Sunday 18 January 2015

आप ध्वनि को देख सकते हैं

आप ध्वनि को सिर्फ सुन ही नहीं सकते, देख भी सकते हैं। जी हां, आप ध्वनि को देख सकते हैं। ध्वनि को देखने का, उसे महसूस करने का एक तरीका होता है, आइए जानते हैं उसके बारे में


ध्वनि का मतलब है आवाज। जब आप किसी ध्वनि का उच्चारण करते हैं तो उस ध्वनि के साथ आप जिस आकृति या रूप का इस्तेमाल करते हैं, वे दोनों आपस में कई तरीके से जुड़े होते हैं। और यही बात मंत्रों के साथ भी है। मंत्र एक ध्वनि होता है, एक पवित्र ध्वनि। और यंत्र का अर्थ है उस ध्वनि से संबंधित आकृति। जिन लोगों ने भौतिकी पढ़ी है, उन्हें यह बात बड़ी आसानी से समझ आ जाएगी। अगर आपने हाईस्कूल तक भी भौतिकी पढ़ी है तो भी आपने एक पाठ तो ध्वनि से संबंधित जरूर पढ़ा होगा। ध्वनि मापने का एक यंत्र होता है – दोलनदर्शी। अगर आप किसी दोलनदर्शी में किसी तरह की ध्वनि भेजें तो यह ध्वनि अपनी कुछ ख़ास गुणों जैसे कि आवृति, आयाम आदि के मुताबिक हर बार यह एक खास आकृति पैदा करेगा। कहने का मतलब यह है कि हर ध्वनि के साथ एक आकृति भी जुड़ी होती है। इसी तरह हर आकृति के साथ एक ध्वनि जुड़ी है। तो जब आप किसी ध्वनि को देखें – जी हां, आप ध्वनि को देख सकते हैं, सुनने के मामले में इंसान की सीमा है, वह एक खास स्तर की आवृति वाली ध्वनियों को ही सुन सकता है। यह बहुत छोटी रेंज है। ध्वनि को देखने का, उसे महसूस करने का एक तरीका होता है। बोध के इस आयाम को योग में ‘ऋतंभरा प्रज्ञा’ कहा जाता है। इसका अर्थ है कि आप ध्वनि को सिर्फ सुन ही नहीं सकते, देख भी सकते हैं। यहां ऐसी बहुत सी ध्वनियां हैं, जिन्हें आप सुन नहीं सकते, लेकिन आप देख सकते हैं, आप उसे महसूस कर सकते हैं। उदाहरण के लिए कोबरा बिल्कुल बहरा होता है, लेकिन वह हर ध्वनि को महसूस कर पाता है। क्योंकि उसके पेट का पूरा हिस्सा धरती से सटा होता है और वह हर चीज को महसूस करता रहता है।
अगर कोई ऋतंभरा प्रज्ञा की अवस्था में आ जाता है, तो उस स्थान की प्रतिध्वनि में एक तरह का पैटर्न बन जाता है और अगर आप इसे थोड़ा सा ट्यून कर लें तो वह ध्वनि बन जाएगी।

एक बात कहने में मैं थोड़ा हिचक रहा हूं। यह बड़ी समस्या है कि आध्यात्मिक रास्ते पर चल रहे लोग हर तरह की चीजों को सुनना शुरू कर देते हैं। तो जब लोग मेरे पास आकर बताते हैं कि मुझे यह सुनाई देता है, मुझे वह सुनाई देता है, तो मैं उनसे कहता हूं कि आप जाइए, आपको इलाज की जरूरत है। लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता। अगर आप एक खास तरह से ध्यान की अवस्था में आ जाएं तो अचानक ही आवृति की वह रेंज जिसे आप सुन सकते हैं, बदल जाती है और आप कुछ ऐसा सुनना शुरू कर सकते हैं, जो कोई और नहीं सुन रहा है। ऐसा संभव है। अब यह कह कर मैं एक ‘खतरनाक जोन’ में घुस गया हूं। अब अचानक ऐसे तमाम लोग पैदा हो जाएंगे, जो आज रात को कई तरह की ध्वनियों को सुनना शुरू कर देंगे। तो कल सुबह अगर कोई आपको बताए कि मैंने कुछ सुना है तो आप समझ सकते हैं कि उनकी समस्या क्या है।

तो अगर आप ध्वनि को ध्यान से देखें और उसके पैटर्न को समझें तो आप पाएंगे कि यह हमेशा ही एक खास आकृति के साथ जुड़ी है। अगर कोई ऋतंभरा प्रज्ञा की अवस्था में आ जाता है, तो उस स्थान की प्रतिध्वनि में एक तरह का पैटर्न बन जाता है और अगर आप इसे थोड़ा सा ट्यून कर लें तो वह ध्वनि बन जाएगी। आपने नाद ब्रह्म गीत सुना होगा। ‘नाद’ का अर्थ है, ध्वनि। ‘ब्रह्म’ का अर्थ है चैतन्य, जो सर्वव्याप्त है। मूल रूप से अस्तित्व में तीन ध्वनियां हैं। इन तीन ध्वनियों से, अनगिनत ध्वनियां पैदा की जा सकती हैं। ये ध्वनियां हैं: ‘अ’, ‘उ’ और ‘म’, अर्थात् अकार, उकार और मकार। अगर आप अपनी जीभ काट भी दें, तब भी आप ये तीन ध्वनियां निकाल सकते हैं। कोई भी दूसरी ध्वनि निकालने के लिए जीभ का इस्तेमाल करना होगा। जीभ इन तीनों ध्वनियों को मिश्रित करके सभी दूसरी तरह की ध्वनियां पैदा करती है। अब अगर आप इन तीन ध्वनियों का उच्चारण एक साथ करते हैं तो आप क्या पाएंगे? ‘ऊं’ किसी धर्म विशेष का प्रतीक नहीं है, हालांकि हो सकता है कि कोई धर्म इसका प्रयोग एक प्रतीक के रूप में कर रहा हो। ‘ऊं’ अस्तित्व की एक मौलिक ध्वनि है।

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