Tuesday, 8 July 2014

इसलिए इनसे दूर रहो।

ईश्वर की वाणीमय मूर्ति है भगवत गीता! श्रीगीता कृष्ण की वांग्मय मूर्ति है! भगवान् वाणी के रूप में गीता के श्लोकों में बसते हैं।
भगवान् कहतें हैं-
------ ज्ञान श्रेष्ठ है पाप के सागर को ज्ञान की नौका से ही पार पाया जा सकता है।
-- कर्म को तपस्या बना लो, यही कर्म योग है। ज्ञान के द्वारा अच्छे और बुरे की पहचान करो और कर्म की उच्चा अवस्था को पा लो। कर्म शुभ फल देगा।
--- जो शक्तियाँ समाज की शत्रु हैं उनको ख़तम करना कल्याण का काम है।
--- हे पार्थ, निष्काम कर्म स्वयं को दूषित नही करता।
--- अपने आस-पास की सुगंध और दुर्गन्ध को लेने के लिए इन्द्रियां विवश होतीं हैं इसलिए अपनी चेतना को जागृत करो। राग, ध्वनि और कोलाहल को कान जरुर सुनेंगे, आँखे क्या देखें, मुख क्या कहे अपने ज्ञान के द्वारा निश्चित करो।
--- हम समाज में रहते हैं इसलिए हमारे कर्म अनुकरणीय होने चाहिए।
--- काम, क्रोध, लोभ, मोह, वासना! ये सब पाप कर्म करवटें हैं इसलिए इनसे दूर रहो।
--- निष्काम कर्म के मार्ग पर चल कर भी जीवन जिया जा सकता है, यह हमें श्री कृष्ण ने गीता में बताया है।
--- शरीर का सत्य है मृत्यु, इसलिए इसका शोक नहीं करना चाहिए, अपने धर्म का पालन करना चाहिए।

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