Tuesday, 3 June 2014

एक बात यह भी याद रखिए

प्रेम पुरुष और स्त्री मे भेद नही करता ! प्रेम तो मात्र प्रेम होता है ! किन्तु जहा दृष्टि-भेद हो वहा प्रेम के साथ मन मे विकार उत्पन्न हो जाते है और बुद्धि द्वारा इन विकारो की क्रिया। निर्मल भेदरहित प्रेम स्वतंत्रता का , आनंद का स्त्रोत है, किन्तु भेदसहित प्रेम में कोई आनंद नहीं है , केवल क्षणिक सुख । 

श्री कृष्ण ने किसी एक व्यक्तिविशेष से नहीं बल्कि सभी से बिना किसी भेदभाव के प्रेम किया। यशोदा व सभी गोपियो से पुत्र के समान प्रेम किया, अपने मित्रो से बंधु के समान, अपनी पत्नी माता रुक्मिणी जी से पतिवत प्रेम.... एक बात यह भी याद रखिए, जब आप प्रेम बांटते है तो आश्चर्यजनक रूप से संसार के कण कण से आपको प्रेम प्राप्त होने लगता है। अर्थात आप जो भी इस संसार को देते है वही आपको प्राप्त होगा .... सभी सज्जनों व निर्दोष प्राणियों से प्रेम कीजिये यह मानकर कि उनमे भी ईश्वर का ही वास है ।

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