Sunday 27 December 2015

श्री नव नाथ गायत्री


""""""श्री नव नाथ गायत्री""""""""
( 1) ओँकार आदिनाथ जी
गायत्री –
ऊँ ह्रीँ श्रीँ एँ आदिनाथाय विद्महे ओँकार स्वरूपाय धीमहि
तन्नो निरंजनः प्रचोदयात
मंत्र -
ओँकार आदिनाथाय नम:
( 2 ) उदयनाथ ( पार्वती स्वरुपा )
गायत्री –
ऊँ ह्रीँ श्रीँ ऊँ उदयनाथाय विद्महे धरती स्वरूपाय धीमहि तन्नो
पराशक्ति प्रचोदयात
मंत्र -
ऊँ श्री उदयनाथाय नम:
( 3 ) सत्यनाथ ( ब्रहमा स्वरुपा )
गायत्री –
ऊँ ह्रीँ श्रीँ सँ सत्यनाथाय विद्महे ब्रहमा स्वरूपाय धीमहि
तन्नो निरंजनः प्रचोदयात
मंत्र -
ऊँ श्री सत्यनाथाय नम:
( 4 ) संतोषनाथ ( विष्णु स्वरुपा )
गायत्री –
ऊँ ह्रीँ श्रीँ सँ संतोषनाथाय विद्महे विष्णु स्वरूपाय धीमहि
तन्नो निरंजनः प्रचोदयात
मंत्र -
ऊँ श्री संतोषनाथाय नम:
( 5 ) अचल अचम्भेँनाथ ( आकश/शेष स्वरुपा )
गायत्री –
ऊँ ह्रीँ श्रीँ एँ अचम्भेँनाथाय विद्महे शेष स्वरूपाय धीमहि तन्नो
निरंजनः प्रचोदयात।।थ।।
मंत्र -
ऊँ श्री अचल अचम्भेँनाथाय नम:
( 6 ) गजबेलि गजकंथडनाथ ( गजहस्ती स्वरुपा )
गायत्री –
ऊँ ह्रीँ श्रीँ गँ गजकंथडनाथाय विद्महे गणेश स्वरूपाय धीमहि
तन्नो निरंजनः प्रचोदयात।।ना।।
मंत्र -
ऊँ श्री गजबेलि गजकंथडनाथाय नम:
( 7 ) सिद्ध चौरंगीनाथ ( चंद्र/वनस्पति स्वरुपा )
गायत्री –
ऊँ ह्रीँ श्रीँ चौँ चौरंगीनाथाय विद्महे चंद्र स्वरूपाय धीमहि
तन्नो निरंजनः प्रचोदयात।।श।।
मंत्र -
ऊँ श्री सिद्ध योगी चौरंगीनाथाय नम:
( 8 ) दादा गुरु मत्स्येंद्रनाथ ( माया स्वरुपा )
गायत्री –
ऊँ ह्रीँ श्रीँ मँ मत्स्येंद्रनाथाय विद्महे माया स्वरूपाय धीमहि
तन्नो निरंजनः प्रचोदयात।।रे।।
मंत्र -
ऊँ श्री सिद्ध योगी मत्स्येंद्रनाथाय नम:
( 9 ) गुरु गोरक्षनाथ ( शिव स्वरुपा )
गायत्री –
ऊँ ह्रीँ श्रीँ गोँ गोरक्षनाथाय विद्महे शुन्य पुत्राय स्वरूपाय
धीमहि तन्नो गोरक्ष निरंजनः प्रचोदयात ।।न।।
मंत्र -
ऊँ ह्रीँ श्रीँ गोँ हुँ फट स्वाहा
ऊँ ह्रीँ श्रीँ गोँ गोरक्ष हुँ फट स्वाहा
ऊँ ह्रीँ श्रीँ गोँ गोरक्ष निरंजनात्मने हुँ फट स्वाहा
ऊँ शिव गोरक्षनाथाय नम:


Friday 11 December 2015

शरीर और संसार एक है

शरीर और संसार एक है । ये एक-दूसरे से अलग नहीं हो सकते । शरीर को संसार की और संसार को शरीर की आवश्यकता है । पर हम स्वयं (आत्मा) शरीरसे अलग हैं और शरीरके बिना भी रहते ही हैं । शरीर उत्पन्न होनेसे पहले भी हम थे और शरीर नष्ट होनेके बाद भी रहेंगे‒इस बातका पता न हो तो भी यह तो जानते ही हैं कि गाढ़ निद्रामें जब शरीरकी यादतक नहीं रहती, तब भी हम रहते हैं और सुखी रहते हैं । शरीरसे सम्बन्ध न रहनेसे शरीर स्वस्थ होता है । संसारसे सम्बन्ध-विच्छेद होनपर आप भी ठीक रहोगे और संसार भी ठीक रहेगा । दोनोंकी आफत मिट जायगी । शरीरादि पदार्थोंकी गरज और गुलामी मनसे मिटा दें तो महान् आनन्द रहेगा । इसीका नाम जीवन्मुक्ति है । शरीर, कुटुम्ब, धन आदिको रखो, पर इनकी गुलामी मत रखो । जड़ वस्तुओंकी गुलामी करनेवाला जड़से भी नीचे हो जाता है, फिर हम तो चेतन हैं । जाग्रत्, स्वप्न और सुषुप्ति‒तीनों अवस्थाओंसे हम अलग हैं । ये अवस्थाएँ बदलती रहती हैं, पर हम नहीं बदलते । हम इन अवस्थाओंको जाननेवाले हैं और अवस्थाएँ जाननेमें आनेवाली हैं । अत : इनसे अलग हैं । जैसे, छप्परको हम जानते हैं कि यह छप्पर है तो हम छप्परसे अलग हैं‒यह सिद्ध होता है । अत: हम वस्तु, परिस्थिति, अवस्था आदिसे अलग हैं‒इसका अनुभव होना ही मुक्ति है ।