Sunday 18 January 2015

परमात्मा की खोज 'स्व' की खोज है

परमात्मा की खोज को खयाल रखना, पराए
की खोज मत समझ लेना..
'परमात्मा' शब्द में वह जो 'पर' लगा है उससे भ्रांति में
मत पड़ जाना। परमात्मा की खोज 'पर' की खोज
नहीं है, परमात्मा की खोज 'स्व' की खोज है।
परमात्मा की खोज आत्मा की खोज है। यह खोज
आंतरिक है। यहां आंखें भीतर लौटानी हैं, आंखें
पलटानी हैं, यहां कान उलटाने हैं।
यहां सारी यात्रा अंतर्मुखी करनी है। आंख खोलकर
बहुत खोजा, अब आंख बंद करके खोजना है। बहुत सुने
बाहर के संगीत, शायद कभी थोड़ा मन को भरमाए
भी, थोड़ा मन को लुभाए भी, थोड़ा मनोरंजन
भी किए, अब मनोभंजन करना है..! अब भीतर
का संगीत सुनना है। अब अनहद नाद सुनना है। बैठा है
पूरा का पूरा परमात्मा तुम्हारे भीतर, पूरा का पूरा..!
जो जानते हैं वे यह नहीं कहते कि तुम
परमात्मा का अंश हो; जो जानते हैं वे कहते हैं, तुम पूरे
परमात्मा हो। उसके कहीं अंश होते हैं, कहीं खंड होते
हैं..?
रात पूर्णिमा का चांद निकलता है।
हजारों झीलों में, तालाबों में, सागरों में, नदियों में,
पोखरों में उसका प्रतिबिंब बनता है। सब प्रतिबिंब पूरे
चांद के प्रतिबिंब होते हैं। कुछ ऐसा थोड़े ही है
कि एक झील में बन गया चांद का प्रतिबिंब तो अब
दूसरी झील में कैसे बने..? ऐसा थोड़े ही है कि खंड-खंड
बनते हैं कि एक टुकड़ा बन गया इस सागर में, एक
टुकड़ा बन गया उस सागर में..सभी प्रतिबिंब पूरे चांद
के होते हैं।
ऐसे ही तुम पूरे परमात्मा हो क्योंकि तुम पूरे
परमात्मा के प्रतिबिंब हो। परमात्मा एक है, अनंत
उसके प्रतिबिंब हैं।

No comments:

Post a Comment