Thursday, 12 June 2014

महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है

त्रिफला एक अद्भुत ओषधि 
त्रिफला - हरड + बहेड़ा + आंवले ओषधिय पेड़ों के फलों का मिश्रण हे। अनुपात भेद या फल की जाती भेद से इसका शरीर पर प्रभाव न्यूनाधिक(कम-ज्यादा) हो सकता हे। 

सुबह के समय तरोताजा होकर खाली पेट ताजे पानी के साथ त्रि‍फला का सेवन करें और इसके बाद एक घंटे तक पानी के अलावा कुछ ना लें।
त्रिफला का सेवन
विधि- सूखा देसी आंवला, बड़ी हर्रे व बहेड़ा लेकर गुठली निकाल दें। तीनों समभाग मिलाकर महीन पीस लें। कपड़छान कर कांच की शीशी में भरकर रखें।
 त्रिफला का अनुपात होना चाहिए :- 1:2:3=1(हरड )+2(बहेड़ा )+3(आंवला )
मतलब जैसे आपको 100 ग्राम त्रिफ़ला बनाना है तो :: 20 ग्राम हरड+40 ग्राम बहेडा+60 ग्राम आंवला)
अगर साबुत मिले तो तीनो को पीस लेना और अगर चूर्ण मिल जाए तो मिला लेना

हमेशा मौसम के हिसाब से त्रि‍फला का सेवन करना चाहिए। यानी मौसम को ध्यान में रखकर त्रि‍फला के साथ गुड़, सैंधा नमक, देशी खांड, सौंठ का चूर्ण, पीपल छोटी का चूर्ण, शहद इत्यादि मिलाकर सेवन कर सकते हैं। अधिक अच्छा हे त्रि‍फला का सेवन करने से पहले या तो आप किसी अनुभवी वैद्य से संपर्क करें जिससे साथ त्रि‍फला का सही-सही और पूरा लाभ उठा सकें। पर यदि बिना परामर्श के भी लिया गया तो भी लाभ ही होगा यह कोई हानी नहीं करता। पर यह ध्यान रखना होगा की विशेषकर सस्ते के चक्कर में इसमें प्रयुक्त हरड , बहेड़ा और आवला पुराने फफूंद वाले न हों देखा गया हे की विक्रेता अधिक लाभ के लिए ख़राब द्रव्य का प्रयोग करते हे।
त्रिफला का नियमित सेवन चुस्त दुरुस्त और प्रसन्न कर सकता हे।
आँखों के काले घेरे, आतों के घाव, आधाशीशी, उच्च रक्तचाप, उल्टी, एड्स, एनीमिया, कंठमाला, कब्ज, कमजोरी, कमर दर्द, कान का दर्द, कान दर्द, कुष्ट रोग, कैंसर, क्षयरोग(टी.बी.), खांसी, खुजली, गठिया, गर्भधारण, गर्भपात, गुर्दे की पथरी, घाव, चर्म रोग, चेचक, चेहरे के दाग, जुकाम, झाइयाँ, डेंगू, तुतलाना, त्वचा विकार, दमा, दस्त, दांत दर्द, दाद, नकसीर, नपुंसकता, नेत्र रोग, पक्षाघात, पथरी, पायरिया, पीलिया, पेचिश, पेट के कीड़े, पेट दर्द, प्यास, फिशर, फोड़े फुंसी, बदहजमी, बवासीर, बहरापन, को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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