तब नागरि हरष भई l
नेह पुरातन जानि स्याम कौ अति आनंदमई ll १ ll
प्रकृति पुरुष, नारि मैं वे पति, काहें भूलि गई l
को माता, को पिता, बन्धु को, यह तौ भेट नई ll २ ll
जनम जनम जुग जुग यह लीला, प्यारी जानि लई l
सूरदास प्रभु की यह महिमा, यातैं बिबस भई ll ३ ll
तब सुचतुरा (श्रीराधा) मनमें प्रसन्न हो गयीं l श्यामसुन्दरका (अपने ऊपर) सनातन (शाश्वत) प्रेम समझकर (वे) अत्यंत आनंदमें लीन हो गयीं और सोचने लगीं कि ‘मैं प्रकृति हूँ, वे पुरुष हैं; मैं स्त्री हूँ, वे मेरे (नित्य) पति हैं – यह बात मैं क्योंकर भूल गयी थी ? (मेरी) माता कौन, पिता कौन और (मेरे) भाई (भी) कौन ? यह तो (केवल इस अवतारकी इन लोगोंसे ) नवीन भेंट (जान-पहचान) है l (श्यामसुंदरसे यह मिलन तो) युग-युग और जन्म-जन्मकी लीला है l’ सूरदासजी कहते हैं – (इस प्रकार) प्रियतमा श्रीराधाने जान लिया कि यह मेरे स्वामीकी महिमा है, इसलिये (कुछ कहनेमें) वे विवश हो गयीं l
नेह पुरातन जानि स्याम कौ अति आनंदमई ll १ ll
प्रकृति पुरुष, नारि मैं वे पति, काहें भूलि गई l
को माता, को पिता, बन्धु को, यह तौ भेट नई ll २ ll
जनम जनम जुग जुग यह लीला, प्यारी जानि लई l
सूरदास प्रभु की यह महिमा, यातैं बिबस भई ll ३ ll
तब सुचतुरा (श्रीराधा) मनमें प्रसन्न हो गयीं l श्यामसुन्दरका (अपने ऊपर) सनातन (शाश्वत) प्रेम समझकर (वे) अत्यंत आनंदमें लीन हो गयीं और सोचने लगीं कि ‘मैं प्रकृति हूँ, वे पुरुष हैं; मैं स्त्री हूँ, वे मेरे (नित्य) पति हैं – यह बात मैं क्योंकर भूल गयी थी ? (मेरी) माता कौन, पिता कौन और (मेरे) भाई (भी) कौन ? यह तो (केवल इस अवतारकी इन लोगोंसे ) नवीन भेंट (जान-पहचान) है l (श्यामसुंदरसे यह मिलन तो) युग-युग और जन्म-जन्मकी लीला है l’ सूरदासजी कहते हैं – (इस प्रकार) प्रियतमा श्रीराधाने जान लिया कि यह मेरे स्वामीकी महिमा है, इसलिये (कुछ कहनेमें) वे विवश हो गयीं l
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