Saturday, 5 July 2014

अमूल्य जीवन व्यर्थ चला जाता है

यदि कोई जान-बूझकर अपने सामर्थ्य को खोकर श्रीहीन बनना चाहता हो तो यह यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक सुकरात के इन प्रसिद्ध वचनों को सदैव याद रखे | सुकरात से एक व्यक्ति ने पूछा :

“पुरुष के लिए कितनी बार स्त्री-प्रसंग करना उचित है ?”

“जीवन भर में केवल एक बार |”

“यदि इससे तृप्ति न हो सके तो ?”

“तो वर्ष में एक बार |”

“यदि इससे भी संतोष न हो तो ?”

“फिर महीने में एक बार |”

इससे भी मन न भरे तो ?”

“तो महीने में दो बार करें, परन्तु मृत्यु शीघ्र आ जायेगी |”

“इतने पर भी इच्छा बनी रहे तो क्या करें ?”

इस पर सुकरात ने कहा :

“तो ऐसा करें कि पहले कब्र खुदवा लें, फिर कफन और लकड़ी घर में लाकर तैयार रखें | उसके पश्चात जो इच्छा हो, सो करें |”

सुकरात के ये वचन सचमुच बड़े प्रेरणाप्रद हैं | वीर्यक्षय के द्वारा जिस-जिसने भी सुख लेने का प्रयास किया है, उन्हें घोर निराशा हाथ लगी है और अन्त में श्रीहीन होकर मृत्यु का ग्रास बनना पड़ा है | कामभोग द्वारा कभी तृप्ति नहीं होती और अपना अमूल्य जीवन व्यर्थ चला जाता है |

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