जब किसी की मृत्यु होती है तो , शरीर और इंद्रिया कार्य करना बंद कर देती है। इसी से ये स्पष्ट होता है कि हमारे भीतर कोई एक ऐसा तत्व है जो हमे जीवित रखता है, चेतनायुक्त रखता है। और जब यह तत्व इस शरीर से निकल जाता है , तो हमारा शरीर निर्जीव और निष्प्राण हो जाता है । इस तत्व को ही 'जीवात्मा या आत्मा' कहा जाता है। यह आत्मा ही हमारे शरीर मे रहकर , इस शरीर का संचालन करता है । अब इस जीवात्मा को जानिए --
शरीर मे रहने वाला ये जीवात्मा बहुत सूक्ष्म होता है, यह इतना सूक्ष्म होता है कि , अपने सर के एक बाल की नोक के दस हजार टुकड़े आप कर दे तो जीवात्मा के बराबर का होगा। यह जीवात्मा कभी नष्ट नहीं होता, कभी जन्म नहीं लेता , यह हमेशा से है । यह जीवात्मा न छोटा होता है न बड़ा होता है अर्थात परिवर्तनरहित है। किन्तु यह जीवात्मा पूर्ण रूप से स्वतंत्र नहीं है , अर्थात इस जीवात्मा से भी एक सूक्ष्म तत्व है , जो हमारी जीवात्मा का भी आत्मा है, उसे परमात्मा कहते है। यह जीवात्मा परमात्मा के नियंत्रण में रहती है, और अपने कर्मो के अनुसार जन्म लेते हुये भोग भोगती है। तो मित्रो... हम शरीर नहीं है , बल्कि शरीर तो हमे केवल व्यक्त करता है... हम मूलतः जीवात्मा ही है
शरीर मे रहने वाला ये जीवात्मा बहुत सूक्ष्म होता है, यह इतना सूक्ष्म होता है कि , अपने सर के एक बाल की नोक के दस हजार टुकड़े आप कर दे तो जीवात्मा के बराबर का होगा। यह जीवात्मा कभी नष्ट नहीं होता, कभी जन्म नहीं लेता , यह हमेशा से है । यह जीवात्मा न छोटा होता है न बड़ा होता है अर्थात परिवर्तनरहित है। किन्तु यह जीवात्मा पूर्ण रूप से स्वतंत्र नहीं है , अर्थात इस जीवात्मा से भी एक सूक्ष्म तत्व है , जो हमारी जीवात्मा का भी आत्मा है, उसे परमात्मा कहते है। यह जीवात्मा परमात्मा के नियंत्रण में रहती है, और अपने कर्मो के अनुसार जन्म लेते हुये भोग भोगती है। तो मित्रो... हम शरीर नहीं है , बल्कि शरीर तो हमे केवल व्यक्त करता है... हम मूलतः जीवात्मा ही है
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