Sunday, 1 June 2014

खुद की गलतियों को सुधारना है

बुरी संगत से इंसान अकेला ही भला.... 

कभी कभी थोड़ी देर का कुसंग भी मनुष्य के लिए काफी हानिकारक हो जाता है ,
इस बात को हमें अपने ध्यान में रखकर नास्तिक,
नीच,
प्रमादी,
भोगी,
पापी,
निकम्मे,
आलसी,
दूसरों पर निर्भर रहकर जीवन निर्वाह करने वाले,
बहु मूल्य वस्त्र वस्त्राभूषण धारण करने वाले,
खेल तमाशा और मादक वस्तुओं का सेवन करने वाले,
दुर्व्यसनी स्त्री या पुरषों का कभी भूलकर भी क्षमामात्र भी संग नहीं करना चाहिए और प्रमाद ,
आलस्य,
निद्रा,
भय ,
उद्धेग,
राग,
अंहकार,
आदि से रहित होकर अपना जीवन विवेक,
वैराग्य,
त्याग और सयमपूर्वक निष्काम भाव से भजन ध्यान,
सत्संग,
में अपना समय बिताना चाहिए यही मुक्ति और मोक्ष का मार्ग है,
सभी प्राणिमात्र को परमात्मा सवरूप समझकर,
आसक्ति और अहंकार से रहित होकर निष्कामभाव से तन मन से सभी सेवा करनी चाहिए और सभी पे समान भाव से हेतु रहित दया और प्रेम रखना चाहिए,
जब तक हम अपने आपको और अपनी सोच को नहीं बदलेंगे तब तक जगत कल्याण की आशा करना बेकार है 
अगर हर इंसान इस बात को अपने मन में बिठाले की उसे खुद को अच्छा बनाना है खुद की गलतियों को सुधारना है 
और दुबारा ऐसे मार्ग पे और ऐसा कर्म नहीं करना है जिस से की उसका स्वयं का तो जीवन नष्ट हो और जगत का भी नुकसान हो,परमात्मा और उसकी प्राप्ति अच्छे कर्मों के बिना नहीं की जा सकती इसलिए हमें खुद के साथ साथ दूसरों की खुशियों का भी ध्यान रखना चाहिए इसी में जगत कल्याण है 
और हमारा भी,हम हैं तभी तो ये समाज है अगर हम ही न रहेंगे तो समाज कहाँ रहेगा....

दया करना इतनी हमपर हे दीन दयाल 
की हम चले जिस राह पे उस राह पे ना कोई बेसहारा हो..
कभी जो हम अन्धकार में डूबने भी लगे तो प्रभु जी 
उस वक़्त हमें केवल आपका सहारा हो और सामने हमारे मोक्ष नाम का किनारा हो.

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