Tuesday, 8 July 2014

ज्ञान बह जाता है

भक्ति मार्ग मे दो बाधाएँ - अज्ञान,एवं दम्भ , आती है जो क्रमशः वत्सासुर एवं बकासुर का प्रतीक है।
दम्भ अर्थात् बगुला अपने साथ कीर्ति एवं धन का लोभ लेकर आता है ।
जिसका अन्तर्मन कलुषित हो किन्तु बाहरी दिखावे मे संत लगे वह बकासुर है ।
जहाँ अज्ञान एवं दम्भ हो वहाँ पाप आ जाता है । पाप को अघ कहते है अर्थात् अघासुर । जो अजगर का रुप लेकर आता है जिसका एक ओँठ धरती पर और दूसरा आकाश तक पहुँचा हुआ था । अर्थात् पाप धरती से आकाश तक फैला हुआ है ।
जो पाप मे ही रममाण रहता है वही अघासुर है ।
पाप और साँप एक समान हैँ , साँप द्वारा काटे जाने पर यदि उस अंग को काट देँ तो उसका विष शरीर मेँ नहीँ फैल पायेगा उसी प्रकार पाप का विचार आते ही उसी क्षण नष्ट कर दिया जाय तो पाप से बच सकते हैँ ।
मन की भाँति पाप भी साथ चलता है । जो वासना के प्रवाह मेँ बहने वाला जीव अन्तरात्मा के मना करने पर भी करता रहता है । वासना के वेग मेँ ज्ञान बह जाता है और पाप हो जाता है । जो पाप के उदर मेँ चला जाता है वह निकल नहीँ पाता अतः उससे बचने के लिए सदैव प्रभु के नाम का सहारा लेना चाहिए ।
आजकल लोग धन को तो अपने सीने से चिपका कर रखते है किन्तु ठाकुर जी को दूर रखते हैँ ।
बिना भोगे पाप का नाश नही हो सकता -
अवश्यमेव भोक्तव्यं कर्म फल शुभाशुभम् !
पुण्य तो कृष्णार्पण हो सकता है किन्तु पाप नही इसे तो स्वयं ही भोगना पड़ता है - प्रारब्धकर्मणाम् भोगा देव क्षयः !
गीता मे अर्जुन ने पूछा था -
अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पुरुषः ।
अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजितः ।
अनिच्छा होते हुए भी जीव पाप मेँ क्योँ प्रवृत्त होता है ? वह पाप क्योँ करता है ? इच्छा न होने पर भी उसे पाप क्यो करने पड़ते है ?
भगवान कहते हैँ -
काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः ।
रजोगुण से उत्पन्न हुए काम और क्रोध मनुष्य के प्रमुख शत्रु हैँ वे ही उसे पाप की ओर घसीटते रहते है ।

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