वह दुर्योधन की मजबूत लंबी जंजीरों से नहीं बंधता, पर यशोदा की तीन अंगुल कमजोर रस्सी से बंध जाता है , वास्तव में कृष्ण केवल प्रेम से बंधता है।
तो कृष्ण को अपने हदय मे साधने व बांधने के लिए कृष्ण के साथ साथ कृष्ण को जो जो प्रिय है उससे भी प्रेम करना होगा, और जो जो कृष्ण को प्रिय नहीं है, उन्हे छोड़ना पड़ेगा। जैसे कृष्ण को गौमाता प्रिय है, शास्त्र प्रिय है, धर्म प्रिय है , गुण प्रिय है । पर उन्हे अधर्म प्रिय नहीं है, अहंकार प्रिय नहीं है, स्वार्थ व अन्य विकार प्रिय नहीं है। इस प्रेम की एक ही शर्त है ....यह निर्मल हो, निस्वार्थ हो, सत्भावपूरित हो । इस प्रेम की रस्सी जिस जिस ने तैयार की है, कृष्ण स्वयं इच्छा से बंधने आये है ।
तो कृष्ण को अपने हदय मे साधने व बांधने के लिए कृष्ण के साथ साथ कृष्ण को जो जो प्रिय है उससे भी प्रेम करना होगा, और जो जो कृष्ण को प्रिय नहीं है, उन्हे छोड़ना पड़ेगा। जैसे कृष्ण को गौमाता प्रिय है, शास्त्र प्रिय है, धर्म प्रिय है , गुण प्रिय है । पर उन्हे अधर्म प्रिय नहीं है, अहंकार प्रिय नहीं है, स्वार्थ व अन्य विकार प्रिय नहीं है। इस प्रेम की एक ही शर्त है ....यह निर्मल हो, निस्वार्थ हो, सत्भावपूरित हो । इस प्रेम की रस्सी जिस जिस ने तैयार की है, कृष्ण स्वयं इच्छा से बंधने आये है ।
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