Friday, 1 August 2014

पत्थर दिल इंसान

आज के दोहे :-.................
नयी सदी से मिल रही, दर्द भरी सौगात!
बेटा कहता बाप से, तेरी क्या औकात!!
प्रेम भाव सब मिट गया, टूटे रीति-रिवाज!
मोल नहीं सम्बन्ध का, पैसा सिर का ताज!!
भाई-भाई में हुआ, अब कुछ ऐसा वैर!
रिश्ते टूटे खून के, प्यारे लगते गैर!!
दगा वक़्त पर दे गए, रिश्ते थे जो खास!
यारो अब कैसे करे, गैरों पर विश्वास!!
अब तो अपना खून भी, करने लगा कमाल!
बोझ समझ माँ-बाप को, घर से रहा निकाल!!
होठों पर कुछ और था, मन में था कुछ और!
मित्रों के व्यवहार ने, दिया हमें झकझोर!!
अपनी ख्वाहिश भी यही, मिले किसी का प्यार!
हमने देखा हर जगह, रिश्तों में व्यापार!!
झूठी थी कसमें सभी, झूठा था इकरार!
वो हमको छलता रहा, हम समझे थे प्यार!!
साथ हमारा तज गए, मन के थे जो मीत!
अब कैसे लिखे, मधुर प्रेम के गीत!!
माँ की ममता बिक रही, बिके पिता का प्यार!
मिलते हैं बाज़ार में, वफ़ा बेचते यार!!
पानी आँखों का मरा, मरी शर्म औ लाज!
कहे बहू अब सास से, घर में मेरा राज!!
प्रेम, आस्था, त्याग अब, बीत युग की बात!
बच्चे भी करने लगे, मात-पिता से घात!!
भाई भी करता नहीं, भाई पर विश्वास!
बहन पराई हो गयी, साली खासमखास!!
जीवन सस्ता हो गया, बढे धरा के दाम!
इंच-इंच पर हो रहा, भ्रातों में संग्राम!!
वफ़ा रही ना हीर सी, ना रांझे सी प्रीत!
लूटन को घर यार का, बनते हैं अब मीत!!
तार-तार रिश्ते हुए, ऐसा बढ़ा जुनून!
सरे आम होने लगा, मानवता का खून!!
मंदिर, मस्जिद, चर्च पर, पहरे दें दरबान!
गुंडों से डरने लगे, कलयुग के भगवान!!
कुर्सी पर नेता लड़ें, रोटी पर इंसान!
मंदिर खातिर लड़ रहे, कोर्ट में भगवान!!
मंदिर में पूजा करें, घर में करें कलेश!
बापू तो बोझा लगे, पत्थर लगे गणेश!!
बचे कहाँ अब शेष हैं, दया, धरम, ईमान!
पत्थर के भगवान हैं, पत्थर दिल इंसान!!
भगवा चोला धार कर, करते खोटे काम!
मन में तो रावण बसा, मुख से बोलें राम!!
लोप धरम का हो गया, बढ़ा पाप का भार!
केशव भी लेते नहीं, कलियुग में अवतार!!
करें दिखावा भगति का, फैलाएं पाखंड!
मन का हर कोना बुझा, घर में ज्योति अखंड!!
पत्थर के भगवान को, लगते छप्पन भोग!
मर जाते फुटपाथ पर, भूखे, प्यासे लोग!!
फैला है पाखंड का, अन्धकार सब ओर!
पापी करते जागरण, मचा-मचा कर शोर!!
धरम करम की आड़ ले, करते हैं व्यापार!
फोटो, माला, पुस्तकें, बेचें बंदनवार!!
लेकर ज्ञान उधार का, बने फिरे विद्वान्!
पापी, कामी भी कहें, अब खुद को भगवान!!
पहन मुखौटा धरम का, करते दिन भर पाप!
भंडारे करते फिरें, घर में भूखा बाप!!
मंदिर, मस्जिद, चर्च में, हुआ नहीं टकराव!
पंडित, मुल्ला कर रहे, आये दिन पथराव!!
टूटी अपनी आस्था, बिखर गया विश्वास!
मंदिर में गुंडे पलें, मस्जिद में बदमाश!!
पत्थर को हरी मान कर, पूज रहे नादान!
नर नारायण तज रहे, फुटपाथों पर प्राण!!
खींचे जिसने उमर भर, अबलाओं के चीर!
वो भी अब कहने लगे, खुद को सिद्ध फकीर!!
तन पर भगवा सज रहा, मन में पलता भोग!
कसम वफ़ा की खा रहे, बिकने वाले लोग..

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