धार करने वाला
देवस्य = प्रभु
धीमहि = आत्म चिंतन के योग्य (ध्यान)
धियो = बुद्धि, यो = जो, नः = हमारी, प्रचोदयात् = हमें शक्ति दें (प्रार्थना)
श्री गोरक्षनाथ संकट मोचन स्तोत्र
बाल योगी भये रूप लिए तब, आदिनाथ लियो अवतारों। ताहि समे सुख सिद्धन को भयो, नाती शिव गोरख नाम उचारो॥ भेष भगवन के करी विनती तब अनुपन शिला पे ज्ञान विचारो। को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥ सत्य युग मे भये कामधेनु गौ तब जती गोरखनाथ को भयो प्रचारों। आदिनाथ वरदान दियो तब , गौतम ऋषि से शब्द उचारो॥ त्रिम्बक क्षेत्र मे स्थान कियो तब गोरक्ष गुफा का नाम उचारो । को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥ सत्य वादी भये हरिश्चंद्र शिष्य तब, शुन्य शिखर से भयो जयकारों। गोदावरी का क्षेत्र पे प्रभु ने , हर हर गंगा शब्द उचारो। यदि शिव गोरक्ष जाप जपे , शिवयोगी भये परम सुखारो। को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥ अदि शक्ति से संवाद भयो जब , माया मत्सेंद्र नाथ भयो अवतारों । ताहि समय प्रभु नाथ मत्सेंद्र, सिंहल द्वीप को जाय सुधारो । राज्य योग मे ब्रह्म लगायो तब, नाद बंद को भयो प्रचारों। को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥ आन ज्वाला जी किन तपस्या , तब ज्वाला देवी ने शब्द उचारो। ले जती गोरक्षनाथ को नाम तब, गोरख डिब्बी को नाम पुकारो॥ शिष्य भय जब मोरध्वज राजा ,तब गोरक्षापुर मे जाय सिधारो। को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥ ज्ञान दियो जब नव नाथों को , त्रेता युग को भयो प्रचारों। योग लियो रामचंद्र जी ने जब, शिव शिव गोरक्ष नाम उचारो ॥ नाथ जी ने वरदान दिया तब, बद्रीनाथ जी नाम पुकारो। को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥ गोरक्ष मढ़ी पे तपस्चर्या किन्ही तब, द्वापर युग को भयो प्रचारों । कृष्ण जी को उपदेश दियो तब, ऋषि मुनि भये परम सुखारो॥ पाल भूपाल के पालनते शिव , मोल हिमाल भयो उजियारो। को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥ ऋषि मुनि से संवाद भयो जब , युग कलियुग को भयो प्रचारों। कार्य मे सही किया जब जब राजा भरतुहारी को दुःख निवारो, ले योग शिष्य भय जब राजा, रानी पिंगला को संकट तारो। को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥ मैनावती रानी ने स्तुति की जब कुवा पे जाके शब्द उचारो। राजा गोपीचंद शिष्य भयो तब, नाथ जालंधर के संकट तारो। । नवनाथ चौरासी सिद्धो मे , भगत पूरण भयो परम सुखारो। को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥ दोहा :- नव नाथो मे नाथ है , आदिनाथ अवतार । जती गुरु गोरक्षनाथ जो , पूर्ण ब्रह्म करतार॥ संकट -मोचन नाथ का , सुमरे चित्त विचार । जती गुरु गोरक्षनाथ जी मेरा करो निस्तार ॥

हरिदास जी ने इस विग्रह को ‘बाँकेबिहारी’ नाम दिया

श्री बाँकेबिहारी जी का प्राकट्य
वृंदावन में बाँकेबिहारी जी का एक भव्य मंदिर है। इस मंदिर में बिहारी जी की काले रंग की एक प्रतिमा है। इस प्रतिमा के विषय में मान्यता है कि इस प्रतिमा में साक्षात् श्रीकृष्ण और राधाजी समाए हुए हैं। इसलिए इनके दर्शन मात्र से राधा-कृष्ण के दर्शन का फल मिल जाता है। इस प्रतिमा के प्रकट होने की कथा और लीला बड़ी ही रोचक और अद्भुत है इसलिए हर वर्ष मार्गशीर्ष मास की पंचमी तिथि को बाँकेबिहारी मंदिर में बाँकेबिहारी प्रकटोत्सव मनाया जाता है।बाँकेबिहारी जी के प्रकट होने की कथा-संगीत सम्राट तानसेन के गुरु स्वामी हरिदास जी भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे। इन्होंने अपने संगीत को भगवान को समर्पित कर दिया था। वृंदावन में स्थित श्रीकृष्ण की रास-स्थली निधिवन में बैठकर भगवान को अपने संगीत से रिझाया करते थे। भगवान की भक्ति में डूबकर हरिदास जी जब भी गाने बैठते तो प्रभु में ही लीन हो जाते। इनकी भक्ति और गायन से रीझकर भगवान श्रीकृष्ण इनके सामने आ गये। हरिदास जी मंत्रमुग्ध होकर श्रीकृष्ण को दुलार करने लगे। एक दिन इनके एक शिष्य ने कहा कि आप अकेले ही श्रीकृष्ण का दर्शन लाभ पाते हैं, हमें भी साँवरे सलोने का दर्शन करवाइये। इसके बाद हरिदास जी श्रीकृष्ण की भक्ति में डूबकर भजन गाने लगे। राधा-कृष्ण की युगल जोड़ी प्रकट हुई और अचानक हरिदास के स्वर में बदलाव आ गया और गाने लगे-भाई री सहज जोरी प्रकट भई,जुरंग की गौर स्याम घन दामिनी जैसे।प्रथम है हुती अब हूँ आगे हूँ रहि है न टरि है तैसे।अंग-अंग की उजकाई सुघराई चतुराई सुंदरता ऐसे।श्री हरिदास के स्वामी श्यामा पुंज बिहारी सम वैसे वैसे।श्रीकृष्ण और राधाजी ने हरिदास के पास रहने की इच्छा प्रकट की। हरिदास जी ने कृष्णजी से कहा कि प्रभु मैं तो संत हूँ। आपको लंगोट पहना दूँगा लेकिन माता को नित्य आभूषण कहाँ से लाकर दूँगा। भक्त की बात सुनकर श्रीकृष्ण मुस्कराए और राधा-कृष्ण की युगल जोड़ी एकाकार होकर एक विग्रह के रूप में प्रकट हुई। हरिदास जी ने इस विग्रह को ‘बाँकेबिहारी’ नाम दिया। बाँके बिहारी मंदिर में इसी विग्रह के दर्शन होते हैं। बाँके बिहारी के विग्रह में राधा-कृष्ण दोनों ही समाए हुए हैं, जो भी श्रीकृष्ण के इस विग्रह का दर्शन करता है, उसकी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं। भगवान श्रीकृष्ण अपने भक्त के कष्टों को दूर कर देते हैं।

Saturday, 23 August 2014

यमदूत उस पर बिल्कुल भी दया नहीं करते हैं।

मरने के 47 दिन बाद आत्मा पहुंचती है यमलोक, ये होता है रास्ते में...
मृत्यु एक ऐसा सच है जिसे कोई भी झुठला नहीं सकता। हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद स्वर्ग-नरक की मान्यता है। पुराणों के अनुसार जो मनुष्य अच्छे कर्म करता है, वह स्वर्ग जाता है, जबकि जो मनुष्य जीवन भर बुरे कामों में लगा रहता है, उसे यमदूत नरक में ले जाते हैं। सबसे पहले जीवात्मा को यमलोक ले जाया जाता है। वहां यमराज उसके पापों के आधार पर उसे सजा देते हैं।
मृत्यु के बाद जीवात्मा यमलोक तक किस प्रकार जाती है, इसका विस्तृत वर्णन गरुड़ पुराण में है। गरुड़ पुराण में यह भी बताया गया है कि किस प्रकार मनुष्य के प्राण निकलते हैं और किस तरह वह पिंडदान प्राप्त कर प्रेत का रूप लेता है।
- गरुड़ पुराण के अनुसार जिस मनुष्य की मृत्यु होने वाली होती है, वह बोल नहीं पाता है। अंत समय में उसमें दिव्य दृष्टि उत्पन्न होती है और वह संपूर्ण संसार को एकरूप समझने लगता है। उसकी सभी इंद्रियां नष्ट हो जाती हैं। वह जड़ अवस्था में आ जाता है, यानी हिलने-डुलने में असमर्थ हो जाता है। इसके बाद उसके मुंह से झाग निकलने लगता है और लार टपकने लगती है। पापी पुरुष के प्राण नीचे के मार्ग से निकलते हैं।
- मृत्यु के समय दो यमदूत आते हैं। वे बड़े भयानक, क्रोधयुक्त नेत्र वाले तथा पाशदंड धारण किए होते हैं। वे नग्न अवस्था में रहते हैं और दांतों से कट-कट की ध्वनि करते हैं। यमदूतों के कौए जैसे काले बाल होते हैं। उनका मुंह टेढ़ा-मेढ़ा होता है। नाखून ही उनके शस्त्र होते हैं। यमराज के इन दूतों को देखकर प्राणी भयभीत होकर मलमूत्र त्याग करने लग जाता है। उस समय शरीर से अंगूष्ठमात्र (अंगूठे के बराबर) जीव हा हा शब्द करता हुआ निकलता है।
- यमराज के दूत जीवात्मा के गले में पाश बांधकर यमलोक ले जाते हैं। उस पापी जीवात्मा को रास्ते में थकने पर भी यमराज के दूत भयभीत करते हैं और उसे नरक में मिलने वाली यातनाओं के बारे में बताते हैं। यमदूतों की ऐसी भयानक बातें सुनकर पापात्मा जोर-जोर से रोने लगती है, किंतु यमदूत उस पर बिल्कुल भी दया नहीं करते हैं।
- इसके बाद वह अंगूठे के बराबर शरीर यमदूतों से डरता और कांपता हुआ, कुत्तों के काटने से दु:खी अपने पापकर्मों को याद करते हुए चलता है। आग की तरह गर्म हवा तथा गर्म बालू पर वह जीव चल नहीं पाता है। वह भूख-प्यास से भी व्याकुल हो उठता है। तब यमदूत उसकी पीठ पर चाबुक मारते हुए उसे आगे ले जाते हैं। वह जीव जगह-जगह गिरता है और बेहोश हो जाता है। इस प्रकार यमदूत उस पापी को अंधकारमय मार्ग से यमलोक ले जाते हैं।
- गरुड़ पुराण के अनुसार यमलोक 99 हजार योजन (योजन वैदिक काल की लंबाई मापने की इकाई है। एक योजन बराबर होता है, चार कोस यानी 13-16 कि.मी) दूर है। वहां पापी जीव को दो- तीन मुहूर्त में ले जाते हैं। इसके बाद यमदूत उसे भयानक यातना देते हैं। यह याताना भोगने के बाद यमराज की आज्ञा से यमदूत आकाशमार्ग से पुन: उसे उसके घर छोड़ आते हैं।
- घर में आकर वह जीवात्मा अपने शरीर में पुन: प्रवेश करने की इच्छा रखती है, लेकिन यमदूत के पाश से वह मुक्त नहीं हो पाती और भूख-प्यास के कारण रोती है। पुत्र आदि जो पिंड और अंत समय में दान करते हैं, उससे भी प्राणी की तृप्ति नहीं होती, क्योंकि पापी पुरुषों को दान, श्रद्धांजलि द्वारा तृप्ति नहीं मिलती। इस प्रकार भूख-प्यास से बेचैन होकर वह जीव यमलोक जाता है।
- जिस पापात्मा के पुत्र आदि पिंडदान नहीं देते हैं तो वे प्रेत रूप हो जाती हैं और लंबे समय तक निर्जन वन में दु:खी होकर घूमती रहती है। काफी समय बीतने के बाद भी कर्म को भोगना ही पड़ता है, क्योंकि प्राणी नरक यातना भोगे बिना मनुष्य शरीर नहीं प्राप्त होता। गरुड़ पुराण के अनुसार मनुष्य की मृत्यु के बाद 10 दिन तक पिंडदान अवश्य करना चाहिए। उस पिंडदान के प्रतिदिन चार भाग हो जाते हैं। उसमें दो भाग तो पंचमहाभूत देह को पुष्टि देने वाले होते हैं, तीसरा भाग यमदूत का होता है तथा चौथा भाग प्रेत खाता है। नवें दिन पिंडदान करने से प्रेत का शरीर बनता है। दसवें दिन पिंडदान देने से उस शरीर को चलने की शक्ति प्राप्त होती है।
- गरुड़ पुराण के अनुसार शव को जलाने के बाद पिंड से हाथ के बराबर का शरीर उत्पन्न होता है। वही यमलोक के मार्ग में शुभ-अशुभ फल भोगता है। पहले दिन पिंडदान से मूर्धा (सिर), दूसरे दिन गर्दन और कंधे, तीसरे दिन से हृदय, चौथे दिन के पिंड से पीठ, पांचवें दिन से नाभि, छठे और सातवें दिन से कमर और नीचे का भाग, आठवें दिन से पैर, नवें और दसवें दिन से भूख-प्यास उत्पन्न होती है। यह पिंड शरीर को धारण कर भूख-प्यास से व्याकुल प्रेतरूप में ग्यारहवें और बारहवें दिन का भोजन करता है।
- यमदूतों द्वारा तेरहवें दिन प्रेत को बंदर की तरह पकड़ लिया जाता है। इसके बाद वह प्रेत भूख-प्यास से तड़पता हुआ यमलोक अकेला ही जाता है। यमलोक तक पहुंचने का रास्ता वैतरणी नदी को छोड़कर छियासी हजार योजन है। उस मार्ग पर प्रेत प्रतिदिन दो सौ योजन चलता है। इस प्रकार 47 दिन लगातार चलकर वह यमलोक पहुंचता है। मार्ग में सोलह पुरियों को पार कर पापी जीव यमराज के घर जाता है।
- इन सोलह पुरियों के नाम इस प्रकार है - सौम्य, सौरिपुर, नगेंद्रभवन, गंधर्व, शैलागम, क्रौंच, क्रूरपुर, विचित्रभवन, बह्वापाद, दु:खद, नानाक्रंदपुर, सुतप्तभवन, रौद्र, पयोवर्षण, शीतढ्य, बहुभीति। इन सोलह पुरियों को पार करने के बाद यमराजपुरी आती है। पापी प्राणी यमपाश में बंधा मार्ग में हाहाकार करते हुए यमराज पुरी जाता है

उसके बाद जन्‍म नहीं है

राम कृष्‍ण के जीवन में एक अद्भुत घटना है। रामकृष्‍ण को जो लोग बहुत निकट से जानते थे, उन सबको यह बात जानकर अत्यंत कठिनाई होती थी कि रामकृष्‍ण जैसा परमहंस, रामकृष्‍ण जैसा समाधिस्‍थ व्‍यक्‍ति भोजन के संबंध में बहुत लोलुप था। रामकृष्‍ण भोजन के लिए बहुत आतुर होते थे, और भोजन के लिए इतनी प्रतीक्षा करते थे कई बार उठकर चोंके में पहुंच जाते थे। और पूछते शारद को, बहुत देर हो गई। क्‍या बन रहा है आज? ब्रह्म की चर्चा चलती और बीच में ब्रह्म-चर्चा छोड़कर पहु्ंच जाते चोंके में। और खोजने लगते कि शारदा आज क्‍या बना रहा है? शारद ने भी उन्‍हें कई बार कहा की लोग क्‍या सोचते होंगे? क्‍या कहते होंगे? ब्रह्म की चर्चा छोड़ कर एक दम अन्न की चर्चा पर उतर आते हो। रामकृष्‍ण हंसते और चुप रह जाते। उनके शिष्‍यों ने भी उन्‍हें अनेक बार कहां। इससे बड़ी बदनामी होती है। लोग कहते है कि ऐसा व्‍यक्‍ति क्‍या ज्ञान को उपलब्‍ध होगा। जिसकी अभी वासना , रसना, जीभ की भी पूरी नहीं हुई है।

एक दिन शारदा ने (रामकृष्‍ण की पत्‍नी) ने बहुत भला-बुरा कहा, तो रामकृष्‍ण ने कहा कि तुझे पागल, पता नहीं, जिस दिन मैं भोजन के प्रति अरूचि प्रकट करूं, तू समझ लेना कि अब मेरे जीवन की यात्रा केवल तीन दिन शेष रह गई है। बस तीन दिन से ज्‍यादा फिर मैं जीऊूंगा नहीं। जिस दिन भोजन के प्रति मेरी उपेक्षा हो, समझ लेना कि तीन दिन बाद मेरी मौत आ गई है। शारदा कहने लगी, इसका अर्थ? रामकृष्‍ण कहने लगे, मेरी सारी वासनाएं क्षीण हो गई है। मेरी सारी इच्‍छाएं विलीन हो गई है। मेरे सारे विचार नष्‍ट हो गये है। लेकिन जगत के हित के लिए मैं रुका रहना चाहता हूं। मैं एक वासना को जबर्दस्‍ती पकड़े हुए हूं। जैसे किसी नाव की सारी ज़ंजीरें खुल जाएं एक जंजीर से नाव अटकी रह गई है। और वह एक जंजीर और टूट जाए तो नाव अपनी अनंत यात्रा पर निकल जाएगी। मैं चेष्‍टा करके रुका हुआ हूं। नहीं किसी की समझ में शायद उस दिन यह बात आई, लेकिन रामकृष्‍ण की मृत्‍यु के तीन दिन पहले शारदा थाली लगाकर रामकृष्‍ण के कमरे में गई। वे बैठे हुए देख रहे थे। उन्‍होंने थाली देखकर आँख बंद कर ली। लेट गए, और पीठ कर ली शारदा की तरफ। उसे एकदम से ख्‍याल आया कि उन्‍होंने कहां था कि तीन दिन बाद मौत हो जाएगी। जिस दिन भोजन के प्रति अरूचि करूंगा। उसके हाथ से थाली छूट गई। वह छाती पीटकर रोने लगी। राम कृष्‍ण ने कहा रोओ मत, तुम जो कहती थी वह बात भी अब पूरी हो गई।

ठीक तीन दिन बाद रामकृष्‍ण की मृत्‍यु हो गई। एक छोटी सी वासना को प्रयास करके वे रोके हुए थे। उतनी छोटी सी वासना जीवन यात्रा का आधार बनी थी। वह वासना भी चली गई जो जीवन यात्रा का सारा आधार समाप्‍त हो गया।

जिन्‍हें हम तीर्थकर कहते है, जिन्‍हें हम बुद्ध कहते है। जिन्‍हें हम ईश्‍वर के पुत्र कहते है। जिन्‍हें हम अवतार कहते है। उनकी भी एक ही वासना शेष रह गई होती है। और उस वासना को वे शेष रखना चाहते है करूणा के हित, सर्वमंगला के हित, सर्व लोक के हित। जिस दिन वह वासना भी शेष हो जाती है, उसी दिन जीवन की यह यात्रा समाप्‍त और अनंत की अंतहीन यात्रा शुरू हो जाती है। उसके बाद जन्‍म नहीं है, उसके बाद मरण नहीं है। उसके बाद….उसके बाद न एक है, न अनेक है।

जय श्री कृष्ण

कृष्ण उठत कृष्ण चलत कृष्ण शाम भोर है, 
कृष्ण बुद्धि कृष्ण चित्त कृष्ण मन विभोर है।

कृष्ण रात्रि कृष्ण दिवस कृष्ण स्वप्न शयन है, 
कृष्ण काल कृष्ण कला कृष्ण मास अयन है।

कृष्ण शब्द कृष्ण अर्थ कृष्ण ही परमार्थ है, 
कृष्ण कर्म कृष्ण भाग्य कृष्णहि पुरुषार्थ है।

कृष्ण स्नेह कृष्ण राग कृष्णहि अनुराग है, 
कृष्ण कली कृष्ण कुसुम कृष्ण ही पराग है।

कृष्ण भोग कृष्ण त्याग कृष्ण तत्व ज्ञान है, 
कृष्ण भक्ति कृष्ण प्रेम कृष्णहि विज्ञान है।

कृष्ण स्वर्ग कृष्ण मोक्ष कृष्ण परम साध्य है,
कृष्ण जीव कृष्ण ब्रह्म कृष्णहि आराध्य है।

जय श्री कृष्ण....

कि तुम मेरा ध्यान करोगे

ईश्वर की तरफ से शिकायत:

मेरे प्रिय...
सुबह तुम जैसे ही सो कर उठे, मैं तुम्हारे बिस्तर के
पास ही खड़ा था।
मुझे लगा कि तुम मुझसे कुछ बात
करोगे।
तुम कल या पिछले हफ्ते हुई किसी बात
या घटना के लिये मुझे धन्यवाद कहोगे।
लेकिन तुम
फटाफट चाय पी कर तैयार होने चले गए और
मेरी तरफ देखा भी नहीं!!!
फिर मैंने सोचा कि तुम
नहा के मुझे याद करोगे।
पर तुम इस उधेड़बुन में लग
गये कि तुम्हे आज कौन से कपड़े पहनने है!!!
फिर जब
तुम जल्दी से नाश्ता कर रहे थे और अपने ऑफिस के
कागज़ इक्कठे करने के लिये घर में इधर से उधर
दौड़ रहे थे...तो भी मुझे लगा कि शायद अब तुम्हे
मेरा ध्यान आयेगा,लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
फिर जब तुमने आफिस जाने के लिए ट्रेन
पकड़ी तो मैं समझा कि इस खाली समय का उपयोग
तुम मुझसे बातचीत करने में करोगे पर तुमने थोड़ी देर
पेपर पढ़ा और फिर खेलने लग गए अपने मोबाइल में
और मैं खड़ा का खड़ा ही रह गया।
मैं तुम्हें बताना चाहता था कि दिन का कुछ
हिस्सा मेरे साथ बिता कर तो देखो,तुम्हारे काम और
भी अच्छी तरह से होने लगेंगे, लेकिन तुमनें मुझसे बात
ही नहीं की...
एक मौका ऐसा भी आया जब तुम
बिलकुल खाली थे और कुर्सी पर पूरे 15 मिनट यूं
ही बैठे रहे,लेकिन तब भी तुम्हें मेरा ध्यान
नहीं आया। दोपहर के खाने के वक्त जब तुम इधर-
उधर देख रहे थे,तो भी मुझे लगा कि खाना खाने से
पहले तुम एक पल के लिये मेरे बारे में सोचोंगे,लेकिन
ऐसा नहीं हुआ।
दिन का अब भी काफी समय बचा था।
मुझे
लगा कि शायद इस बचे समय में हमारी बात
हो जायेगी,लेकिन घर पहुँचने के बाद तुम
रोज़मर्रा के कामों में व्यस्त हो गये।
जब वे काम निबट गये तो तुमनें टीवी खोल
लिया और घंटो टीवी देखते रहे। देर रात थककर
तुम बिस्तर पर आ लेटे।
तुमनें अपनी पत्नी,
बच्चों को शुभरात्रि कहा और चुपचाप चादर ओढ़कर
सो गये।
मेरा बड़ा मन था कि मैं
भी तुम्हारी दिनचर्या का हिस्सा बनूं...
तुम्हारे
साथ कुछ वक्त बिताऊँ...
तुम्हारी कुछ सुनूं...
तुम्हे कुछ
सुनाऊँ।
कुछ मार्गदर्शन करूँ तुम्हारा ताकि तुम्हें
समझ आए कि तुम किसलिए इस धरती पर आए हो और
किन कामों में उलझ गए हो, लेकिन तुम्हें समय
ही नहीं मिला और मैं मन मार कर ही रह गया।
मैं तुमसे बहुत प्रेम करता हूँ।
हर रोज़ मैं इस बात
का इंतज़ार करता हूँ कि तुम मेरा ध्यान करोगे और
अपनी छोटी छोटी खुशियों के लिए मेरा धन्यवाद
करोगे। पर तुम तब ही आते हो जब तुम्हें कुछ चाहिए
होता है। तुम जल्दी में आते हो और अपनी माँगें मेरे
आगे रख के चले जाते हो।और मजे की बात तो ये है
कि इस प्रक्रिया में तुम मेरी तरफ देखते
भी नहीं। ध्यान तुम्हारा उस समय भी लोगों की तरफ
ही लगा रहता है,और मैं इंतज़ार करता ही रह
जाता हूँ।
खैर कोई बात नहीं...हो सकता है कल तुम्हें
मेरी याद आ जाये!!!
ऐसा मुझे विश्वास है और मुझे तुम
में आस्था है।
आखिरकार मेरा दूसरा नाम...
आस्था और विश्वास ही तो है।

.
.
तुम्हारा
ईश्वर...
कृष्ण ही कृष्ण-

आगे तुम्हारी मर्जी

इतना तो करना स्वामी, जब प्राण तन से निकले,
गोविन्द नाम लेके, तब प्राण तन से निकले...
श्री गंगाजी का तट हो, जमुना का वंशीवट हो,
मेरा सावला निकट हो, जब प्राण तन से निकले...
पीताम्बरी कसी हो, छबी मान में यह बसी हो,
होठो पे कुछ हसी हो, जब प्राण तन से निकले...
उस वक्त जल्दी आना, नहीं श्याम भूल जाना,
राधे को साथ लाना, जब प्राण तन से निकले...
एक भक्त की है अर्जी, खुद गरज की है गरजी,
आगे तुम्हारी मर्जी जब प्राण तन से निकले...

Friday, 22 August 2014

स्थान दोष ,दिशा दोष से मुक्त कर अभय ही दे देता हैं.

कई बार व्यक्ति की समृद्धि अचानक रुष्ट हो जाती है,सारे बने बनाये कार्य बिगड जाते है,जीवन की सारी खुशिया नाराज सी लगती हैं,जिस भी काम में हाथ डालो असफलता ही हाथ लगती है.घर का कोई सदस्य जब चाहे तब घर से भाग जाता है,या हमेशा गुमसुम सा पागलों सा व्यवहार करता हो,तब ये प्रयोग जीवन की विभिन्न समस्याओं का न सिर्फ समाधान करता है अपितु पूरी तरह उन्हें नष्ट ही कर देता और आने वाले पूरे जीवन में भी आपको सपरिवार तंत्र बाधा और स्थान दोष ,दिशा दोष से मुक्त कर अभय ही दे देता हैं.
इस मंत्र को यदि पूर्ण विधि पूर्वक गुरु पूजन संपन्न कर ११०० की संख्या में जप कर सिद्ध कर लिया जाये तो साधक को ये मंत्र उसकी तीक्ष्ण साधनाओं में भी सुरक्षा प्रदान करता है और यात्रा में चोरी आदि घटनाओं से भी बचाता है.मंत्र को सिद्ध करने के बाद जिस भी मकान या दुकान में उपरोक्त बाधाएं आ रही हो,किसी प्रेत का वास हो गया हो या अज्ञात कारणों से बाधाएँ आ रही हो,उस मकान में बाहर के दरवाजे से लेकर अंदर तक कुल जितने दरवाजे हो उतनी ही छोटी नागफनी कीलें और एक मुट्ठी काली उडद ले ले.इसके बाद मकान के बाहर आकर प्रत्येक कील पर ५ बार मंत्र पढ़ कर फूँक मारे और उडद को भी फूँक मार कर अभिमंत्रित कर ले,जितनी कीलो को आप अभिमंत्रित करेंगे उतनी बार उडद पर भी फूँक मारनी होगी.अब इस सामग्री को लेकर उस मकान में प्रवेश करे और मन ही मन मन्त्र जप करते रहे.आखिरी कमरे में प्रवेश कर ४-५ दाने उडद के बिखेर दे और और उस कमरे से बाहर आकर उस कमरे की दरवाजे की चौखट पर कील ठोक दे.यही क्रिया प्रत्येक कमरों में करे. और आखिर में बाहर निकल कर मुख्य दरवाजे को भी कीलित कर दे.इस प्रयोग से खोयी खुशियाँ वापिस आती ही है. ये मेरा स्वयं का कई बार परखा हुआ प्रयोग है. मन्त्र- ओम नमो आदेश गुरुन को ईश्वर वाचा,अजरी-बजरी बाड़ा बज्जरी मैं बज्जरी बाँधा दशौ दुवार छवा ,और के घालों तो पलट हनुमंत वीर उसी को मारे,पहली चौकी गणपती,दूजी चौकी हनुमंत,तीजी चौकी में भैरों,चौथी चौकी देत रक्षा करन को आवें श्री नरसिंह देव जी, शब्द साँचा,पिण्ड काँचा,चले मन्त्र ईश्वरो वाचा. ..

जैसा कर्म करेगा इंसान, वैसा फल देगा भगवान'।

बड़ों के आशीर्वाद से हमारे बल, आयु, यश………
एक माँ अपने बच्चे को ढूंढ रही थी। बहुत देर तक जब वह नहीं मिला तो वह रोने लगी व बच्चे का नाम लेकर ज़ोर-ज़ोर से पुकारने लगी। कुछ ही समय उपरान्त उसका बच्चा उसके पास भाग आया। माँ ने पहले तो बच्चे को पुचकारा व गले से लगा लिया, कुछ देर बाद वह उसे डांटने लगी। जब पूछा की कहाँ छुपा हुआ था तो बालक बोला - 'माँ ! मैं छुपा हुआ नहीं था। मैं तो घर के बाहर की दुकान से गोंद लेने गया था।'
माँ ने जब पूछा की गोंद से क्या करना है तो बालक भोलेपन से बोला - ' माँ ! मैं उससे चाय का कप जोड़ूँगा ।फिर जब तुम बूढ़ी हो जाओगी तो उसी कप में तुम्हें चाय पिलाया करूँगा।'
माँ का शरीर यह सुनते ही पसीने से तर ब तर हो गया। कुछ पल तो उसे समझ ही नहीं आया कि वह क्या करे? होश संभालते ही उसने बच्चे को गोद में बिठाया व प्यार से कहा -'बेटा, ऐसी बातें नहीं करते। बड़ों का सम्मान करते हैं। उनसे ऐसा व्यवहार नहीं करते। पापा कितनी मेहनत करते हैं ताकि तुम अच्छे स्कूल जा सको। मम्मी सुस्वादु भोजन बनाती है, तुम्हारे लिये। इतनी मेहनत करते हैं, हम तुम्हारे लिये, ताकि तुम हमारे बुढ़ापे का सहारा बनो………।'
बच्चे ने माँ की बात बीच में ही काटते हुये कहा -'माँ ! क्या दादा-दादी ने यही नहीं सोचा होगा जब वे पापा को पढ़ाते होंगें। आज जब दादी से गलती से चाय का कप टूट गया था तो तुम कितना ज़ोर से चिल्लाईं थीं। इतना गुस्सा किया था आपने की दादाजी को आपसे दादी के लिये माफी माँगनी पड़ी थी। पता है माँ, आप तो कमरे में जाकर सो गईं, दादी बहुत देर तक रोती रहीं। मैंने वो कप संभाल कर रख लिया है, और अब उसे जोड़ूंगा।'
माँ को यह सूझ ही नहीं रहा था, कि वह क्या करे?
बच्चे को पुचकारते हुये बोली -'मैं भी तब से अशान्त ही हूँ'।
कैसी अद्भुत परिस्थिति होती जा रही है हमारे समाज की। हम बड़े-छोटे का लिहाज ही भूल गये हैं। रूपया-पैसा आवश्यक है, किन्तु इसका यह अर्थ नहीं की आप धन के लिये बड़ों का सम्मान करना ही छोड़ दें। शास्त्र तो यहाँ तक कहता है कि धारदार अस्त्र का घाव भर जाता है, किन्तु वाणी द्वारा दिया हुआ घाव नहीं भरता।
हमें यह कदापि नहीं विस्मरण करना चाहिये कि इन्हीं माता-पिता के कारण हम आज समाज में सम्मान से रह रहे हैं। यही वे पिता हैं जो हमारे द्वारा किये गये नुक्सान को हँस कर टाल देते थे। यही वह माता हैं, जो हमारे आंसू रोकने के लिये औरों से भिड़ जाती थी। आज वे जब वृद्ध हो गये हैं तो हमार धर्म बनता है कि हम उनकी सेवा करें।
अगर हमारे बड़े हमसे अप्रसन्न हो गये तो न जाने हम किस-किस से वंचित रह जायेंगे।
एक साधारण सिद्धान्त है कि बच्चे हम से ही सीखते हैं। हम जो जो करते हैं वे उसी की नकल करते हैं। अगर हम बड़ों का सम्मान करेंगे तो वे भी सम्मान करना ही सीखेंगे।
एक बड़ा प्रसिद्ध गाना है - 'जैसा कर्म करेगा इंसान, वैसा फल देगा भगवान'।

लेकिन यह इच्छा पूरी होना असंभव है।

किस पुरुष की कौन सी इच्छा कभी पूरी नहीं हो सकती....................
हर इंसान की कुछ इच्छाएं होती हैं और उन्हें पूरा करने के लिए वे प्रयास भी करते हैं। कुछ इच्छाएं तो पूरी हो जाती हैं, लेकिन कुछ अधूरी ही रह जाती हैं। यहां जानिए ऐसी इच्छाओं के विषय में जो कुछ लोग कभी भी पूरी नहीं कर सकते हैं। इन असंभव इच्छाओं के विषय में लक्ष्मण ने शूर्पणखा को बताया था।
गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीराम चरित मानस के अरण्यकाण्ड में जब शूर्पणखा लक्ष्मण के सामने प्रणय का प्रस्ताव रखती है तब लक्ष्मण कहते हैं कि-
सुंदरि सुनु मैं उन्ह कर दासा। पराधीन नहिं तोर सुपासा।।
प्रभु समर्थ कोसलपुर राजा। जो कछु करहिं उनहि सब छाजा।।
इस दोहे में लक्ष्मण शूर्पणखा से कहते हैं कि हे सुंदरी। मैं तो श्रीराम का सेवक हूं, मैं पराधीन हूं, अत: मुझे जीवन साथी बनाकर तुम्हें सुख प्राप्त नहीं होगा। तुम श्रीराम के पास जाओ, वे ही सभी काम करने में समर्थ हैं।
सेवक सुख चह मान भिखारी। ब्यसनी धन सुख गति विभिचारी।।
लोभी जसु चह चार गुमानी। नभ दुहि दूध चहत ए प्रानी।।
इस दोहे में लक्ष्मण ने 6 ऐसे पुरुषों के विषय में बात की है, जिनकी कुछ इच्छाएं पूरी होना असंभव ही है।
पहला पुरुष है सेवक- यदि कोई सेवक सुख चाहता है तो उसकी यह इच्छा कभी भी पूरी नहीं हो सकती है। सेवक को सदैव मालिक यानी स्वामी की इच्छाओं को पूरा करने के लिए तत्पर रहना होता है। अत: वह स्वयं के सुख की कल्पना भी नहीं कर सकता।
दूसरा पुरुष है भिखारी- यदि कोई भिखारी ये सोचे कि उसे समाज में पूर्ण मान-सम्मान मिले, सभी लोग उसका आदर करे तो यह इच्छा कभी भी पूरी नहीं हो सकती है।
भिखारी को सदैव लोगों की ओर से धिक्कारा ही जाता है, उन्हें हर बार अपमानित
ही होना पड़ता है।
तीसरा पुरुष है व्यसनी यानी नशा करने वाला यदि कोई व्यसनी (जिसे जूए, शराब
आदि का नशा करने की आदत हो) यह इच्छा करे कि उसके पास सदैव बहुत सारा धन रहे तो यह इच्छा कभी पूरी नहीं हो सकती है। ऐसे लोगों के पास यदि कुबेर का खजाना भी हो तो वह भी खाली हो जाएगा। ये लोग सदैव दरिद्र ही रहते हैं। नशे की लत में अपना सब कुछ लुटा देते हैं।
चौथा पुरुष है व्यभिचारी शास्त्रों के अनुसार व्यभिचार को भयंकर पाप माना गया है। यदि कोई पुरुष अपनी पत्नी के प्रति वफादार नहीं है और अन्य स्त्रियों के साथ अवैध संबंध रखता है तो उसे कभी भी सद्गति नहीं मिल सकती। ऐसे लोग का अंत बहुत बुरा होता है। जिस समय इनकी गुप्त बातें प्रकट हो जाती हैं, तभी इनके सारे सुख खत्म हो जाते हैं। साथ ही, ऐसे लोग भयंकर पीड़ाओं को भोगते हैं।
पांचवां पुरुष है लोभी यानी लालची जो लोग लालची होते हैं, वे हमेशा सिर्फ धन के विषय में ही सोचते हैं, उनके लिए यश की इच्छा करना व्यर्थ है। लालच के कारण घर- परिवार और मित्रों को भी महत्व नहीं देते। धन की कामना से वे किसी का भी अहित कर सकते हैं।
इस कारण इन्हें यश की प्राप्ति नहीं होती है। अत: लोभी इंसान की यश पाने की इच्छा कभी भी पूरी नहीं हो सकती है।
छठां पुरुष है अभिमानी यदि कोई व्यक्ति घमंडी है, दूसरों को तुच्छ समझता है और स्वयं श्रेष्ठ तो ऐसे लोगों को जीवन में कुछ भी प्राप्त नहीं हो पाता है। आमतौर पर ऐसे लोग चारों फल- अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष, एक साथ पाना चाहते हैं, लेकिन यह इच्छा पूरी होना असंभव है। शास्त्रों में कई ऐसे अभिमानी पुरुष बताए गए हैं, जिनका नाश उनके
घमंड के कारण ही हुआ है। रावण और कंस भी वैसे ही अभिमानी थे।

आप अपनी हड्डियां हमें दान दे दीजिए

शत्रु को शरीर दान करने वाले महर्षि दधिची
लोक-कल्याण के लिए आत्म त्याग करने वालों में महर्षि दधीचि का नाम बड़े ही आदर के साथ लिया जाता है। इनकी माता का नाम शांति तथा पिता का नाम अथर्वा ऋषि था। ये तपस्या और पवित्रता की प्रतिमूर्ति थे। अटूट शिव भक्ति और वैराग्य में इनकी जन्म से ही निष्ठा थी।
एक बार महर्षि दधीचि बड़ी ही कठोर तपस्या कर रहे थे। इनकी अपूर्व तपस्या के तेज से तीनों लोक आलोकित हो गए और इंद्र का सिंहासन हिलने लगा। इंद्र को लगा कि दधीचि अपनी कठोर तपस्या के द्वारा इंद्र पद छीनना चाहते हैं। इसलिए उन्होंने महर्षि की तपस्या को खंडित करने के उद्देश्य से परम रूपवती अलम्बुषा अप्सरा के साथ कामदेव को भेजा। अलम्बुषा और कामदेव के अथक प्रयत्न के बाद भी महर्षि अविचल रहे और अंत में विफल मनोरथ होकर दोनों इंद्र के पास लौट गए।
कामदेव और अप्सरा के निराश होकर लौटने के बाद इन्द्र ने महर्षि की हत्या करने का निश्चय किया और देव सेना को लेकर महर्षि दधीचि के आश्रम पर पहुंचे। वहां पहुंच कर देवताओं ने शांत और समाधिस्थ महर्षि पर अपने कठोर अस्त्र-शस्त्रों का प्रहार करना शुरू कर दिया। देवताओं के द्वारा चलाए गए अस्त्र-शस्त्र महर्षि की तपस्या के अभेद्य दुर्ग को न भेद सके और महर्षि अविचल समाधिस्थ बैठे रहे। इन्द्र के अस्त्र-शस्त्र भी उनके सामने व्यर्थ हो गए। हार कर देवराज स्वर्ग लौट आए।
एक बार देवराज इंद्र अपनी सभा में बैठे थे। उसी समय देव गुरु बृहस्पति आए। अहंकारवश गुरु बृहस्पति के सम्मान में इंद्र उठ कर खड़े नहीं हुए। बृहस्पति ने इसे अपना अपमान समझा और देवताओं को छोड़कर अन्यत्र चले गए। देवताओं को विश्वरूप को अपना पुरोहित बना कर काम चलाना पड़ा किन्तु विश्व रूप कभी-कभी देवताओं से छिपा कर असुरों को भी यज्ञ-भाग दे दिया करता था। इंद्र ने उस पर कुपित होकर उसका सिर काट लिया। विश्वरूप त्वष्टा ऋषि का पुत्र था। उन्होंने क्रोधित होकर इन्द्र को मारने के उद्देश्य से महाबली वृत्रासुर को उत्पन्न किया। वृत्रासुर के भय से इंद्र अपना सिंहासन छोड़ कर देवताओं के साथ मारे-मारे फिरने लगे।
ब्रह्मा जी की सलाह से देवराज इंद्र महर्षि दधीचि के पास उनकी हड्डियां मांगने के लिए गए। उन्होंने महर्षि से प्रार्थना करते हुए कहा, ‘‘प्रभो! त्रैलोक्य की मंगल-कामना हेतु आप अपनी हड्डियां हमें दान दे दीजिए।’’
महर्षि दधीचि ने कहा, ‘‘देवराज! यद्यपि अपना शरीर सबको प्रिय होता है, किन्तु लोकहित के लिए मैं तुम्हें अपना शरीर प्रदान करता हूं।’’
महर्षि दधीचि की हड्डियों से वज्र का निर्माण हुआ और वृत्रासुर मारा गया। इस प्रकार एक महान परोपकारी ऋषि के अपूर्व त्याग से देवराज इंद्र बच गए और तीनों लोक सुखी हो गए। अपने अपकारी शत्रु के भी हित के लिए सर्वस्व त्याग करने वाले महर्षि दधीचि जैसा उदाहरण संसार में अन्यत्र मिलना कठिन है।

Wednesday, 20 August 2014

पूजा भगवान का स्वरूप मान कर करते हैं।

कोई कहे की की हिन्दू मूर्ती पूजा क्यों करते हैं तो उन्हें बता दें मूर्ती पूजा का रहस्य :-
स्वामी विवेकानंद को एक राजा ने अपने भवन में बुलाया और बोला, "तुम हिन्दू
लोग मूर्ती की पूजा करते हो!
मिट्टी, पीतल, पत्थर की मूर्ती का.! पर मैं ये सब नही मानता। ये तो केवल एक पदार्थ है।"
उस राजा के सिंहासन के पीछे किसी आदमी की तस्वीर लगी थी। विवेकानंद जी कि नजर उस तस्वीर पर पड़ी।
विवेकानंद जी ने राजा से पूछा, "राजा जी, ये तस्वीर किसकी है?"
राजा बोला, "मेरे पिताजी की।"
स्वामी जी बोले, "उस तस्वीर को अपने
हाथ में लीजिये।" 
राजा तस्वीर को हाथ मे ले लेता है।
स्वामी जी राजा से : "अब आप उस तस्वीर पर थूकिए!"
राजा : "ये आप क्या बोल रहे हैं
स्वामी जी? 
स्वामी जी : "मैंने कहा उस तस्वीर पर थूकिए..!"
राजा (क्रोध से) : "स्वामी जी, आप होश मे तो हैं ना? मैं ये काम नही कर सकता।"
स्वामी जी बोले, "क्यों? ये तस्वीर तो केवल एक कागज का टुकड़ा है, और जिस पर कूछ रंग लगा है। इसमे ना तो जान है, ना आवाज, ना तो ये सुन सकता है, और ना ही कूछ बोल सकता है।"
और स्वामी जी बोलते गए, "इसमें
ना ही हड्डी है और ना प्राण। फिर भी आप इस पर कभी थूक नही सकते। क्योंकि आप इसमे अपने पिता का स्वरूप देखते हो।
और आप इस तस्वीर का अनादर करना अपने पिता का अनादर करना ही समझते हो।"
थोड़े मौन के बाद स्वामी जी आगे कहाँ,
"वैसे ही, हम हिंदू भी उन पत्थर, मिट्टी,
या धातु की पूजा भगवान का स्वरूप मान
कर करते हैं।
भगवान तो कण-कण मे है, पर एक
आधार मानने के लिए और मन को एकाग्र करने के लिए हम मूर्ती पूजा करते हैं।"
स्वामी जी की बात सुनकर राजा ने स्वामी जी से क्षमा माँगी।

है न कमाल की बात Not amazing

ज्योतिष के अनुसार आप के जीवन को हिला देने वाला सत्य ..!
कुछ चीजें दान करने से आप कंगाल हो सकते हैं ..!
लाल किताब कहती है कि चन्द्र यदि आप कि कुंडली में छटे घर में है और आप पानी या दूध का दान करते रहते हैं तो आप कि माता को भारी कष्ट का सामना करना पड सकता है और आप के खुद के जीवन में कष्ट आने शुरू हो जाएंगे ! और यही चन्द्र यदि बाहरवें घर में हो तो साधु को नित्य रोटी खिलाने,बच्चों को निशुल्क शिक्षा देने अथवा पाठशाला खुलवा दे तो उसको अंतिम समय में पानी भी नसीब नहीं होता ! शनि आठवें हो तो नया मकान शुरू करते ही मौत सर पर मंडराने लगती है ! ऐसे लोगों को बना बनाया मकान लेना ही ठीक रहेगा ! अगर बनाना चाहते ही हैं तो पुराने मकान का थोड़ा सरिया रोड़ी अथवा काठ नए मकान में जरूर इस्तेमाल करें !
देखा ,अब लोग कहते हैं कि हम ने तो जीवन में साधुओं को भिखारिओ को बहुत रोटी खिलाई , गरीब बच्चों कि फीस भरी , पानी कि छबीलें लगवाईं, फिर भी हम दुखी और कष्ट में हैं और जिन्हों ने कभी ऐसा कुछ किया ही नहीं ,वह लोग हम से आगे हैं !
है न कमाल की बात 

 मुफ्त में विध्या देने से गुरु खराब हो जाता है ! इस से आप की संतान और पति की हालत खराब हो सकती है !
यदि आप भी ऐसा कर रहे हैं तो इस का उपाए है ! दूसरे बच्चों से 100 रूपए लेते हो तो गरीब के बचे से चाहे एक रुपया लो परन्तु लो जरूर !

Not amazing
According to astrology Truth shake your life ..!
If you can donate a few things broke ..!
The red book says that the moon if the coil is in the sixth house and you are donating water or milk if the mother is facing enormous pain and suffering in your own life will start ! And if the moon monk continual bread to feed the Bahrven home, or school, opened to give free education to children last time he would not even get in the water! Sat eighth start a new house so that hover on the death of Sir! Such people would be better to make the house built! If you want to make the little bars of old houses in new houses must use gravel or wood!
See, now that we say so much in life Bhikhario monks ate bread, poor children coughed Cbilen Lgwain water, we are sad and in pain and who did no such thing, she people are ahead of us!
Not amazing

  Free from Vindhya master gets worse! This may worsen the condition of your children and husband!

If you are also a measure that is! Other kids take Rs 100 from the rest of the poor have no money, but take a course!

मौत की धमकी एक दिन समाप्त हो जाती है

मुरली मनोहर कृष्ण कन्हैया जमुना के तट पे विराजे हैं । 
मोर मुकुट पर कानों में कुण्डल कर में मुरलिया साजे है ॥
कृष्ण जन्म का रहस्य

कृष्ण का जन्म होता है अँधेरी रात में, अमावस में। सभी का जन्म अँधेरी रात में होता है और अमावस में होता है......
असल में जगत की कोई भी चीज उजाले में नहीं जन्मती, सब कुछ जन्म अँधेरे में ही होता है.
एक बीज भी फूटता है तो जमीन के अँधेरे में जन्मता है. फूल खिलते हैं प्रकाश में, जन्म अँधेरे में होता है.
असल में जन्म की प्रक्रिया इतनी रहस्यपूर्ण है कि अँधेरे में ही हो सकती है। आपके भीतर भी जिन चीजों का जन्म होता है, वे सब गहरे अंधकार में, गहन अंधकार में होती है। एक कविता जन्मती है, तो मन के बहुत अचेतन अंधकार में जन्मती है। बहुत अनकांशस डार्कनेस में पैदा होती है. एक चित्र का जन्म होता है,तो मन की बहुत अतल गहराइयों में जहाँ कोई रोशनी नहीं पहुँचती जगत की, वहाँ होता है.
समाधि का जन्म होता है, ध्यान का जन्म होता है,तो सब गहन अंधकार में।
गहन अंधकार से अर्थ है, जहाँ बुद्धि का प्रकाश जरा भी नहीं पहुँचता. जहाँ सोच-समझ में कुछ भी नहीं आता, हाथ को हाथ नहीं सूझता है.
कृष्ण का जन्म जिस रात में हुआ, कहानी कहती है कि हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था, इतना गहन अंधकार था। लेकिन इसमें विशेषता खोजने की जरूरत नहीं है। यह जन्म की सामान्य प्रक्रिया है।
दूसरी बात कृष्ण के जन्म के साथ जुड़ी है- बंधन में जन्म होता है, कारागृह में. किसका जन्म है जो बंधन और कारागृह में नहीं होता है?
हम सभी कारागृह में जन्मते हैं। हो सकता है कि मरते वक्त तक हम कारागृह से मुक्त हो जाएँ, जरूरी नहीं है हो सकता है कि हम मरें भी कारागृह में.
जन्म एक बंधन में लाता है, सीमा में लाता है. शरीर में आना ही बड़े बंधन में आ जाना है, बड़े कारागृह में आ जाना है. जब भी कोई आत्मा जन्म लेती है तो कारागृह में ही जन्म लेती है।
लेकिन इस प्रतीक को ठीक से नहीं समझा गया. इस बहुत काव्यात्मक बात को ऐतिहासिक घटना समझकर बड़ी भूल हो गई। सभी जन्म कारागृह में होते हैं.
सभी मृत्युएँ कारागृह में नहीं होती हैं. 
कुछ मृत्युएँ मुक्ति में होती है.
कुछ अधिक कारागृह में होती हैं। जन्म तो बंधन में होगा, मरते क्षण तक अगर हम बंधन से छूट जाएँ, टूट जाएँ सारे कारागृह, तो जीवन की यात्रा सफल हो गई.
कृष्ण के जन्म के साथ एक और तीसरी बात जुड़ी है और वह यह है कि जन्म के साथ ही उन्हें मारे जाने की धमकी है। किसको नहीं है? जन्म के साथ ही मरने की घटना संभावी हो जाती है। जन्म के बाद - एक पल बाद भी मृत्यु घटित हो सकती है।
जन्म के बाद प्रतिपल मृत्यु संभावी है. किसी भी क्षण मौत घट सकती है. मौत के लिए एक ही शर्त जरूरी है, वह जन्म है. और कोई शर्त जरूरी नहीं है। जन्म के बाद एक पल जीया हुआ बालक भी मरने के लिए उतना ही योग्य हो जाता है, जितना सत्तर साल जीया हुआ आदमी होता है। मरने के लिए और कोई योग्यता नहीं चाहिए, जन्म भर चाहिए।
लेकिन कृष्ण के जन्म के साथ एक चौथी बात भी जुड़ी है कि मरने की बहुत तरह की घटनाएँ आती हैं, लेकिन वे सबसे बचकर निकल जाते हैं. जो भी उन्हें मारने आता है, वही मर जाता है। कहें कि मौत ही उनके लिए मर जाती है। मौत सब उपाय करती है और बेकार हो जाती है। कृष्ण ऐसी जिंदगी हैं, जिस दरवाजे पर मौत बहुत रूपों में आती है और हारकर लौट जाती है।
वे सब रूपों की कथाएँ हमें पता हैं कि कितने रूपों में मौत घेरती है और हार जाती है. लेकिन कभी हमें खयाल नहीं आया कि इन कथाओं को हम गहरे में समझने की कोशिश करें। सत्य सिर्फ उन कथाओं में एक है, और वह यह है कि कृष्ण जीवन की तरफ रोज जीतते चले जाते हैं और मौत रोज हारती चली जाती है।
मौत की धमकी एक दिन समाप्त हो जाती है. जिन-जिन ने चाहा है, जिस-जिस ढंग से चाहा है कृष्ण मर जाएँ, वे-वे ढंग असफल हो जाते हैं और कृष्ण जीए ही चले जाते हैं। लेकिन ये बातें इतनी सीधी, जैसा मैं कह रहा हूँ, कही नहीं गई हैं. इतने सीधे कहने का पुराने आदमी के पास कोई उपाय नहीं था. इसे भी थोड़ा समझ लेना जरूरी है।
जितना पुरानी दुनिया में हम वापस लौटेंगे, उतना ही चिंतन का जो ढंग है, वह पिक्चोरियल होता है, चित्रात्मक होता है, शब्दात्मक नहीं होता. अभी भी रात आप सपना देखते हैं, कभी आपने खयाल किया कि सपनों में शब्दों का उपयोग करते हैं कि चित्रों का?
सपने में शब्दों का उपयोग नहीं होता, चित्रों का उपयोग होता है. क्योंकि सपने हमारे आदिम भाषा हैं, प्रिमिटिव लैंग्वेज हैं. सपने के मामले में हममें और आज से दस हजार साल पहले के आदमी में कोई फर्क नहीं पड़ा है. सपने अभी भी पुराने हैं, प्रिमिटिव हैं।
अभी भी सपना आधुनिक नहीं हो पाया. अभी भी सपने तो वही हैं जो दस हजार साल, दस साल पुराने थे. गुहा-मानव ने एक गुफा में सोकर रात में जो सपने देखे होंगे, वही एयरकंडीशंड मकान में भी देखे जाते हैं. उससे कोई और फर्क नहीं पड़ा है. सपने की खूबी है कि उसकी सारी अभिव्यक्ति चित्रों में है।
जितना पुरानी दुनिया में हम लौटेंगे- और कृष्ण बहुत पुराने हैं, इन अर्थों में पुराने हैं कि आदमी जब चिंतन शुरू कर रहा है, आदमी जब सोच रहा है जगत और जीवन के बाबत, अभी जब शब्द नहीं बने हैं और जब प्रतीकों में और चित्रों में सारा का सारा कहा जाता है और समझा जाता है, तब कृष्ण के जीवन की घटनाएँ लिखी गई हैं. उन घटनाओं को डीकोड करना पड़ता है. उन घटनाओं को चित्रों से तोड़कर शब्दों में लाना पड़ता है. और कृष्ण शब्द को भी थोड़ा समझना जरूरी है।
कृष्ण शब्द का अर्थ होता है, केंद्र। कृष्ण शब्द का अर्थ होता है, जो आकृष्ट करे, जो आकर्षित करे; सेंटर ऑफ ग्रेविटेशन, कशिश का केंद्र. कृष्ण शब्द का अर्थ होता है जिस पर सारी चीजें खिंचती हों. जो केंद्रीय चुंबक का काम करे। प्रत्येक व्यक्ति का जन्म एक अर्थ में कृष्ण का जन्म है, क्योंकि हमारे भीतर जो आत्मा है, वह कशिश का केंद्र है. वह सेंटर ऑफ ग्रेविटेशन है जिस पर सब चीजें खिँचती हैं और आकृष्ट होती हैं।
शरीर खिँचकर उसके आसपास निर्मित होता है, परिवार खिँचकर उसके आसपास निर्मित होता है, समाज खिँचकर उसके आसपास निर्मित होता है, जगत खिँचकर उसके आसपास निर्मित होता है. वह जो हमारे भीतर कृष्ण का केंद्र है, आकर्षण का जो गहरा बिंदु है, उसके आसपास सब घटित होता है. तो जब भी कोई व्यक्ति जन्मता है, तो एक अर्थ में कृष्ण ही जन्मता है वह जो बिंदु है आत्मा का, आकर्षण का, वह जन्मता है, और उसके बाद सब चीजें उसके आसपास निर्मित होनी शुरू होती हैं. उस कृष्ण बिंदु के आसपास क्रिस्टलाइजेशन शुरू होता है और व्यक्तित्व निर्मित होता है. इसलिए कृष्ण का जन्म एक व्यक्ति विशेष का जन्म मात्र नहीं है, बल्कि व्यक्ति मात्र का जन्म है।
कृष्ण जैसा व्यक्ति जब हमें उपलब्ध हो गया तो हमने कृष्ण के व्यक्तित्व के साथ वह सब समाहित कर दिया है जो प्रत्येक आत्मा के जन्म के साथ समाहित है. महापुरुषों की जिंदगी कभी भी ऐतिहासिक नहीं हो पाती है, सदा काव्यात्मक हो जाती है. पीछे लौटकर निर्मित होती है.
पीछे लौटकर जब हम देखते हैं तो हर चीज प्रतीक हो जाती है और दूसरे अर्थ ले लेती है. जो अर्थ घटते हुए क्षण में कभी भी न रहे होंगे. और फिर कृष्ण जैसे व्यक्तियों की जिंदगी एक बार नहीं लिखी जाती, हर सदी बार-बार लिखती है.
हजारों लोग लिखते हैं। जब हजारों लोग लिखते हैं तो हजार व्याख्याएँ होती चली जाती हैं. फिर धीरे-धीरे कृष्ण की जिंदगी किसी व्यक्ति की जिंदगी नहीं रह जाती। कृष्ण एक संस्था हो जाते हैं, एक इंस्टीट्यूट हो जाते हैं. फिर वे समस्त जन्मों का सारभूत हो जाते हैं. फिर मनुष्य मात्र के जन्म की कथा उनके जन्म की कथा हो जाती है. इसलिए व्यक्तिवाची अर्थों में मैं कोई मूल्य नहीं मानता हूँ. कृष्ण जैसे व्यक्ति व्यक्ति रह ही नहीं जाते। वे हमारे मानस के, हमारे चित्त के, हमारे कलेक्टिव माइंड के प्रतीक हो जाते हैं. और हमारे चित्त ने जितने भी जन्म देखे हैं, वे सब उनमें समाहित हो जाते हैं।

सम्मोहन शक्तिवर्द्धक सरल उपाय :

१. मोर की कलगी रेश्मी वस्त्र में बांधकर जेब में रखने से सम्मोहन शक्ति बढ़ती है।
२. श्वेत अपामार्ग की जड़ को घिसकर तिलक करने से सम्मोहन शक्ति बढ़ती है।
३. स्त्रियां अपने मस्तक पर आंखों के मध्य एक लाल बिंदी लगाकर उसे देखने का प्रयास करें। यदि कुछ समय बाद बिंदी खुद को दिखने लगे तो समझ लें कि आपमें सम्मोहन शक्ति जागृत हो गई है।
४. गुरुवार को मूल नक्षत्र में केले की जड़ को सिंदूर में मिलाकर पीस कर रोजाना तिलक करने से आकर्षण शक्ति बढ़ती है।
५. गेंदे का फूल, पूजा की थाली में रखकर हल्दी के कुछ छींटे मारें व गंगा जल के साथ पीसकर माथे पर तिलक लगाएं आकर्षण शक्ति बढ़ती है।
६. कई बार आपको यदि ऐसा लगता है कि परेशानियां व समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। धन का आगमन रुक गया है या आप पर किसी द्वारा तांत्रिक अभिकर्म'' किया गया है तो आप यह टोटके अवश्य प्रयोग करें, आपको इनका प्रभाव जल्दी ही प्राप्त होगा।
तांत्रिक अभिकर्म से प्रतिरक्षण हेतु उपाय
१. पीली सरसों, गुग्गल, लोबान व गौघृत इन सबको मिलाकर इनकी धूप बना लें व सूर्यास्त के 1 घंटे भीतर उपले जलाकर उसमें डाल दें। ऐसा २१ दिन तक करें व इसका धुआं पूरे घर में करें। इससे नकारात्मक शक्तियां दूर भागती हैं।
२. जावित्री, गायत्री व केसर लाकर उनको कूटकर गुग्गल मिलाकर धूप बनाकर सुबह शाम २१ दिन तक घर में जलाएं। धीरे-धीरे तांत्रिक अभिकर्म समाप्त होगा।
३. गऊ, लोचन व तगर थोड़ी सी मात्रा में लाकर लाल कपड़े में बांधकर अपने घर में पूजा स्थान में रख दें। शिव कृपा से तमाम टोने-टोटके का असर समाप्त हो जाएगा।
४. घर में साफ सफाई रखें व पीपल के पत्ते से ७ दिन तक घर में गौमूत्र के छींटे मारें व तत्पश्चात् शुद्ध गुग्गल का धूप जला दें।
५. कई बार ऐसा होता है कि शत्रु आपकी सफलता व तरक्की से चिढ़कर तांत्रिकों द्वारा अभिचार कर्म करा देता है। इससे व्यवसाय बाधा एवं गृह क्लेश होता है अतः इसके दुष्प्रभाव से बचने हेतु सवा 1 किलो काले उड़द, सवा 1 किलो कोयला को सवा 1 मीटर काले कपड़े में बांधकर अपने ऊपर से २१ बार घुमाकर शनिवार के दिन बहते जल में विसर्जित करें व मन में हनुमान जी का ध्यान करें। ऐसा लगातार ७ शनिवार करें। तांत्रिक अभिकर्म पूर्ण रूप से समाप्त हो जाएगा।
६. यदि आपको ऐसा लग रहा हो कि कोई आपको मारना चाहता है तो पपीते के २१ बीज लेकर शिव मंदिर जाएं व शिवलिंग पर कच्चा दूध चढ़ाकर धूप बत्ती करें तथा शिवलिंग के निकट बैठकर पपीते के बीज अपने सामने रखें। अपना नाम, गौत्र उच्चारित करके भगवान् शिव से अपनी रक्षा की गुहार करें व एक माला महामृत्युंजय मंत्र की जपें तथा बीजों को एकत्रित कर तांबे के ताबीज में भरकर गले में धारण कर लें।
७. शत्रु अनावश्यक परेशान कर रहा हो तो नींबू को ४ भागों में काटकर चौराहे पर खड़े होकर अपने इष्ट देव का ध्यान करते हुए चारों दिशाओं में एक-एक भाग को फेंक दें व घर आकर अपने हाथ-पांव धो लें। तांत्रिक अभिकर्म से छुटकारा मिलेगा।
८. शुक्ल पक्ष के बुधवार को ४ गोमती चक्र अपने सिर से घुमाकर चारों दिशाओं में फेंक दें तो व्यक्ति पर किए गए तांत्रिक अभिकर्म का प्रभाव खत्म हो जाता है।

Tuesday, 19 August 2014

वह हिरण का शिकार करना चाहता था।

कब और कैसे बलराम ने त्यागी देह, श्रीकृष्ण सशरीर गए 
महाभारत युद्ध समाप्ति के बाद जब युधिष्ठिर का राजतिलक हो रहा था, तब दुर्योधन की माता गांधारी ने श्रीकृष्ण को शाप दिया था कि आपके कारण जिस प्रकार कौरव वंश का नाश हुआ है, ठीक उसी प्रकार आपके यदुवंश का भी नाश हो जाएगा। इस प्रसंग के बाद श्रीकृष्ण पुन: अपने नगर द्वारिका पहुंच गए, जहां कुछ समय बाद ही यदुवंश के सभी वीर मदिरापान के नशे में आपस में लड़-लड़कर मृत्यु को प्राप्त हो गए। इस प्रकार यदुवंश का नाश हो गया।
हिन्दू धर्म की मान्यता
हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म बढ़ता है तब-तब भगवान मानव रूप में अवतार लेते हैं। त्रेता युग में जब रावण और अन्य राक्षसों का पाप बढ़ा तब श्रीराम अवतार हुआ और द्वापर युग में जब कंस, जरासंध, दुर्योधन आदि का पाप बढ़ा तब श्रीकृष्ण अवतार हुआ। द्वापर युग में जब सभी पापी नष्ट हो गए, तब श्रीकृष्ण अपनी लीलाओं को समेटकर पुन: अपने धाम लौट गए। शास्त्रों के अनुसार अगला अवतार कलियुग के अंत में कल्कि अवतार होगा।
बहेलिये का तीर श्रीकृष्ण को लगना
जब श्रीकृष्ण पीपल के नीचे ध्यान की मुद्रा में बैठे हुए थे, तब उस क्षेत्र में एक जरा नाम का बहेलिया आया हुआ था। जरा एक शिकारी था और वह हिरण का शिकार करना चाहता था। जरा को दूर से हिरण के मुख के समान श्रीकृष्ण का तलवा दिखाई दिया। बहेलिए ने बिना कोई विचार किए वहीं से एक तीर छोड़ दिया जो कि श्रीकृष्ण के तलवे में जाकर लगा।
जब वह पास गया तो उसने देखा कि श्रीकृष्ण के पैरों में उसने तीर मार दिया है। इसके बाद उसे बहुत पश्चाताप हुआ और वह क्षमायाचना करने लगा। तब श्रीकृष्ण ने बहेलिए से कहा कि जरा भी तू डर मत, तूने मेरे मन का काम किया है। अब तू मेरी आज्ञा से स्वर्गलोक प्राप्त करेगा।
श्रीकृष्ण का स्वधाम गमन
बहेलिए के जाने के बाद वहां श्रीकृष्ण का सारथी दारुक पहुंच गया। दारुक को देखकर श्रीकृष्ण ने कहा कि वह द्वारिका जाकर सभी को यह बताए कि पूरा यदुवंश नष्ट हो चुका है और बलराम के साथ कृष्ण भी स्वधाम लौट चुके हैं। अत: सभी लोग द्वारिका छोड़ दो, क्योंकि यह नगरी अब जल मग्न होने वाली है। मेरी माता, पिता और सभी प्रियजन इंद्रप्रस्थ को चले जाएं। यह संदेश लेकर दारुक वहां से चला गया।
इसके बाद उस क्षेत्र में सभी देवता और स्वर्ग की अप्सराएं, यक्ष, किन्नर, गंधर्व आदि आए और उन्होंने श्रीकृष्ण की आराधना की। आराधना के बाद श्रीकृष्ण ने अपने नेत्र बंद कर लिए और वे सशरीर ही अपने धाम को लौट गए।
अर्जुन ने किया पिण्डदान और श्राद्ध
श्रीमद भागवत के अनुसार जब श्रीकृष्ण और बलराम के स्वधाम गमन की सूचना इनके प्रियजनों तक पहुंची तो उन्होंने भी इस दुख से प्राण त्याग दिए। देवकी, रोहिणी, वसुदेव, बलरामजी की पत्नियां, श्रीकृष्ण की पटरानियां आदि सभी ने शरीर त्याग दिए। इसके बाद अर्जुन ने यदुवंश के निमित्त पिण्डदान और श्राद्ध आदि संस्कार किए।
इन संस्कारों के बाद यदुवंश के बचे हुए लोगों को लेकर अर्जुन इंद्रप्रस्थ लौट आए। इसके बाद श्रीकृष्ण के निवास स्थान को छोड़कर शेष द्वारिका समुद्र में डूब गई। श्रीकृष्ण के स्वधाम लौटने की सूचना पाकर सभी पाण्डवों ने भी हिमालय की ओर यात्रा प्रारंभ कर दी थी। इसी यात्रा में ही एक-एक करके पांडव भी शरीर का त्याग करते गए। अंत में युधिष्ठिर सशरीर स्वर्ग पहुंचे थे।

Monday, 18 August 2014

लहसुन की दो टुकड़े, करिए खूब महीन।
श्वेत प्रदर जड़ से मिटे, करिए आप यकीन।।
दूध आक का लगा लो, खूब रगड़ के बाद।
चार-पांच दिन में खत्म, होय पुराना दाद।।
चना चून बिन नून के, जो चौसठ दिन खाए।
दाद, खाज और से हुआ, बवासीर मिट जाए।।
दूध गधी का लगाइए मुंहासों पर रोज।
खत्म हमेशा के लिए, रहे न बिल्कुल खाज।।
सरसो तेल पकाइए, दूध आक का डाल।
मालिश करिए छानकर, समझ खाज का काल।।
मूली रस में डालकर, लेओ जलेबी खाए।
एक सप्ताह तक खाइए, बवासीर मिट जाए।।
गाजर का पियो स्वरस नींबू अदरक लाए।
भूख बढ़े आलस भागे, बदहजमी मिट जाए।।
जब भी लगती है तुम्हे भूख कड़ाकेदार।
भोजन खाने के लिए हो जाओ तैयार।।
सदा नाक से सांस लो, पियो न कॉफी चाय।
पाचन शक्ति बिगाड़कर भूख विदा हो जाए।।
रस अनार की कली का, नाक बूंद दो डाल।
खून बहे जो नाक से, बंद होय तत्काल।।
भून मुनक्का शुद्ध घी, सैंधा नमक मिलाए।
चक्कर आना बंद हों, जो भी इसको खाए।।
गरम नीर को कीजिए, उसमें शहद मिलाए। 
तीन बार दिन लीजिए, तो जुकाम मिट जाए।।

महादेव के मंदिर का पौराणिक महत्व है

टोंक मे बनास नदी के तट पर बीसलपुर बांध के पास मौजूद एक ऐसा मन्दिर है जों प्राकृतिक वातावरण और पौराणिक इतिहास का गवाह है, क्योंकि यहां पर भगवान शिव के सबसे बडे भक्त दशानन रावण ने हजारों साल भगवान शिव की तपस्या कर ऐश्वर्य का वरदान प्राप्त किया था, बीसलपुर बांध के त्रिवेणी संगम पर मौजूद यह मन्दिर ना सिर्फ लोगो को अपनी ओर आकृर्षित करता है बल्कि इसकी आस-पास का वातावरण किसी पर्यटन स्थल से कम नही है, यही कारण है कि यहां पर सालभर लोगो को आना-जाना रहता है।  हमारे धर्म प्रधान देश मे देवपूजा का इतिहास काफी प्राचीन है
यू तों देश के कोने-कोने देवपूजा अलग-अलग स्वरूपो मे मौजूद, लेकिन जिन स्थानो मे पुरातन स्थान है, उनका सर्वाधिक एवं विशेष महत्व है, यू तों पूरे संसा में भगवान शिव के असंख्य ज्योर्तिलिंग परन्तु प्रमुख रूप से 12 ज्योर्तिलिंग है, इनके अलावा 108 उप ज्योर्तिलिंग है, जिसमे से गोकर्णेश्वर (महाबलेश्वर) का प्रमुख है, टोंक जिलें के बीसलपुर बांध के पास स्थित गोकर्णेष्वर महादेव का मन्दिर प्राचीन काल से बना हुआ है जहां की कहानी भगवान शिव के महान भक्तों माने जाने वाले दशानन रावण से जुडी है, यही पर रावण ने हजारो सालों तक कठिन अराधना की थी, तपस्या के बाद और आत्मलिंग के रूप में भगवान शिव का शिवलिंग प्राप्त कर जाने लगा तो देवताओं के छल के कारण उसे तीव्र लघुशंका हुई और उसने शिवलिंग धरती पर रख दिया जिससे शिवलिंग यहीं पर स्वयंभू हो गया, इसलिये स्वयंभू भी कहा जाता है क्योंकि बिना किसी द्वारा स्थापित किये बगैर यहा विराजित हो गए, जिसके बाद हर साल श्रावण मास मे रावण कांवड मे पवित्र नदियों का जल लेकर यहां भगवान शिव की अराधना करने आता था,
कहते है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन बनास नदी के तट पर स्थित गौकर्णेष्वर महादेव के पवित्र दह में हजारों लोग पवित्र स्नान कर सारे पाप से मुक्ति मिल पाते है, जबकि श्रावण मास मे यहां पर पूरे महिने काफी चहल-पहल रहती है। यहां पर मौजूद शिवलिंग को गौकर्णेश्वर कहने की कथा भी दिलचस्प है विद्वानों के अनुसार बीसलपुर बांध के स्थित गौकर्णेष्वर महादेव के मंदिर का पौराणिक महत्व है, जिससे के तहत महात्मा गौकर्ण के नाम पर भी इस स्थान का नाम गौकर्णेश्वर महादेव कहा जाता है, बताया जाता है कि महात्मा गौकर्ण ने अपने भ्राता धुन्धकारी को मोक्ष की प्राप्ति के लिए यहां एक सप्ताह की श्रीमद्भागवत का श्रवण करवाया था, इसलिये यह पवित्र स्थान मोक्षदायी भी माना जाता है, जहां लोग अपने पुर्वजों की अस्थियां भी यहां प्रवावित कर दान पुण्य करते, वही त्रिवेणी संगत होने के कारण यह स्थान पुजनीय है, क्योंकि पुराणों मे कहा गया है कि जहां तीन नदियों मिलती है वह स्वत: ही तीर्थ बन जाता है। विद्वानों मे माने तो बीसलपुर बांध मजबूती से खडे रहने मे भी गोकर्णेश्वर महादेव का आर्शिवाद है, जिस कारण है कारण से यहां आज भी मजबूती से खडा है। कहा जाता है सतयुग मे इसका रंग स्वेत था कलयुग मे लोगो बढते पाप के कारण धीरे-धीरे इनका रंग श्याम वरण होने लगा है। जहां पौराणिक स्थल होने के कारण गौकर्णेष्वर महादेव का मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र है, वही बीसलपुर बांध होने के कारण यह एक पर्यटन का केन्द्र भी है जिस कारण प्रतिवर्ष देषी व विदेषी सैलानी भी घूमने के लिए आते है, कहते है कि रावण एक महान ज्ञानी था पर एक गलती ने उसका वंश सहित नाश कर दिया पर फिर भी लोग रावण का विद्वान के तौर पर सम्मान देते ही है, श्रद्धालूओं के अनुसार यहां पर भगवान शिव के दर्शन करने के साथ वह रावण की तपस्या स्थली को देखने भी आते है, यहां आने वाले आमजन ही नही कई जनप्रतिनिधि और संगठनों से जुडे लोग यहां पर भक्ति भाव से आते है और मनमानी मुराज पूरी करवाते है, वही पास ही मे रावण की कुलदेवी निकुम्भला माता का मन्दिर है, जिसके आस-पास सुन्दर वातावरण हैं। करीब दो दशक पूर्व गोकर्णेश्वर महादेव मन्दिर के सामने बीसलपुर बांध का निर्माण करवाया गया था, जिसके बाद से यहां पर पर्यटन के दृष्टिकोण से और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया, धार्मिक महत्व तो प्राचीन रहा है इस प्रसिद्ध स्थल की सबसे बडी विडम्बना यह है कि यहां आवागमन के साधनों की भारी किल्लत है और स्थल की सुविधाओं की बात की जाय तो यहां रात्रि में ठहरने के लिए किसी प्रकार व्यवस्था नहीं है, सफाई के दृष्टिकोण से भी यहां के प्रशासन का कोई ध्यान नहीं है जबकि बांध के पानी से राजस्थान की राजधानी जयपुर सहित अजमेर और आधा दर्जन से ज्यादा जिलों के हलक तर होते हैं, बीसलपुर क्षेत्र और गाकर्णेश्वर महादेव की आस-पास भोगोगिक वातावरण पर्यटन के हिसाब बिलकुल उपयुक्त है और मन्दिर के सामने मौजूद दह जहां पर श्रद्धालू स्थान कर पुण्य कमाते है वहां पर बोटिंग की व्यवस्था भी मौजूद है, प्रशासन भी लम्बे समय से इसको पर्यटन के मानचित्र लाने के दावे तो करता है लेकिन अभी तक कोई ठोस कार्यवाही नहीं हो पाई है। गौकर्णेश्वर की प्रसिद्धी सुन यहां आने वाले यही शिकायत करते नजर आते है कि यहां सुविधाओं और सुरक्षा का अभाव है, जिसकों दुरूस्त किया जाना है चाहिये। पर्यटन के क्षेत्र में भले ही राजस्थान को दूसरा दर्जा मिला हो लेकिन राजस्थान में पर्यटन की भरपूर संभावनाओं से कतई इंकार नहीं किया जा सकता, गौकर्णेश्वर महादेव मन्दिर मे आने वाले श्रद्धालू भले ही बीसलपुर बांध और मन्दिर के आस-पास के क्षेत्र कों पर्यटन पर लाने की बात करते हुये पर राजनैतिक इच्छा शक्ति और प्रशासनिक उपेक्षा के शिकार होने के कारण अभी तक पर्यटन का दर्जा पाने से महरूम है। पूर्व सरकार द्वारा बीसलपुर वन क्षेत्र को कन्जर्वेशन रिजर्व भी घोषित किया गया था, जिसका कार्य भी शुरू होने से पूर्व ही खत्म हो गया और फिर से इसे पर्यटन पटल पर लाने की आवाज उठने लगी है।