ज्ञान तो भीतर ही होता है और भीतर से ही जागृत होता है। ज्ञान आत्मचेतना को जागृत करने से होता है। आत्मचेतना अन्तर्मुखी होने से जागती है। जितना अन्तर्मुखी होंगे, उतनी ही चेतना जागृत होगी और उतना ही उसमें ज्ञान जागृत होगा। चेतना जागृत होने से कुछ कठिन नहीं रह जाता है। चेतना के समग्रता में जागृत होते ही किसी भी क्षेत्र के कार्य की सम्पूर्ण सोच, विचार और क्षमता जागृत हो जाती है। चेतना की सम्पूर्ण जागृति से बुद्धि सही दिशा में, समग्रता में संचालित होने लगती है।
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