Friday 30 January 2015

जबरदस्ती दोस्ती करना मेरी आदत नही

किसी को तकलीफ देना मेरी आदत नही--
बिन बुलाया मेहमान बनना मेरी आदत नही---
मैं अपने गम में रहता हूँ नबाबों की तरह---
परायी ख़ुशी के पास जाना मेरी आदत नही---
सबको हँसता ही देखना चाहता हूँ मै----
किसी को धोखे से भी रुलाना मेरी आदत नही---
बांटना चाहता हूँ तो बस प्यार और मोहब्बत----
यूँ नफरत फैलाना मेरी आदत नही----
ज़िदगी मिट जाये किसी की खातिर गम नही----
कोई बद्दुआ दे मरने की यूँ जीना मेरी आदत नही----
सबसे दोस्त की हैसियत से बोल लेता हूँ-----
किसी का दिल दुखा दूँ मेरी आदत नही----
दोस्ती होती है  दिलों के चाहने पर----
जबरदस्ती दोस्ती करना मेरी आदत नही

Thursday 29 January 2015

हरिनाममालास्तोत्रम्


        हरिनाममालास्तोत्रम् 
गोविन्दं गोकुलानन्दं गोपालं गोपिवल्लभम् । 
गोवर्घनोद्धं धीरं तं वन्दे गोमतिप्रियम् ॥ 

नारायणं निराकारं नरवीरं नरोत्तमम् । 
नृसिंहं नागनाथं च तं वन्दे नरकान्तकम् ॥ 

पीताम्बरं पद्मनाभं पद्माक्षं पुरुषोत्तमम् । 
पवित्रं परमानन्दं तं वन्दे परमेश्वरम् ॥ 

राघवं रामचन्दं च रावणारिं रमापतिम् । 
राजीवलोचनं रामं तं वन्दे रघुनन्दम् ॥ 

वामनं विश्वरूपं च वासुदेवं च विठ्ठलम् । 
विश्वेश्वरं विभुं व्यासं तं वन्दे वेदवल्लभम् ॥ 

दामोदरं दिव्यसिंहं दयालुं दीननायकम् । 
दैत्यारिं देवदेवेशं तं वन्दे देवकीसुतम् ॥ 

मुरारिं माधवं मत्स्यं मुकुन्दं मुष्टिमर्दनम् । 
मुञ्जकेशं महाबाहुं तं वन्दे मधुसूदनम् ॥ 

केशवं कमलाकान्तं कामेशं कौस्तुभप्रियम् । 
कौमोदकीधरं कृष्णं तं वन्दे कौरवान्तकम् ॥ 

भूधरं भुवनान्दं भूतेशं भूतनायकम् । 
भावनैकं भुजङ्गेशं तं वन्दे भवनाशनम् ॥ 

जनार्दनं जगन्नाथं जगज्जाड्यविनाशकम् । 
जमदग्निं परज्ज्योतिस्तं वन्दे जलशायिनम् ॥ 

चतुर्भुज चिदानन्दं मल्लचाणूरमर्दनम् । 
चराचरगुरुं देवं तं वन्दे चक्रपाणिनम् ॥ 

श्रियःकरं श्रियोनाथं श्रीधरं श्रीवरप्रदं । 
श्रीवत्सलधरं सौम्यं तं वन्दे श्रीसुरेश्वरम् ॥ 

योगीश्वरं यज्ञपतिं यशोदानन्ददायकम् । 
यमुनाजलकल्लोलं तं वन्दे यदुनायकम् ॥ 

सालग्रामशिलशुद्धं शंखचक्रोपशिभितम् । 
सुरासुरैः सदासेव्यं तं वन्दे साधुवल्लभम् ॥ 

त्रिविक्रमं तपोमूर्तिं त्रिविधाघौघनाशनम् । 
त्रिस्थलं तीर्थराजेन्द्रं तं वन्दे तुलसीप्रियम् ॥ 

अनन्तमादिपुरुषमच्युतं च वरप्रदम् । 
आनन्दं च सदानन्दं तं वन्दे चाघनाशनम् ॥ 

लीलया धृतभूभारं लोकसत्त्वैकवन्दितम् । 
लोकेश्वरं च श्रीकान्तं तं वन्दे लक्ष्मणप्रियम् ॥ 

हरिं च हरिणाक्षं च हरिनाथं हरप्रियं । 
हलायुधसहायं च तं वन्दे हनुमत्पतिम् ॥ 

हरिनामकृतमाला प्रवित्र पापनाशिनी । 
बलिराजेन्द्रेण चोक्ता कण्ठे धार्या प्रयत्नतः ॥ 

Wednesday 28 January 2015

बुद्धि नष्ट होने पर प्राणी स्वयं नष्ट हो जाता है।


1- क्रोध को जीतने में मौन सबसे अधिक सहायक है।

2- मूर्ख मनुष्य क्रोध को जोर-शोर से प्रकट करता है, 
किंतु बुद्धिमान शांति से उसे वश में करता है।

3- क्रोध करने का मतलब है, दूसरों की गलतियों कि 
सजा स्वयं को देना।

4- जब क्रोध आए तो उसके परिणाम पर विचार करो।

5- क्रोध से धनी व्यक्ति घृणा और निर्धन तिरस्कार का 
पात्र होता है।

6- क्रोध मूर्खता से प्रारम्भ और पश्चाताप पर खत्म 
होता है।

7- क्रोध के सिंहासनासीन होने पर बुद्धि वहां से खिसक 
जाती है।

8- जो मन की पीड़ा को स्पष्ट रूप में नहीं कह सकता, 
उसी को क्रोध अधिक आता है।

9- क्रोध मस्तिष्क के दीपक को बुझा देता है। अतः हमें 
सदैव शांत व स्थिरचित्त रहना चाहिए।

10- क्रोध से मूढ़ता उत्पन्न होती है, मूढ़ता से स्मृति 
भ्रांत हो जाती है, स्मृति भ्रांत हो जाने से बुद्धि का नाश 
हो जाता है और बुद्धि नष्ट होने पर प्राणी स्वयं नष्ट हो 
जाता है।

11- क्रोध यमराज है।

12- क्रोध एक प्रकार का क्षणिक पागलपन है।

13-क्रोध में की गयी बातें अक्सर अंत में उलटी 
निकलती हैं।

14- जो मनुष्य क्रोधी पर क्रोध नहीं करता और क्षमा 
करता है वह अपनी और क्रोध करने वाले की महासंकट 
से रक्षा करता है।

15- सुबह से शाम तक काम करके आदमी उतना नहीं 
थकता जितना क्रोध या चिन्ता से पल भर में थक जाता है।

16- क्रोध में हो तो बोलने से पहले दस तक गिनो, 
अगर ज़्यादा क्रोध में तो सौ तक।

17- क्रोध क्या हैं ? क्रोध भयावह हैं, क्रोध भयंकर हैं, 
क्रोध बहरा हैं, क्रोध गूंगा हैं, क्रोध विकलांग है।

18- क्रोध की फुफकार अहं पर चोट लगने से उठती है।

19- क्रोध करना पागलपन हैं, जिससे सत्संकल्पो का 
विनाश होता है।

20- क्रोध में विवेक नष्ट हो जाता है।

Tuesday 27 January 2015

साधना प्रबल हो तो प्रत्यक्ष भी होती ह

मित्रो आज मै यहाँ एक विशिष्ठ एवं सुलभ साधना दे रहा हु जिसके करने से यक्षिणी प्रसन्न होकर साधक को सारे ऐश्वर्य एवं सुख प्रदान करती है और कोई हानि नहीं पहुचती 
" भोग यक्षिणी सभी सुखो को देने वाली सात्विक"
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं नमः
विधि-इस मन्त्र के 51000जप कीजिये और सामने सफ़ेद कागज पे लाल कुमकुम से देवी जी सामान एक महिला की आकृति बना कर कीजिये जप एव केसरियां दूध और खीर का भोग लगाइयेगा और वो खीर दूध खुद ही खाना जप रात को 11:30 के बाद 12 के पहले शुरू कर दीजिये क्जः तक हो सके दो या तीन दिन में ये जाप पूर्ण हो 5 तारीख चतुर्दशी से आरम्भ ककरे कुछ सएमी में ही यक्षिणी अनूकुल होकर साधक को समस्त ऐश्वर्य प्रदान करटी है और अगर साधना प्रबल हो तो प्रत्यक्ष भी होती ह

Monday 26 January 2015

कुण्डलिनी का जागरण सरल हो जाता है

· अग्नि तत्व - शरीर में इसका निवास स्थान मणिपूर चक्र है । यह चक्र नाभि में स्थित है और स्वः लोक का प्रतिनिधि है ।
अग्नि तत्व का रंग लाल तथा गुण रूप है । इसकी आकृति त्रिकोण है । इसकी ज्ञानेन्द्रिय आँख
और कर्मेन्द्रिय पैर है । क्रोधादि विकार तथा सूजन आदि में इस तत्व की प्रधानता होती है । इस तत्व की सिद्धि से अपचनादि पेट के विकार दूर हो जाते है और कुण्डलिनी का जागरण सरल हो जाता है ।
ध्यान विधि - उपर्युक्त आसन में बैठकर -
रं बीजं शिखिनं ध्यायेत् त्रिकोणमरूणप्रभम् ।
बह्वन्नपानभोक्तृत्वमातपाग्निसहिष्णुता ।।
रं बीजवाले, त्रिकोण और अग्नि के समान लाल प्रभाववाले अग्नि का उक्त चक्र में ध्यान करें । तत्व सिद्ध होने पर अत्यन्त अन्न ग्रहण करने की शक्ति, अत्यन्त पीने की शक्ति तथा धूप और अग्नि के सहन करने की शक्ति आ जाती है ।                                                    

सिद्ध होता है ।


· वायु तत्व - यह तत्व अनाहत चक्र में स्थित है । यह चक्र हृदयप्रदेश में स्थित है और महः लोक का प्रतिनिधि है ।
वायु तत्व का रंग हरा और आकृति षट्कोण तथा गोल दोनों ही तरह की मानी गयी है । इसका
गुण स्पर्श है तथा ज्ञानेन्द्रिय त्वचा और कर्मेन्द्रिय हाथ है । वायु, दमा आदि रोग इसी तत्व के विकार से पैदा होते है ।
ध्यान विधि - उसी पूर्वोक्त आसन में स्थित होकर -
यं बीजां पवनं ध्यायेद्वर्तुलं श्यामलप्रभम् ।
आकाशगमनाद्दञ्च पक्षिवद्गमनं तथा ।।
अर्थात् यं बीजवाले, गोलाकार तथा हरी प्रभावाले वायु तत्व का उक्त चक्र में ध्यान करें । इससे आकाशगमन तथा पक्षियों की तरह उङना आदि सिद्ध होता है ।                                 

Sunday 25 January 2015

अष्टसिद्धियाँ प्राप्त होती है

·आकाश तत्व - यह तत्व विशुद्ध चक्र में स्थित है । इसका स्थान कण्ठ है । यह चक्र जनः लोक का प्रतिनिधि है । आकाश तत्व का रंग नीला और आकृति अंडे की तरह लम्ब-गोल है । कोई इसे निराकार भी मानते है । इसका गुण शब्द और ज्ञानेन्द्रिय कान तथा कर्मेन्द्रिय वाणी है ।
ध्यान विधि - उसी तरह आसनस्थ होकर -
हं बीजं गगनं ध्यायेन्निराकारं बहुप्रभम् ।
ज्ञानं त्रिकालविषयमैश्वर्यमणिमादिकम् ।।
अर्थात् हं बीज का जाप करते हुए निराकार चित्र-विचित्र रंगवाले आकाश का ध्यान करें । इससे तीनों कालों का ज्ञान, ऐश्वर्य तथा अणिमादि अष्टसिद्धियाँ प्राप्त होती है ।
इस प्रकार इन उक्त विधियों से सतत नित्यप्रति छः मासतक अभ्यास करते रहने से तत्व सिद्ध हो जाते है ।                               

Saturday 24 January 2015

यही है सच्ची गुरु-दक्षिणा|

असली गुरु दक्षिणा क्या है ?
गुरु दक्षिणा, जिसमें शिष्य गुरु का उपकार मानते हुए गुरु को स्वर्णमुद्रा, रौप्यमुद्रा (रुपया पैसा), अन्न-वस्त्र और पत्र-पुष्प अर्पित करता है|पर यह असली गुरु दक्षिणा नहीं है| ये तो सांसारिक वस्तुएं हैं जो यहीं रह जाती हैं| हालाँकि इस से शिष्य को अनेक लाभ मिलते हैं पर स्थायी लाभ कुछ नहीं मिलता|अध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य में वास्तविक गुरु-दक्षिणा कुछ और है जिसे वही समझ सकता है जिसका अध्यात्म में तनिक प्रवेश है|आपकी सूक्ष्म देह में आपके मस्तक के शीर्ष पर जो सहस्त्रार है, जहां सहस्त्र पंखुड़ियों वाला कमल पुष्प है, वह आपकी गुरु-सत्ता है| वह गुरु का स्थान है|उस सहस्त्र दल कमल पर निरंतर गुरु का ध्यान ही असली गुरु-दक्षिणा है|गुरु-चरणों में मस्तक एक बार झुक गया तो वह कभी उठना नहीं चाहिए| वह सदा झुका ही रहे| यही मस्तक यानि शीश का दान है| इससे आपके तन, मन, धन और सर्वस्व पर गुरु का अधिकार हो जाता है| तब जो कुछ भी आप करोगेउसमें गुरु आपके साथ सदैव रहते हैं| यही है गुरु चरणों में सम्पूर्ण समर्पण|तब आपके अच्छे-बुरे सब कर्म भी गुरु चरणों में अर्पित हो जाते हैं| आप पर कोई संचित कर्म अवशिष्ट नहीं रहता| तब गुरु ही आपकी आध्यात्मिक साधना के कर्ता हो जाते हैं|साधना का सार भी यही है की गुरु को कर्ता बनाओ| दृष्टा, दृश्य और दृष्टी सब कुछ आपके गुरु महाराज ही हैं| आप की उपस्थितितो वैसे ही है जैसे एक यज्ञ में यजमान की उपस्थिति| आप को तो सिर्फ समभाव में अधिष्ठित होना है|अपने गुरु को सहत्रार में सहस्त्रदल कमल पर प्रतिष्ठित कर लो| वे ही आपके कूटस्थ में आसीन होकर समस्त साधना और लोक कार्य करेगे| वे ही फिर आपको सच्चिदानंद से एकाकार कर देंगे|यही है सच्ची असली गुरु-दक्षिणा|

Friday 23 January 2015

आपको बिमारियों के विषय में बताना चाहता हूँ

आज में आपको बिमारियों के विषय में बताना चाहता हूँ जब किसी कुंडली में गुरु के साथ राहु देव बैठ जाएँ तब उस व्यकित को अस्थमा फेफड़े की बीमारी हो जाती है।और साथ ही सूर्य , शनि का सम्बन्ध भी बन रहा हो तो तपेदिक जेएसी बीमारी भी हो जाती है।
2 जब किसी की कुंडली में चंद्र केसाथ शुक्र देव भी बैठ जाएँ तो स्किन एलर्जि की परेशानी होती है। और ऐसे व्यकित की माता को भो स्किन और आँखों में परेशानी होती है।
3 सूर्य देव के साथ जब शुक्र देव बैठ जाएँ तब ऐसे जातक के शरीर में जोश की कमी आ जाती है।साथ ही शरीर के अंदर की ताकत भी नष्ट हो जाती है।
4 मंगल देव के साथ जब बुध देव एक साथ बैठ जाएँ तब खून से समबन्धित बीमारी होती है।साथ ही पेट में तेजाब बनना एसिडिटी की परेशानी और बाद में केंसर तक बन जाता है।
5 गुरु देव के साथ जब बुध देव भी बैठ जाएँ तो अस्थमा साइनस की बीमारी होती है ।और जिस घर में इये बुरा योग बन रहा हो उस घर से सम्बंधित बीमारी भी बन जाती है
6 राहु के साथ जब शुक्र देव बैठ जाएँ तो नपुनशक्ता वीर्य में कमी शरीर की हड्डियां कमजोर । गुप्तांग की बीमारी पैदा होती हैं।
7 शुक्र देव के साथ जब केतु देव हों तो व्यकित को शुगर पेशाब ,धातु गिरना की परेशानी होती है।
8 चंद्र देव के साथ जब राहु बैठ जाये तो निमोनिया और पागल पन के दौरे पड़ने लगते हैं
8 जब किसी की कुंडली में सूर्य देव मन्दे हल होए शनि या राहु से पीड़ित हों और बुध +गुरु भी एक साथ बैठ जाएँ तो पीलिया नाम को बोमारी बना देते हैं

सोचता रहा कि पुरुष भी कैसे होते हैं

मैं लेटा हुआ था, मेरी पत्नी मेरा सिर सहला रही थी।
मैं धीरे-धीरे सो गया। जागा तो वो गले पर विक्स लगा रही थी।

मेरी आंख खुली तो उसने पूछा,कुछ आराम मिल रहा है?
मैंने हां में सिर हिलाया। तो उसने पूछा कि खाना खाओगे?
मुझे भूख लगी थी, मैंने कहा, "हां।"

उसने फटाफट रोटी, सब्जी, दाल, चटनी, सलाद मेरे सामने परोस दिए, और आधा लेटे- लेटे मेरे मुंह में कौर डालती रही।
मैने चुपचाप खाना खाया, और लेट गया।पत्नी ने मुझे अपने
हाथों से खिला कर खुद को खुश महसूस किया और रसोई में चली गई।
मैं चुपचाप लेटा रहा।

सोचता रहा कि पुरुष भी कैसे होते हैं?
कुछ दिन पहले मेरी पत्नी बीमार थी, मैंने कुछ नहीं किया था। और तो और एक फोन करके उसका हाल भी नहीं पूछा। उसने पूरे दिन कुछ नहीं खाया था, लेकिन मैंने उसे ब्रेड परोस कर खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा था। मैंने ये देखने की कोशिश भी नहीं की कि उसे वाकई कितना बुखार था।

मैंने ऐसा कुछ नहीं किया कि उसे लगे कि बीमारी मेंवो अकेली नहीं। 
लेकिन मुझे सिर्फ जरा सी सर्दी हुई थी, और वो मेरी मां बन गई थी।

मैं सोचता रहा कि क्या सचमुच महिलाओं को भगवान एक अलग दिल देते हैं?
महिलाओं में जो करुणा और ममता होती है
वो पुरुषों में नहीं होती क्या?

सोचता रहा, जिस दिन मेरी पत्नी को बुखार था,
उस दोपहर जब उसे भूख लगी होगी और वो बिस्तर से उठ न पाई होगी,तो उसने भी चाहा होगा कि काश उसका पति उसके पास होता?

मैं चाहे जो सोचूं, लेकिन मुझे लगता है कि हर पुरुष को एक जनम में औरत बन कर ये समझने की कोशिश करनी ही चाहिए कि सचमुच कितना मुश्किल होता है, औरत को औरत ,,होना।

मां होना, बहन होना, पत्नी होना ,, 

ईश्वर कहीं छोटी उम्र के हैं

एक नन्हा बालक ईश्वर से मिलना चाहता था। वह जानता था कि उसकी यह यात्रा लंबी होगी। इस कारण उसने अपने बैग में चिप्स के पैकेट और पानी की बोतलें रखीं और यात्रा पर निकल पड़ा। वह अपने घर से कुछ ही दूर पहुंचा होगा कि उसकी नजर एक बुजुर्ग सज्जन पर पड़ी, जो पार्क में कबूतरों के एक झुंड को देख रहे थे। वह
बालक भी उनके पास जाकर बैठ गया।
कुछ देर बाद उसने पानी की बोतल
निकालने के लिए अपना बैग खोला। उसे
लगा कि वह बुजुर्ग सज्जन भी भूखे हैं, लिहाजा उसने उन्हें कुछ चिप्स दिए। उन्होंने चिप्स लेते हुए बालक की तरफ मुस्कराकर देखा। बालक को बुजुर्ग की मुस्कराहट बेहद भली लगी। वह उसके दीदार एक बार फिर करना चाहता था, सो उसने उन्हें पानी की बोतल भी पेश की। बुजुर्ग सज्जन ने पानी लेते हुए फिर मुस्कराकर उसकी तरफ देखा। बालक यह देखकर बेहद खुश हुआ। इसके बाद पूरी दोपहर वे साथ-साथ बैठे रहे। बालक उन्हें समय-समय पर पानी और चिप्स देता रहता। बदले में उसे उनकी भोली मुस्कराहट मिलती रही। अब तक शाम होने को आई थी। बालक को भी थकान लगने लगी थी। उसने
सोचा कि अब घर चलना चाहिए। वह उठा और घर की ओर चलने लगा। कुछ कदम चलने के बाद वह ठिठका और पलटकर दौड़ते हुए वृद्ध के पास आया। उसने वृद्ध को अपनी बांहों में भरा।
बदले में वृद्ध शख्स ने होंठों पर और भी बड़ी मुस्कराहट लाते हुए उसका आभार प्रकट किया।

कुछ देर बाद वह बालक अपने घर पर था। दरवाजा उसकी मां ने खोला और उसके होंठों पर खेलती मुस्कराहट देख पूछ बैठीं, 'आज तुमने ऐसा क्या किया, जो तुम इतने खुश हो?' बालक ने जवाब दिया, 'आज मैंने ईश्वर के साथ लंच किया।' इसके पहले कि मां कुछ और पूछती वह फिर बोला, 'तुम्हें मालूम है मां? उनके जैसी मुस्कराहट मैंने आज तक नहीं देखी।' उधर, वह बुजुर्ग
सज्जन भी वापस अपने घर पहुंचे, जहां दरवाजा उनके बेटे ने खोला।

बेटा अपने पिता के चेहरे पर शांति और संतुष्टि के भाव देख पूछ बैठा, 'आज
आपने ऐसा क्या किया है, जो आप इतने खुश लग रहे हैं।'

इस पर उन्होंने जवाब दिया, 'मैंने पार्क में ईश्वर के साथ चिप्स खाए।' 
इससे पहले की बेटा कुछ और कहता, वह आगे बोले, 'तुम्हें मालूम है? मेरी अपेक्षा के अनुरूप ईश्वर कहीं छोटी उम्र के हैं।'......

Tuesday 20 January 2015

हमेशा जवान दिखते रहने की चाहत रखने वाले लोगों के लिए

गर्म पानी के फायदे
अगर आप स्किन प्रॉब्लम्स से परेशान हैं या ग्लोइंग स्किन के लिए तरह-तरह के कॉस्मेटिक्स यूज करके थक चूके हैं तो रोजाना एक गिलास गर्म पानी पीना शुरू कर दें। आपकी स्किन प्रॉब्लम फ्री हो जाएगी व ग्लो करने लगेगी।
लड़कियों को पीरियड्स के दौरान अगर पेट दर्द हो तो ऐसे में एक गिलास गुनगुना पानी पीने से राहत मिलती है। दरअसल इस दौरान होने वाले पैन में मसल्स में जो खिंचाव होता है उसे गर्म पानी रिलैक्स कर देता है।
गर्म पानी पीने से शरीर के विषैले तत्व बाहर हो जाते हैं। सुबह खाली पेट व रात्रि को खाने के बाद पानी पीने से पाचन संबंधी दिक्कते खत्म हो जाती है व कब्ज और गैस जैसी समस्याएं परेशान नहीं करती हैं।
भूख बढ़ाने में भी एक गिलास गर्म पानी बहुत उपयोगी है। एक गिलास गर्म पानी में एक नींबू का रस और काली मिर्च व नमक डालकर पीएं। इससे पेट का भारीपन कुछ ही समय में दूर हो जाएगा।
खाली पेट गर्म पानी पीने से मूत्र से संबंधित रोग दूर हो जाते हैं। दिल की जलन कम हो जाती है। वात से उत्पन्न रोगों में गर्म पानी अमृत समान फायदेमंद हैं।
गर्म पानी के नियमित सेवन से ब्लड सर्कुलेशन भी तेज होता है। दरअसल गर्म पानी पीने से शरीर का तापमान बढ़ता है। पसीने के माध्यम से शरीर की सारे जहरीले तत्व बाहर हो जाते हैं।
बुखार में प्यास लगने पर मरीज को ठंडा पानी नहीं पीना चाहिए। गर्म पानी ही पीना चाहिए बुखार में गर्म पानी अधिक लाभदायक होता है।
यदि शरीर के किसी हिस्से में गैस के कारण दर्द हो रहा हो तो एक गिलास गर्म पानी पीने से गैस बाहर हो जाती है।
अधिकांश पेट की बीमारियां दूषित जल से होती हैं यदि पानी को गर्म कर फिर ठंडा कर पीया जाए तो जो पेट की कई अधिकांश बीमारियां पनपने ही नहीं पाएंगी।
गर्म पानी पीना बहुत उपयोगी रहता है इससे शक्ति का संचार होता है। इससे कफ और सर्दी संबंधी रोग बहुत जल्दी दूर हो जाते हैं।
दमा ,हिचकी ,खराश आदि रोगों में और तले भुने पदार्थों के सेवन के बाद गर्म पानी पीना बहुत लाभदायक होता है।
♍सुबह खाली पेट एक गिलास गर्म पानी में एक नींबू मिलाकर पीने से शरीर को विटामिन सी मिलता है। गर्म पानी व नींबू का कॉम्बिनेशन शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करता है।साथ ही पी.एच. का स्तर भी सही बना रहता है।
रोजाना एक गिलास गर्म पानी सिर के सेल्स के लिए एक गजब के टॉनिक का काम करता है। सिर के स्केल्प को हाइड्रेट करता है जिससे स्केल्प ड्राय होने की प्रॉब्लम खत्म हो जाती है।
वजन घटाने में भी गर्म पानी बहुत मददगार होता है। खाने के एक घंटे बाद गर्म पानी पीने से मेटॉबालिम्म बढ़ता है। यदि गर्म पानी में थोड़ा नींबू व कुछ बूंदे शहद की मिला ली जाएं तो इससे बॉडी स्लिम हो जाती है।
हमेशा जवान दिखते रहने की चाहत रखने वाले लोगों के लिए गर्म पानी एक बेहतरीन औषधि का काम करता है।

*भगवान् को स्मरण कैसे करें?
*ऐसे करो, जैसे प्यास से व्याकुल मनुष्य जल का स्मरण करता है |
* ऐसे करो, जैसे भूख से सताया हुआ मनुष्य भोजन का स्मरण करता है |
*ऐसे करो, जैसे घर भूला हुआ मनुष्य घर का स्मरण करता है |
* ऐसे करो, जैसे थका हुआ मनुष्य विश्रामका स्मरण करता है |
* ऐसे करो, जैसे भय से कातर मनुष्य शरण देने वाले का स्मरण करता है |
* ऐसे करो, जैसे डूबता हुआ मनुष्य जीवन रक्षा का स्मरण करता है |
* ऐसे करो, जैसे दम घुटने पर मनुष्य वायु का स्मरण करता है |
* ऐसे करो, जैसे परीक्षार्थी परीक्षा के विषय का स्मरण करता है |

Monday 19 January 2015

सेक्स लाइफ और सेक्स पॉवर बढाने के तरीके

                 राशिनुसार सेक्स लाइफ और सेक्स पॉवर बढाने के तरीके 
नाम और राशियाँ :-
मेष- चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले,लो, आ
वृष- ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो
मिथुन- का, की, कू,घ, ङ, छ, के, को, ह
कर्क- ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो
सिंह- मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे
कन्या- ढो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो
तुला- रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते
वृश्चिक- तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू
धनु- ये, यो, भा,भी, भू, धा, फा, ढा, भे
मकर- भो, जा, जी, खी, खू, खे, खो, गा गी, 
कुंभ- गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा
मीन- दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची
मेष:-
मेष राशि के लडकों का सेक्स के प्रति लगाव अधिकहोता है, पर लडकियों का बहुत कम। इन लोगों को सेक्स की तरफ आकर्षित करने के लिए लाल रंग का प्रयोग करें, इस राशि के लोग भोजन में साग-सब्जी,दुध व अंकुरित भोजन का सेवन करें, इससे सेक्स पावर बढती है।
वृष:-
वृष राशि के लोग स्वभाव से बहुत ही रोमांटिक होते है। लडकियों को रोमांटिक संगीत या फिल्में देखकर मजाक-मजाक में अंगों को छूने से मूड बनता है। इस राशि के लोगों को अपनी सेक्स पावर बढाने के लिए बबूल व गोंद का हलवा,तथा उडद की दाल का सेवन करना चाहिए।
मिथुन:-
इस राशि का स्वामी बुध है इसलिए इस राशि के लडकों को आकर्षण बहुत पसंद होता है। इस राशि की लडकियों को सरप्राइज बहुत पसंद होते हैं।
इनको लुभाने के लिए कमरे में अपनी शादी की रोमांटिक फोटो चिपकाकर या उस जगह पर ले जाएं जहां बहुत सी रोमांटिक यादें जुडी हों। इस राशि के
लोगों को अपनी सेक्स पावर को बढाने के लिए उडद की दाल से बनी चीजें तथा भोजन में गोंद का प्रयोग करना चाहिए।
कर्क:-
इस राशि के लोग मनचले होते हैं। इस राशि के लोगों को रोमांटिक मूड में लाने के लिए एकांत में रोमांस करना चाहिए। साथ ही सेक्सी अंगों को मसाज करना इनको बहुत भाता है। इस राशि की लडकियों का कैंडल लाईट डिनर बहुत पसंद है। सेक्स पावर को बढाने के लिए इस राशि वाले लोग छुहारे व अश्वगंध का सेवन अवश्य करें।
सिंह:-
इस राशि का स्वामी सूर्य है। इन
लोगों को दिखावा बहुत भाता है। जब तक आप सेक्सी माहौल नहीं बनाते तब तक इनका मूड नहीं बनता। लडकियों का मिजाज कुछ परिवर्तित होता है। रात को नहाकर कपडों पर हल्का परफ्यूम लगा कर अपने पार्टनर के सेक्सी अंगों की तारीफ करें तथा सेक्स करने के अंदाज की तारीफ करने से ही वे मूड में आ जाती है। भोजन में साठी के चावल,अंकुरित
दाल का प्रयोग करें।
कन्या:- इस राशि के लोगों को हर तरह के सेक्स में आनंद आता हैं। इस राशि के लडके सेक्स के दौरान छेडखानी पसंद करते हैं। लडकियों का भी सेक्स की तरफ पूरा झुकाव होता है। बस थोडा छेडने की जरूरत है। इस राशि के लोगों को सेक्स पावर बढाने के लिए गोद, बादाम व छुहारे का सेवन अपने भोजन में करना चाहिए।
तुला:-
इस राशि के लडकों का स्वभाव बडा ही रोमांटिक होता है। इस राशि के लडके किसी सरप्राइज रोमांटिक जगह पर जाना तथा सेक्सी अदाएं पसंद करते हैं। इस राशि की लडकियों का सेक्स की तरफ थोडा कम ही रूझान होता है। इन लोगों को सेक्स पावर बढाने के लिए मेथी के लड्डू व बिनौले का सेवन करना चाहिए।
वृश्चिक:-
इस राशि के लोगों को अपने सेक्स अनुभव को तरोताजा बनाने के लिए कुछ योजना बनाकर अपने साथी को अपनी ओर आकर्षित करना चाहिए। इस राशि को लडकियों को रोमांस के मूड में लाने के लिए बाथ टब को गुलाब के फूलों की पंखुडियों से भर के एक साथ नहाने का मजा लें। इस राशि के लोगों को अपनी सेक्स पावर को मेंटेन रखने के लिए श्र भोजन में खट्टा कम खाना चाहिए।
धनु:-
इस राशि के लोग धार्मिक विचारों वाले
होते हैं। इन लोगों को एकांत में रोमांस
करना पसंद होता है। जब इनकी पार्टनर
सेक्सी ड्रेस में टू पीस, स्टैप वाला गाउन
पहन कर इनके सामने आती है तो ये रोमांटिक मूड में आ जाते हैं। किसी हिल स्टेशन पर जाकर वादियों में रोमांस करना इन राशि वालों को अच्छा लगता है। इस राशि की लडकियां रोमांटिक संगीत, सेक्सी फिल्म तथा सेक्सी बातों से
आपकी तरफ आकर्षित हो सकती हैं।
मकर:-
इस राशि के लोगों को प्यार भरी बातों से
अपनी ओर आकर्षित किया जा सकता है। इस राशि के लोग सेक्स करने के दौरान बात करना पसंद नहीं करते। इस राशि की लडकियों का रोमांस में रूझान बढाने के लिए खूब घूमे- फिरें,शादी की रोमांटिक बातें करें। हनीमून की रोमांटिक यादें ताजा करायें व उस जगह पर वे एकदम आकर्षित हो जाएंगी।
कुंभ:-
इस राशि का स्वामी शनि होने पर लडकों को रात को नहा कर सेक्स करने में आनंद मिलता है। अंगों को मसाज देने से वे मूड में आते हैं। इस राशि की लडकियों का मन आकर्षित करने के लिए कपडों में हल्का परफ्यूम लगाएं, किसी पानी की जगह ले जाएं, जहां आप दोनों के अलावा और कोई न हो।
मीन:-
इस राशि के लडकों को आकर्षण बहुत भाता है। जिन्हें आप किसी फिल्मी हीरोइन की तरह अदांए दिखा कर लुभा सकती हैं। लडकियों को आंखों में आंखें डालकर देखना अच्छा लगता है। सरप्राइज गिफ्ट लेना पसंद करती हैं। थोडी जबरस्ती की शरारतें व कुछ नया करना अच्छा लगता है।

Sunday 18 January 2015

आप ध्वनि को देख सकते हैं

आप ध्वनि को सिर्फ सुन ही नहीं सकते, देख भी सकते हैं। जी हां, आप ध्वनि को देख सकते हैं। ध्वनि को देखने का, उसे महसूस करने का एक तरीका होता है, आइए जानते हैं उसके बारे में


ध्वनि का मतलब है आवाज। जब आप किसी ध्वनि का उच्चारण करते हैं तो उस ध्वनि के साथ आप जिस आकृति या रूप का इस्तेमाल करते हैं, वे दोनों आपस में कई तरीके से जुड़े होते हैं। और यही बात मंत्रों के साथ भी है। मंत्र एक ध्वनि होता है, एक पवित्र ध्वनि। और यंत्र का अर्थ है उस ध्वनि से संबंधित आकृति। जिन लोगों ने भौतिकी पढ़ी है, उन्हें यह बात बड़ी आसानी से समझ आ जाएगी। अगर आपने हाईस्कूल तक भी भौतिकी पढ़ी है तो भी आपने एक पाठ तो ध्वनि से संबंधित जरूर पढ़ा होगा। ध्वनि मापने का एक यंत्र होता है – दोलनदर्शी। अगर आप किसी दोलनदर्शी में किसी तरह की ध्वनि भेजें तो यह ध्वनि अपनी कुछ ख़ास गुणों जैसे कि आवृति, आयाम आदि के मुताबिक हर बार यह एक खास आकृति पैदा करेगा। कहने का मतलब यह है कि हर ध्वनि के साथ एक आकृति भी जुड़ी होती है। इसी तरह हर आकृति के साथ एक ध्वनि जुड़ी है। तो जब आप किसी ध्वनि को देखें – जी हां, आप ध्वनि को देख सकते हैं, सुनने के मामले में इंसान की सीमा है, वह एक खास स्तर की आवृति वाली ध्वनियों को ही सुन सकता है। यह बहुत छोटी रेंज है। ध्वनि को देखने का, उसे महसूस करने का एक तरीका होता है। बोध के इस आयाम को योग में ‘ऋतंभरा प्रज्ञा’ कहा जाता है। इसका अर्थ है कि आप ध्वनि को सिर्फ सुन ही नहीं सकते, देख भी सकते हैं। यहां ऐसी बहुत सी ध्वनियां हैं, जिन्हें आप सुन नहीं सकते, लेकिन आप देख सकते हैं, आप उसे महसूस कर सकते हैं। उदाहरण के लिए कोबरा बिल्कुल बहरा होता है, लेकिन वह हर ध्वनि को महसूस कर पाता है। क्योंकि उसके पेट का पूरा हिस्सा धरती से सटा होता है और वह हर चीज को महसूस करता रहता है।
अगर कोई ऋतंभरा प्रज्ञा की अवस्था में आ जाता है, तो उस स्थान की प्रतिध्वनि में एक तरह का पैटर्न बन जाता है और अगर आप इसे थोड़ा सा ट्यून कर लें तो वह ध्वनि बन जाएगी।

एक बात कहने में मैं थोड़ा हिचक रहा हूं। यह बड़ी समस्या है कि आध्यात्मिक रास्ते पर चल रहे लोग हर तरह की चीजों को सुनना शुरू कर देते हैं। तो जब लोग मेरे पास आकर बताते हैं कि मुझे यह सुनाई देता है, मुझे वह सुनाई देता है, तो मैं उनसे कहता हूं कि आप जाइए, आपको इलाज की जरूरत है। लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता। अगर आप एक खास तरह से ध्यान की अवस्था में आ जाएं तो अचानक ही आवृति की वह रेंज जिसे आप सुन सकते हैं, बदल जाती है और आप कुछ ऐसा सुनना शुरू कर सकते हैं, जो कोई और नहीं सुन रहा है। ऐसा संभव है। अब यह कह कर मैं एक ‘खतरनाक जोन’ में घुस गया हूं। अब अचानक ऐसे तमाम लोग पैदा हो जाएंगे, जो आज रात को कई तरह की ध्वनियों को सुनना शुरू कर देंगे। तो कल सुबह अगर कोई आपको बताए कि मैंने कुछ सुना है तो आप समझ सकते हैं कि उनकी समस्या क्या है।

तो अगर आप ध्वनि को ध्यान से देखें और उसके पैटर्न को समझें तो आप पाएंगे कि यह हमेशा ही एक खास आकृति के साथ जुड़ी है। अगर कोई ऋतंभरा प्रज्ञा की अवस्था में आ जाता है, तो उस स्थान की प्रतिध्वनि में एक तरह का पैटर्न बन जाता है और अगर आप इसे थोड़ा सा ट्यून कर लें तो वह ध्वनि बन जाएगी। आपने नाद ब्रह्म गीत सुना होगा। ‘नाद’ का अर्थ है, ध्वनि। ‘ब्रह्म’ का अर्थ है चैतन्य, जो सर्वव्याप्त है। मूल रूप से अस्तित्व में तीन ध्वनियां हैं। इन तीन ध्वनियों से, अनगिनत ध्वनियां पैदा की जा सकती हैं। ये ध्वनियां हैं: ‘अ’, ‘उ’ और ‘म’, अर्थात् अकार, उकार और मकार। अगर आप अपनी जीभ काट भी दें, तब भी आप ये तीन ध्वनियां निकाल सकते हैं। कोई भी दूसरी ध्वनि निकालने के लिए जीभ का इस्तेमाल करना होगा। जीभ इन तीनों ध्वनियों को मिश्रित करके सभी दूसरी तरह की ध्वनियां पैदा करती है। अब अगर आप इन तीन ध्वनियों का उच्चारण एक साथ करते हैं तो आप क्या पाएंगे? ‘ऊं’ किसी धर्म विशेष का प्रतीक नहीं है, हालांकि हो सकता है कि कोई धर्म इसका प्रयोग एक प्रतीक के रूप में कर रहा हो। ‘ऊं’ अस्तित्व की एक मौलिक ध्वनि है।

उनके पास भक्ति थी

सुदामा अपनी पत्नी सुशीला के कहने से अपने परम मित्र श्री कृष्ण, से मिलने द्वारिका नगरी गये, तो उनके मित्र भगवान श्री कृष्ण ने उनके आतिथ्य सत्कार के साथ-साथ उनके आत्म-सम्मान और उनके सवाभिमान का भी पूरा ध्यान रखा | जो भगवान श्री कृष्ण के अनुसार'' एक भक्त की भक्ति का सम्मान करना भगवान का परम कार्य है | तो जैसे ही सुदामा अपने मित्र श्री कृष्ण के द्वार पर पहुंचे, कृष्ण ने सुदामा को 'हे मित्र सुदामा, कहकर गले से लगा लिया था | मित्र की ये दशा देख कर' करुणासागर, ने अपने आंसुओ से ही उनके पैर धो दिए थे | सुदामा के फटे वस्त्र धोने के लिये दे दिए, और उन्हें अपने नए वस्त्र पहनाये | फिर सोने के थाल मे भोजन लाकर के कहा 'मित्र सुदामा अब आप भोजन करे, तब सुदामा ने कहा 'आप भी मेरे साथ खाना खाहिए, नहीं सुदामा मै तुम्हारे साथ नहीं खाऊंगा, ऐसा इसलिए नहीं कहा कि भागवान कृष्ण अपने गरीब मित्र सुदामा के साथ नहीं खाना चाहते थे, वो तो उनका झूठा खाना चाहते थे | सुदामा गदगद हो गये जब कृष्ण ने कहा '' मित्र सुदामा तुम खाओ हम तुम्हारा झूठा बचा हुआ खाना खायेंगे | ये कोई अथिथि सत्कार नहीं था, ये सुदामा ब्राम्हण की तपस्या का सम्मान था | सुदामा रात दिन भजन करता था ये उनकी उसी भक्ति का सम्मान था | कितना सम्मान सुदामा का किया श्री कृष्ण ने | इतना ही नहीं जब सुदामा अपने मित्र श्री कृष्ण से मिलकर वापस अपने घर जाने लगे तो सुदामा के सवाभिमान की रक्षा के लिये जो नए वस्त्र दिए थे वो भी उतरवा लिये | अगर सुदामा नए वस्त्र पहन कर चले जाते तो लोग कहते कि अपने भगवान् मित्र के पास जाकर अपनी गरीबी को बता कर अपनी तपस्या के बदले मे एश्वर्य मांग कर लाये है | सुदामा की तपस्या, सुदामा का सवाभिमान कृष्ण को बहुत प्यारा था | सुदामा गरीब नहीं थे | उनके पास भक्ति थी | बड़ी भारी भक्ति की शक्ति थी | श्री कृष्ण नाम ही उनका आश्रय था | अपने मित्र श्री कृष्ण के पास जाकर भी उनसे कुछ नहीं माँगा और ना ही श्री कृष्ण की सुदामा को उनकी भक्ति के बदले मे जाते हुए सुदामा को कुछ देने का सोचा | हाँ उनके घर पहुँचने से पहले सब कुछ श्री कृष्ण ने पहुँचा दिया था | एसी महान थी श्री कृष्ण और सुदामा की दोस्ती |

दक्षिणा को अलग कर दें तो विरले ही कथावाचक दिखेंगे


संसार में आसक्ति को राग कहते हैं और भगवान् में उसे अनुराग कहते हैं । विद्या, बुद्धि, वैभव आदि अनन्त जन्मों से हमें मिलते आये । पर जन्ममरण का चक्र न छूटा । यदि प्रेमा भक्ति अथवा आत्मज्ञान हुआ होता तो तब यह चक्र अवश्य टूटा होता ।
आसक्ति यदि राष्ट्र में हो, शास्त्र और सदाचार में हो तो ऐसा प्राणी शीघ्र ही श्रवण मनन तथा निदिध्यासन से भगवत्कृपा का अधिकारी बन जाता है । प्रभु प्रसन्न होकर उसे आत्मसाक्षात्कार करा देते हैं--
"प्रीतो देवः स्वात्मानं दर्शयति, अवंचनरसत्वात् प्रेम्णः।।"
ऐसा ही प्राणी संसार का कल्याण कर सकता है । संसार में वैराग्यवान् महापुरुष यदि न अवतरित हुए होते तो आज न शास्त्र रहते, न सदाचार । न ही भारतवर्ष की अनुपम गरिमा ।
वैदिक सनातन धर्म का पालन कैसे करना चाहिए ? जननी जन्मभूमि का कितना गौरव है-इसे हमारे शास्त्रों और पूर्वजों ने सिखाया है ।
इश्लाम,इशाई आदि धर्म का पालन नहीं अपितु प्रचार करना सिखाते हैं । इनके पुरखे तलवार तथा व्यापार को अपने अपने धर्मप्रचार का साधन बनाये । पर हमारे पूर्वज सदाचार एवं स्वाध्याय से धर्म का पालन सिखाये ।
इश्लाम आदि न कोई धर्म था, न है, और न रहेगा । टीवी चैनलों से धर्म का प्रचार नहीं होता । बल्कि लोग 
गुमराह किये जाते हैं । आज चैनलों में अपने प्रचार को ही यदि कोई धर्म का प्रचार मानने की भूल कर बैठा हो तो उसे कौन समझाये ।
जहाँ कोई आडम्बर न हो मन्दिर मस्जिद आदि न हों - ऐसे स्थलों पर विना स्वार्थ के किसी को उपदेश देने वाला ही टीवी चैनलों पर जाकर जनसमूह के मार्ग को प्रकाशित कर सकता है ।
यदि कथाओं से दक्षिणा को अलग कर दें तो विरले ही कथावाचक दिखेंगे ।
आज कथा को लोग जमाते हैं । भीड़ कैसे बढ़ेगी ? चढ़ावा अधिक किस तरह आयेगा ? - इसका जो भी उपाय है उसे जुटाने में कोई कसर नहीं छोड़ते ।
आज वक़्ता की कुशलता का मापदण्ड भीड़ है । अब भीड़ को जो अच्छा लगे कथा के नाम पर सुनाइये । एक महिला प्रवचनकर्त्री ने मंच पर कहा कि जब व्यास जी घर छोड़कर जंगल जाने लगे तो उनकी पत्नी उन्हें रोकते हुए कह रही है --
"घर में रहो बालम लूटो मजा ।"
मुझे लोगों ने कहा कि यह देखिये -कैसा प्रवचन हो रहा है !!! मैं दंग रह गया ।
अभिप्राय इतना ही है कि हमें संसार को सुधारने का ठेका पहले नहीं लेना चाहिए अपितु पहले अपने को सुधारना है । चंदा लगाकर कथा करवाने की अपेक्षा महापुरुषों के चरणों में बैठकर सत्संग करना चाहिए ।
जो ज्ञानवृद्ध हों उनके समीप प्रतिदिन कम से कम आधा घंटा बैठकर कुछ सीखना चाहिए । ऐसा सम्भव न होने पर किसी सद्ग्रन्थ का स्वाध्याय करना चाहिए जिसे सुनकर अनेक लोगों को लाभ मिल सके ।

परमात्मा की खोज 'स्व' की खोज है

परमात्मा की खोज को खयाल रखना, पराए
की खोज मत समझ लेना..
'परमात्मा' शब्द में वह जो 'पर' लगा है उससे भ्रांति में
मत पड़ जाना। परमात्मा की खोज 'पर' की खोज
नहीं है, परमात्मा की खोज 'स्व' की खोज है।
परमात्मा की खोज आत्मा की खोज है। यह खोज
आंतरिक है। यहां आंखें भीतर लौटानी हैं, आंखें
पलटानी हैं, यहां कान उलटाने हैं।
यहां सारी यात्रा अंतर्मुखी करनी है। आंख खोलकर
बहुत खोजा, अब आंख बंद करके खोजना है। बहुत सुने
बाहर के संगीत, शायद कभी थोड़ा मन को भरमाए
भी, थोड़ा मन को लुभाए भी, थोड़ा मनोरंजन
भी किए, अब मनोभंजन करना है..! अब भीतर
का संगीत सुनना है। अब अनहद नाद सुनना है। बैठा है
पूरा का पूरा परमात्मा तुम्हारे भीतर, पूरा का पूरा..!
जो जानते हैं वे यह नहीं कहते कि तुम
परमात्मा का अंश हो; जो जानते हैं वे कहते हैं, तुम पूरे
परमात्मा हो। उसके कहीं अंश होते हैं, कहीं खंड होते
हैं..?
रात पूर्णिमा का चांद निकलता है।
हजारों झीलों में, तालाबों में, सागरों में, नदियों में,
पोखरों में उसका प्रतिबिंब बनता है। सब प्रतिबिंब पूरे
चांद के प्रतिबिंब होते हैं। कुछ ऐसा थोड़े ही है
कि एक झील में बन गया चांद का प्रतिबिंब तो अब
दूसरी झील में कैसे बने..? ऐसा थोड़े ही है कि खंड-खंड
बनते हैं कि एक टुकड़ा बन गया इस सागर में, एक
टुकड़ा बन गया उस सागर में..सभी प्रतिबिंब पूरे चांद
के होते हैं।
ऐसे ही तुम पूरे परमात्मा हो क्योंकि तुम पूरे
परमात्मा के प्रतिबिंब हो। परमात्मा एक है, अनंत
उसके प्रतिबिंब हैं।

Friday 16 January 2015

योग निद्रा में किया गया संकल्प बहुत ही शक्तिशाली होता है।

किसी भी प्रकार के रोग या तनाव में योग निद्रा एक चमत्कारिक औषधि की तरह काम करती है। इसके अलावा योग निद्रा के निरंतर अभ्यास से आध्यात्मिक लाभ भी प्राप्त किया जा सकता है।

योग निद्रा का अर्थ : योग निद्रा का मतलब आध्यात्मिक नींद। यह वह नींद है, जिसमें जागते हुए सोना है। सोने व जागने के बीच की स्थिति है योग निद्रा। इसे स्वप्न और जागरण के बीच ही स्थिति मान सकते हैं। यह झपकी जैसा है या कहें कि अर्धचेतन जैसा है। देवता इसी निद्रा में सोते हैं।

समय : योग निद्रा 10 से 45 मिनट तक की जा सकती है।

सावधानी : योग निद्रा खुली जगह पर करें। योग निद्रा में सोना नहीं है और शरीर को किसी भी तरह हिलाना नहीं है। इसमें नींद नहीं निकालना क्योंकि यह एक मनोवैज्ञानिक नींद है। सोचना नहीं है बल्कि सांसों के आवागमन को महसूस करना है।

ऐसे करें योग निद्रा :
स्टेप-1 : स्वच्छ स्थान पर दरी बिछाकर उस पर एक कंबल बिछाएं। ढीले कपड़े पहनकर कंबल पर शवासन की स्थिति में लेट जाएं। जमीन पर दोनों पैर लगभग एक फुट की दूरी पर हों। हथेली कमर से छह इंच दूरी पर हो और आंखे बंद रखें।

स्टेप-2 : इसके बाद सिर से पांव तक पूरे शरीर को पूर्णत: शिथिल कर दीजिए और मन-मस्तिष्क से तनाव हटाकर निश्चिंतता से लेटे रहें। इस दौरान पूरी सांस लेना व छोड़ना जारी रखें।

स्टेप-3 : अब कल्पना करें कि आप के हाथ, पांव, पेट, गर्दन, आंखें सब शिथिल हो गए हैं। तब फिर स्वयं से मन ही मन कहें कि मैं योग निद्रा का अभ्यास करने जा रहा हूं। ऐसा तीन बार दोहराएं और गहरी सांस छोड़ना तथा लेना जारी रखें। 

स्टेप-4 : अब अपने मन को शरीर के विभिन्न अंगों पर ले जाइए और उन्हें शिथिल व तनाव रहित होने का निर्देश दें। पूरे शरीर को शांतिमय स्थिति में रखें। महसूस करें की संपूर्ण शरीर से दर्द बाहर निकल रहा है और मैं आनंदित महसूस कर रहा हूं। गहरी सांस ले।

स्टेप-5 : फिर अपने मन को दाहिने पैर के अंगूठे पर ले जाइए। पांव की सभी अंगुलियां कम से कम पांव का तलवा, एड़ी, पिंडली, घुटना, जांघ, नितंब, कमर, कंधा शिथिल होता जा रहा है।

स्टेप-6 : इसी तरह बायां पैर भी शिथिल करें। सहज सांस लें व छोड़ें। अब लेटे-लेटे पांच बार पूरी सांस लें व छोड़ें। इसमें पेट व छाती चलेगी। पेट ऊपर-नीचे होगा।

शारीरिक लाभ : योग निद्रा से रक्तचाप, मधुमेह, हृदय रोग, सिरदर्द, पेट में घाव, दमे की बीमारी, गर्दन दर्द, कमर दर्द, घुटनों, जोड़ों का दर्द, साइटिका, प्रसवकाल की पीड़ा में बहुत ही लाभ मिलता है।

मन-मस्तिष्क को लाभ : इससे मस्तिष्क से तनाव हट जाता है। यह अनिद्रा, थकान और अवसाद में बहुत ही लाभदायक सिद्ध होती है। योगनिद्रा द्वारा मनुष्य से अच्छे काम भी कराए जा सकते हैं। बुरी आदतें भी इससे छूट जाती हैं। योग निद्रा में किया गया संकल्प बहुत ही शक्तिशाली होता है। योग निद्रा आत्म सम्मोहन नहीं है।

Thursday 15 January 2015

यही पुण्य कर्म आपकी परेशानियां दूर करने में सहायक होंगे।

बहुत आसान हैं ये 9 छोटे और अचूक उपाय, जो कर सकते हैं,
आपकी हर परेशानी दूर.
तंत्र शास्त्र व ज्योतिष के अंतर्गत ऐसे कई छोटे-छोटे उपाय हैं, जिन्हें करने से थोड़े ही समय में व्यक्ति की हर परेशानी दूर हो सकती है। मगर बहुत कम लोग इन छोटे-छोटे उपायों के बारे में जानते हैं।
जो लोग जानते हैं वे ये उपाय करते नहीं और अपनी किस्मत को ही दोष देते रहते हैं। आज हम आपको कुछ ऐसे ही छोटे और अचूक उपाय बता रहे हैं, जिन्हें सच्चे मन से करने पर आपकी हर परेशानी दूर हो सकती है। ये उपाय इस प्रकार हैं-
1- प्रतिदिन शाम के समय तुलसी के पौधे पर गाय के घी का दीपक लगाएं और उनके जीवन में आ रही परेशानियों को दूर करने का निवेदन करें। ऐसा करने से आपकी समस्याएं तो दूर होंगी ही साथ ही परिवार में खुशहाली बनी रहेगी।
2- अपने घर के आस-पास कोई ऐसा तालाब, झील या नदी का चयन करें जहां बहुत सी मछलियां हों। यहां रोज जाकर आटे की गोलियां मछलियों को खिलाएं। मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने का यह बहुत ही अचूक उपाय है। नियमित रूप से यह उपाय करने से धन संबंधी समस्या जल्दी ही दूर हो सकती है।
3- भोजन के लिए बनाई जा रही रोटी में से पहली रोटी गाय को दें। धर्म ग्रंथों के अनुसार गाय में सभी देवताओं का निवास माना गया है। अगर प्रतिदिन गाय को रोटी दी जाए तो सभी देवता प्रसन्न होते हैं और आपकी समस्याएं दूर हो सकती है।
4- घर में स्थापित देवी-देवताओं को रोज फूलों से सजाना चाहिए। इस बात का ध्यान रखें कि फूल ताजे ही हो। सच्चे मन से देवी-देवताओं को फूल आदि अर्पित करने से वे प्रसन्न होते हैं व साधक की हर परेशानी दूर सकते हैं।
5- घर को साफ-स्वच्छ रखें। प्रतिदिन सुबह झाड़ू-पोछा करें। शाम के समय घर में झाड़ू-पोछा न करें। ऐसा करने से मां लक्ष्मी रूठ जाती हैं और साधक को आर्थिक हानि का सामना करना पड़ सकता है।
6- रोज सुबह जब आप उठें तो सबसे पहले दोनों हाथों की हथेलियों को कुछ क्षण देखकर चेहरे पर तीन चार बार फेरें। धर्म ग्रंथों के अनुसार हथेली के अग्र भाग में मां लक्ष्मी, मध्य भाग में मां सरस्वती व मूल भाग (मणि बंध) में भगवान विष्णु का स्थान होता है। इसलिए रोज सुबह उठते ही अपनी हथेली देखने से आपकी परेशानियों का अंत हो सकता है।
7- रोज जब भी घर से निकले तो उसके पहले अपने माता-पिता और घर के बड़े बुजुर्गों का चरण स्पर्श करें और आशीर्वाद लें। ऐसा करने से आपकी कुंडली में स्थित सभी विपरीत ग्रह आपके अनुकूल हो जाएंगे और शुभ फल प्रदान करेंगे।
8- प्रतिदिन सुबह पीपल के पेड़ पर एक लोटा जल चढ़ाएं। मान्यता है कि पीपल में भगवान विष्णु का वास होता है। रोज ये उपाय करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और शुभ फल प्रदान करते हैं।
9- अगर आप चाहते हैं कि आपकी हर परेशानी दूर हो जाए तो रोज चीटियों को शक्कर मिला हुआ आटा खिलाएं। ऐसा करने से आपके पाप कर्मों का क्षय होगा और पुण्य कर्म उदय होंगे। यही पुण्य कर्म आपकी परेशानियां दूर करने में सहायक होंगे।

:दैनिक व्यावसायिक सफ़लता और बाधा निवारण हेतु प्रयोग

             :दैनिक व्यावसायिक सफ़लता और बाधा निवारण हेतु प्रयोग

.यदि आप दैनिक कार्यों में ,रोजाना के व्यावसायिक कार्यों में अधिकतम सफलता पाना चाहते है ,कम से कम विघ्न-बाधाओं का सामना करना चाहते है ,तो निम्न प्रयोग करे ,आपके भाग्य तो नहीं बदल जायेगे ,किंतू जो मिलना है वह पूरा मिल पायेगा ऐसा विश्वास रखे ,यदि कुछ बुरा होना है तो कम से कम होगा ,किसी प्रकार की विघ्न -बाधा है तो वह दूर होगी ,किसी प्रकार का बंधन या आभिचारिक क्रिया है तो वह रुकेगी ,आप बुधवार या गणेश चतुर्थी को सूर्योदय पूर्व उठे और स्नानकर अपने ईष्ट की पूजा करे ,फिर गणेश जी की आराधना करे ,,अब एक सिन्दूरी कागज़ कम से कम १*१ फुट का ले ,उसपर स्केल की सहायता से १०८ खाने बना ले ,अब प्रत्येक खाने में ऊपर से नीचे की और १ से १०८ तक संख्याये लिखे ,,ध्यान दे सांख्ययो का क्रम न टूटे ,अर्थात किसी लाइन में यदि संख्या १२ पर समाप्त हो रही है तो उसी के नीचे १३ अंक की संख्या शुरू होकर उलटे क्रम से पुनः १ के नीचे आएगी ,फिर वहा २४ आएगा ,अब उसके नीचे २५ से आगे लिखा जाएगा ,,यदि १ लाइन में १२ खाने हो तो ९ लाइनों में १०८ खाने हो जायेगे ,,जब खाने बन जाए तो प्रत्येक खाने में लाल स्याही से " ॐ गं गणपतये नमः " लिखे ,,,अब इस कागज़ को ईश्वर मानकर विधिवत पूजन कर ले ,,धुप -आरती कर के कागज़ की तह करके रख ले ,इसे आपको सदैव अपनी जेब में रखनी है ,,जिस दिन इसका निर्माण करे उस दिन सुबह तब तक अन्न ग्रहण न करें जब तक यह बना और पूजा न कर लें ,,अब दैनिक रूप से घर से बाहर जाते समय सुबह इस कागज़ को खोलकर सामने रख लिया करे,,इसके पहले खाने पर तर्जनी उंगली रखे फिर उसे सभी खानों पर घुमाते हुए १०८ वे खाने पर ले आये ,यहाँ आप अपनी आखे बंद कर अपने ईष्ट और गणेश जी को याद करे ,और कहे हे प्रभु मेरा आज का दिन शुभ हो ,सफल हो ,में सभी अनावश्यक विवादो आदि से बचा रहू ,,इस प्रकार अपनी कामनाये व्यक्त करे,फिर अपनी तर्जनी को माथे लगा ले ,,फिर उस कागज़ को तह कर जेब में रख ले और भगवान का नाम लेकर प्रस्थान करे ,,विशवास रखे आपका दिन पहले की अपेक्षा शुभ होगा ,,,कागज पर एक बार बनाया हुआ [लिखा हुआ ]यह आपको महीनो तक काम देगा ,,किसी प्रकार कागज़ फट या खराब हो जाने पर बहते जल में विसर्जित कर ,पुनः बुधवार या गणेश चतुर्थी को इसे पहले की तरह बना सकते हैं 
इस प्रयोग के साथ भोजपत्र पर निर्मित व्यापार वृद्धि यन्त्र अथवा महालक्ष्मी सर्वतोभद्र यन्त्र अथवा श्री यन्त्र अपने प्रतिष्ठान लगाए और रोज धुप दीप से उसकी पूजा करते रहे ,,खुद बगलामुखी यन्त्र धारण करे जिससे आप जो कहे उसका प्रभाव ग्राहक या सम्बंधित व्यक्ति पर पड़े ,आपका प्रभाव बढे ,सुरक्षा के साथ बुरी नज़रों आदि से बचाव हो और निर्विघ्नता रहे ,,यदि आपको लगता है की किसी प्रकार का अभिचार या बंधन दूकान-प्रतिष्ठान या घर पर किया गया है या किया जा रहा है तो वहां भी बगलामुखी यन्त्र लगाएं ,और बगला या काली या दुर्गा सहस्त्रनाम /कवच का पाठ करके जल अभिमंत्रित कर प्रतिष्ठान में छिडके ,बाधाएं समाप्त होंगी ....

Wednesday 14 January 2015

कर्ज मुक्ति के उपाय

कर्ज मुक्ति के उपाय 

१.किसी भी महीने की कृष्ण पक्ष की 1 तिथि, शुक्ल पक्ष की 2, 3, 4, 6, 7, 8, 10, 11, 12, 13 पूर्णिमा व मंगलवार के दिन उधार दें और बुधवार को कर्ज लें।
2. चर लग्न जैसे- मेष, कर्क, तुला व मकर में कर्ज लेने पर शीघ्र उतर जाता है। लेकिन, चर लग्न में कर्जा दें नहीं। चर लग्न में पांचवें व नौवें स्थान में शुभ ग्रह व आठवें स्थान में कोई भी ग्रह नहीं हो, वरना ऋण पर ऋण चढ़ता चला जाएगा।
3. प्रतिदिन लाल मसूर की दाल का दान करें।
4. हस्त नक्षत्र रविवार की संक्रांति के वृद्धि योग में कर्ज उतारने से शीघ्र ही ऋण मुक्ति मिलती है।
5. कर्ज लेने जाते समय घर से निकलते वक्त जो स्वर चल रहा हो, उस समय वही पांव बाहर निकालें तो कार्य सिद्धि होती है, परंतु कर्ज देते समय सूर्य स्वर को शुभकारी माना है 
6. वास्तुदोष नाशक हरे रंग के गणपति मुख्य द्वार पर आगे-पीछे लगाएं।
7. वास्तु अनुसार ईशान कोण को स्वच्छ व साफ रखें।
8. हनुमानजी के चरणों में मंगलवार व शनिवार के दिन तेल-सिंदूर चढ़ाएं और माथे पर सिंदूर का तिलक लगाएं। हनुमान चालीसा या बजरंगबाण का पाठ करें।
9. ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र का शुक्ल पक्ष के बुधवार से नित्य पाठ करें।
10. बुधवार को सवा पाव मूंग उबालकर घी-शक्कर मिलाकर गाय को खिलाने से शीघ्र कर्ज से मुक्ति मिलती है। 
11. सरसों का तेल मिट्टी के दीये में भरकर, फिर मिट्टी के दीये का ढक्कन लगाकर किसी नदी या तालाब के किनारे शनिवार के दिन सूर्यास्त के समय जमीन में गाड़ देने से कर्ज मुक्त हो सकते हैं।
12. घर की चौखट पर अभिमंत्रित काले घोड़े की नाल शनिवार के दिन लगाएं।
13. श्मशान के कुएं का जल लाकर किसी पीपल के वृक्ष पर चढ़ाना चाहिए। यह कार्य नियमित रूप से 7 शनिवार को किया जाना चाहिए।
14. 5 गुलाब के फूल, 1 चांदी का पत्ता, थोडे से चावल, गुड लें। किसी सफेद कपड़े में 21 बार गायत्री मंत्र का जप करते हुए बांध कर जल में प्रवाहित कर दें। ऐसा 7 सोमवार तक करें।
15. ताम्रपत्र पर कर्जनाशक मंगल यंत्र (भौम यंत्र) अभिमंत्रित करके पूजा करें या सवा चार रत्ती का मूंगायुक्त कर्ज मुक्ति मंगल यंत्र अभिमंत्रित करके गले में धारण करें।
16. सिद्ध-कुंजिका-स्तोत्र का नित्य एकादश पाठ करें।

सारे टोटके आजमा कर थक गए हो तो इसे जरूर पढ़ें

किस्मत का ताला खोलने के लिए यह करें...
लाल किताब में बहुत ही आसान, सस्ते और सटीक उपाय बताए गए हैं, जैसे कि यदि आपको लगता है कि मेरा भाग्य मुझसे रूठा हुआ है जिसके कारण नौकरी, करियर या कारोबार में परेशानी आ रही है तो यहां प्रस्तुत है कुछ आसान उपाय...
सबसे पहले आप ताले की दुकान पर किसी भी शुक्रवार को जाएं और एक स्टील या लोहे का ताला खरीद लें। लेकिन ध्यान रखें ताला बंद होना चाहिए खुला ताला नहीं। ताला खरीदते समय उसे न दुकानदार को खोलने दें और न आप खुद खोलें। ताला सही है या नहीं यह जांचने के लिए भी न खोलें। बस बंद ताले को खरीदकर ले आएं।
उसे ताले को एक डिब्बे में रखें और शुक्रवार की रात को ही अपने सोने वाले कमरे में बिस्तर के पास रख लें। शनिवार सुबह उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर ताले को बिना खोले किसी मंदिर या देवस्थान पर रख दें। ताले को रखकर बिना कुछ बोले, बिना पलटें वापिस अपने घर आ जाए।
विश्वास और श्रद्धा रखें जैसे ही कोई उस ताले को खोलेगा आपकी किस्मत का ताला भी खुल जाएगा। यह जाना-माना प्रयोग है अपनी किस्मत चमकाने के लिए इसे अवश्य आजमाएं....


सारे टोटके आजमा कर थक गए हो तो इसे जरूर पढ़ें

सरसों के तेल में सिके गेहूं के आटे व पुराने गुड़ से तैयार सात पूए, सात मदार (आक) के पुष्प, सिंदूर, आटे से तैयार सरसों के तेल का रूई की बत्ती से जलता दीपक, पत्तल या अरंडी के पत्ते पर रखकर शनिवार की रात को किसी चौराहे पर रखें और कहें - 'हे मेरे दुर्भाग्य तुझे यहीं छोड़े जा रहा हूं कृपा करके मेरा पीछा ना करना।' सामान रखकर पीछे मुड़कर न देखें।
विवाह हो या व्यापार, परीक्षा हो या प्यार हर काम में आपका भाग्य तेजी से आपका साथ देने लगेगा।

Tuesday 13 January 2015

सौ प्रतिशत ईमानदार होना होगा..


स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी ने कहा है- " उपासना में बुद्धि की इतनी आवश्यकता नहीं होती जितनी श्रद्धा विश्वास की । उपासना में वुद्धि पंगु है जब कि श्रद्धा सर्वसमर्थ ।"

बुद्धि बहुत दूर तक नहीं चलती..वह थक कर कहीं न कहीं रुक जाती है श्रद्धा और विश्वास अघटित काम करते हैं..श्रद्धा और विश्वास के बल पर मनुष्य आपार महा विपत्ति को भी पार कर सकता है..
भक्ति उपासना में..श्रद्धा विश्वास में ईमानदार होना बहुत अवश्यक है...अक्सर हम भक्ति में विश्वास में पूर्ण रूप से ईमानदार नहीं होते...यह आत्मचिंतन का विषय है....हम संसार के प्रति ईमानदार रहते हैं...
हम माता पिता ,पति-पत्नी ,बच्चों दोस्तों मित्रों के प्रति तो ईमान दार हैं पर भक्ति उपासना भगवान के प्रति !!!
हम संसार पर अधिक विश्वास करते हैं..भगवान पर नहीं..
भक्ति में एक क्षण के लिए भी हमारा विश्वास डगमगा गया तो हमारी ईमानदारी पर प्रश्न चिन्ह है.... ? विश्वास का अर्थ पूर्ण विश्वास..पूरी ईमानदारी के साथ विश्वास...
प्रह्लाद का विश्वास देखो...पर्वत से सैनिक नीचे गिराने लगे....प्रह्लाद ने संसार को नहीं पुकारा..माँ को नहीं पुकारा ..कि मुझे बचाओ...अटल विश्वास था हरि में..
मीरां ने कोई प्रश्न नहीं किया जहर आया पी गई...पूर्ण ईमानदार थी अपनी भक्ति में..श्रद्धा और विश्वास में...
मूल मन्त्र है भक्ति का ' श्रद्धा और विश्वास ' अपनी भक्ति में ईमानदार होना ही होगा संसार के प्रति कम ईमानदारी से काम चल सकता है परन्तु गोविन्द के प्रति नहीं ...सौ प्रतिशत ईमानदार होना होगा..

Monday 12 January 2015

उनके मुख से 'राम' का शब्द निकला

प्रयाग के पास बाँदा जिले में राणापुर नामक एक ग्राम है। वहाँ आत्माराम दुबे नाम के एक प्रतिष्ठित सरयूपारीण ब्राह्मण रहते थे। उनकी धर्मपत्नी का नाम हुलसी था। संवत्‌ 1554 की श्रावण शुक्ल सप्तमी के दिन अभुक्त मूल नक्षत्र में इन्हीं भाग्यवान दम्पति के यहाँ बारह महीने तक गर्भ में रहने के पश्चात गोस्वामी तुलसीदासजी का जन्म हुआ। जन्मते समय बालक तुलसीदास रोए नहीं, किंतु उनके मुख से 'राम' का शब्द निकला। उनके मुख में बत्तीसों दाँत मौजूद थे।

उनका शारीरिक डील-डौल पाँच वर्ष के बालक का सा था। इस प्रकार के अद्भुत बालक को देखकर पिता अमंगल की शंका से भयभीत हो गए और उसके संबंध में कई प्रकार की कल्पनाएँ करने लगे।

माता हुलसी को यह देखकर बड़ी चिंता हुई। उन्होंने बालक के अनिष्ट की आशंका से दशमी की रात को नवजात शिशु को अपनी दासी के साथ उसके ससुराल भेज दिया और दूसरे दिन स्वयं इस असार-संसार से चल बसीं। दासी ने, जिसका नाम चुनिया था, बड़े प्रेम से बालक का पालन-पोषण किया। जब तुलसीदास लगभग साढ़े पाँच वर्ष के हुए, चुनिया का भी देहांत हो गया, अब तो बालक अनाथ हो गया। वह द्वार-द्वार भटकने लगा। इस पर जगज्जननी पार्वती को उस होनहार बालक पर दया आई। वे ब्राह्मणी का वेश धारण कर प्रतिदिन उसके पास जातीं और उसे अपने हाथों से भोजन करा जातीं।

इधर भगवान शंकरजी की प्रेरणा से रामशैल पर रहने वाले श्री अनंतानंदजी के प्रिय शिष्य श्री नरहर्यानंदजी (नरहरिजी) ने इस बालक को ढूँढ निकाला और उसका नाम रामबोला रखा। उसे वे अयोध्या ले गए और वहाँ संवत्‌ 1561 माघ शुक्ल पंचमी शुक्रवार को उसका यज्ञोपवीत संस्कार कराया। बिना सिखाए ही बालक रामबोला ने गायत्री-मंत्र का उच्चारण किया, जिसे देखकर सब लोग चकित हो गए। इसके बाद नरहरि स्वामी ने वैष्णवों के पाँच संस्कार करके रामबोला को राममंत्र की दीक्षा दी और अयोध्या में ही रहकर उसे विद्याध्ययन कराने लगे।

बालक रामबोला की बुद्धि बड़ी प्रखर थी। एक बार गुरुमुख से जो सुन लेते थे, उन्हें वह कण्ठस्थ हो जाता था। वहाँ से कुछ दिन बाद गुरु-शिष्य दोनों सूकर क्षेत्र (सोरों) पहुँचे। वहाँ श्री नरहरिजी ने तुलसीदासजी को रामचरित सुनाया। कुछ दिन बाद वे काशी चले आए। काशी में शेष सनातनजी के पास रहकर तुलसीदास ने पंद्रह वर्ष तक वेद-वेदांग का अध्ययन किया। इधर उनकी लोकवासना कुछ जागृत हो उठी और अपने विद्यागुरु से आज्ञा लेकर वे अपनी जन्मभूमि को लौट आए। वहाँ आकर उन्होंने देखा कि उनका परिवार नष्ट हो चुका है। उन्होंने विधिपूर्वक अपने पिता आदि का श्राद्ध किया और वहीं रहकर लोगों को भगवान राम की कथा सुनाने लगे।

संवत्‌ 1583 ज्येष्ठ शुक्ल 13 गुरुवार को भारद्वाज गोत्र की एक सुंदरी कन्या के साथ उनका विवाह हुआ और वे सुखपूर्वक अपनी नवविवाहिता वधू के साथ रहने लगे। एक बार उनकी स्त्री भाई के साथ अपने मायके चली गई। पीछे-पीछे तुलसीदासजी भी वहाँ जा पहुँचे। उनकी पत्नी ने इस पर उन्हें बहुत धिक्कारा और कहा कि मेरे इस हाड़-मांस के शरीर में जितनी तुम्हारी आसक्ति है, उससे आधी भी यदि भगवान में होती तो तुम्हारा बेड़ा पार हो गया होता। तुलसीदासजी को ये शब्द लग गए। वे एक क्षण भी नहीं रुके, तुरंत वहाँ से चल दिए। वहाँ से चलकर तुलसीदासजी प्रयाग आए। वहाँ उन्होंने गृहस्थवेश का परित्याग कर साधुवेश ग्रहण किया। फिर तीर्थाटन करते हुए काशी पहुँचे। मानसरोवर के पास उन्हें काकभुशुण्डिजी के दर्शन हुए।

काशी में तुलसीदासजी रामकथा कहने लगे। वहाँ उन्हें एक दिन एक प्रेत मिला, जिसने उन्हें हनुमानजी का पता बताया। हनुमानजी से मिलकर तुलसीदासजी ने उनसे श्री रघुनाथजी का दर्शन कराने की प्रार्थना की। हनुमानजी ने कहा- तुम्हें चित्रकूट में रघुनाथजी के दर्शन होंगे। इस पर तुलसीदासजी चित्रकूट की ओर चल पड़े। चित्रकूट पहुँचकर रामघाट पर उन्होंने अपना आसन जमाया। एक दिन वे प्रदक्षिणा करने निकले थे। मार्ग में उन्हें श्रीराम के दर्शन हुए। उन्होंने देखा कि दो बड़े ही सुंदर राजकुमार घोड़ों पर सवार होकर धनुष-बाण लिए जा रहे हैं। तुलसीदासजी उन्हें देखकर मुग्ध हो गए, परंतु उन्हें पहचान न सके। पीछे से हनुमानजी ने आकर उन्हें सारा भेद बताया, तो वे बड़ा पश्चाताप करने लगे। हनुमानजी ने उन्हें सांत्वना दी और कहा प्रातःकाल फिर दर्शन होंगे।

संवत्‌ 1607 की मौनी अमावस्या बुधवार के दिन उनके सामने भगवान श्रीराम पुनः प्रकट हुए। उन्होंने बालक रूप में तुलसीदासजी से कहा- बाबा! हमें चंदन दो। हनुमानजी ने सोचा, वे इस बार भी धोखा न खा जाएँ, इसलिए उन्होंने तोते का रूप धारण करके यह दोहा कहा-

चित्रकूट के घाट पर भइ संतन की भीर।
तुलसिदास चंदन घिसें तिलक देत रघुबीर॥

तुलसीदासजी उस अद्भुत छबि को निहारकर शरीर की सुधि भूल गए। भगवान ने अपने हाथ से चंदन लेकर अपने तथा तुलसीदासजी के मस्तक पर लगाया और अंतर्धान हो गए।
संवत्‌ 1628 में ये हनुमानजी की आज्ञा से अयोध्या की ओर चल पड़े। उन दिनों प्रयाग में माघ मेला था। वहाँ कुछ दिन वे ठहर गए। पर्व के छः दिन बाद एक वटवृक्ष के नीचे उन्हें भरद्वाज और याज्ञवल्क्य मुनि के दर्शन हुए। वहाँ उस समय वही कथा हो रही थी, जो उन्होंने सूकर क्षेत्र में अपने गुरु से सुनी थी। वहाँ से ये काशी चले आए और वहाँ प्रह्लादघाट पर एक ब्राह्मण के घर निवास किया। वहाँ उनके अंदर कवित्वशक्ति का स्फुरण हुआ और वे संस्कृत में पद्य-रचना करने लगे। परंतु दिन में वे जितने पद्य रचते, रात्रि में वे सब लुप्त हो जाते। यह घटना रोज घटती। आठवें दिन तुलसीदासजी को स्वप्न हुआ। भगवान शंकर ने उन्हें आदेश दिया कि तुम अपनी भाषा में काव्य-रचना करो। तुलसीदासजी की नींद उचट गई। वे उठकर बैठ गए। उसी समय भगवान शिव और पार्वती उनके सामने प्रकट हुए। तुलसीदासजी ने उन्हें साष्टांग प्रणाम किया। शिवजी ने कहा- 'तुम अयोध्या में जाकर रहो और हिन्दी में काव्य-रचना करो। मेरे आशीर्वाद से तुम्हारी कविता सामवेद के समान फलवती होगी।' इतना कहकर श्री गौरीशंकर अंतर्धान हो गए। तुलसीदासजी उनकी आज्ञा शिरोधार्य कर काशी से अयोध्या चले आए।

संवत्‌ 1631 का प्रारंभ हुआ। उस साल रामनवमी के दिन प्रायः वैसा ही योग था जैसा त्रेतायुग में रामजन्म के दिन था। उस दिन प्रातःकाल तुलसीदासजी ने श्रीरामचरितमानस की रचना प्रारंभ की। दो वर्ष, सात महीने, छब्बीस दिन में ग्रंथ की समाप्ति हुई। संवत्‌ 1633 के मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष में रामविवाह के दिन सातों काण्ड पूर्ण हो गए। इसके बाद भगवान की आज्ञा से तुलसीदासजी काशी चले आए। वहाँ उन्होंने भगवान विश्वनाथ और माता अन्नपूर्णा को श्रीरामचरितमानस सुनाया। रात को पुस्तक श्री विश्वनाथजी के मंदिर में रख दी गई। सबेरे जब पट खोला गया तो उस पर लिखा हुआ पाया गया- 'सत्यं शिवं सुंदरम्‌' और नीचे भगवान शंकर के हस्ताक्षर थे। उस समय उपस्थित लोगों ने 'सत्यं शिवं सुंदरम्‌' की आवाज भी सुनी।

इधर पंडितों ने जब यह बात सुनी तो उनके मन में ईर्ष्या उत्पन्न हुई। वे दल बाँधकर तुलसीदासजी की निन्दा करने लगे और उस पुस्तक को भी नष्ट कर देने का प्रयत्न करने लगे। उन्होंने पुस्तक चुराने के लिए दो चोर भेजे। चोरों ने जाकर देखा कि तुलसीदासजी की कुटी के आसपास दो वीर धनुष-बाण लिए पहरा दे रहे हैं। वे बड़े ही सुंदर, श्याम और गौर वर्ण के थे। उनके दर्शन से चोरों की बुद्धि शुद्ध हो गई। उन्होंने उसी समय से चोरी करना छोड़ दिया, और भजन में लग गए। तुलसीदासजी ने अपने लिए भगवान को कष्ट हुआ जान कुटी का सारा सामान लुटा दिया, पुस्तक अपने मित्र टोडरमल के यहाँ रख दी। इसके बाद उन्होंने एक दूसरी प्रति लिखी। उसी के आधार पर दूसरी प्रतिलिपियाँ तैयार की जाने लगीं। पुस्तक का प्रचार दिनोंदिन बढ़ने लगा।

इधर पंडितों ने और कोई उपाय न देख श्री मधुसूदन सरस्वतीजी को उस पुस्तक को देखने की प्रेरणा की। श्री मधुसूदन सरस्वतीजी ने उसे देखकर बड़ी प्रसन्नता प्रकट की और उस पर यह सम्मति लिख दी-

आनन्दकानने ह्यस्मिंजंगमस्तुलसीतरुः।
कवितामंजरी भाति रामभ्रमरभूषिता॥

'इस काशीरूपी आनन्दवन में तुलसीदास चलता-फिरता तुलसी का पौधा है। उसकी कवितारूपी मंजरी बड़ी ही सुंदर है, जिस पर श्रीरामरूपी भँवरा सदा मँडराया करता है।'

पंडितों को इस पर भी संतोष नहीं हुआ। तब पुस्तक की परीक्षा का एक उपाय और सोचा गया। भगवान विश्वनाथ के सामने सबसे ऊपर वेद, उसके नीचे शास्त्र, शास्त्रों के नीचे पुराण और सबके नीचे रामचरितमानस रख दिया गया। मंदिर बंद कर दिया गया। प्रातःकाल जब मंदिर खोला गया तो लोगों ने देखा कि श्रीरामचरितमानस वेदों के ऊपर रखा हुआ है। अब तो पंडित लोग बड़े लज्जित हुए। उन्होंने तुलसीदासजी से क्षमा माँगी और भक्ति से उनका चरणोदक लिया।

तुलसीदासजी अब असीघाट पर रहने लगे। रात को एक दिन कलियुग मूर्तरूप धारण कर उनके पास आया और उन्हें त्रास देने लगा। गोस्वामीजी ने हनुमानजी का ध्यान किया। हनुमानजी ने उन्हें विनय के पद रचने को कहा, इस पर गोस्वामीजी ने विनय-पत्रिका लिखी और भगवान के चरणों में उसे समर्पित कर दी। श्रीराम ने उस पर अपने हस्ताक्षर कर दिए और तुलसीदासजी को निर्भय कर दिया। संवत्‌ 1680 श्रावण कृष्ण तृतीया शनिवार को असीघाट पर गोस्वामीजी ने राम-राम करते हुए अपने शरीर का परित्याग कर दिया। गोस्वामी तुलसीदासजी की पावन स्मृति में श्रावण शुक्ल सप्तमी को तुलसी जयंती के रूप में बड़ी श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है। इस दिन श्रीरामचरितमानस का पाठ भी कराया जाता है।

Sunday 11 January 2015

किस तरह से करें पूजा एवं मंत्र जाप


!!किस तरह से करें पूजा एवं मंत्र जाप!!

मंत्र जाप में शुद्ध शब्दों के बोलने का विशेष ध्यान रखें, जिन अक्षरों से शब्द बनते हैं। उनके उच्चारण स्थान पांच है जो पंचतत्व से संबंधित है।

1 होठ पृथ्वी तत्व

2 जीभ जल तत्व

3 दांत अग्नि तत्व

4 तालू वायु तत्व

5 कंठ आकाश तत्व

मंत्र जाप से पंचत्तवों से बनी यह देह प्रभावित होता है। शरीर का प्रधान अंग सिर है। वैज्ञानिक शोध के अनुसार सिर में दो शक्तियां कार्य करती है। पहली विचार शक्ति व दूसरी कार्य शक्ति।

इन दोनों का मूल स्थान मस्तिष्क है। इसे मस्तुलिंग भी कहते है। मस्तुलिंग का स्थान चोटी के नीचे गोखुर के बराबर होता है।

यह गोखुर वाला मस्तिष्क का भाग जितना गर्म रहेगा, उतनी ही कर्मेन्द्रियों की शक्ति बढ़ती है।

मस्तिष्क के तालू के ऊपर का भाग ठंडक चाहता है। यह भाग जितना ठंडा होगा उतनी है ज्ञानेन्द्रिय सामर्थ्यवान होगा। तैतरीयोपनिशत् में शिखा का नाम इंद्रयोनि रखा है।

1 मानसिक जाप अधिक श्रेष्ठ होता है।

2 जाप, होम, दान, स्वाध्याय व पितृ कार्य के लिये स्वर्ण व कुशा की अंगुठी हाथ में धारण करें।

3 दूसरे के आसन पर बैठकर जाप न करें।

4 बिना आसन के जाप न करें।

5 भूमि पर बैठकर जाप करने से दुख, बांस के आसन पर जाप करने से दरिद्रता, पत्तों पर जाप करने से धन व यश का नाश व कपड़े के आसन पर बैठ जाप करने से रोग रहता है। कुशा या लाल कंबल पर जाप करने से शीघ्र मनोकामना पूर्ण होती है।

6 जाप काल में आलस्य, जंभाई, निद्रा, थूकना, छींकना, भय, वार्तालाप करना, क्रोध करना, सब मना है।

7 लोभ युक्त आसन पर बैठते ही सारा अनुष्ठान नष्ट हो जाता है।

8 जाप के बाद आसन के नीचे जल छिड़ककर जल को मस्तक पर लगाना चाहिये। वरना जप फल को इन्द्र स्वयं ले लेते हैं।

9 स्नान कर माथे पर तिलक लगाकर जाप करें।

10 जनेऊ धारण कर ही जाप करें। पितृऋण, देवऋण की मुक्ति के लिये पांच यज्ञों को किया जाता है।

11 घंटे और शंखनाद का प्रयोग अवश्य किया जाना चाहिए। वै ज्ञानिक अनुसंधानों से सिद्ध हो गया है कि शंखनाद व घंटानाद से तपैदिक के रोगी, कान का बहना व बहरेपन का इलाज होता है। मास्कों सैनिटोरियम में केवल घंटा बजाकर टीबी रोगी ठीक किये गये थे।

12 1928 में जर्मनी की राजधानी बर्लिन में शंख ध्वनि से बैक्टीरिया नामक हानिकारक, जीवाणुओं को नष्ट किया गया था। शंखनाद-से-मिरगी, मूर्छा, गर्दन तोड़ बुखार, हैजा, प्लेग व हकलापन दूर होता है।

13 पूर्व व उत्तर दिशा में ही देखकर जाप करें।

माला-

1 मोतियों की माला विद्या प्राप्ति के लिये श्रेष्ठ है।

2 रुद्राक्ष माला सर्वसिद्ध है।

3 शंख की माला धर्म व धन दायक है।

4 तुलसी की माला सर्व रोगहरता है।

5 वशीकरण के लिये मूंगे की माला उत्तम है।

6 धन प्राप्ति के लिये स्फटिक माला ठीक है।

7 जाप की माला ढककर ही जाप करें।

8 पहली अंगुली का प्रयोग न करें।

दीपक-

1 घी की जोत जलाने से परिवार में सुख समृद्धि होती है, यह स्वस्थ्यप्रद है।

2 तिल की जोत सर्व रोगहरता है।

3 अरंडी के तेल से दाम्पत्य जीवन सुखी रहता है।

बाती-

1 रूई की बाती शुभ है।

2 कमल नाल से बनाई बत्ती, पित्तरों द्वारा किये पापों का नाश करती है।

3 केले के तने की छाल के रेशे से बनी बाती पितृशाप से मुक्ति देती है। संतान योग होता है। सुख शांति होती है।

4 जटामांसी की छाल से बनी भूत-प्रेत बाधा नष्ट करती है।

5 नयी पीली साड़ी के टुकड़े से बनी बाती से माँ की कृपा व आशीर्वाद प्राप्त होती है। बीमारियां दूर होती है।

6 लाल साड़ी के टुकड़े से बनी बाती जलाने से शादी में अड़चन व रुकावटें दूर होती है। बांझपन व ऊपरी बाधा (भूत-प्रेत) दूर होते हैं।

7 सफेद कपड़े को गुलाब जल में भिगोकर सुखाकर बनी बाती जलाने से सुख समृद्धि बढ़ती है।

8 नीम का तेल, घी वा महुआ का तेल मिलाकर जलाने से कुलदेवी व कुलदेवता प्रसन्न होते हैं। घर खुशहाली होती है।

9 नारियल का तेल, घी, अरंडी का तेल, नीम का तेल 47 दिनों तक भगवती की पूजन करने से माँ का आशीर्वाद प्राप्त होता है। दांपत्य जीवन सुखी व समृद्धि-मय होता है।

जोत जलाने का समय-

1 प्रात: 3 से 5 बजे तक जोत जलान से परिवार का कल्याण व समृद्धि होत है।

2 नौकरी की इच्छा वाले, अच्छा जीवन साथी अच्छी संतान की इच्छा वाले, घर में सुख-चैन की कामना करने वाले को गौधूली बेला में जोत जलानी चाहिए।

3 एक ज्योति जलाने से लाभ होता है। दो ज्योत जलाने से परिवार में एकता बढ़ती है।

4 तीन जोत जलाने से अच्छी संतान पैदा होती है।

5 चार जोत जलाने से पशुधन व जमीन जायदाद बढ़ती है।

6 पांच जोत जलाने से धन प्राप्ति व सर्व मंगलकारी व पांच देवताओं को प्रिय होती है।

Saturday 10 January 2015

विवाह योग

विवाह योग
• सप्तम भाव का स्वामी शुभ ग्रह हो या अशुभ ग्रह यदि वह अपने भाव सप्तम में हि स्थित हो या किसी अन्य में स्थित होकर अपने भाव को देख रहा हो और सप्तम भाव पर किसी पाप ग्रह का प्रभाव या द्रष्टी नहों तो जातक का विवाह अवश्य होता हैं।
• सप्तम भाव में कोई पाप ग्रह स्थित नहीं हो और नाहीं द्रष्टी हो, तो विवाह अवश्य होता हैं।
• सप्तम भाव में सम राशि हो या सप्तमेश और शुक्र भी सम राशि में स्थित हों या सप्तमेश बली हो, तो विवाह होता हैं।
• सप्तम भाव में कोई ग्रह नहों, न किसी पाप ग्रह की द्रिष्टि हो व सप्तमेश बली होतो विवाह अवश्य होता हैं।
• यदि दूसरे, सातवें और बारहवें भाव के स्वामी केन्द्र या त्रिकोण में हों, और गुरु से द्रष्ट हो, तो विवाह अवश्य होता हैं।
• कुंडली में सप्तमेश से दूसरे, सातवें और ग्यारवे भाव में सौम्य ग्रह स्थित हो तो स्त्री सुख अवश्य मिलता हैं।
• शुक्र द्विस्वभाव राशि में होने पर विवाह अवश्य होता हैं।
विवाह बाधा योग योग
• सप्तम में बुध और शुक्र दोनो हो, तो विवाह के प्रस्ताव आते रहते हैं पर विवाह अधेड उम्र में होता हैं।
• शुक्र एवं मंगल दोनो पंचम या नवें भाव में हों, तो विवाह बाधा योग होता हैं।
• सप्तम भाव में मंगल हों उस पर शनि कि द्रष्टी हों, तो विवाह बाधा योग होता हैं।
• सप्तमेश अशुभ होकर 6,8,12 वे भाव में अस्त या नीच का हो कर स्थित हो, तो विवाह बाधा योग होता हैं।
• सप्तम भाव में शनि या गुरु स्थित हो, तो शादी देर से करवाते हैं।
• सप्तम भाव पर शनि कि द्रष्टी विवाह में विलंब करवाती हैं।
• चन्द्रमा से सप्तम में गुरु स्थित हो, तो शादी देर से करवाता हैं।
• कर्क लग्न में सप्तम में गुरु स्थित हो, तो शादी देर से करवाता हैं।
• सप्तम में 6,8,12 वे भाव का स्वामी स्थित हों उस पर किसी शुभ ग्रह कि द्रष्टी या युति नहो शादी देर से करवाते हैं।
• कन्या की कुन्डली में सप्तमेश के साथ शनि स्थित होने से विवाह अधिक आयु में होता हैं।
• सूर्य, मंगल, बुध लगन में स्थित हो और गुरु बारहवें भाव में बैठा हो तो विवाह बडी आयु में होता हैं।
• लगन, सप्तम, बारहवें तीनो भाव में पाप ग्रह स्थित हों तथा पंचम भाव में चन्द्रमा कमजोर हो, तो विवाह नही होता यदि होता हैं तो संतान कि संभावना कम होती हैं।
• राहु की महादशा या अंतर्दशा में विवाह हो, या राहु सप्तम भाव को दूषित कर रहा हो, तो दिमागी भ्रम के कारण शादी होकर टूट जाती हैं या साथी से अलगाव होता हैं।
अविवाहित योग
• जन्म कुंडली में सप्तमेश अशुभ स्थान 6,8,12 वे भाव पर स्थित हों और सप्तमेश पर एक से अधिक पाप ग्रहो का प्रभाव हो तो जातक अविवाहित रहता हैं।
• लगन या चतुर्थ भाव में मंगल स्थित हो, सप्तम मेंभाव में शनि स्थित हो तो कन्या की रुचि शादी में नही होती हैं।
• सप्तमेश छ: आठ या बारहवें स्थान पर अस्त या नीच राशि का होकर बैठा हो, तो जातक अविवाहित रहता हैं।
• सप्तमेश बारहवें भाव में हो और लगनेश या राशि कास्वामी सप्तम में बैठा हो, तो जातक अविवाहित रहता हैं।
• चन्द्र शुक्र साथ स्थित हों, उस्से सप्तम स्थान पर मंगल और शनि स्थित हो अर्थात चंद्र और शुक्र कि युति से सप्तन भाव में मंगल शनि कि युति हो, तो जातक अविवाहित रहता हैं।
• शुक्र और मंगल दोनों सप्तम में हो, तो जातक अविवाहित रहता हैं।
• शुक्र किसी पाप ग्रह के साथ पंचम या सप्तम या नवम भाव में युति हो, तो जातक अविवाहित रहता हैं। और यदि हो जाये तो जातक जीवन साथी के वियोग से पीडित रहता हैं।
• सप्तम और बारहवे भाव में दो या दो से अधिक पाप ग्रह स्थित हो और पंचम भाव में चंद्र स्थित हो, तो जातक का विवाह नहीं होता
• जन्म कुंडली में शुक्र, बुध, शनि तीनो ग्रह नीच हों, तो जातक का विवाह नहीं होता।
• सूर्य स्पष्ट और सप्तम स्पष्ट बराबर का होने पर भी जातक का विवाह नहीं होता

जिसका उल्लेख आयुर्वेद में भी किया गया है।

एक सर्वज्ञात "हल्दी" न केवल खाने में लज्जत और स्वाद देती है, यह एक आयुर्वेदिक औषधि भी है।

यह निम्न तरीकों से उपयोग में लाई जा सकती है ---

* एक गिलास गर्म मीठे दूध में एक चम्मच हल्दी पावडर मिलाकर पीने से शरीर की अंदरूनी चोट ठीक होती है।

* हल्दी मिला मीठा गर्म दूध सुबह शाम लगातार पाँच दिन तक पीने से मुँह के छाले ठीक हो जाते हैं।

* एक चुटकी हल्दी प्रतिदिन लेने से भूख बढ़ती है। इसका सेवन करने से आँतों में भी लाभ पहुँचता है।

* हल्दी त्वचा के परजीवी जीवाणुओं को नष्ट करती है।

* हल्दी की गाँठ को पानी के साथ पीसकर लेप तैयार करें और इसका उबटन नहाने से पूर्व लगा लें। एक हफ्ते में आपको त्वचा में निखार लगेगा।

* थोड़ी-सी हल्दी में पिसा हुआ कपूर, थोड़ा-सा सरसों का तेल मिलाकर लेप तैयार करने से त्वचा पर होने वाले रोग दूर हो जाते हैं।

* दानेदार पिसी हल्दी को ताजी मलाई में भिगोकर चेहरे एवं हाथों पर लगाएँ। सूखने पर रगड़कर निकाल दें। गुनगुने पानी से चेहरा साफ करें। त्वचा खिल उठेगी।

* बेसन में सरसों का तेल, हल्दी व पानी मिलाकर गाढ़ा लेप तैयार करें। इस घोल को चेहरे व पूरे शरीर पर अच्छी तरह लगाकर सूखने पर निकाल दें। त्वचा चमकदार हो जाएगी।

* मासिक के समय पेट दर्द के वक्त गरम पानी के साथ हल्दी की फँकी लेने से रक्त प्रवाह ठीक होता है और दर्द से राहत मिलती है।

* छोटे बच्चों को खाँसी जुकाम होने पर आधा कप पानी में आधा छोटा चम्मच हल्दी पावडर, थोड़ा-सा गुड़, अजवाइन, एक लौंग मिलाकर उबालें। अच्छी तरह उबल जाने पर छानकर गुनगुना-सा हो तब चम्मच से पिला दें। बच्चे को न केवल सर्दी जुकाम से राहत मिलेगी, बल्कि पेट में यदि कब्ज होगा तो वह भी ठीक हो जाएगा।

* मैथी दाने और हल्दी का काढ़ा भी मासिक साफ होने के लिए लिया जा सकता है।

* सूजन पर हल्दी व चूने का लेप करने से सूजन उतर जाता है।

* बुजुर्गों का कहना है कि बगैर हल्दी का खाना अपशगुन होता है। दरअसल ऐसा उसके औषधीय गुणों की ही वजह से कहा जाता है।

* हल्दी एक प्रिजरवेटिव का ही काम करती है, इसीलिए अचार के मसाले का अभिन्न अंग है।

* नवजात शिशु को दिए जाने वाले 'घसारा' अर्थात 'घुट्टी' में आंबा हल्दी भी उसके आयुर्वेदिक गुणों की वजह से ही दी जाती है।

* तेज जुकाम होने पर हल्दी की धूनी अर्थात गरम जलते कंडे पर हल्दी जलाकर उससे उठने वाले धुएँ को सूँघने से सर्दी जुकाम से राहत मिलती है।

* कहा जाता है कि एक चम्मच हल्दी प्रतिदिन सेवन करने से भूख बढ़ती है। अमाशय एवं आँतों की सफाई होती है।

* कटने या लगने पर रक्तस्राव को रोकने के लिए भी शुद्ध हल्दी पावडर चोट पर लगाया जाता है, जिससे रक्तस्राव तुरंत रुक जाता है।

* हल्दी एक अच्छा एंटीसेप्टिक एवं एंटीबायोटिक है, जिसका उल्लेख आयुर्वेद में भी किया गया है। 

Thursday 8 January 2015

कारोबार की उन्नति के लिए यह अनुकूल समय है

मूलांक 1 :

यह वर्ष कठिन श्रम करने वाला रहेगा। शिक्षा व करियर की दृष्टि से एकाग्रता व परिश्रम की आवश्यकता रहेगी। सफलता मिलेगी। नौकरी आदि में मनोनुकूल परिवर्तन नहीं होंगे। कारोबार में लाभ की स्थिति बनेगी तथा भवन-मशीन वाहन आदि में अधिक खर्च की स्‍थिति बनेगी। स्वास्थ्य का ध्यान रखें। थकान व तनाव को हावी न होने दें।सूर्य प्रधान व्यक्तित्व होने के कारण हर माह आप अपने स्वभाव परिवर्तन अनुभव करते हैं. किसी से अपेक्षा करने की बजाय, इस वर्ष अपको स्वयं को सकारात्मक रूप से विकसित करना होगा. 
व्यवसाय, करियर: व्यवसाय में प्रगति और पदोन्नति होने की संभावना है.

मूलांक 2 :

यह वर्ष सफलता दिलाने वाले रहेगा। शिक्षा व करियर में सफलता निश्चित मिलेगी। नौकरी आदि में मनचाहा परिवर्तन तथा तबादला होगा। कारोबार में भवन व मशीनरी की खरीदी पर व्यय होगा। स्वास्थ्य की दृष्टि से स्नायु विकार, कोष्टबद्धता तथा जलोदर इत्यादि से बचना होगा। मित्रता, प्रेम के लिए 1 तथा 7 मूलांक वाले जातक अनुकूल होंगे। रविवार व सोमवार को शुभ कार्य करें। सफेद व हल्के रंगों का प्रयोग जीवन में करें, लाभ होगा।

मूलांक 3 :

यह वर्ष परेशानियां व रुकावटें देने वाला रहेगा। शिक्षा के लिए व करियर की दृष्टि से अधिकाधिक मेहनत व एकाग्रता की आवश्यकता है। एडमिशन की समस्या का सामना करना पड़ सकता है। हो सकता है कि विषय बदलना पड़े। नौकरी आदि में मनचाहा तबादला, प्रमोशन नहीं मिल सकेगा। प्रतियोगी, प्रतिद्वंद्वी सामने होंगे। कारोबार की स्थिति भी ठीक नहीं होगी। कच्चा माल मिलने की दिक्कतें होंगी तथा मौसम भी अनुकूल नहीं होगा। प्रेम, मित्रता आदि में 3-6-9 मूलांक के जातक शुभ रहेंगे।

मूलांक 4 :

यह वर्ष भरपूर खुशियां लेकर आ रहा है। शिक्षा व करियर की दृष्टि से कामयाबी कदम चूमेगी। मनचाहा पदभार, प्रमोशन तथा परिवर्तन होगा। कारोबार में नई ऊंचाइयां छूने को मिलेंगी। नए अनुबंध होंगे तथा नए उपक्रम चालू हो सकते हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से पेट संबंधी, आंतों की शोथ इत्यादि तथा स्मरण-शक्ति की समस्या हो सकती है। रक्ताल्पता भी तकलीफ देगी। छूत से बचें। विवाह, प्रेम व मित्रता के लिए 1-2-7-8 मूलांक वाले जातक अनुकूल रहेंगे।

मूलांक 5 :

यह वर्ष ठीक-ठीक रहेगा। शिक्षा व करियर की दृष्टि से यह वर्ष पिछले वर्षों की अपेक्षा अधिक अनुकूल रहेगा। मनचाही पदोन्नति, तबादले होंगे। जवाबदारियां बढ़ेंगी। कारोबार की उन्नति के लिए यह अनुकूल समय है। नई योजनाएं बनेंगी। नए उपक्रम प्रारंभ होंगे। स्वास्थ्य की दृष्टि से चर्मरोग, रक्तविकार, शरीर दुर्बलता, सिरदर्द, स्नायु विकार, हृदयाघात आदि की आशंका है। विवाह व प्रेम की दृष्टि से मूलांक 5 वाले ही अनुकूल रहेंगे। बुधवार तथा शुक्रवार को शुभ कार्य करें।

मूलांक 6 :

यह वर्ष अनुकूलता देने वाला रहेगा। शिक्षा व करियर की दृष्टि से सफलता निश्चित है। नौकरी आदि में प्रमोशन, तबादला मनमाफिक होगा। कारोबार में नए उपक्रम चालू हो सकते हैं। श्रमिक संबंधी समस्या हो सकती है। भवन-मशीन आदि पर काफी खर्च होगा। भाग्य की अनुकूलता रहेगी। स्वास्थ्य की दृष्टि से ठीक रहेगा। बुखार, सर्दी, जुकाम इत्यादि की समस्या हो सकती है। हल्का नीला रंग भाग्यवर्धक है। 3-6-9 मूलांक व्यक्ति आपके अनुकूल होंगे।

मूलांक 7:

यह वर्ष जोखिम उठाने वाला नहीं रहेगा, क्योंकि स्वभाव से साहसी ये व्यक्ति आगा-पीछा नहीं सोचते, लेकिन यह वर्ष ध्यान रखें। शिक्षा व करियर में कड़ी स्पर्धा रहेगी। कुछ रुकावटों के साथ सफलता मिलेगी। नौकरी में मनचाहे फेरबदल नहीं होंगे। प्रयास करना होगा। कारोबार में बिजली, पानी तथा श्रमिकों की समस्या हो सकती है। नए उपक्रम सोच-समझकर चालू करें। विवाह व प्रेम की दृष्टि से 1-2-4-7 अंकों का समायोजन शुभ रहेगा। सफेद, हरा, हल्का नीला रंग अनुकूलता देगा। स्वास्थ्य में कब्जियत, गुप्त रोग, गठिया तथा वात संबंधी बीमारियों से बचें। शारीरिक क्षीणता भी हो सकती है।

मूलांक 8 :

यह वर्ष सुख-समृद्धि तथा सफलता प्राप्ति का रहेगा। शिक्षा व करियर में सुनिश्चित सफलता के योग हैं। नौकरी में मनचाहा परिवर्तन, प्रमोशन मिलेगा। कारोबार में नए उपक्रमों की शुरुआत होगी। भवन, मशीन व वाहन की प्राप्ति निश्चित है। गठिया, हृदयरोग तथा हड्डी का टूटना संभव है। शनिवार शुभ दिवस है। इस दिन शुभ कार्य प्रारंभ करें। सलेटी, काला, नीला रंग जीवन में अत्यधिक वापरें।

मूलांक 9 :

यह वर्ष उठापटक वाला रहेगा। शिक्षा व करियर की दृष्टि से कष्टसाध्य श्रम तथा प्रतिद्वंद्विता का सामना करना पड़ेगा। नौकरी आदि में अपने प्रमुख व्यक्तियों से अनबन हो सकती है। मनचाहे परिवर्तन नहीं होंगे। प्रमोशन आदि के लिए इंतजार करना पड़ेगा। कारोबारी अड़चनें मुंहबाएं खड़ी रहेंगी। जोखिम न उठाएं। स्वास्थ्य की दृष्टि से रक्त विकार, कमजोरी, मिर्गी, स्त्रियों को स्त्री रोगों का सामना करना पड़ेगा। न्यायालय के चक्कर भी लग सकते हैं। अनुकूल व्यक्ति 3-6-9 मूलांक वाले रहेंगे। शुभ दिन मंगलवार, गुरुवार हैं। शुभ रंग गुलाबी व लाल हैं जिनका प्रयोग अधिक करें।

Tuesday 6 January 2015

वो किसी दिन हमें पूरा समंदर देना चाहता हो

एक बच्चा अपनी माँ के साथ एक दुकान पर
शॉपिंग करने गया तो दुकानदार ने
उसकी मासूमियत देखकर
उसको सारी टॉफियों के डिब्बे खोलकर
कहा-: "लो बेटा टॉफियाँ ले लो...!!!"
पर उस बच्चे ने भी बड़े प्यार से उन्हें मना कर दिया. उसके
बावजूद उस दुकानदार
ने और उसकी माँ ने भी उसे बहुत कहा पर
वो मना करता रहा. हारकर उस दुकानदार ने
खुद अपने हाथ से टॉफियाँ निकाल कर
उसको दीं तो उसने ले लीं और अपनी जेब में
डाल ली....!!!! वापस आते हुऐ उसकी माँ ने पूछा कि"जब
अंकल तुम्हारे सामने डिब्बा खोल कर
टाँफी दे रहे थे , तब तुमने नही ली और जब
उन्होंने अपने हाथों से दीं तो ले ली..!!
ऐसा क्यों..??"
तब उस बच्चे ने बहुत खूबसूरत प्यारा जवाब दिया -:
"माँ मेरे हाथ छोटे-छोटे हैं... अगर मैं
टॉफियाँ लेता तो दो तीन
टाँफियाँ ही आती जबकि अंकल के हाथ बड़े
हैं इसलिये ज्यादा टॉफियाँ मिल गईं....!!!!!"
बिल्कुल इसी तरह जब भगवान हमें देता है
तो वो अपनी मर्जी से देता है और वो हमारी सोच से
परे होता है,
हमें हमेशा उसकी मर्जी में खुश
रहना चाहिये....!!!
क्या पता..??
वो किसी दिन हमें पूरा समंदर
देना चाहता हो और हम हाथ में चम्मच लेकर खड़े हों.. नमः शिवाय

Saturday 3 January 2015

मरण तब सुधरता है जब मानव प्रत्येक क्षण को सुधारता है ।

उत्तरायण मेँ मृत्यु का अर्थ है ज्ञान की अथवा उत्तरावस्था मेँ परिपक्व दशा मेँ मृत्यु । कई पापी लोग तो वैसे भी उत्तरायण काल मेँ मरते हैँ , किन्तु फिर भी उनको सद्गति नही मिलती , और कई योगी जन दक्षिणायन मेँ मरते हैँ फिर भी उनकी दुर्गति नही होती ।
दक्षिण दिशा मेँ यमपुरी है , नरक लोक है । नरक लोक का अर्थ है अंधकार । जिन्हेँ परमात्मा के स्वरुप का ज्ञान नहीँ है , जिन्होँने परमात्मा का अनुभव नहीँ किया है और वैसे ही मर जाते हैँ उनकी मृत्यु दक्षिणायन कहलाती है । संतो का जन्म तो हमारी ही भाँति साधारण होता है किन्तु उनकी मृत्यु मंगलमय होती है।
साधन भक्ति करते करते ही साध्य भक्ति सिद्ध होती है । जिसकी मृत्यु के समय देवगण बाजे बजाते हैँ उसकी मृत्यु मंगलमय है । भीष्म के प्रयाण के समय देवोँ ने ऐसा ही किया था । ऐसे काम करना चाहिए >
जब तुम आये जग मेँ , तो वह हँसा तुम रोए ।
ऐसी करनी कर चलो , तुम हँसो जग रोए ।।
मानव जीवन की अन्तिम परीक्षा उसकी मृत्यु ही है । जिसका जीवन सुन्दर होगा , उसकी मृत्यु मंगलमय होगी । जिसका मरण बिगड़ा उसका जीवन भी व्यर्थ रहा । मरण तब सुधरता है जब मानव प्रत्येक क्षण को सुधारता है ।
जो प्रत्येक क्षण का सदुपयोग करता है ईश्वर को प्रतिक्षण स्मरण करता है उसकी मृत्यु भी सुधरती है किन्तु जो प्रत्येक क्षण का दुरुपयोग करता है ईश्वर का स्मरण नहीँ करता उसकी मृत्यु बिगड़ती है ।
भीष्म आजीवन संयमी रहे थे संयम बढ़ाकर प्रभू के सतत स्मरण की आदत होने से मरण सुधरेगा । जीवन का अंतकाल बड़ा कठिन है । उस समय प्रभू का स्मरण करना आसान नहीँ है ।
जन्म जन्म मुनि जतन कराहीँ
अंत राम कहि आवत नाही ।।
समस्त जीवन जिसकी लगन मेँ बीता होगा वही अंतकाल मेँ उसे याद आयेगा । ईश्वर तब तक कृपा नहीँ करते जब तक मनुष्य स्वयं कोई प्रयत्न न करे । सारा जीवन भगवान के स्मरण मेँ बीते और कदाचित वह अंतकाल मेँ भगवान को भूल जाय तो भी भगवान उसे याद करेँगे ।
भगवान कहते है कि भक्त मुझे भले ही भूल जाय किन्तु मै उसको नहीँ भूल सकता है ।।
अतः भीष्मपितामह की मृत्यु को उजागर करने के लिए ही द्वारिकाधीश भीष्म के पास पधारे थे ।

Thursday 1 January 2015

भोजन में चिकनाई बंद कर दें

हाथ पैरों का सुन्न होना : 
हममें से लगभग सभी ने अनुभव किया होगा.
आइये जाने क्यों हो जाते है शरीर के अंग सुन्न : 
हर किसी के सोने की खास मुद्रा यानी स्लीपिंग पोजिशन होती है। कोई पेट के बल सोता है, कोई पीठ के तो कोई करवट लिए। कुछ लोग बिस्तर पर लेटते तो सामान्य पोजिशन में हैं, पर जैसे-जैसे नींद गहराती है, उनकी मुद्रा तरह-तरह के आकार ले लेती है। बात रोचक भले ही लगे, मगर मत भूलिए कि ये मुद्राएं आपके स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती हैं।
हाथ या पैर का सुन्न हो जाना हममें से लगभग सभी ने अनुभव किया होगा.आइये जाने क्यों हो जाते है शरीर के अंग सुन्न.
शरीर का कोई अंग यदि किसी दबाव में ज्यादा समय तक रहता है,तो वह सुन्न हो जाता है.वस्तुतः यह दबाव हाथ या पैर की नसों पर पड़ता है, ये नसें कई एक कोशीय फाइबर से बनी होती है. प्रत्येक एक कोशीय फाइबर अलग-अलग संवेदनाओं को मस्तिष्क तक पहुँचाने का कार्य करता है.इन फाइबरों की मोटाई भी कम-ज्यादा होती है.इसका कारण माइलिन नामक श्वेत रंग के पदार्थ द्वारा बनाई गई झिल्ली है.इन पर दबाव पड़ने से मस्तिस्क तक नसों द्वारा पर्याप्त मात्रा में आक्सीजन और रक्त का संचरण नहीं हो पता है. मस्तिष्क तक उस अंग के बारे में पहुंचने वाली जानकारी रक्त और आक्सीजन के अभाव में अवरूद्ध हो जाती है.इस कारण वहां संवेदना महसूस नहीं हो पाती और वह अंग सुन्न हो जाता है.
जब उस अंग पर से दबाव हट जाता है तब रक्त और आक्सीजन का संचरण नियमित हो जाता है और पुनः उस अंग में संवेदनशीलता लौट आती है.
पेरिफेरल वैस्कुलर डिसीज :
पेरिफेरल वैस्कुलर डिसीज धमनी की मुख्य बीमारी है। इस बीमारी में धमनियां छोटी होती जाती हैं और कभी-कभी तो पूरी तरह से ब्लॉक हो जाती हैं। पीवीडी पेरिफेरल वैस्कुलर डिजीज से मतलब है हाथ-पाँवों की रक्तवाहिकाओं के तंग होने की वजह से खून की आवाजाही कम हो जाना। 
लक्षण :
इस रोग में रक्त धमनियों की भीतरी दीवारों पर वसा जम जाती है। ये हाथ-पांवों के ऊतकों में रक्त प्रवाह को रोकता है। इस रोग के प्राथमिक चरण में चलने या सीढ़ियां चढ़ने पर पैरों और कूल्हों थकाना या दर्द महसूस होता है। अन्य लक्षण होते हैं दर्द, सुन्न होना, पैर की पेशियों में भारीपन। शारीरिक काम करते समय मांसपेशियों को अधिक रक्त प्रवाह चाहिए होता है। 
मधुमेह या डायबिटीज मेलीटस :यदि आपको मधुमेह है तो रक्त में शर्करा की मात्रा को नियंत्रण में रखें,क्या है 
यह बीमारी उन लोगों में ज्यादा होती है, जो हाइपरटेंशन, डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, हाईकॉलेस्ट्रॉल के मरीज होते हैं या उनके खून में फैट या लिपिड की मात्रा ज्यादा होती है। साथ ही धूम्रपान ज्यादा करने वालों को भी ये समस्या होती है। इसके अलावा, खून का थक्का जमने के कारण रक्त-शिराएं ब्लॉक हो जाती हैं। 
क्या करें ?
- धूम्रपान कम करें
-रोजना व्यायाम करें, वॉकिंग कारगर होती है
-पोषण युक्त, कम-फैट युक्त और कम कोलेस्ट्रॉल वाले भोजन का सेवन करें 
-पैरों का ख्याल रखें 
-रक्त चाप पर नियंत्रण रखें।
- शराब सीमित मात्रा में लें.
- धूम्रपान बंद करें। यदि आप धूम्रपान नहीं कर रहे हों तो उसे शुरू न करें.
- भोजन में चिकनाई बंद कर दें |
- टमाटर ,चुकंदर ,प्याज का सलाद के रूप में ज्यादा इस्तेमाल करें |
- पानी खूब पीवें |दूध पीवें |
-सबसे बड़ी बात खुश रहें |
- औषिधि के रूप में सिर्फ "" नवायस लौह वटी "" २ -२ गोली दूध के साथ सुबह शाम सेवन करें |
कष्टदायक लक्षणों की शांति का उपाय किया जाता है, यथा सेंक, हल्की मालिश, विद्युत्तेजन, पीड़ानाशक औषधि आदि। 
विटामिन बी 1 का उपयाग लाभदायक हो सकता है। 
पेशियों का संकुचन रोकना चाहिए।
- उड़द की दाल पीसकर उसे घी में भूनें इसमें गुड़, सोंठ पीसकर मिला दें। लड्डू बनाये। इसे नित्य एक लड्डू का सेवन करें।
-सोंठ पाउडर व उड़द की दाल उबालकर इसका पानी पीने से लकवा तक ठीक होता है। हाथ पैर सुन्न होने पर एक गांठ लहसुन की तथा सोंठ पानी के साथ पीस लें जो अंग सुन्न हो रहा हो उस पर इसका लेप करें तथा बासी मुंह दो कली लहसुन की व जरा सी सोंठ चबायें। यह प्रयोग कम से कम 10-12 दिन तक करें अवश्य आराम मिलेगा।
- विटामिन बी-12, विटामिन डी, विटामिन इ, कैल्शियम की पर्याप्त मात्र लें. अगर भोजन में शामिल न कर सकें, तो महीने तक गोलिओं के रूप में लें.