Wednesday 31 December 2014

प्रभु आप तो प्रेम के भूखे हो

सत्य घटना... पंजाब प्रान्त की एक महिला थी जिसका नाम था विमला कौर। वह बिहारी जी की एक बहुत भावुक भक्त थी। एक दिन उसके मन में ठाकुर जी को पोशाक पहनवाने की इच्छा हूई। उसने सोचा मैं ठाकुर जी की पोशाक अपने हाथ से तैयार करूँ और बिहारी जी उसे अगले साल शरद पूर्णिमा को धारण करें। इसी आशा के साथ वह ठाकुर जी के लिये पोशाक बनाने लगी। अगले वर्ष शरद पूर्णिमा का पर्व भी आ गया। वह ठाकुर जी को याद करते-करते वृन्दावन आयी और बहुत खुश होकर गोस्वामी जी को पोशाक देकर बोली:- "गोस्वामी जी आज इस पोशाक को धारण करायें।" गोस्वामी जी बोले:- "आज आपकी पोशाक धारण नहीं हो सकती, क्योंकि आज दतिया के राजा का आदेश है कि उन्हीं की पोशाक धारण होगी। यह सुनकर मानो उस भक्तमती पर वज्र टूट पड़ा। उनके मूँह से निकला :- "प्रभु के दरबार में राजा रंक न कोई।" उस समय उस भक्तमती के हृदय में कितनी गहरी निराशा थी, इसको कोई नहीं समझ सकता था। वो ठाकुर जी के सामने रोने लगी और कहने लगी :- प्रभु आप तो प्रेम के भूखे हो, और आप जानते हो कि ये पोशाक मैंने कितने प्रेम से अपने हाथों से आपके लिए तैयार की है। दतिया के राजा की पोशाक आई भारी-भरकम, जरी के काम से लदी हूई आखिर राजा ने जो बनवायी थी। वह निरन्तर अपने कारीगरों से आगाह करता रहा था कि पोशाक राजा की ओर से बन रही है, ऐसी बननी चाहिए कि लोग देखते ही पहचान जायें कि पोशाक राजा ने बनवायी है। जैसे ही गोस्वामी ने बिहारी जी को पोशाक पहनाने के लिये पायजामा पहनाया-पर यह क्या? इतने बड़े राजा की पोशाक जरी के काम से लदी हूई बिहारी जी की बाहों में नहीं आ रही है। गोस्वामी जी बहुत कोशिश करते रहे। बाहर दर्शनार्थियों की भीड़ जय-जयकार कर रही थी। पर अभी तक जामा भी धारण नहीं हुआ था। गोस्वामी जी घबराकर बिहारी जी के चरणों से लिपट गये, उन्हें यह अहसास हो गया कि प्रभु के लिये सब बराबर हैं चाहे वो राजा हो या रंक। उन्होंने तुरन्त भक्तमती विमला कौर की पोशाक मंगवायी। वह पोशाक ठाकुर जी को बिल्कुल सही आ रही थी और सहज ही ठाकुर जी को पहनने में आ रही थी। थोड़ी ही देर में सारा श्रंगार हो गया दर्शन खुल गये। राजा अपनी पोशाक में श्रीबिहारीजी के दर्शन करने के लिये व्यग्र था, किन्तु यहाँ तो पोशाक दूसरी थी। राजा का अहं सातवें आसमान पर पहुंच गया। उन्होंने गोस्वामी जी से इस बारे में बात की तो गोस्वामी जी ने राजा को बताया की:- आपके द्वारा लायी गयी पोशाक कुछ छोटी थी। गोस्वामी जी ने राजा को बताया कि- ये सब ठाकुर जी की ही लीला है, बिहारीजी प्रेम की मूर्ति हैं। जब ये बात विमला कौर को पता चली तो उसका मन-मयूर नाचने लगा। वह मन्दिर में ठाकुर जी के अपनी पोशाक में दर्शन करके धन्य हो गयी। "बोलिये श्री वृंदावन बिहारी लाल की जय"

Tuesday 30 December 2014

रावण ने स्वयं भगवान शिव से भी टक्कर ली।

पूर्वकाल में ब्राह्मण होने के लिए शिक्षा, दीक्षा और कठिन तप करना होता था। इसके बाद ही उसे ब्राह्मण कहा जाता था। गुरुकुल की अब वह परंपरा नहीं रही। जिन लोगों ने ब्राह्मणत्व अपने प्रयासों से हासिल किया था उनके कुल में जन्मे लोग भी खुद को ब्राह्मण समझने लगे। ऋषि-मुनियों की वे संतानें खुद को ब्राह्मण मानती हैं, जबकि उन्होंने न तो शिक्षा ली, न दीक्षा और न ही उन्होंने कठिन तप किया। वे जनेऊ का भी अपमान करते देखे गए हैं।
आजकल के तथाकथित ब्राह्मण लोग शराब पीकर, मांस खाकर और असत्य वचन बोलकर भी खुद को ब्राह्मण समझते हैं। उनमें से कुछ तो धर्मविरोधी हैं, कुछ धर्म जानते ही नहीं, कुछ गफलत में जी रहे हैं, कुछ ने धर्म को धंधा बना रखा और कुछ पोंगा-पंडित और कथावाचक बने बैठे हैं। ऐसे ही सभी कथित ब्राह्मणों के लिए हमने कुछ जानकारी इकट्ठा की है।
किसे ब्राह्मण कहलाने का हक...
ब्रह्म सत्य, जगत मिथ्या : जो ब्रह्म (ईश्वर) को छोड़कर किसी अन्य को नहीं पूजता वह ब्राह्मण। ब्रह्म को जानने वाला ब्राह्मण कहलाता है। जो पुरोहिताई करके अपनी जीविका चलाता है, वह ब्राह्मण नहीं, याचक है। जो ज्योतिषी या नक्षत्र विद्या से अपनी जीविका चलाता है वह ब्राह्मण नहीं, ज्योतिषी है और जो कथा बांचता है वह ब्राह्मण नहीं कथा वाचक है। इस तरह वेद और ब्रह्म को छोड़कर जो कुछ भी कर्म करता है वह ब्राह्मण नहीं है। जिसके मुख से ब्रह्म शब्द का उच्चारण नहीं होता रहता वह ब्राह्मण नहीं।
न जटाहि न गोत्तेहि न जच्चा होति ब्राह्मणो।
यम्हि सच्चं च धम्मो च सो सुची सो च ब्राह्मणो॥
अर्थात : भगवान बुद्ध कहते हैं कि ब्राह्मण न तो जटा से होता है, न गोत्र से और न जन्म से। जिसमें सत्य है, धर्म है और जो पवित्र है, वही ब्राह्मण है। कमल के पत्ते पर जल और आरे की नोक पर सरसों की तरह जो विषय-भोगों में लिप्त नहीं होता, मैं उसे ही ब्राह्मण कहता हूं।
तसपाणे वियाणेत्ता संगहेण य थावरे।
जो न हिंसइ तिविहेण तं वयं बूम माहणं॥
अर्थात : महावीर स्वामी कहते हैं कि जो इस बात को जानता है कि कौन प्राणी त्रस है, कौन स्थावर है। और मन, वचन और काया से किसी भी जीव की हिंसा नहीं करता, उसी को हम ब्राह्मण कहते हैं।
न वि मुंडिएण समणो न ओंकारेण बंभणो।
न मुणी रण्णवासेणं कुसचीरेण न तावसो॥
अर्थात : महावीर स्वामी कहते हैं कि सिर मुंडा लेने से ही कोई श्रमण नहीं बन जाता। ओंकार का जप कर लेने से ही कोई ब्राह्मण नहीं बन जाता। केवल जंगल में जाकर बस जाने से ही कोई मुनि नहीं बन जाता। वल्कल वस्त्र पहन लेने से ही कोई तपस्वी नहीं बन जाता।
शनकैस्तु क्रियालोपदिनाः क्षत्रिय जातयः।
वृषलत्वं गता लोके ब्राह्मणा दर्शनेन च॥
पौण्ड्रकाशचौण्ड्रद्रविडाः काम्बोजाः भवनाः शकाः ।
पारदाः पहल्वाश्चीनाः किरताः दरदाः खशाः॥- मनुसंहिता (1- (/43-44)
अर्थात : ब्राह्मणत्व की उपलब्धि को प्राप्त न होने के कारण उस क्रिया का लोप होने से पोण्ड्र, चौण्ड्र, द्रविड़ काम्बोज, भवन, शक, पारद, पहल्व, चीनी किरात, दरद व खश ये सभी क्षत्रिय जातियां धीरे-धीरे शूद्रत्व को प्राप्त हो गईं।
जाति के आधार के कथित ब्राह्मण के प्रकार...
जाति के आधार पर तथाकथित ब्राह्मणों के हजारों प्रकार हैं। उत्तर भारतीय ब्राह्मणों के प्रकार अलग तो दक्षिण भारतीय ब्राह्मणों के अलग प्रकार। लेकिन हम यहां जाति के आधार के प्रकार की बात नहीं कर रहे हैं।
उत्तर भारत में जहां सारस्वत, सरयुपा‍रि, गुर्जर गौड़, सनाठ्य, औदिच्य, पराशर आदि ब्राह्मण मिल जाएंगे तो दक्षिण भारत में ब्राह्मणों के तीन संप्रदाय हैं- स्मर्त संप्रदाय, श्रीवैष्णव संप्रदाय तथा माधव संप्रदाय। इनके हजारों उप संप्रदाय हैं।
पुराणों के अनुसार पहले विष्‍णु के नाभि कमल से ब्रह्मा हुए, ब्रह्मा का ब्रह्मर्षिनाम करके एक पुत्र था। उस पुत्र के वंश में पारब्रह्म नामक पुत्र हुआ, उससे कृपाचार्य हुए, कृपाचार्य के दो पुत्र हुए, उनका छोटा पुत्र शक्ति था। शक्ति के पांच पुत्र हुए। उसमें से प्रथम पुत्र पाराशर से पारीक समाज बना, दूसरे पुत्र सारस्‍वत के सारस्‍वत समाजा, तीसरे ग्‍वाला ऋषि से गौड़ समाजा, चौथे पुत्र गौतम से गुर्जर गौड़ समाजा, पांचवें पुत्र श्रृंगी से उनके वंश शिखवाल समाजा, छठे पुत्र दाधीच से दायमा या दाधीच समाज बना।...इस तरह ‍पुराणों में हजारों प्रकार मिल जाएंगे।
इसके अलावा माना जाता है कि सप्तऋषियों की संतानें हैं ब्राह्मण। जैन धर्म के ग्रंथों को पढ़ें तो वहां ब्राह्मणों की उत्पत्ति का वर्णन अलग मिल जाएगा। बौद्धों के धर्मग्रंथ पढ़ें तो वहां अलग वर्णन है। लेकिन सबसे उत्तम तो वेद और स्मृतियों में ही मिलता है।
ब्राह्मणों के असली प्रकार
कोई भी बन सकता है ब्राह्मण : ब्राह्मण होने का अधिकार सभी को है चाहे वह किसी भी जाति, प्रांत या संप्रदाय से हो। लेकिन ब्राह्मण होने के लिए कुछ नियमों का पालन करना होता है। 
स्मृति-पुराणों में ब्राह्मण के 8 भेदों का वर्णन मिलता है:- मात्र, ब्राह्मण, श्रोत्रिय, अनुचान, भ्रूण, ऋषिकल्प, ऋषि और मुनि। 8 प्रकार के ब्राह्मण श्रुति में पहले बताए गए हैं। इसके अलावा वंश, विद्या और सदाचार से ऊंचे उठे हुए ब्राह्मण ‘त्रिशुक्ल’ कहलाते हैं। ब्राह्मण को धर्मज्ञ विप्र और द्विज भी कहा जाता है। 
1. मात्र : ऐसे ब्राह्मण जो जाति से ब्राह्मण हैं लेकिन वे कर्म से ब्राह्मण नहीं हैं उन्हें मात्र कहा गया है। ब्राह्मण कुल में जन्म लेने से कोई ब्राह्मण नहीं कहलाता। बहुत से ब्राह्मण ब्राह्मणोचित उपनयन संस्कार और वैदिक कर्मों से दूर हैं, तो वैसे मात्र हैं। उनमें से कुछ तो यह भी नहीं हैं। वे बस शूद्र हैं। वे तरह के तरह के देवी-देवताओं की पूजा करते हैं और रा‍त्रि के क्रियाकांड में लिप्त रहते हैं। वे सभी राक्षस धर्मी हैं।
2. ब्राह्मण : ईश्वरवादी, वेदपाठी, ब्रह्मगामी, सरल, एकांतप्रिय, सत्यवादी और बुद्धि से जो दृढ़ हैं, वे ब्राह्मण कहे गए हैं। तरह-तरह की पूजा-पाठ आदि पुराणिकों के कर्म को छोड़कर जो वेदसम्मत आचरण करता है वह ब्राह्मण कहा गया है।
3. श्रोत्रिय : स्मृति अनुसार जो कोई भी मनुष्य वेद की किसी एक शाखा को कल्प और छहों अंगों सहित पढ़कर ब्राह्मणोचित 6 कर्मों में सलंग्न रहता है, वह ‘श्रोत्रिय’ कहलाता है।
4. अनुचान : कोई भी व्यक्ति वेदों और वेदांगों का तत्वज्ञ, पापरहित, शुद्ध चित्त, श्रेष्ठ, श्रोत्रिय विद्यार्थियों को पढ़ाने वाला और विद्वान है, वह ‘अनुचान’ माना गया है।
5. भ्रूण : अनुचान के समस्त गुणों से युक्त होकर केवल यज्ञ और स्वाध्याय में ही संलग्न रहता है, ऐसे इंद्रिय संयम व्यक्ति को भ्रूण कहा गया है।
6. ऋषिकल्प : जो कोई भी व्यक्ति सभी वेदों, स्मृतियों और लौकिक विषयों का ज्ञान प्राप्त कर मन और इंद्रियों को वश में करके आश्रम में सदा ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए निवास करता है उसे ऋषिकल्प कहा जाता है।
7. ऋषि : ऐसे व्यक्ति तो सम्यक आहार, विहार आदि करते हुए ब्रह्मचारी रहकर संशय और संदेह से परे हैं और जिसके श्राप और अनुग्रह फलित होने लगे हैं उस सत्यप्रतिज्ञ और समर्थ व्यक्ति को ऋषि कहा गया है।
8. मुनि : जो व्यक्ति निवृत्ति मार्ग में स्थित, संपूर्ण तत्वों का ज्ञाता, ध्याननिष्ठ, जितेन्द्रिय तथा सिद्ध है ऐसे ब्राह्मण को ‘मुनि’ कहते हैं। 
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• राक्षसों की उत्पत्ति कैसे हुई?
वेद, पुराण आदि धर्मशास्त्रों में प्राचीनकाल की कई मानव जातियों का उल्लेख मिलता है- देवता, असुर, दानव, राक्षस, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, नाग आदि। देवताओं की उत्पत्ति अदिति से, असुरों की दिति से, दानवों की दनु, कद्रू से नाग की मानी गई है।
ये तीनों ही कश्यप ऋषि की पत्नियां थीं। जहां तक राक्षस जाति का सवाल है तो प्रारंभिक काल में यक्ष और रक्ष ये दो ही तरह की मानव जातियां थीं।
राक्षस लोग पहले रक्षा करने के लिए नियुक्त हुए थे, लेकिन बाद में इनकी प्रवृत्तियां बदलने के कारण ये अपने कर्मों के कारण बदनाम होते गए और आज के संदर्भ में इन्हें असुरों और दानवों जैसा ही माना जाता है।
कैसे और किसने की राक्षसों की उत्पत्ति...
पुराणों अनुसार कश्यप की सुरसा नामक रानी से यातुधान (राक्षस) उत्पन्न हुए, लेकिन एक कथा अनुसार प्रजापिता ब्रह्मा ने समुद्रगत जल और प्राणियों की रक्षा के लिए अनेक प्रकार के प्राणियों को उत्पन्न किया। उनमें से कुछ प्राणियों ने रक्षा की जिम्मेदारी संभाली तो वे राक्षस कहलाए और जिन्होंने यक्षण (पूजन) करना स्वीकार किया वे यक्ष कहलाए। जल की रक्षा करने के महत्वपूर्ण कार्य को संभालने के लिए ये जाति पवित्र मानी जाती थी।
राक्षसों का प्रतिनिधित्व दोनों लोगों को सौंपा गया- 'हेति' और 'प्रहेति'। ये दोनों भाई थे। ये दोनों भी दैत्यों के प्रतिनिधि मधु और कैटभ के समान ही बलशाली और पराक्रमी थे। प्रहेति धर्मात्मा था तो हेति को राजपाट और राजनीति में ज्यादा रुचि थी।
हेति ने कैसे बढ़ाया अपना साम्राज्य और...
हेति ने अपने साम्राज्य विस्तार हेतु 'काल' की पुत्री 'भया' से विवाह किया। भया से उसके विद्युत्केश नामक एक पुत्र का जन्म हुआ। उसका विवाह संध्या की पुत्री 'सालकटंकटा' से हुआ। माना जाता है कि 'सालकटंकटा' व्यभिचारिणी थी। इस कारण जब उसका पुत्र जन्मा तो उसे लावारिस छोड़ दिया गया। विद्युत्केश ने भी उस पुत्र की यह जानकर कोई परवाह नहीं की कि यह न मालूम किसका पुत्र है। बस यहीं से राक्षस जाति में बदलाव आया...।
आखिर किसने पाला विद्युत्केश के पुत्र को,..
पुराणों अनुसार भगवान शिव और मां पार्वती की उस अनाथ बालक पर नजर पड़ी और उन्होंने उसको सुरक्षा प्रदान ‍की। उस अबोध बालक को त्याग देने के कारण मां पार्वती ने शाप दिया कि अब से राक्षस जाति की स्त्रियां जल्द गर्भ धारण करेंगी और उनसे उत्पन्न बालक तत्काल बढ़कर माता के समान अवस्था धारण करेगा। इस शाप से राक्षसों में शारीरिक आकर्षण कम, विकरालता ज्यादा रही।
शिव और पार्वती ने उस बालक का नाम 'सुकेश' रखा। शिव के वरदान के कारण वह निर्भीक था। वह निर्भीक होकर कहीं भी विचरण कर सकता था। शिव ने उसे एक विमान भी दिया था।
सुकेश ने किया किससे विवाह..
सुकेश ने गंधर्व कन्या देववती से विवाह किया। देववती से सुकेश के तीन पुत्र हुए- 1.माल्यवान, 2. सुमाली और 3. माली। इन तीनों के कारण राक्षस जाति को विस्तार और प्रसिद्धि प्राप्त हुई।
इन तीनों भाइयों ने शक्ति और ऐश्वर्य प्राप्त करने के लिए ब्रह्माजी की घोर तपस्या की। ब्रह्माजी ने इन्हें शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने और तीनों भाइयों में एकता और प्रेम बना रहने का वरदान दिया। वरदान के प्रभाव से ये तीनों भाई अहंकारी हो गए।
तीनों भाइयों ने मिलकर विश्वकर्मा से त्रिकुट पर्वत के निकट समुद्र तट पर लंका का निर्माण कराया और उसे अपने शासन का केंद्र बनाया। इस तरह उन्होंने राक्षसों को एकजुट कर राक्षसों का आधिपत्य स्थापित किया और उसे राक्षस जाति का केंद्र भी बनाया।
लंका को उन्होंने धन और वैभव की धरती बनाया और यहां तीनों राक्षसों ने राक्षस संस्कृति के लिए विश्व विजय की कामना की। उनका अहंकार बढ़ता गया और उन्होंने यक्षों और देवताओं पर अत्याचार करना शुरू किया जिससे संपूर्ण धरती पर आतंक का राज कायम हो गया।
किसने तीनों भाइयों को खदेड़ दिया लंका से...
माल्यवान, सुमाली और माली से त्रस्त होकर सभी ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की तब विष्णु ने तीनों भाइयों से युद्ध किया लेकिन तीनों भाइयों और राक्षस जाति की एकजुटता के चलते विष्णु के लिए उन्हें हराना मुश्किल हो गया था, तब भगवान विष्णु ने अपनी संपूर्ण शक्ति से तीनों भाइयों को लंका से खदेड़ दिया और तीनों भाइयों ने रसातल में जाकर अपनी जान बचाई।
इन्हीं तीनों भाइयों के वंश में आगे चलकर राक्षस जाति का विकास हुआ। तीनों भाइयों के वंशज में माल्यवान के वज्र, मुष्टि, धिरूपार्श्व, दुर्मख, सप्तवहन, यज्ञकोप, मत्त, उन्मत्त नामक पुत्र और अनला नामक कन्या हुई।
सुमाली के प्रहस्त, अकन्पन, विकट, कालिकामुख, धूम्राश, दण्ड, सुपार्श्व, सहादि, प्रधस, भास्कण नामक पुत्र तथा रांका, पुण्डपोत्कटा, कैकसी, कुभीनशी नामक पुत्रियां हुईं। इनमें से कैकसी रावण की मां थी। माली रावण के नाना थे। रावण ने इन्हीं के बलबूते पर अपने साम्राज्य का विस्तार किया और शक्तियां बढ़ाईं।
माली के अनल, अनिल, हर और संपात्ति नामक चार पुत्र हुए। ये चारों पुत्र रावण की मृत्यु पश्चात विभीषण के मंत्री बने थे। रावण राक्षस जाति का नहीं था उसकी माता राक्षस जाति की थी लेकिन उनके पिता यक्ष जाति के ब्राह्मण थे।
फिर लंका पर किसका राज हुआ...
जब माल्यवान, सुमाली और माली आदि राक्षसों को लंका से खदेड़ दिया गया, तब लंका को प्रजापति ब्रह्मा ने धनपति कुबेर को सौंप दिया। कुबेर रावण के सौतेले भाई थे। महर्षि पुलस्त्य के पुत्र विश्रवा की दो पत्नियां थीं इलविला और कैकसी। इलविला से कुबेर और कैकसी से रावण, विभीषण, कुंभकर्ण का जन्म हुआ। इलविला यक्ष जाति से थीं तो कैकसी राक्षस।
कुबेर तपस्वी थे। वे तप करके उत्तर दिशा के लोकपाल बने। इनके अनुचर यक्ष निरंतर इनकी सेवा करते हैं। कुबेर रावण के सौतेले भाई होने के बावजूद राक्षस जाति या संस्कृति से नहीं थे। भगवान शंकर ने इन्हें अपना नित्य सखा स्वीकार किया है इसीलिए कुबेर पूज्यनीय माने जाते हैं।
फिर से कैसे लंका पर राक्षस जाति का शासन हुआ..
रावण को राक्षसों का अधिपति बनाया गया, तब रावण ने राक्षस जाति के खोए हुए सम्मान को पुन: प्राप्त करने का वचन लिया और अपना विश्व विजय अभियान शुरू किया। इस विजय अभियान में रावण ने स्वयं भगवान शिव से भी टक्कर ली।
कुबेर ने रावण के अत्याचारों के विषय में सुना तो अपने एक दूत को रावण के पास भेजा। दूत ने कुबेर का संदेश दिया कि रावण अधर्म के क्रूर कार्यों को छोड़कर यक्षों पर अत्याचार करना बंद करे।
रावण द्वारा नंदनवन उजाड़ने के कारण सब देवता उसके शत्रु बन गए थे। रावण ने क्रुद्ध होकर उस दूत को अपनी खड्ग से काटकर राक्षसों को भक्षणार्थ दे दिया। कुबेर को इस घटना से बहुत आघात पहुंचा।
अंत में रावण तथा राक्षसों का कुबेर तथा यक्षों से युद्ध हुआ। यक्ष जहां यक्ष बल से लड़ते थे और वहीं राक्षस माया से, अत: राक्षस विजयी हुए। रावण मायावी था और उसके पास कई प्रकार ‍की सिद्धियां थीं। उसने मायावी रूप धारण कर कुबेर के सिर पर प्रहार कर उन्हें घायल कर दिया और बलपूर्वक उनका पुष्पक विमान उनसे छीन लिया।
रावण ने यह कार्य अपनी माता कैकसी के कहने पर किया। कुबेर को रावण ने लंका से खदेड़ दिया और उनकी समस्त संपत्ति भी छीन ली। कुबेर अपने पितामह के पास गए। पितामह की प्रेरणा से कुबेर ने शिवआराधना हेतु हिमालय चले गए। जहां उन्हें 'धनपाल' की पदवी, पत्नी और पुत्र का लाभ हुआ।
रावण ने लंका को नए सिरे से बसाकर राक्षस जाति को एकजुट किया और फिर से राक्षस राज कायम किया।

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• दैत्यों की उत्पत्ति का रहस्य जानिए
श्रीमद्भागवत के अनुसार दक्ष प्रजापति ने अपनी 60 कन्याओं में से 13 का विवाह ऋषि कश्यप के साथ किया था।
कश्यप की पत्नियां : इस प्रकार ऋषि कश्यप की अदिति, दिति, दनु, काष्ठा, अरिष्टा, सुरसा, इला, मुनि, क्रोधवशा, ताम्रा, सुरभि, सुरसा, तिमि, विनता, कद्रू, पतांगी और यामिनी आदि पत्नियाँ बनीं। मान्यता है कि 13 के अलावा उनकी और भी पत्नियाँ थीं।
अदिति के गर्भ से देवता और दिति के गर्भ से दैत्यों की उत्पत्ति हुई, बाकी अन्य पत्नियों से गंधर्व, अप्सरा, राक्षस, पशु-पक्षी, सांप, बिच्छु, जलचर जंतु आदि जीव-जंतु जगत की उत्पत्ति हुई।
दैन्यों को असुर और राक्षस भी कहा गया है। दैत्यों की प्रवृत्तियाँ आसुरी थीं। आगे चलकर उनका देवताओं या सुरों से युद्ध भी हुआ। देवता दैत्यों के सौतेले भाई थे और कश्यप ऋषि की दूसरी पत्नी अदिति के पुत्र थे।
इस तरह हुई दैत्यों की उत्पत्ति...
भागवत पुराण के अनुसार एक बार दक्ष पुत्र दिति ने कामातुर होकर अपने पति मरीचिनंदन कश्यपजी से प्रार्थना की। उस समय कश्यपजी खीर की आहुतियों द्वारा अग्निजिह्व भगवान यज्ञपति की आराधना कर सूर्यास्त के समय अग्निशाला में ध्यानस्थ बैठे थे, लेकिन दिति कामदेव के वेग से अत्यंत बैचेन हो बेबस हो रही थी। यह वक्त संध्यावंदन का था, लेकिन लाख समझाने पर भी वह नहीं मानी। 
कश्यपजी ने के कहा- तुम एक मुहूर्त ठहरो यह अत्यंत घोर समय चल रहा है जबकि राक्षसादि प्रेत योनि की आत्माएं सक्रिय हैं, ऐसे में यह वक्त ईश्वर भक्ति का वक्त है। इस वक्त महादेवजी अपने तीसरे नेत्र से सभी को देखते रहते हैं। यह वक्त उन्हीं का है। यह समय तो संध्यावंदन और भगवत् पूजन आदि के लिए ही है। इस समय जो पिशाचों जैसा आचरण करते हैं, वे नरकगामी होते हैं।
दिति ने किया समागम तब क्या 'अमंगल' हुआ...
पति के इस प्रकार समझाने पर भी दिति नहीं मानी और निर्लज्ज होकर उसने कश्यपजी का वस्त्र पकड़ लिया। तब विवश होकर उन्होंने इस 'शिव समय' में देवों को नमस्कार किया और एकांत में दिति के साथ समागम किया।
समागम बाद कश्यपजी ने निर्मल जल से स्नान किया और फिर से ब्रह्म का ध्यान करने लगे लेकिन दिति को बाद में इसका पश्चाताप हुआ और लज्जा आई। तब वह ब्रह्मर्षि के समक्ष सिर नीचा करके कहने लगी- 'भूतों के स्वामी भगवान रुद्र का मैंने अपराध किया है, किंतु वह भूतश्रेष्ठ मेरे इस गर्भ को नष्ट न करें। मैं उनसे क्षमा मांगती हूं।'
बाद में कश्यपजी जब ध्यान से उठे तो उन्होंने देखा की दिति भय से थर-थर कांपते हुए प्रार्थना कर रही है। कश्यपजी बोले, 'तुमने देवताओं की अवहेलना करते हुए अमंगल समय में काम की कामना की इसलिए तुम्हारी कोख से दो बड़े ही अमंगल और अधम पुत्र जन्म लेंगे और वे धरती पर बार-बार अपने अत्याचारों से लोगों को रुलाएंगे। तब उनका वध करने के लिए स्वयं जगदीश्वर को अवतार लेना होगा। चार पौत्रों में से एक भगवान हरि का प्रसिद्ध भक्त होगा, तीन दैत्य होंगे।'
दिति को आशंका थी कि उसके पुत्र देवताओं के कष्ट का कारण बनेंगे अत: उसने 100 वर्ष तक अपने शिशुओं को उदर में ही रखा। इससे सब दिशाओं में अंधकार फैल गया।
कौन थे जिन्होंने दिति के गर्भ से जन्म लिया...
इस अंधकार को देख सभी देवता ब्रह्मा के पास पहुंचे और कहने लगे इसका निराकरण कीजिए। ब्रह्मा ने कहा कि पूर्वकाल में सनकादि मुनियों को बैकुंठ धाम में जाने से विष्णु के पार्षदों ने अज्ञानतावश रोक दिया था। वे लोग विष्णु के दर्शन करना चाहते थे। उन्होंने क्रुद्ध होकर उन दोनों पार्षदों को श्राप दे दिया कि वे अपना पद छोड़कर पापमय योनि में जन्म लेगें। ये दोनों पार्षद थे- जय और विजया। ये दोनों बैकुंठ से पतित होकर दिति के गर्भ में बड़े हो रहे हैं। 
सृष्टि में भयानक उत्पात और अंधकार के बाद दिति के गर्भ से सर्वप्रथम दो जुड़वां पुत्र जन्मे हिरण्यकशिपु तथा हिरण्याक्ष। जन्म लेते ही दोनों पर्वत के समान दृढ़ तथा विशाल हो गए। ये दोनों ही आदि दैत्य कहलाए।
दिति के पुत्र : कश्यप ऋषि ने दिति के गर्भ से हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष नामक दो पुत्र एवं सिंहिका नामक एक पुत्री को जन्म दिया। श्रीमद्भागवत् के अनुसार इन तीन संतानों के अलावा दिति के गर्भ से कश्यप के 49 अन्य पुत्रों का जन्म भी हुआ, जो कि मरुन्दण कहलाए। कश्यप के ये पुत्र नि:संतान रहे जबकि हिरण्यकश्यप के चार पुत्र थे- अनुहल्लाद, हल्लाद, भक्त प्रह्लाद और संहल्लाद।

Sunday 28 December 2014

दमे का नाश होता है

अदरक पाकः
अदरक के बारीक-बारीक टुकड़े, गाय का घी एवं गुड़ – इन तीनों को समान मात्रा में लेकर लोहे की कड़ाही में अथवा मिट्टी के बर्तन में धीमी आँच पर पकायें। पाक जब इतना गाढ़ा हो जाय कि चिपकने लगे तब आँच पर से उतारकर उसमें सोंठ, जीरा, काली मिर्च, नागकेसर, जायफल, इलायची, दालचीनी, तेजपत्र, लेंडीपीपर, धनिया, स्याहजीरा, पीपरामूल एवं वायविंडम का चूर्ण ऊपर की औषधियाँ (अदरक आदि) से चौथाई भाग में डालें। इस पाक को घी लगे हुए बर्तन में भरकर रख लें।
शीतकाल में प्रतिदिन 20 ग्राम की मात्रा में इस पाक को खाने से दमा, खाँसी, भ्रम, स्वरभंग, अरुचि, कर्णरोग, नासिकारोग, मुखरोग, क्षय, उरःक्षतरोग, हृदय रोग, संग्रहणी, शूल, गुल्म एवं तृषारोग में लाभ होता है।
खजूर पाकः खारिक (खजूर) 480 ग्राम, गोंद 320 ग्राम, मिश्री 380 ग्राम, सोंठ 40 ग्राम, लेंडीपीपर 20 ग्राम, काली मिर्च 30 ग्राम तथा दालचीनी, तेजपत्र, चित्रक एवं इलायची 10 -10 ग्राम डाल लें। फिर उपर्युक्त विधि के अनुसार इन सब औषधियों से पाक तैयार करें।
यह पाक बल की वृद्धि करता है, बालकों को पुष्ट बनाता है तथा इसके सेवन से शरीर की कांति सुंदर होकर, धातु की वृद्धि होती है। साथ ही क्षय, खाँसी, कंपवात, हिचकी, दमे का नाश होता है।
इस के सेवन से श्वाश, कास, स्वर भंग, अरुचि, स्मरण शक्ति कि कमी, सूजन गृहणी, शूल, उर्द रोग , गुल्म आदि ले रोग नष्ट होते है | सभी प्रकार के वाट रोग ग्रूदशी, गठिया कमर दर्द, लगड़ी का दर्द, कफ परधन रोगो में इनके उपयोग से अछा लाभ होता है | वह कफ धन है | अतएव स्वास कास स्वर भंग आदि के रोगो में कफ विकार दूर करने तथा स्वास नली को साफ करने के लिए भी प्रयोग किया जाता है |

Saturday 27 December 2014

क्या देवता भोग ग्रहण करते है


क्या देवता भोग ग्रहण करते है ?
हिन्दू धर्म में भगवान् को भोग लगाने का विधान है …

क्या सच में देवतागण भोग ग्रहण करते ?
हां , ये सच है ..शास्त्र में इसका प्रमाण भी है ..
गीता में भगवान् कहते है …” जो भक्त मेरे लिए प्रेम से
पत्र, पुष्प, फल, जल आदि अर्पण करता है , उस शुध्द
बुध्दी निष्काम प्रेमी भक्त का प्रेम पूर्वक अर्पण
किया हुआ , वह पत्र पुष्प आदि मैं ग्रहण करता हूँ …गीता ९/२६
अब वे खाते कैसे है , ये समझना जरुरी है

हम जो भी भोजन ग्रहण करते है , वे चीजे पांच तत्वों से
बनी हुई होती है ….क्योकि हमारा शरीर भी पांच
तत्वों से बना होता है ..इसलिए अन्न, जल, वायु,
प्रकाश और आकाश ..तत्व की हमें जरुरत होती है ,
जो हम अन्न और जल आदि के द्वारा प्राप्त करते है …

देवता का शरीर पांच तत्वों से नहीं बना होता , उनमे
पृथ्वी और जल तत्व नहीं होता …मध्यम स्तर के देवताओ
का शरीर तीन तत्वों से तथा उत्तम स्तर के
देवता का शरीर दो तत्व –तेज और आकाश से बना हुआ
होता है …इसलिए देव शरीर वायुमय और तेजोमय होते
है …
 यह देवता वायु के रूप में गंध, तेज के रूप में प्रकाश को ग्रहण
और आकाश के रूप में शब्द को ग्रहण करते है …

यानी देवता गंध, प्रकाश और शब्द के द्वारा भोग ग्रहण
करते है ..जिसका विधान पूजा पध्दति में होता है …
जैसे जो हम अन्न का भोग लगाते है , देवता उस अन्न
की सुगंध को ग्रहण करते है ,,,उसी से
तृप्ति हो जाती है ..जो पुष्प और धुप लगाते है ,
उसकी सुगंध को भी देवता भोग के रूप में ग्रहण करते है … जो हम दीपक जलाते है , उससे देवता प्रकाश तत्व
को ग्रहण करते है ,,,आरती का विधान भी उसी के लिए
है ..
जो हम मन्त्र पाठ करते है , या जो शंख बजाते है या घंटी घड़ियाल बजाते है , उसे देवता गण ”आकाश ” तत्व के रूप में ग्रहण करते है …

यानी पूजा में हम जो भी विधान करते है , उससे देवता वायु,तेज और आकाश तत्व के रूप में ” भोग ” ग्रहण
करते है ……
जिस प्रकृति का देवता हो , उस प्रकृति का भोग लगाने का विधान है . !!!

इस तरह हिन्दू धर्म की पूजा पध्दति पूर्ण ”वैज्ञानिक ” है !!!
,

नही तो जन्मो ऐसे ही चक्रों में फंसे रहोगे।

भागती हुयी जिन्दगी की रफ्तार पकड़ने में इंसान इतना खो गया है की उसे कुछ भी तुरंत हासिल करने हेतु वो गिरता चला जाता है झूठ और धोखे के दलदल में। और जो इस दलदल में गिरता है अपने झूठ और धोखे के भंवर जाल में उलझता जाता है। हर एक झूठ छुपाने के लिए 10 झूठ। धोखे के छुपाने के लिए धोखा। नतीजा झूठ बोलने वाला भी दुखी और जिससे झूठ बोला गया वो भी दुखी।धोखा देने वाला भी दुखी और धोखा खाने वाला भी दुखी। सिर्फ दुखों का ही प्रसार हो रहा है समाज में। सबके पास लाखो सच्चे झूठे तर्क होते है, लेकिन ना वो अपनी और ना ही सामने वाले की अंतरात्मा से इसका बोझ हटा पाते हैं। जीवन भर इस बोझ को ढोते हुए ये बोझ बीमारियों के रूप में भी उभर आती है।
बुद्ध आये उन्होंने कहा "तुम दुखी हो, तुम्हारे दुःख का निदान है मेरे पास" जितने लोगो ने उनके वक्तव्यों को समझा वो दुःख से पार हो गये।
जीसस आये उन्होंने कहा तुम रोगी हो और तुम्हारे रोग का इलाज़ है मेरे पास। और जीसस के मार्ग पर चलकर कई लोग रोगमुक्त हो गये।
किन्तु इंसान की फितरत की उसे महापुरुषों के वक्तव्य दुसरो के लिए अच्छे लगते है। कई उदाहरण देता है दुसरो को लेकिन जीवन में उतारता ही नही। ऐसे ही गुरुनानक देव जी, स्वामी विवेकानन्द की अनेखो अनेखो लेखनियों में से मात्र कुछ पेज ही काफी है जीवन को दुःख और रोग से निकालने के लिए। पढता भी है इंसान तो या तो समझता नही या वो उसे किसी दुसरे पर आजमा कर देखना चाहता है।
ना जाने जीवन के मुलभुत सिद्धांत को देने कितने महापुरुषों को धरती पर आना होगा। जीवन में झूठ, धोखा, लालच,आसक्ति आदि इंसान को सिर्फ दुःख और रोग ही दे सकते है। कब इंसान इन सबके साथ सुखी हुआ है। कब उसने इन सबके साथ जीवन में शान्ति का अनुभव किया है। ये रोग जन्मो साथ जाएगा और सभी जन्मो में बढ़ेगा। क्यों खुद की शान्ति हरते हो और दुसरो की भी। क्या कभी एसा कर बिना कुतर्को के दुसरे के सामने खड़े हो सकते हो? छोटी सोच और अल्पकाल के लाभ का परिणाम है ये झूठ, धोखा, लालच, आसक्ति। यदि दीर्घकाल की सोचोगे तो इन सबसे खुद दूर भागोगे। खुद से नफरत हो जायेगी। सिर्फ सोच की समय सीमा बड़ा कर देखो और विचार करो तुम्हारे कर्म कैसे भीतर ही भीतर तुम्हे खायेंगे। कैसे बचोगे झूठ और धोखा पकडाने पर। अपनी नजरो में लज्जित हो जाओगे। जिस लालच से ये कर्म किया था वो लालच बेआबरू हो जाएगा। और इस बेआबरू होने में सबके बीच में इज्जत तुम्हारी जायेगी। वो आसक्ति समाप्त करो।
और इस उम्मीद में ना रहो तुम सबके उद्धार के लिए अलग अलग कोई बुद्ध या मसीहा आएगा। तुम्हे अपना बुद्ध स्वयं बनना होगा, मसीहा भी खुद को बनाना होगा तभी इस चक्र से निकल पाओगे। नही तो जन्मो ऐसे ही चक्रों में फंसे रहोगे।

Friday 26 December 2014

बहुत देर लगाने से लक्ष्य की प्राप्ति कठिन हो जाती है।


एक धनी व्यक्ति का बटुआ बाजार में गिर गया। उसे घर पहुंच कर इस बात का पता चला। बटुए में जरूरी कागजों के अलावा कई हजार रुपये भी थे। फौरन ही वो मंदिर गया और प्रार्थना करने लगा कि बटुआ मिलने पर प्रसाद चढ़ाउंगा, गरीबों को भोजन कराउंगा आदि। संयोग से वो बटुआ एक बेरोजगार युवक को मिला। बटुए पर उसके मालिक का नाम लिखा था। इसलिए उस युवक ने सेठ के घर पहुंच कर बटुआ उन्हें दे दिया। सेठ ने तुरंत बटुआ खोल कर देखा। उसमें सभी कागजात और रुपये यथावत थे।
सेठ ने प्रसन्न हो कर युवक की ईमानदारी की प्रशंसा की और उसे बतौर इनाम कुछ रुपये देने चाहे, जिन्हें लेने से युवक ने मना कर दिया। इस पर सेठ ने कहा, अच्छा कल फिर आना। युवक दूसरे दिन आया तो सेठ ने उसकी खूब खातिर की। युवक चला गया। युवक के जाने के बाद सेठ अपनी इस चतुराई पर बहुत प्रसन्न था कि वह तो उस युवक को सौ रुपये देना चाहता था। पर युवक बिना कुछ लिए सिर्फ खा -पी कर ही चला गया। उधर युवक के मन में इन सब का कोई प्रभाव नहीं था, क्योंकि उसके मन में न कोई लालसा थी और न ही बटुआ लौटाने के अलावा और कोई विकल्प ही था। सेठ बटुआ पाकर यह भूल गया कि उसने मंदिर में कुछ वचन भी दिए थे।
सेठ ने अपनी इस चतुराई का अपने मुनीम और सेठानी से जिक्र करते हुए कहा कि देखो वह युवक कितना मूर्ख निकला। हजारों का माल बिना कुछ लिए ही दे गया। सेठानी ने कहा, तुम उल्टा सोच रहे हो। वह युवक ईमानदार था। उसके पास तुम्हारा बटुआ लौटा देने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था। उसने बिना खोले ही बटुआ लौटा दिया। वह चाहता तो सब कुछ अपने पास ही रख लेता। तुम क्या करते? ईश्वर ने दोनों की परीक्षा ली। वो पास हो गया, तुम फेल। अवसर स्वयं तुम्हारे पास चल कर आया था, तुमने लालच के वश उसे लौटा दिया। अब अपनी गलती को सुधारो और जाओ उसे खोजो। उसके पास ईमानदारी की पूंजी है, जो तुम्हारे पास नहीं है। उसे काम पर रख लो।
सेठ तुरत ही अपने कर्मचारियों के साथ उस युवक की तलाश में निकल पड़ा। कुछ दिनों बाद वह युवक किसी और सेठ के यहां काम करता मिला। सेठ ने युवक की बहुत प्रशंसा की और बटुए वाली घटना सुनाई, तो उस सेठ ने बताया, उस दिन इसने मेरे सामने ही बटुआ उठाया था। मैं तभी अपने गार्ड को लेकर इसके पीछे गया। देखा कि यह तुम्हारे घर जा रहा है। तुम्हारे दरवाजे पर खड़े हो कर मैंने सब कुछ देखा व सुना। और फिर इसकी ईमानदारी से प्रभावित होकर इसे अपने यहां मुनीम रख लिया। इसकी ईमानदारी से मैं पूरी तरह निश्चिंत हूं।
बटुए वाला सेठ खाली हाथ लौट आया। पहले उसके पास कई विकल्प थे , उसने निर्णय लेने में देरी की। उस ने एक विश्वासी पात्र खो दिया। युवक के पास अपने सिद्धांत पर अटल रहने का नैतिक बल था। उसने बटुआ खोलने के विकल्प का प्रयोग ही नहीं किया। युवक को ईमानदारी का पुरस्कार मिल गया। दूसरे सेठ के पास निर्णय लेने की क्षमता थी। उसे एक उत्साही , सुयोग्य और ईमानदार मुनीम मिल गया।
एक बहुत बड़े विचारक सोरेन कीर्कगार्ड ने अपनी पुस्तक आइदर - और अर्थात ' यह या वह ' में लिखा है कि जिन वस्तुओं के विकल्प होते हैं , उन्हीं में देरी होती है। विकल्पों पर विचार करना गलत नहीं है। लेकिन विकल्पों पर ही विचार करते रहना गलत है। हम ' यह या वह ' के चक्कर में फंसे रह जाते हैं। किसी संत ने एक जगह लिखा है , विकल्पों में उलझ कर निर्णय पर पहुंचने में बहुत देर लगाने से लक्ष्य की प्राप्ति कठिन हो जाती है।

Wednesday 24 December 2014

गुग्गुल 
कैशोर गूगल : वात रक्त और खून की खराबी के कारण शरीर में फोड़ा, फुंसी या चकत्ता होना, कुष्ठ, व्रण आदि व्याधियों में लाभकारी। मात्रा 1 से 2 गोली सुबह-शाम गर्म जल से।
नवक गूगल : मेद वृद्धि (मोटापा) व आमवात नाशक। मात्रा 2-2 गोली सुबह-शाम।
पुनर्नविद गूगल : वातरक्त, शोथ, गृध्रसी तथा प्रबल आमवात का नाश होता है। मात्रा 1 से 2 गोली सुबह-शाम गर्म जल से।
महायोगराज गूगल : 80 प्रकार के वात रोगों में लाभकारी। समस्त वात विकार, संधिवान, अर्द्धगावात, कमर व मेरुदण्ड का दर्द, सर्वांग शूल, व्रण, भगंदर, अर्श वात रक्त आदि रोगों की प्रसिद्ध दवा। मात्र 1 से 2 रत्ती गोली सुबह-शाम रास्नादि क्वाथ, गर्म जल या चाय के साथ।
योगराज गूगल : महायोगराज गूगल के समान गुण पर कुछ कम असर करने वाली।
रास्नादि गूगल : आमवात, गठिया जोड़ों का दर्द आदि विकारों में लाभकारी। मात्रा 1 से 2 रत्ती सुबह-शाम।
लाक्षादि गूगल : हड्डियों की बीमारी व सूजन, चोट लगने के बाद होने वाले दर्द, टूटी हड्डियों को जोड़ने एवं रक्त के जमाव को दूर करने में लाभकारी। मात्रा 1 से 2 गोली सुबह-शाम गर्म जल अथवा दूध से।
सप्तविंशति गूगल : भगंदर, पुराने घाव, शूल आदि रोगों में लाभकारी। बवासीर, नाड़ी त्रण, आंत्र वृद्धि तथा वस्ति विकारों पर। मात्रा 1 से 2 गोली सुबह-शाम गर्म जल से।
सिंहनाथ गूगल : वातरक्त, आमावत, संधिवात, गुल्म, शूल, उदर रोग, पथरी व कुष्ठ आदि में लाभदायक। अग्निदीपक है। मात्रा 1 से 2 गोली जल या रास्नादि काढ़े के साथ।
सिंहनाथ गूगल : वातरक्त, आमवात, संधिवात, गुल्म शूल, उदर रोग, पथरी व कुष्ठ आदि में लाभदायक, अग्निदीपक है। मात्रा 1 से 2 गोली जल या रास्नादि काढ़े के साथ।
त्रियोदांश गूगल : गृध्रसी आदि भयंकर वात रोगों में लाभकारी। मात्रा 1 से 2 गोली सुबह-शाम।
त्रिफला गूगल : भगंदर, गुल्म सूजन और बवासीर आदि में अत्यंत लाभकारी। मात्रा 1 से 2 गोली सुबह-शाम।

Tuesday 23 December 2014

इससे यौन दुर्बलता दूर होती है

यौन शक्ति बढ़ाने के अचूक घरेलू उपाय-
तुलसी : 15 ग्राम तुलसी के बीज और 30 ग्राम सफेद मुसली लेकर चूर्ण बनाएं, फिर उसमें 60 ग्राम मिश्री पीसकर मिला दें और शीशी में भरकर रख दें। 5 ग्राम की मात्रा में यह चूर्ण सुबह-शाम गाय के दूध के साथ सेवन करें इससे यौन दुर्बलता दूर होती है।
लहसुन : 200 ग्राम लहसुन पीसकर उसमें 60 मिली शहद मिलाकर एक साफ-सुथरी शीशी में भरकर ढक्कन लगाएं और किसी भी अनाज में 31 दिन के लिए रख दें। 31 दिनों के बाद 10 ग्राम की मात्रा में 40 दिनों तक इसको लें। इससे यौन शक्ति बढ़ती है।
जायफल : एक ग्राम जायफल का चूर्ण प्रातः ताजे जल के साथ सेवन करने से कुछ दिनों में ही यौन दुर्बलता दूर होती है।
दालचीनी : दो ग्राम दालचीनी का चूर्ण सुबह-शाम दूध के साथ सेवन करने से वीर्य बढ़ता है और यौन दुर्बलता दूर होती है।
खजूर : शीतकाल में सुबह दो-तीन खजूर को घी में भूनकर नियमित खाएं, ऊपर से इलायची- शक्कर डालकर उबला हुआ दूध पीजिए। यह उत्तम यौन शक्तिवर्धक है।
तुलसी : 15 ग्राम तुलसी के बीज और 30 ग्राम सफेद मुसली लेकर चूर्ण बनाएं, फिर उसमें 60 ग्राम मिश्री पीसकर मिला दें और शीशी में भरकर रख दें। 5 ग्राम की मात्रा में यह चूर्ण सुबह-शाम गाय के दूध के साथ सेवन करें इससे यौन दुर्बलता दूर होती है।

Sunday 21 December 2014

हमारी नन्दनंदन सो यारी

हमारी नन्दनंदन सो यारी
ऐसो यार ना कोई जग में, ढुंढी दुनिया सारी
वृन्दावन में धेनु चरावत, कांधे कांवर कारी
ग्वाल बाल संग नाचत गावत, नख गोवर्धन धारी
गोपियन के संग रास रचावत, मुरली अधर धर प्यारी
यशोदा नंदन पायो सखा अब, छुटे अब ना यारी

गोविन्दं गोकुलानन्दं गोपालं गोपिवल्लभम्

       हरिनाममालास्तोत्रम् 
गोविन्दं गोकुलानन्दं गोपालं गोपिवल्लभम् । 
गोवर्घनोद्धं धीरं तं वन्दे गोमतिप्रियम् ॥ 

नारायणं निराकारं नरवीरं नरोत्तमम् । 
नृसिंहं नागनाथं च तं वन्दे नरकान्तकम् ॥ 

पीताम्बरं पद्मनाभं पद्माक्षं पुरुषोत्तमम् । 
पवित्रं परमानन्दं तं वन्दे परमेश्वरम् ॥ 

राघवं रामचन्दं च रावणारिं रमापतिम् । 
राजीवलोचनं रामं तं वन्दे रघुनन्दम् ॥ 

वामनं विश्वरूपं च वासुदेवं च विठ्ठलम् । 
विश्वेश्वरं विभुं व्यासं तं वन्दे वेदवल्लभम् ॥ 

दामोदरं दिव्यसिंहं दयालुं दीननायकम् । 
दैत्यारिं देवदेवेशं तं वन्दे देवकीसुतम् ॥ 

मुरारिं माधवं मत्स्यं मुकुन्दं मुष्टिमर्दनम् । 
मुञ्जकेशं महाबाहुं तं वन्दे मधुसूदनम् ॥ 

केशवं कमलाकान्तं कामेशं कौस्तुभप्रियम् । 
कौमोदकीधरं कृष्णं तं वन्दे कौरवान्तकम् ॥ 

भूधरं भुवनान्दं भूतेशं भूतनायकम् । 
भावनैकं भुजङ्गेशं तं वन्दे भवनाशनम् ॥ 

जनार्दनं जगन्नाथं जगज्जाड्यविनाशकम् । 
जमदग्निं परज्ज्योतिस्तं वन्दे जलशायिनम् ॥ 

चतुर्भुज चिदानन्दं मल्लचाणूरमर्दनम् । 
चराचरगुरुं देवं तं वन्दे चक्रपाणिनम् ॥ 

श्रियःकरं श्रियोनाथं श्रीधरं श्रीवरप्रदं । 
श्रीवत्सलधरं सौम्यं तं वन्दे श्रीसुरेश्वरम् ॥ 

योगीश्वरं यज्ञपतिं यशोदानन्ददायकम् । 
यमुनाजलकल्लोलं तं वन्दे यदुनायकम् ॥ 

सालग्रामशिलशुद्धं शंखचक्रोपशिभितम् । 
सुरासुरैः सदासेव्यं तं वन्दे साधुवल्लभम् ॥ 

त्रिविक्रमं तपोमूर्तिं त्रिविधाघौघनाशनम् । 
त्रिस्थलं तीर्थराजेन्द्रं तं वन्दे तुलसीप्रियम् ॥ 

अनन्तमादिपुरुषमच्युतं च वरप्रदम् । 
आनन्दं च सदानन्दं तं वन्दे चाघनाशनम् ॥ 

लीलया धृतभूभारं लोकसत्त्वैकवन्दितम् । 
लोकेश्वरं च श्रीकान्तं तं वन्दे लक्ष्मणप्रियम् ॥ 

हरिं च हरिणाक्षं च हरिनाथं हरप्रियं । 
हलायुधसहायं च तं वन्दे हनुमत्पतिम् ॥ 

हरिनामकृतमाला प्रवित्र पापनाशिनी । 
बलिराजेन्द्रेण चोक्ता कण्ठे धार्या प्रयत्नतः ॥ 

The Silence of the world you can find anything इस साधना से आप दुनिया में कुछ भी पा सकते हैं

Ganapati be sustainable in the picture lamp and means to bless you call them on the energy coming from the environment and the relationship has become your mind and subconscious | seem to be such and the same internal chemical changes external physical changes seem to be, because you are allowed to change the nature of the waves of the cycle, the action is intense | command icon dev cycle, you seem to be happy, so all the Tue Tue according to their properties sounds | your wildest desires seem to be complete because there is so much power in your mental waves Going on target him agitated and he seems to have on your side |
Rose shape of the Ganapati became permanent try to keep it up for long lasting | Some days it is possible to try | then rotate your mental strength and mind try sentiment, or sometimes the hands never lift the hand, sometimes they try to rotate | concentration, dedication and integrity will also be possible |, their moving with your surroundings affect your mental desires think | it's high position of Silence | this is possible when the situation or expressions of ecstasy on the sink in front of your face to be Ganapati | there is no limit to the power of the Silence | the Silence anything you can find in the world | trikaal sightedness capabilities |

Only 5 minutes to the start of practice, because there is too much emphasis on the eyes | constantly looking lamp burning in the eyes, or excessive water came so close your eyes for a few seconds but keep attention focused on Ganapati | the eyes try to see them in the open flame of the lamp | mounting a minute visit per week and 15 minutes to finally | no more | this whole process is normally 3 months | three months every recent philosophy / interview should be [are] in the three months to assume you do not succeed, then you are not very good and the divine energy before work or philosophy or your liberation is difficult | huge deficit in | you are very serious suffer from negativity | then you may well be possible only by master | disciples of our success in this process is only two to three days, some are months | Must have experience at all, change everybody is going in | to see you, and focus on the written practice caution and warning are on track, we are confident that will change your life, you will be interviewed by the divine power, even if you do any of Silence even if you are not a seeker, and serious efforts to prove that you will become a seeker of a special power | to get the power to use it so that several of your family, friends, people can benefit , can while away their sorrow when your good is itself |
Special Information
        Anyone can do this practice, but it's tantric meditation | original Tantric practice, but it's a little far-fetched and is Gurugmy be carefully | being realized in practice the power of Shiva family and gentle, they either no loss, but the ultimate ontological and their practice of having the highest positive power of positive communication increases when


गणपति के चित्र का दीपक में स्थायी होना और आशीर्वाद देने का मतलब आप द्वारा उनकी ऊर्जा को वातावरण से बुलाने पर वह आ रही है और उसका सम्बन्ध आपके मष्तिष्क और अवचेतन से बन गया है |आपमें इसके साथ ही आतंरिक रासायनिक परिवर्तन भी होने लगते हैं और वाह्य भौतिक परिवर्तन भी होने लगते हैं ,क्योकि आपके आज्ञा चक्र की तरंगों की प्रकृति बदल जाती है ,उसकी क्रिया तीब्र हो जाती है |आज्ञा चक्र के ईष्ट देव आप पर प्रसन्न होने लगते हैं ,अतः सब और उनके गुणों के अनुसार मंगल ही मंगल होने लगता है |आपकी सोची इच्छाएं पूर्ण होने लगती हैं क्योकि आपकी मानसिक तरंगों में इतनी शक्ति आ जाती है की वह लक्ष्य पर पहुचकर उसे आंदोलित और आपके पक्ष में करने लगती हैं |
जब गणपति की आकृति रोज स्थायी होने लगे तो उसे अधिकतम देर तक स्थायी रखने का प्रयास करें |कुछ दिनों के प्रयास में यह संभव हो सकता है |फिर उन्हें आप अपने मानसिक बल और मन के भावों से घुमाने का प्रयास करें ,अथवा कभी यह हाथ कभी वह हाथ उठायें ,कभी उन्हें घुमाने का प्रयास करें |एकाग्रता, लगन और निष्ठां से यह भी संभव हो जाएगा |,उनके घुमते ही आपके आसपास का माहौल भी आपकी मानसिक ईच्छाओं के साथ प्रभावित होने लगता है |यह साधना की उच्च स्थिति है |यह स्थिति आने पर समाधि की भी स्थिति संभव है अथवा भाव में डूबने पर साक्षात गणपति आपके सामने आकर खड़े हो सकते हैं |इस प्रकार इस साधना की शक्ति की कोई सीमा नहीं है |इस साधना से आप दुनिया में कुछ भी पा सकते हैं |त्रिकाल दर्शिता की क्षमता भी |

इस साधना की शुरुआत केवल ५ मिनट से करें ,क्योकि आँखों पर बहुत जोर पड़ता है |लगातार दीपक देखते हुए जब आँखों में जलन हो या अत्यधिक पानी आये तो कुछ सेकण्ड के लिए आँखें बंद कर लें किन्तु ध्यान गणपति पर ही एकाग्र रखें |फिर आँखें खोलकर दीपक की लौ में उन्हें देखने का प्रयास करें |इसे प्रति सप्ताह एक मिनट बढ़ते जाएँ और अंततः १५ मिनट तक जाए |इससे अधिक नहीं |यह पूरी प्रक्रिया ३ महीने की सामान्य रूप से है |तीन महीने में हर हाल में दर्शन/साक्षात्कार हो जाने चाहिए [हो जाते हैं ],यदि तीन महीने में आप सफल नहीं होते हैं तो मान लीजिये की आपके पूर्व कर्म बहुत अच्छे नहीं रहे और आपको ईश्वरीय ऊर्जा या दर्शन या आपकी मुक्ति मुश्किल है |आप में भारी कमियां हैं |आप बहुत ही गंभीर नकारात्मकता से ग्रस्त हैं |फिर तो आपका कल्याण केवल गुरु के हाथों ही संभव हो सकता है |हमारे कुछ शिष्यों को इस प्रक्रिया में केवल दो तीन दिनों में भी सफलता मिली है ,कुछ को महीनो लगे हैं |पर अनुभव सबको अवश्य हुआ है ,परिवर्तन सबके अन्दर आता ही है |आप इसे करके देखें ,और नीचे लिखी सावधानी और चेतावनी पर ध्यान देते हुए साधना मार्ग पर अग्रसर हों ,हमें पूरा विश्वास है आपका जीवन बदल जाएगा ,आपको ईश्वरीय ऊर्जा का साक्षात्कार होगा ,भले आपने कभी कोई साधना न की हो ,भले आप साधक न हों ,पर इससे आप साधक बन जायेंगे और गंभीर प्रयास से सिद्ध भी एक विशेष शक्ति के |इस शक्ति के प्राप्त होने पर इसके अनेकानेक प्रयोग हैं जिससे आप अपने परिवार का ,मित्रों का ,लोगों का भला कर सकते हैं ,उनके दुःख दूर कर सकते हैं जबकि आपका भला तो खुद ब खुद होता है |
विशेष जानकारी 

       यह साधना कोई भी कर सकता है ,किन्तु यह तांत्रिक साधना ही है |मूल तांत्रिक पद्धति क्लिष्ट और गुरुगम्य होती है किन्तु इसे कोई भी थोड़ी सावधानी से कर सकता है | साधना में साधित की जा रही शक्ति शिव परिवार की और सौम्य हैं ,इनसे किसी प्रकार की हानि नहीं होती ,किन्तु परम सात्विक और उच्चतम सकारात्मक शक्ति होने से इनकी साधना से जब सकारात्मकता का संचार बढ़ता है 

Saturday 20 December 2014

Mr. Shiv Chalisa श्री शिव चालीसा

Mr. Shiv Chalisa

Ganesha Girija Suvan, Tue original Susan.
Perished Ayodyadas you boon Dehu Abbey.

Jai Din Dyala Girija husband. Pratipala Sntn always assume.
Nike Soht care moon. Helix cactus forest.

Consider the principal organ shed Gang. Mundmal tan put ashes.
Clothing Skins Sohe Bagmber. Snake see, Mohe Muni.

Hva of Matu pet starling. Unfathomable part balm Soht image.
Trident to heavy Soht image. Always assume the depletion Strun.

How Tha Nandi Soha Ganesh. Sea as central lotus.
Black and Gnrau Karthik. Cow Khi not caste or image.

Devan Jbhin should call. Then the suffering Lord Niwara.
Nuisance to massive star. Devan all Tumhin Juhari ml.

Quick Sdann Ptayu you. Lvnimesh Girayu the Great Marie.
You Snhara demon Jalandhar. Snsara known suyash yours.

Tripurasur Sun struck war. Please Sbhin saved absorbed.
Bhagirath Tphin be overwhelming. Purari Tasu Purb pledge.

Danin mahn even Kou Nai you. Sdahin assume servant praise.
Veda name actually sang glory. Ineffable eternal could do no distinction.

Uddi revealed blaze in churning. Jre Surasur Vihala Bhaye.
Tha curry Kinh promotes compassion. Nilakantha asks the name.

Ramachandra when Kinha worship. Lank win Deenha catastrophically.
Sahas stripe lotus are in. Kinh Tbhin Purari examination.

Joey Rakeu a lotus Lord. Kamal Nayan Chn slept worship.
Lord Shankar saw hard devotion. Select the desired Bhaye happy.

Jai Jai Jai indestructible endless. Gtwasi assume all pleased.
Mohi Satava wicked gross ever. There Mohi Bramt Ava no rest.

Trahi Trahi I call Nath. That he on occasion relieve Mohi.
Hit Lieutenant Strun trident. Relieve the crisis on Mohi.

Matu father brother everyone. Puct in crisis do no no.
The owner is around you. Income Harahu now overwhelming crisis.

Date Sdahin money to the poor. Check it Pahin no fruit.
Ashuti Kehi method you Krun. Now missed our Kshmhu Nath.

Be Shankar destruction of the crisis. Tue corrosion obstacle.
Yeti sage Yogi Lgavan attention. Narada Shard Nwavan Sheesh.

Namo Namo Namo Shivaya Glory. Sur Brhmadik cross pie.
Brought to mind this text. Thats way Shambhu promotes cross.

Hrinia who possess any. Lost sacred text to sleep.
A son will be inferior. Indeed Shiva Prasad Hoi Tehi.

The priest then take Thrayodashi. Home Krave carefully.
Thrayodashi should always be obsessive. There are tan Klesha shelves.

Sun lamp offering oblation. Shankar front Sunave text.
Nsave born sin. Pave in Antwas Sibpur.

You say around Ayodhya. Jani gross Harahu our sorrow.

. Doha.

Nitt by name morning, the text Chalisa Krun.
I wish you, please Jagdish full.
Hemant Cti Mgsr season, know Chaust era.
Ashuti Shivhi Lent, complete Keane welfare.
. Hi Shiv Chalisa.



श्री शिव चालीसा

श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान ।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान ॥

जय गिरिजा पति दीन दयाला । सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके । कानन कुण्डल नागफनी के॥

अंग गौर शिर गंग बहाये । मुण्डमाल तन छार लगाये ॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे । छवि को देख नाग मुनि मोहे ॥

मैना मातु की ह्वै दुलारी । बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी । करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे । सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ । या छवि को कहि जात न काऊ ॥

देवन जबहीं जाय पुकारा । तब ही दुख प्रभु आप निवारा ॥
किया उपद्रव तारक भारी । देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥

तुरत षडानन आप पठायउ । लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई । सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥
किया तपहिं भागीरथ भारी । पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥

दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं । सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥
वेद नाम महिमा तव गाई । अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥

प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला । जरे सुरासुर भये विहाला ॥
कीन्ह दया तहँ करी सहाई । नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥

पूजन रामचंद्र जब कीन्हा । जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥
सहस कमल में हो रहे धारी । कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥

एक कमल प्रभु राखेउ जोई । कमल नयन पूजन चहं सोई ॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर । भये प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥

जय जय जय अनंत अविनाशी । करत कृपा सब के घटवासी ॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै ॥

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो । यहि अवसर मोहि आन उबारो ॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो । संकट से मोहि आन उबारो ॥

मातु पिता भ्राता सब कोई । संकट में पूछत नहिं कोई ॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी । आय हरहु अब संकट भारी ॥

धन निर्धन को देत सदाहीं । जो कोई जांचे वो फल पाहीं ॥
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी । क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥

शंकर हो संकट के नाशन । मंगल कारण विघ्न विनाशन ॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं । नारद शारद शीश नवावैं ॥

नमो नमो जय नमो शिवाय । सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥
जो यह पाठ करे मन लाई । ता पार होत है शम्भु सहाई ॥

ॠनिया जो कोई हो अधिकारी । पाठ करे सो पावन हारी ॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई । निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥

पण्डित त्रयोदशी को लावे । ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा । तन नहीं ताके रहे कलेशा ॥

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे । शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥
जन्म जन्म के पाप नसावे । अन्तवास शिवपुर में पावे ॥

कहे अयोध्या आस तुम्हारी । जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

॥ दोहा ॥

नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश ॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान ।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण ॥
॥ इति शिव चालीसा ॥

Shiva lingam is established by Rameshwaram Ram. रामेश्वरम का शिवलिंग श्रीराम द्वारा स्थापित शिवलिंग है।

The 14-year exile of Lord Ram and many researchers as mentioned in Hualramayan when Lord Rama was exiled to the forest when he finished his tour of Sri Lanka starting from Ayodhya. He also declined during the event, more than 200 of them have been identified sites.

Noted historian and archeologist Dr. researcher. Ram Avtar life events involving the Ram and Sita is detected more than 200 locations, where today there is a corresponding memorial site, some of the major ...

Llkevt context: if Valmiki Ramayana Rama's exile, according to researchers when they first arrived lacerated wound River, which is 20 km from Ayodhya. He then crossed the river Gomti and Prayagraj (Allahabad) Srringverpur they reached the 20-22 km, which was Nishadraj State for Home Affairs. Here on the banks of the Ganges river to cross, he said to the boatman.

'Singrur': Allahabad, 22 miles (about 35.2 km) north-west side of the 'Singrur called location in the ancient times was Prigyat Srringverpur name. The city is mentioned in the Ramayana. The town was located on the banks of the Ganges Valley. In the Mahabharata, a "shrine" is said.

'Kuri': Kuri, a place in Allahabad district, which is located on the banks of the river Ganga near Singrur. Across the cross Kuri Singrur Ganges. After crossing the Ganga Ram Singrur were landed at this place.
Is a small temple in the village, which is in the same place, according to local Loksruti, after crossing the Ganga Ram, Lakshman and Sitaji had rested some time.

2lcitrkut's Wharf: Kuri and his brother Lakshman Sriram and his wife later went to Prayag. Is now called Prayag Allahabad. It is the confluence of the Ganga and Jamuna. It is the largest pilgrimage of Hindus. Lord Ram and crossed the Yamuna near the confluence reached Chitrakoot. Here are some of the monuments, Valmiki Ashram, Mmandwy Ashram, etc. Brtkup.

3latri Rishi Ashram: Chitrakoot near Satna (MP) was the hermitage of sage atri. Maharishi atri Chitrakoot lived in Tapovan. Shriram spent some time there. Division V of the Rig Veda are watching atri sage. Anusuiya atri name of the wife of the sage, who was one of Dakshaprajapati twenty-four girls.

Atri wife Bhagirathi Ganga from Tpobl of Anusuiya Chitrakoot have entered a sacred stream and Mandakini 'was known. Brahma, Vishnu and Mahesh chastity of Ansuiya was tested, but all three of his children had made Tpobl. After the prayer of the three ladies were found to be free of the three gods hair. They had a son of the three gifts of the gods, which were mahaayogee 'Dattatreya. Atri was named the second son of the sage "Durvasa. Who does not know the sage Durvasa?

Atri around the ashram was a group of monsters. Atri, frightened by his devotees and mother lived Anusuiya demons. Lord Rama killed the demons. Valmiki Ramayana, Ayodhya is described it.

Ram Ashram began to leave in the morning then leave them to atri sage said, "O Raghava! These forests are home to fierce monsters and snakes, humans tend to suffer varied. The cause of the premature kills many ascetic had become. I want you to protect their destruction of the ascetic. "

Ram acceptable commanded by Maharishi Pranant unruly monsters and humans promise of eliminating it through the terrible snakes with Sita and Lakshmana to proceed further.

Chitrakoot Mandakini, secret Godavari, small hills, caves, etc. Ram reached out in the woods.

4. Dandakaranya: atri after staying a few days in the hermitage of Rishi Shriram forests of Madhya Pradesh and Chhattisgarh built their shelters. It Dandakaranya forest area. "Atri-Ashram 'to' Dandakaranya 'begins. Ram's grandfather and some parts of Chhattisgarh state of Banasura. The rivers, mountains, ponds and living in caves RAM is full of evidence. Ram had cut his exile here. Here they were for more than 10 years.

"Atri-Ashram 'Lord Rama arrived Satna in Madhya Pradesh, where' Ramvn are '. Madhya Pradesh and Chhattisgarh in the Narmada and Mahanadi rivers sage homes he visited 10 years. Dandakaranya region and further the feud Srbng Satna and Suticshn Muni went to homes. Saticshn later returned to the ashram. Emerald, Raipur and Jagdalpur in Bastar monuments exist. For example Mmandwy Hermitage, Hermitage monk, Ram-Lakshman temple on.

Ram the modern Jabalpur, Shahdol (Amarkantak) must have. Shahdol sarguja area to the northeast. There is a mountain called "Ramgarh is'. The pool has a waterfall falls from a height of 30 feet, it 'Sita Kund is called. The Vasishta cave. Two caves called "LAX Bongra" and "Sita Bongra are '. Bilaspur, Chhattisgarh around Shahdol is south-east.

Currently around 92 300 square kilometers in the west of the area Abujmadh hills spread over an area on the border of the Eastern Ghats in the east it covers. Dandakaranya Chhattisgarh, Orissa and Andhra Pradesh states are part of. The detail about 320 km from north to south and from east to west is about 480 kilometers.

Dandakaranya dandy was the name of the monster. Ravana in the Ramayana period was the state of the cooperative Banasura. The Indravati, Mahanadi and East Beach, Goindari (Godavari) coast and Alipore, Parnduli, Kirnduli Rajamahendri, Koyapur, Koyanar, was ruled Chindk cocoon. Current Bastar's Barsur called Banasura prosperous city founded by the foundation, which was on the banks of the river Indravati. My mother was the daughter of the mother goddess Koytr village where he (Kermay) established. Founded by Banasura glamor goddess teeth (Dntewadin have). The area is now known Dantewada. Gond tribe lives in the present and the entire Dandakaranya is now in the grip of Naxalite.

This is only part of Dandakaranya Bhadrachalam town of Andhra Pradesh. Situated on the banks of Godavari river Sita-Ram Chandra Temple is famous for the city. The Temple Mount is Bhadragiri. Shriram said that during his exile had spent a few days on the mountain Bhadragiri.

According to local belief, Ravana and Jatayu War Dandakaranya was in the sky and some part of Jatayu fell in Dandakaranya. It is believed that the only temple in the world is only to Jatayu.

Dandakaranya region gets discussed in detail in mythology. Agastya Muni origin of this area is associated with the legend. Apart from Nasik in Maharashtra where he was a hermitage.

"Convergence Hi Panchanan Vtanan Panchavati.
5. Panchavati Ram: Ram Dandakaranya after the sages living in the homes of many rivers, lakes, mountains and forests in Nashik after crossing the Agastya Muni's ashram. Muni's ashram was in Nashik Panchavati area. Of their exile in Tretayaug Sriramji including Lakshman and Sita spent some time here.

At that time belongs to Panchavati forest Jnsthan or dandy. Origin of the Godavari Trynmbkeshhwar Nashik Panchavati or about 20 miles (about 32 km). Currently in Panchavati Nashik, Maharashtra, India, the Godavari River is famous religious shrine.

Agastya Muni made in Sri Agnishala presented arms. On the banks of Godavari in Nasik and in Shriram Panchavati bath-meditated. Location on the banks of Godavari in Nashik Panchavati called five trees. These trees were five people, banyan, Amla, vine and fig Ashok. This is the cave of Mata Sita are five ancient tree is known by the name of Pancvt. Rama is believed that these trees had their hands bound and Laxman.

Laxman had cut right here nose Shurpanakha. Ram-Laxman did battle with weeds and corruption. It has survived Maricha slaughter memorial site. Nashik area is full of monuments, such as lake Sita, Ram Kund, etc. Tryambkeshhwar. It was made of Ram temple ruins serve as a.

Pepper in Mrigwyadeshwar was killed near Panchavati. Rama's friendship with Giddhraj Jatayu was also here. Valmiki Ramayana, the delightful Arnykand is described in the Panchavati.

Location 6lsitahrn 'Srwatirth': Shurpanakha in Nashik region, Maricha and after purchase and slaughter of corruption Ravana abducted Sita and killed the memory of Jatayu 56 km from Nashik Taked village 'Srwatirth called space is still preserved.

The death occurred at Jatayu Srwatirth name, which is present in Nashik district village Taked Igatpuri tehsil. The place was so Srwatirth, because here the dying Jatayu mother told me about the Sita. The funeral of the father and Jatayu Ramji Jatayu had a memorial service-libation. Lakshman rekha on this pilgrimage.

Arboured: arboured Bhadrachalam in Andhra Pradesh is located in Khammam district. Located about 1 hour to arboured Ramaly 'Panshala' or 'Pansala' is. This is one of the major Hindu shrines. Arboured is located on the banks of the river Godavari. Recognize that this is the place where Sitaji had been taken away. Although some believe that this place Ravana was his plane landed.

Pushpak aircraft from the site of Sita by Ravana was installed at the Sitaji left the earth. This is considered the site of the actual kidnapping. It is an old temple of Rama and Sita.

7lsita search: Srwatirth where Jatayu was killed, he was the first to discover the location of Sita. Ram-Laxman Tungabhadra and Kaveri rivers then moved into the area. Tungabhadra and Kaveri river at many sites in the areas they went in search of Sita.

8lsbri Ashram: Tungabhadra river crossing and in search of Sita, Rama and Lakshmana away. Hrisyamuk mountain after they arrived from Jatayu and torso. Sabari Ashram in the way they have to Pamba River, which is now located in Kerala.

Sabari was and he was Bilni Srmna race.

Pamba River is the third largest river in the Indian state of Kerala. The "Pampa" is also known. "Pmpa 'is the old name of the Tungabhadra river. Sravnkaur dynasty is the longest river. Hampi is situated on the banks of the river. This place is famous today for plum trees. Legendary book Ramayana mentions in Hampi was the capital of the Apes state Kishkindha.
Kerala's famous Sabarimala temple is located on the banks of this river pilgrimage.

9lhanuman Calls: Malay mountain and cross sandalwood forests while they walked towards Hrisyamuk mountain. Here he met Hanuman and Sugriva, saw Sita Ram Bali killed jewelery.

Hrisyamuk mountain apes in Valmiki Ramayan was located near the capital Kishkindha. Rama's Hanuman had met on the mountain. Ram Hanuman and Sugriva made after the offering, which became an unbreakable friendship. When the mighty Bali killing his brother Sugriva Kishkindha ran it covertly shape Hrisyamuk had stayed on the mountain.

Hrisyamuk mountain and city Kishkindha Hampi in Karnataka, is located in Bellary district. Virupaksh Hrisyamuk near Temple Mount is the path. The Tungabhadra River (Pmpa) flows in the shape of the bow. Ckratirth Tungabhadra river is considered legendary. Near the bottom of the hill is the Ram temple. The hill near the "Mtng mountain is considered. On this mountain hermitage of sage was Mtng.

L0lkodikri: Hanuman and Sugriva after meeting Sri Lanka Army and drove formed. Malay mountain, sandalwood forest, numerous rivers, streams and forest-Watikaon cross Rama and his army marched to the sea. Shriram Kodikri first collected in his army.

Tamil Nadu has a long coastline, which is about 1,000 km long. Kodikri Velankani beach is located in the south of the Bay of Bengal in the east and south is surrounded by Palk Strait.

But Rama's army to go after surveying the place that you can not cross the sea and it is not fair to place the bridge, the Rama's army marched towards Rameswaram.

Lllrameshwarm: Rameshwaram beach is a quiet beach and the shallow water is ideal for swimming and sun Beding. Rameswaram is a famous Hindu pilgrimage center. The epic Ramayana, Lord Rama worshiped Shiva Lanka was the first to climb. Shiva lingam is established by Rameshwaram Ram.

L2ldnuskodi: Shriram Valmiki after the three-day investigation discovered the place in the sea next to Rameswaram, which can easily be reached Sri Lanka. With the help of the tap and Neil decided to rebuild the place to Lanka.

Cedukrai and around Rameswaram relics still exist related to the incident.


प्रभु श्रीराम को 14 वर्ष का वनवास हुआ।रामायण में उल्लेखित और अनेक अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार जब भगवान राम को वनवास हुआ तब उन्होंने अपनी यात्रा अयोध्या से प्रारंभ करते हुए श्रीलंका में समाप्त की। इस दौरान उनके साथ जहां भी जो घटा उनमें से 200 से अधिक घटना स्थलों की पहचान की गई है।

जाने-माने इतिहासकार और पुरातत्वशास्त्री अनुसंधानकर्ता डॉ. राम अवतार ने श्रीराम और सीता के जीवन की घटनाओं से जुड़े ऐसे 200 से भी अधिक स्थानों का पता लगाया है, जहां आज भी तत्संबंधी स्मारक स्थल विद्यमान हैं, कुछ प्रमुख ...

1.केवट प्रसंग : राम को जब वनवास हुआ तो वाल्मीकि रामायण और शोधकर्ताओं के अनुसार वे सबसे पहले तमसा नदी पहुंचे, जो अयोध्या से 20 किमी दूर है। इसके बाद उन्होंने गोमती नदी पार की और प्रयागराज (इलाहाबाद) से 20-22 किलोमीटर दूर वे श्रृंगवेरपुर पहुंचे, जो निषादराज गुह का राज्य था। यहीं पर गंगा के तट पर उन्होंने केवट से गंगा पार करने को कहा था।

'सिंगरौर' : इलाहाबाद से 22 मील (लगभग 35.2 किमी) उत्तर-पश्चिम की ओर स्थित 'सिंगरौर' नामक स्थान ही प्राचीन समय में श्रृंगवेरपुर नाम से परिज्ञात था। रामायण में इस नगर का उल्लेख आता है। यह नगर गंगा घाटी के तट पर स्थित था। महाभारत में इसे 'तीर्थस्थल' कहा गया है।

'कुरई' : इलाहाबाद जिले में ही कुरई नामक एक स्थान है, जो सिंगरौर के निकट गंगा नदी के तट पर स्थित है। गंगा के उस पार सिंगरौर तो इस पार कुरई। सिंगरौर में गंगा पार करने के पश्चात श्रीराम इसी स्थान पर उतरे थे।
इस ग्राम में एक छोटा-सा मंदिर है, जो स्थानीय लोकश्रुति के अनुसार उसी स्थान पर है, जहां गंगा को पार करने के पश्चात राम, लक्ष्मण और सीताजी ने कुछ देर विश्राम किया था। 

2.चित्रकूट के घाट पर : कुरई से आगे चलकर श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सहित प्रयाग पहुंचे थे। प्रयाग को वर्तमान में इलाहाबाद कहा जाता है। यहां गंगा-जमुना का संगम स्थल है। हिन्दुओं का यह सबसे बड़ा तीर्थस्थान है। प्रभु श्रीराम ने संगम के समीप यमुना नदी को पार किया और फिर पहुंच गए चित्रकूट। यहां स्थित स्मारकों में शामिल हैं, वाल्मीकि आश्रम, मांडव्य आश्रम, भरतकूप इत्यादि।

3.अत्रि ऋषि का आश्रम : चित्रकूट के पास ही सतना (मध्यप्रदेश) स्थित अत्रि ऋषि का आश्रम था। महर्षि अत्रि चित्रकूट के तपोवन में रहा करते थे। वहां श्रीराम ने कुछ वक्त बिताया। अत्रि ऋषि ऋग्वेद के पंचम मंडल के द्रष्टा हैं। अत्रि ऋषि की पत्नी का नाम है अनुसूइया, जो दक्ष प्रजापति की चौबीस कन्याओं में से एक थी।

अत्रि पत्नी अनुसूइया के तपोबल से ही भगीरथी गंगा की एक पवित्र धारा चित्रकूट में प्रविष्ट हुई और 'मंदाकिनी' नाम से प्रसिद्ध हुई। ब्रह्मा, विष्णु व महेश ने अनसूइया के सतीत्व की परीक्षा ली थी, लेकिन तीनों को उन्होंने अपने तपोबल से बालक बना दिया था। तब तीनों देवियों की प्रार्थना के बाद ही तीनों देवता बाल रूप से मुक्त हो पाए थे। फिर तीनों देवताओं के वरदान से उन्हें एक पुत्र मिला, जो थे महायोगी 'दत्तात्रेय'। अत्रि ऋषि के दूसरे पुत्र का नाम था 'दुर्वासा'। दुर्वासा ऋषि को कौन नहीं जानता?

अत्रि के आश्रम के आस-पास राक्षसों का समूह रहता था। अत्रि, उनके भक्तगण व माता अनुसूइया उन राक्षसों से भयभीत रहते थे। भगवान श्रीराम ने उन राक्षसों का वध किया। वाल्मीकि रामायण के अयोध्या कांड में इसका वर्णन मिलता है।

प्रातःकाल जब राम आश्रम से विदा होने लगे तो अत्रि ऋषि उन्हें विदा करते हुए बोले, 'हे राघव! इन वनों में भयंकर राक्षस तथा सर्प निवास करते हैं, जो मनुष्यों को नाना प्रकार के कष्ट देते हैं। इनके कारण अनेक तपस्वियों को असमय ही काल का ग्रास बनना पड़ा है। मैं चाहता हूं, तुम इनका विनाश करके तपस्वियों की रक्षा करो।'

राम ने महर्षि की आज्ञा को शिरोधार्य कर उपद्रवी राक्षसों तथा मनुष्य का प्राणांत करने वाले भयानक सर्पों को नष्ट करने का वचन देखर सीता तथा लक्ष्मण के साथ आगे के लिए प्रस्थान किया। 

चित्रकूट की मंदाकिनी, गुप्त गोदावरी, छोटी पहाड़ियां, कंदराओं आदि से निकलकर भगवान राम पहुंच गए घने जंगलों में.

4. दंडकारण्य : अत्रि ऋषि के आश्रम में कुछ दिन रुकने के बाद श्रीराम ने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के घने जंगलों को अपना आश्रय स्थल बनाया। यह जंगल क्षेत्र था दंडकारण्य। 'अत्रि-आश्रम' से 'दंडकारण्य' आरंभ हो जाता है। छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्सों पर राम के नाना और कुछ पर बाणासुर का राज्य था। यहां के नदियों, पहाड़ों, सरोवरों एवं गुफाओं में राम के रहने के सबूतों की भरमार है। यहीं पर राम ने अपना वनवास काटा था। यहां वे लगभग 10 वर्षों से भी अधिक समय तक रहे थे।

'अत्रि-आश्रम' से भगवान राम मध्यप्रदेश के सतना पहुंचे, जहां 'रामवन' हैं। मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ क्षेत्रों में नर्मदा व महानदी नदियों के किनारे 10 वर्षों तक उन्होंने कई ऋषि आश्रमों का भ्रमण किया। दंडकारण्य क्षेत्र तथा सतना के आगे वे विराध सरभंग एवं सुतीक्ष्ण मुनि आश्रमों में गए। बाद में सतीक्ष्ण आश्रम वापस आए। पन्ना, रायपुर, बस्तर और जगदलपुर में कई स्मारक विद्यमान हैं। उदाहरणत: मांडव्य आश्रम, श्रृंगी आश्रम, राम-लक्ष्मण मंदिर आदि।

राम वहां से आधुनिक जबलपुर, शहडोल (अमरकंटक) गए होंगे। शहडोल से पूर्वोत्तर की ओर सरगुजा क्षेत्र है। यहां एक पर्वत का नाम 'रामगढ़' है। 30 फीट की ऊंचाई से एक झरना जिस कुंड में गिरता है, उसे 'सीता कुंड' कहा जाता है। यहां वशिष्ठ गुफा है। दो गुफाओं के नाम 'लक्ष्मण बोंगरा' और 'सीता बोंगरा' हैं। शहडोल से दक्षिण-पूर्व की ओर बिलासपुर के आसपास छत्तीसगढ़ है।

वर्तमान में करीब 92,300 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले इस इलाके के पश्चिम में अबूझमाड़ पहाड़ियां तथा पूर्व में इसकी सीमा पर पूर्वी घाट शामिल हैं। दंडकारण्य में छत्तीसगढ़, ओडिशा एवं आंध्रप्रदेश राज्यों के हिस्से शामिल हैं। इसका विस्तार उत्तर से दक्षिण तक करीब 320 किमी तथा पूर्व से पश्चिम तक लगभग 480 किलोमीटर है।

दंडक राक्षस के कारण इसका नाम दंडकारण्य पड़ा। यहां रामायण काल में रावण के सहयोगी बाणासुर का राज्य था। उसका इन्द्रावती, महानदी और पूर्व समुद्र तट, गोइंदारी (गोदावरी) तट तक तथा अलीपुर, पारंदुली, किरंदुली, राजमहेन्द्री, कोयापुर, कोयानार, छिन्दक कोया तक राज्य था। वर्तमान बस्तर की 'बारसूर' नामक समृद्ध नगर की नींव बाणासुर ने डाली, जो इन्द्रावती नदी के तट पर था। यहीं पर उसने ग्राम देवी कोयतर मां की बेटी माता माय (खेरमाय) की स्थापना की। बाणासुर द्वारा स्थापित देवी दांत तोना (दंतेवाड़िन) है। यह क्षेत्र आजकल दंतेवाड़ा के नाम से जाना जाता है। यहां वर्तमान में गोंड जाति निवास करती है तथा समूचा दंडकारण्य अब नक्सलवाद की चपेट में है।

इसी दंडकारण्य का ही हिस्सा है आंध्रप्रदेश का एक शहर भद्राचलम। गोदावरी नदी के तट पर बसा यह शहर सीता-रामचंद्र मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर भद्रगिरि पर्वत पर है। कहा जाता है कि श्रीराम ने अपने वनवास के दौरान कुछ दिन इस भद्रगिरि पर्वत पर ही बिताए थे।

स्थानीय मान्यता के मुताबिक दंडकारण्य के आकाश में ही रावण और जटायु का युद्ध हुआ था और जटायु के कुछ अंग दंडकारण्य में आ गिरे थे। ऐसा माना जाता है कि दुनियाभर में सिर्फ यहीं पर जटायु का एकमात्र मंदिर है।

दंडकारण्य क्षे‍त्र की चर्चा पुराणों में विस्तार से मिलती है। इस क्षेत्र की उत्पत्ति कथा महर्षि अगस्त्य मुनि से जुड़ी हुई है। यहीं पर उनका महाराष्ट्र के नासिक के अलावा एक आश्रम था।

'पंचानां वटानां समाहार इति पंचवटी'।
5. पंचवटी में राम : दण्डकारण्य में मुनियों के आश्रमों में रहने के बाद श्रीराम कई नदियों, तालाबों, पर्वतों और वनों को पार करने के पश्चात नासिक में अगस्त्य मुनि के आश्रम गए। मुनि का आश्रम नासिक के पंचवटी क्षेत्र में था। त्रेतायुग में लक्ष्मण व सीता सहित श्रीरामजी ने वनवास का कुछ समय यहां बिताया।

उस काल में पंचवटी जनस्थान या दंडक वन के अंतर्गत आता था। पंचवटी या नासिक से गोदावरी का उद्गम स्थान त्र्यंम्बकेश्वर लगभग 20 मील (लगभग 32 किमी) दूर है। वर्तमान में पंचवटी भारत के महाराष्ट्र के नासिक में गोदावरी नदी के किनारे स्थित विख्यात धार्मिक तीर्थस्थान है।

अगस्त्य मुनि ने श्रीराम को अग्निशाला में बनाए गए शस्त्र भेंट किए। नासिक में श्रीराम पंचवटी में रहे और गोदावरी के तट पर स्नान-ध्यान किया। नासिक में गोदावरी के तट पर पांच वृक्षों का स्थान पंचवटी कहा जाता है। ये पांच वृक्ष थे- पीपल, बरगद, आंवला, बेल तथा अशोक वट। यहीं पर सीता माता की गुफा के पास पांच प्राचीन वृक्ष हैं जिन्हें पंचवट के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि इन वृक्षों को राम-सीमा और लक्ष्मण ने अपने हाथों से लगाया था।

यहीं पर लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक काटी थी। राम-लक्ष्मण ने खर व दूषण के साथ युद्ध किया था। यहां पर मारीच वध स्थल का स्मारक भी अस्तित्व में है। नासिक क्षेत्र स्मारकों से भरा पड़ा है, जैसे कि सीता सरोवर, राम कुंड, त्र्यम्बकेश्वर आदि। यहां श्रीराम का बनाया हुआ एक मंदिर खंडहर रूप में विद्यमान है।

मरीच का वध पंचवटी के निकट ही मृगव्याधेश्वर में हुआ था। गिद्धराज जटायु से श्रीराम की मैत्री भी यहीं हुई थी। वाल्मीकि रामायण, अरण्यकांड में पंचवटी का मनोहर वर्णन मिलता है।

6.सीताहरण का स्थान 'सर्वतीर्थ' : नासिक क्षेत्र में शूर्पणखा, मारीच और खर व दूषण के वध के बाद ही रावण ने सीता का हरण किया और जटायु का भी वध किया जिसकी स्मृति नासिक से 56 किमी दूर ताकेड गांव में 'सर्वतीर्थ' नामक स्थान पर आज भी संरक्षित है।

जटायु की मृत्यु सर्वतीर्थ नाम के स्थान पर हुई, जो नासिक जिले के इगतपुरी तहसील के ताकेड गांव में मौजूद है। इस स्थान को सर्वतीर्थ इसलिए कहा गया, क्योंकि यहीं पर मरणासन्न जटायु ने सीता माता के बारे में बताया। रामजी ने यहां जटायु का अंतिम संस्कार करके पिता और जटायु का श्राद्ध-तर्पण किया था। इसी तीर्थ पर लक्ष्मण रेखा थी।

पर्णशाला : पर्णशाला आंध्रप्रदेश में खम्माम जिले के भद्राचलम में स्थित है। रामालय से लगभग 1 घंटे की दूरी पर स्थित पर्णशाला को 'पनशाला' या 'पनसाला' भी कहते हैं। हिन्दुओं के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से यह एक है। पर्णशाला गोदावरी नदी के तट पर स्थित है। मान्यता है कि यही वह स्थान है, जहां से सीताजी का हरण हुआ था। हालांकि कुछ मानते हैं कि इस स्थान पर रावण ने अपना विमान उतारा था।

इस स्थल से ही रावण ने सीता को पुष्पक विमान में बिठाया था यानी सीताजी ने धरती यहां छोड़ी थी। इसी से वास्तविक हरण का स्थल यह माना जाता है। यहां पर राम-सीता का प्राचीन मंदिर है।

7.सीता की खोज : सर्वतीर्थ जहां जटायु का वध हुआ था, वह स्थान सीता की खोज का प्रथम स्थान था। उसके बाद श्रीराम-लक्ष्मण तुंगभद्रा तथा कावेरी नदियों के क्षेत्र में पहुंच गए। तुंगभद्रा एवं कावेरी नदी क्षेत्रों के अनेक स्थलों पर वे सीता की खोज में गए।

8.शबरी का आश्रम : तुंगभद्रा और कावेरी नदी को पार करते हुए राम और लक्ष्‍मण चले सीता की खोज में। जटायु और कबंध से मिलने के पश्‍चात वे ऋष्यमूक पर्वत पहुंचे। रास्ते में वे पम्पा नदी के पास शबरी आश्रम भी गए, जो आजकल केरल में स्थित है। 

शबरी जाति से भीलनी थीं और उनका नाम था श्रमणा।

पम्पा नदी भारत के केरल राज्य की तीसरी सबसे बड़ी नदी है। इसे 'पम्बा' नाम से भी जाना जाता है। 'पम्पा' तुंगभद्रा नदी का पुराना नाम है। श्रावणकौर रजवाड़े की सबसे लंबी नदी है। इसी नदी के किनारे पर हम्पी बसा हुआ है। यह स्थान बेर के वृक्षों के लिए आज भी प्रसिद्ध है। पौराणिक ग्रंथ 'रामायण' में भी हम्पी का उल्लेख वानर राज्य किष्किंधा की राजधानी के तौर पर किया गया है। 
केरल का प्रसिद्ध 'सबरिमलय मंदिर' तीर्थ इसी नदी के तट पर स्थित है।

9.हनुमान से भेंट : मलय पर्वत और चंदन वनों को पार करते हुए वे ऋष्यमूक पर्वत की ओर बढ़े। यहां उन्होंने हनुमान और सुग्रीव से भेंट की, सीता के आभूषणों को देखा और श्रीराम ने बाली का वध किया।

ऋष्यमूक पर्वत वाल्मीकि रामायण में वर्णित वानरों की राजधानी किष्किंधा के निकट स्थित था। इसी पर्वत पर श्रीराम की हनुमान से भेंट हुई थी। बाद में हनुमान ने राम और सुग्रीव की भेंट करवाई, जो एक अटूट मित्रता बन गई। जब महाबली बाली अपने भाई सुग्रीव को मारकर किष्किंधा से भागा तो वह ऋष्यमूक पर्वत पर ही आकर छिपकर रहने लगा था। 

ऋष्यमूक पर्वत तथा किष्किंधा नगर कर्नाटक के हम्पी, जिला बेल्लारी में स्थित है। विरुपाक्ष मंदिर के पास से ऋष्यमूक पर्वत तक के लिए मार्ग जाता है। यहां तुंगभद्रा नदी (पम्पा) धनुष के आकार में बहती है। तुंगभद्रा नदी में पौराणिक चक्रतीर्थ माना गया है। पास ही पहाड़ी के नीचे श्रीराम मंदिर है। पास की पहाड़ी को 'मतंग पर्वत' माना जाता है। इसी पर्वत पर मतंग ऋषि का आश्रम था। 

10.कोडीकरई : हनुमान और सुग्रीव से मिलने के बाद श्रीराम ने अपनी सेना का गठन किया और लंका की ओर चल पड़े। मलय पर्वत, चंदन वन, अनेक नदियों, झरनों तथा वन-वाटिकाओं को पार करके राम और उनकी सेना ने समुद्र की ओर प्रस्थान किया। श्रीराम ने पहले अपनी सेना को कोडीकरई में एकत्रित किया।

तमिलनाडु की एक लंबी तटरेखा है, जो लगभग 1,000 किमी तक विस्‍तारित है। कोडीकरई समुद्र तट वेलांकनी के दक्षिण में स्थित है, जो पूर्व में बंगाल की खाड़ी और दक्षिण में पाल्‍क स्‍ट्रेट से घिरा हुआ है।

लेकिन राम की सेना ने उस स्थान के सर्वेक्षण के बाद जाना कि यहां से समुद्र को पार नहीं किया जा सकता और यह स्थान पुल बनाने के लिए उचित भी नहीं है, तब श्रीराम की सेना ने रामेश्वरम की ओर कूच किया।

11.रामेश्‍वरम : रामेश्‍वरम समुद्र तट एक शांत समुद्र तट है और यहां का छिछला पानी तैरने और सन बेदिंग के लिए आदर्श है। रामेश्‍वरम प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ केंद्र है। महाकाव्‍य रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करने के पहले यहां भगवान शिव की पूजा की थी। रामेश्वरम का शिवलिंग श्रीराम द्वारा स्थापित शिवलिंग है।

12.धनुषकोडी : वाल्मीकि के अनुसार तीन दिन की खोजबीन के बाद श्रीराम ने रामेश्वरम के आगे समुद्र में वह स्थान ढूंढ़ निकाला, जहां से आसानी से श्रीलंका पहुंचा जा सकता हो। उन्होंने नल और नील की मदद से उक्त स्थान से लंका तक का पुनर्निर्माण करने का फैसला लिया।

छेदुकराई तथा रामेश्वरम के इर्द-गिर्द इस घटना से संबंधित अनेक स्मृतिचिह्न अभी भी मौजूद हैं। नाविक रामेश्वरम में धनुषकोडी नामक स्थान से यात्रियों को रामसेतु के अवशेषों को दिखाने ले जाते हैं। 

धनुषकोडी भारत के तमिलनाडु राज्‍य के पूर्वी तट पर रामेश्वरम द्वीप के दक्षिणी किनारे पर स्थित एक गांव है। धनुषकोडी पंबन के दक्षिण-पूर्व में स्थित है। धनुषकोडी श्रीलंका में तलैमन्‍नार से करीब 18 मील पश्‍चिम में है।

इसका नाम धनुषकोडी इसलिए है कि यहां से श्रीलंका तक वानर सेना के माध्यम से नल और नील ने जो पुल (रामसेतु) बनाया था उसका आकार मार्ग धनुष के समान ही है। इन पूरे इलाकों को मन्नार समुद्री क्षेत्र के अंतर्गत माना जाता है। धनुषकोडी ही भारत और श्रीलंका के बीच एकमात्र स्‍थलीय सीमा है, जहां समुद्र नदी की गहराई जितना है जिसमें कहीं-कहीं भूमि नजर आती है।

दरअसल, यहां एक पुल डूबा पड़ा है। 1860 में इसकी स्पष्ट पहचान हुई और इसे हटाने के कई प्रयास किए गए। अंग्रेज इसे एडम ब्रिज कहने लगे तो स्थानीय लोगों में भी यह नाम प्रचलित हो गया। अंग्रेजों ने कभी इस पुल को क्षतिग्रस्त नहीं किया लेकिन आजाद भारत में पहले रेल ट्रैक निर्माण के चक्कर में बाद में बंदरगाह बनाने के चलते इस पुल को क्षतिग्रस्त किया गया।

30 मील लंबा और सवा मील चौड़ा यह रामसेतु 5 से 30 फुट तक पानी में डूबा है। श्रीलंका सरकार इस डूबे हुए पुल (पम्बन से मन्नार) के ऊपर भू-मार्ग का निर्माण कराना चाहती है जबकि भारत सरकार नौवहन हेतु उसे तोड़ना चाहती है। इस कार्य को भारत सरकार ने सेतुसमुद्रम प्रोजेक्ट का नाम दिया है। श्रीलंका के ऊर्जा मंत्री श्रीजयसूर्या ने इस डूबे हुए रामसेतु पर भारत और श्रीलंका के बीच भू-मार्ग का निर्माण कराने का प्रस्ताव रखा था।


13.'नुवारा एलिया' पर्वत श्रृंखला : वाल्मीकिय-रामायण अनुसार श्रीलंका के मध्य में रावण का महल था। 'नुवारा एलिया' पहाड़ियों से लगभग 90 किलोमीटर दूर बांद्रवेला की तरफ मध्य लंका की ऊंची पहाड़ियों के बीचोबीच सुरंगों तथा गुफाओं के भंवरजाल मिलते हैं। यहां ऐसे कई पुरातात्विक अवशेष मिलते हैं जिनकी कार्बन डेटिंग से इनका काल निकाला गया है।

Seven thousand years living Mahamanv- हजारों वर्षों से जीवित है सात महामानव-

Seven thousand years living Mahamanv-
Verse: "ashwatthama Blirwyaso Vibisnः Hanumanshc. Kripः Prshuramshc Cirnjivina Sptate. "
Namely: ashwatthama, slaughtered, diameter, Hanuman, catastrophically, Kripa and Lord Parshuram These are long lived. It will exist on this earth by the end of this era.

1. Sacrifice: Sacrificial King of Demons were far donated posts. Inderlok assault on the authority of the gods had Mahabali. And he became Trilokadipti. Open to the public on three Demons and gods to rule the sacrifice was harsh. The gods were fed his arbitrary. He was very powerful and arrogant.
Mahabali boast the dwarf incarnation of Lord Vishnu had to take to pieces. God reached before Mahabali guise of a Brahmin, because he was Prmdani. God had asked him to donate alms Earth three steps.
Mahabali jokingly said, 'Just three step? Where you want to put three feet. "Then God in his infinite hold three public measure the two step and the third step then tell me where do I now ask sacrifices you have no place left now. The third step of the Lord hath said, adding that the victim put on my head. Now that I have left.
And God answered his humble and generous nature Prasnnn be long lived and blessed him and bang his head on the head and sent him to Hades. Bali became king of the abyss.

2lprshuram: Parshuram who does not? While the former are great sage Parasurama period of RAM. His father's name is Jamadagni and Renuka mother. Renuka husband Prayana mother gave birth to five sons, whose names Vsuman respectively, Vsusen, eight, Biswavsu and Ram maintained. Ram's austerity ax he was pleased with the Lord Shiva, so his name was Parshuram.
Prashuram Lord Rama was the former, but they had lived in the time of Rama and Krishna were periods. Lord Parshuram sixth incarnation of Vishnu. The emergence of the bright fortnight in the month tritiya born cornered, so the date is called Akshaya Tritiya. The rise time of the change of the millennium and is considered Treta.
In Ckratirth pleased with the hard penance on Lord Vishnu Tejohrn after Ex-CM in the Treta-long Tpsyart Kalpant remain on earth to God. Kalki Avatar Sstrvidya to provide them even when they were told to take Gurupd.

3lhanuman: Anjani Putra Hanuman is also blessed to be immortal ajar. This are great devotees of Lord Rama in Rama period. After thousands of years, they also appear in the Mahabharata period. Bhim of Mahabharat context that calls for the removal of their tails, so Hanuman way that you have removed, but their tails removed by Bhim finds his strength.
Valmiki Ramayana Uttrkand highlights about the fortieth chapter. When Rama returned to Ayodhya Lanka won the support of the war catastrophically, helpless, as a gift of gratitude, etc. If Angad Ram Hanuman begs the story: the Yavd Crishyti Mahitle heroic. Tavchcrire Watsyunhu Pranamm not doubt ..
Namely: 'Hey Ram Veer. Were prevalent until the story on this earth, then undoubtedly lived my life in this body. "Ram on give their blessings: the 'Avmett Kpisresht Natr doubt Bhavitha :. Locke Yavdesha f te story Mamika Bhavitha Crishyti Tawatr glory: Pyvsttha Srire. Lokahi Yawatsthasyanti Sthasyanti Tawatr legend. "
Namely: O Kpisresht. It will happen. There is no doubt. Will prevail in the world as long as my story, then your reputation will remain indelible and your body will die as well. Unless the public remain, until then I will be stable stories. "

4lvibhisn: Vibhisn younger brother of Ravana. Jpakr who glorify the name of Rama in battle against his brother gave him a lifetime to be reciting the name Rama. Is the only temple in Kathun Vibhisn quota.

5. Sage Vyasa: Mahabartkar diameter was the son of Rishi Parashar and satyavati, they were dark skinned and had been born in an island between the Yamuna. Therefore, because of the dark color "black" and the birthplace of the 'dwaipayan' called. His mother later married Shantanu, which his two sons, including large and small Vichitrviry Citrangd was killed in battle died childless.
Krishna dwaipayan preferred the life of religious and non-attachment, but the mother's request, he Vichitrviry mission by two queens rule Sntanhin Dhritarashtra and Pandu, who has two sons called, which was the third vidur. Is a Smritigrnth Wyassmriti praneet by name. Wyasji Wandmay and is indebted to Indian Hindu culture.

6lashwatthama: Ashwthoma son of Guru Dronacharya. Ashwsthama Mani on the forehead and therefore immortal, but he Arjun Mani was removed. Brahmastra was cursed by Krishna Kalpant run because you will live on this earth, so ashwatthama seven Cirnjivion are counted.
It is believed that they are still alive and are lost because of their karma. Kurukshetra and occasional pilgrimages to show their claims are accepted. Fort Burhanpur in Madhya Pradesh is still prevalent phenomenon of their appearance.

7lkripachary: Srdwan Gautam Kripa has a famous son. Kripa Ashwthoma uncles and was chaplain of the Kauravas. Shantanu play victim received two baby. Krupp's name and placing them Shantanu Kripi to his upbringing. Were active on behalf of the Kauravas in the Mahabharata war Kripa.


हजारों वर्षों से जीवित है सात महामानव-
श्लोक : 'अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभीषणः। कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरंजीविनः॥'
अर्थात् : अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य और भगवान परशुराम ये सभी चिरंजीवी हैं। ये इस कल्प के अंत तक इस पृथ्वी पर विद्यमान रहेंगे।

1. बलि : असुरों के राजा बलि के दान के चर्चे दूर-दूर तक थे। देवताओं पर चढ़ाई करके राजा बलि ने इंद्रलोक पर अधिकार कर लिया था। और वह त्रिलोकाधिपति बन गया था। तीनों लोक पर राज करने वाला बलि असुरों के प्रति उदार और देवताओं के प्रति सख्त था। उसकी मनमानी से देवता तंग आ चुके थे। वह बहुत शक्तिशाली और घमंडी था।
राजा बलि के घमंड को चूर करने के लिए भगवान विष्णु को वामन अवतार लेना पड़ा। भगवान ब्राह्मण का भेष धारण कर राजा बलि के समक्ष पहुंच गए, क्योंकि वह परमदानी था। भगवान ने उसे भिक्षा में तीन पग धरती दान में मांगी ली।
राजा बलि ने हंसते हुए कहा, 'बस तीन पग? जहां आपकी इच्छा हो तीन पैर रख दो।' तब भगवान ने अपना विराट रूप धारण कर दो पग में तीनों लोक नाप दिए और फिर बलि से पूछा अब बताओं तीसरा पग कहां रखूं अब तो तुम्हारे पास कोई जगह नहीं बची। तब बलि ने हाथ जोड़कर कहा प्रभु तीसरा पग मेरे सिर पर रख दो। अब यही बचा है मेरे पास। 
तब भगवान ने उसके वि‍नम्र उत्तर और दानी स्वभाव से प्रसंन्न होकर उसे चिरंजीवी रहने का वरदान दिया और उसके सिर पर सिर पर पैर रखकर उसे पाताल लोक भेज दिया। बलि रसातल के राजा बन गए।

2.परशुराम : परशुराम को कौन नहीं जानता? राम के काल के पूर्व महान ऋषि रहे हुए हैं परशुराम। उनके पिता का नाम जमदग्नि और माता का नाम रेणुका है। पति परायणा माता रेणुका ने पांच पुत्रों को जन्म दिया, जिनके नाम क्रमशः वसुमान, वसुषेण, वसु, विश्वावसु तथा राम रखे गए। राम की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें फरसा दिया था इसीलिए उनका नाम परशुराम हो गया।
भगवान पराशुराम राम के पूर्व हुए थे, लेकिन वे चिरंजीवी होने के कारण राम के काल में भी थे और कृष्ण के काल में भी थे। भगवान परशुराम विष्णु के छठवें अवतार हैं। इनका प्रादुर्भाव वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हुआ, इसलिए उक्त तिथि अक्षय तृतीया कहलाती है। इनका जन्म समय सतयुग और त्रेता का संधिकाल माना जाता है।
चक्रतीर्थ में किए कठिन तप से प्रसन्न हो भगवान विष्णु ने उन्हें त्रेता में रामावतार होने पर तेजोहरण के उपरान्त कल्पान्त पर्यन्त तक तपस्यारत भूलोक पर रहने का वर दिया। कल्कि अवतार होने पर उनका गुरुपद ग्रहण कर उन्हें शस्त्रविद्या प्रदान करना भी बताया गया है।

3.हनुमान : अंजनी पुत्र हनुमान को भी अजर अमर रहने का वरदान मिला हुआ है। यह राम के काल में राम भगवान के परम भक्त रहे हैं। हजारों वर्षों बाद वे महाभारत काल में भी नजर आते हैं। महाभारत में प्रसंग हैं कि भीम उनकी पूंछ को मार्ग से हटाने के लिए कहते हैं तो हनुमानजी कहते हैं कि तुम ही हटा लो, लेकिन भीम अपनी पूरी ताकत लगाकर भी उनकी पूंछ नहीं हटा पाता है।
वाल्मीकि रामायण के उत्तरकाण्ड के चालीसवें अध्याय में इस बारे में प्रकाश डाला गया है। लंका विजय कर अयोध्या लौटने पर जब श्रीराम उन्हें युद्घ में सहायता देने वाले विभीषण, सुग्रीव, अंगद आदि को कृतज्ञता स्वरूप उपहार देते हैं तो हनुमानजी श्रीराम से याचना करते हैं- यावद् रामकथा वीर चरिष्यति महीतले। तावच्छरीरे वत्स्युन्तु प्राणामम न संशय:।।
अर्थात : 'हे वीर श्रीराम। इस पृथ्वी पर जब तक रामकथा प्रचलित रहे, तब तक निस्संदेह मेरे प्राण इस शरीर में बसे रहे।' इस पर श्रीराम उन्हें आशीर्वाद देते हैं- 'एवमेतत् कपिश्रेष्ठ भविता नात्र संशय:। चरिष्यति कथा यावदेषा लोके च मामिका तावत् ते भविता कीर्ति: शरीरे प्यवस्तथा। लोकाहि यावत्स्थास्यन्ति तावत् स्थास्यन्ति में कथा।'
अर्थात् : 'हे कपिश्रेष्ठ। ऐसा ही होगा। इसमें संदेह नहीं है। संसार में मेरी कथा जब तक प्रचलित रहेगी, तब तक तुम्हारी कीर्ति अमिट रहेगी और तुम्हारे शरीर में प्राण भी रहेंगे ही। जब तक ये लोक बने रहेंगे, तब तक मेरी कथाएं भी स्थिर रहेगी।' 

4.विभिषण : रावण के छोटे भाई विभिषण। जिन्होंने राम की नाम की महिमा जपकर अपने भाई के विरु‍द्ध लड़ाई में उनका साथ दिया और जीवन भर राम नाम जपते रहें। कोटा के कैथून में विभिषण का एकमात्र मंदिर है।

5. ऋषि व्यास : महाभारतकार व्यास ऋषि पराशर एवं सत्यवती के पुत्र थे, ये सांवले रंग के थे तथा यमुना के बीच स्थित एक द्वीप में उत्पन्न हुए थे। अतएव ये सांवले रंग के कारण 'कृष्ण' तथा जन्मस्थान के कारण 'द्वैपायन' कहलाए। इनकी माता ने बाद में शान्तनु से विवाह किया, जिनसे उनके दो पुत्र हुए, जिनमें बड़ा चित्रांगद युद्ध में मारा गया और छोटा विचित्रवीर्य संतानहीन मर गया। 
कृष्ण द्वैपायन ने धार्मिक तथा वैराग्य का जीवन पसंद किया, किन्तु माता के आग्रह पर इन्होंने विचित्रवीर्य की दोनों सन्तानहीन रानियों द्वारा नियोग के नियम से दो पुत्र उत्पन्न किए जो धृतराष्ट्र तथा पाण्डु कहलाए, इनमें तीसरे विदुर भी थे। व्यासस्मृति के नाम से इनके द्वारा प्रणीत एक स्मृतिग्रन्थ भी है। भारतीय वांड्मय एवं हिन्दू-संस्कृति व्यासजी की ऋणी है।

6.अश्वत्थामा : अश्वथामा गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र हैं। अश्वस्थामा के माथे पर अमरमणि है और इसीलिए वह अमर हैं, लेकिन अर्जुन ने वह अमरमणि निकाल ली थी। ब्रह्मास्त्र चलाने के कारण कृष्ण ने उन्हें शाप दिया था कि कल्पांत तक तुम इस धरती पर जीवित रहोगे, इसीलिए अश्वत्थामा सात चिरन्जीवियों में गिने जाते हैं।
माना जाता है कि वे आज भी जीवित हैं तथा अपने कर्म के कारण भटक रहे हैं। हरियाणा के कुरुक्षेत्र एवं अन्य तीर्थों में यदा-कदा उनके दिखाई देने के दावे किए जाते रहे हैं। मध्यप्रदेश के बुरहानपुर के किले में उनके दिखाई दिए जाने की घटना भी प्रचलित है। 


7.कृपाचार्य : शरद्वान् गौतम के एक प्रसिद्ध पुत्र हुए हैं कृपाचार्य। कृपाचार्य अश्वथामा के मामा और कौरवों के कुलगुरु थे। शिकार खेलते हुए शांतनु को दो शिशु प्राप्त हुए। उन दोनों का नाम कृपी और कृप रखकर शांतनु ने उनका लालन-पालन किया। महाभारत युद्ध में कृपाचार्य कौरवों की ओर से सक्रिय थे।