ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जौ पै पिय के मन नहिं भावे तौ का परोसिन कै हलुरावे |
का चूरा पायल झमकाएं , कहा भयो बिछुवा ठमकायें ||
का काजल सिंदूर के दीयें , सोलह सिंगार कहा भयो कीएं |
अंजन भंजन किये ठगौरी , का पचि मरै निगौड़ी बौरी ||
जौ पे पतिवरता ह्वै नारी, कैसे ही रह्यो सो पियाहिं पियारी |
तन मन जीवन सौंपि शरीरा, ताहि सुहागन कहै कबीरा ||
यदि कोई नारी प्रियतम के मन को नहीं भाती और वह पड़ोसियों को चाहे जितना खुश रखे उसका जीवन सफल नहीं माना जा सकता |
चूड़ी, पायल झमकाने तथा बिछुवा ठमकाने से क्या लाभ है | काजल, सिन्दूर आदि सोलह श्रृंगार भी निरर्थक ही हैं | वह ठगने के लिए आँखों में अंजन और बरौनियों को कितना भी सुंदर कर ले किन्तु वह दुर्भाग्यशालिनी व्यर्थ प्रयत्न करके मरती है | और जो नारी पतिव्रता है... वह कैसे भी रहे वह तो अपने प्रियतम को प्रिय होती ही है | ऐसी स्त्री जो अपने पति को तन मन जीवन समर्पित कर चुकी है ऐसी स्त्री को ही कबीर सुहागन कहते हैं ||
***महात्मा कबीर आत्मा और परमात्मा के बारे में लोकानुभूति द्वारा बड़ी ही सहजता और सरलता से बहुत बड़ी बात कहते हैं उनके इस रचना से प्राप्त सन्देश को यदि दो लाइन में कहना हो तो ...वह है – आत्मा रुपी पत्नी यदि सांसारिक जीवों अर्थात पड़ोसियों को खुश करने की चेष्टा करती है और परमात्मा जो उसका पति है उसके प्रति उसकी निष्ठा नहीं है, समर्पण नहीं है ...तो ...उसका होना व्यर्थ है |
जौ पै पिय के मन नहिं भावे तौ का परोसिन कै हलुरावे |
का चूरा पायल झमकाएं , कहा भयो बिछुवा ठमकायें ||
का काजल सिंदूर के दीयें , सोलह सिंगार कहा भयो कीएं |
अंजन भंजन किये ठगौरी , का पचि मरै निगौड़ी बौरी ||
जौ पे पतिवरता ह्वै नारी, कैसे ही रह्यो सो पियाहिं पियारी |
तन मन जीवन सौंपि शरीरा, ताहि सुहागन कहै कबीरा ||
यदि कोई नारी प्रियतम के मन को नहीं भाती और वह पड़ोसियों को चाहे जितना खुश रखे उसका जीवन सफल नहीं माना जा सकता |
चूड़ी, पायल झमकाने तथा बिछुवा ठमकाने से क्या लाभ है | काजल, सिन्दूर आदि सोलह श्रृंगार भी निरर्थक ही हैं | वह ठगने के लिए आँखों में अंजन और बरौनियों को कितना भी सुंदर कर ले किन्तु वह दुर्भाग्यशालिनी व्यर्थ प्रयत्न करके मरती है | और जो नारी पतिव्रता है... वह कैसे भी रहे वह तो अपने प्रियतम को प्रिय होती ही है | ऐसी स्त्री जो अपने पति को तन मन जीवन समर्पित कर चुकी है ऐसी स्त्री को ही कबीर सुहागन कहते हैं ||
***महात्मा कबीर आत्मा और परमात्मा के बारे में लोकानुभूति द्वारा बड़ी ही सहजता और सरलता से बहुत बड़ी बात कहते हैं उनके इस रचना से प्राप्त सन्देश को यदि दो लाइन में कहना हो तो ...वह है – आत्मा रुपी पत्नी यदि सांसारिक जीवों अर्थात पड़ोसियों को खुश करने की चेष्टा करती है और परमात्मा जो उसका पति है उसके प्रति उसकी निष्ठा नहीं है, समर्पण नहीं है ...तो ...उसका होना व्यर्थ है |
No comments:
Post a Comment