एक गाँव में तालाब था वहाँ सुंदर वृक्ष थे तालाब में मछलिया ओर बहुत मेडक भी रहते थे तालाब के पास एक वर्मि थी उस में एक साँप रहता था एक दिन साँप को बहुत भूख लगी वर्मि से बाहर निकल कर वह शिकार की तलाश करने लगा साँप ने एक बहुत बड़ा मेडक देखा सोचा चलो इस का शिकार करते हैं कुछ दिन निकल जाएगे साँप ने मेडक को पकड़ लिया पीछे से ओर लगा निगलने अब रात का समय था मेडक साँप के मुँह की पकड़ में आगया मेडक के सामने मच्छर भीनभीनाने लगे मेडक मच्छरों का शिकार करने लगा अब ज्ञान की दृष्टि से देखे
साँप के मुख में मेडक है मेडक को अपनी मोत का कोई एहसास नहीं ओर वह आगे मच्छरों का शिकार कर रहा है
एसे ही हम भी अपनी मोत को भूल कर दूसरों को लूट रहे हैं मार काट कर रहे हैं धोखा दे रहे हैं क्या हम भी कभी इंसान बनने की कोशिश करेगे या यूहीं अपना जीवन गवा देंगे
अकेले ही जो खा खा कर सदा गुजरान करते हैं
यूँ भरने को तो दुनियाँ में पशु भी पेट भरते हैं
मगर जो बाँट कर खाए उसे इंसान कहते हैं
किसी के काम जो आए उसे इंसान कहते हैं
साँप के मुख में मेडक है मेडक को अपनी मोत का कोई एहसास नहीं ओर वह आगे मच्छरों का शिकार कर रहा है
एसे ही हम भी अपनी मोत को भूल कर दूसरों को लूट रहे हैं मार काट कर रहे हैं धोखा दे रहे हैं क्या हम भी कभी इंसान बनने की कोशिश करेगे या यूहीं अपना जीवन गवा देंगे
अकेले ही जो खा खा कर सदा गुजरान करते हैं
यूँ भरने को तो दुनियाँ में पशु भी पेट भरते हैं
मगर जो बाँट कर खाए उसे इंसान कहते हैं
किसी के काम जो आए उसे इंसान कहते हैं
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