Tuesday, 3 June 2014

संत लोग ये बात समझते हँ

हम लोग मंदिर भी जाते हँ तो वहा भी भगवान के सामने भी संसार की ही कामना किया करते हँ की भगवान् हमे पुत्र दो , रूपये दो , नौकरी दो , आदि आदि। अपने अज्ञान के कारण हमने अभी समझा ही नहीं है कि सुख कहा है? 
संसारी वस्तुओ की कामना करना ऐसा ही हँ जैसे शुगर ( डाइबिटीज , मधुमेह ) का मरीज अपनी बीमारी भी ठीक करना चाहे परन्तु और मीठा खाता चला जाए , ऐसे तो बीमारी और बढती चली जायेगी। अनादि काल से हमने अब तक ये ही किया हँ

संत लोग ये बात समझते हँ इसलिए वो संसारी चीजो को ही लक्ष्य बनाने की सम्मति कभी नहीं देते , बल्कि वे तो निष्काम भक्ति के लिए जीव को प्रेरित करते हँ

अगर कोई संत कहलाने वाला व्यक्ति अध्यात्म की आड़ लेकर संसारी पदार्थो की प्राप्ति के लिए जनसमुदाय को उत्साहित करता हँ तो समझ लेना चाहिए की वो व्यक्ति संत नहीं हँ , संत के भेष में पाखंडी है।

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