Saturday 3 January 2015

मरण तब सुधरता है जब मानव प्रत्येक क्षण को सुधारता है ।

उत्तरायण मेँ मृत्यु का अर्थ है ज्ञान की अथवा उत्तरावस्था मेँ परिपक्व दशा मेँ मृत्यु । कई पापी लोग तो वैसे भी उत्तरायण काल मेँ मरते हैँ , किन्तु फिर भी उनको सद्गति नही मिलती , और कई योगी जन दक्षिणायन मेँ मरते हैँ फिर भी उनकी दुर्गति नही होती ।
दक्षिण दिशा मेँ यमपुरी है , नरक लोक है । नरक लोक का अर्थ है अंधकार । जिन्हेँ परमात्मा के स्वरुप का ज्ञान नहीँ है , जिन्होँने परमात्मा का अनुभव नहीँ किया है और वैसे ही मर जाते हैँ उनकी मृत्यु दक्षिणायन कहलाती है । संतो का जन्म तो हमारी ही भाँति साधारण होता है किन्तु उनकी मृत्यु मंगलमय होती है।
साधन भक्ति करते करते ही साध्य भक्ति सिद्ध होती है । जिसकी मृत्यु के समय देवगण बाजे बजाते हैँ उसकी मृत्यु मंगलमय है । भीष्म के प्रयाण के समय देवोँ ने ऐसा ही किया था । ऐसे काम करना चाहिए >
जब तुम आये जग मेँ , तो वह हँसा तुम रोए ।
ऐसी करनी कर चलो , तुम हँसो जग रोए ।।
मानव जीवन की अन्तिम परीक्षा उसकी मृत्यु ही है । जिसका जीवन सुन्दर होगा , उसकी मृत्यु मंगलमय होगी । जिसका मरण बिगड़ा उसका जीवन भी व्यर्थ रहा । मरण तब सुधरता है जब मानव प्रत्येक क्षण को सुधारता है ।
जो प्रत्येक क्षण का सदुपयोग करता है ईश्वर को प्रतिक्षण स्मरण करता है उसकी मृत्यु भी सुधरती है किन्तु जो प्रत्येक क्षण का दुरुपयोग करता है ईश्वर का स्मरण नहीँ करता उसकी मृत्यु बिगड़ती है ।
भीष्म आजीवन संयमी रहे थे संयम बढ़ाकर प्रभू के सतत स्मरण की आदत होने से मरण सुधरेगा । जीवन का अंतकाल बड़ा कठिन है । उस समय प्रभू का स्मरण करना आसान नहीँ है ।
जन्म जन्म मुनि जतन कराहीँ
अंत राम कहि आवत नाही ।।
समस्त जीवन जिसकी लगन मेँ बीता होगा वही अंतकाल मेँ उसे याद आयेगा । ईश्वर तब तक कृपा नहीँ करते जब तक मनुष्य स्वयं कोई प्रयत्न न करे । सारा जीवन भगवान के स्मरण मेँ बीते और कदाचित वह अंतकाल मेँ भगवान को भूल जाय तो भी भगवान उसे याद करेँगे ।
भगवान कहते है कि भक्त मुझे भले ही भूल जाय किन्तु मै उसको नहीँ भूल सकता है ।।
अतः भीष्मपितामह की मृत्यु को उजागर करने के लिए ही द्वारिकाधीश भीष्म के पास पधारे थे ।

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