Tuesday 13 January 2015

सौ प्रतिशत ईमानदार होना होगा..


स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी ने कहा है- " उपासना में बुद्धि की इतनी आवश्यकता नहीं होती जितनी श्रद्धा विश्वास की । उपासना में वुद्धि पंगु है जब कि श्रद्धा सर्वसमर्थ ।"

बुद्धि बहुत दूर तक नहीं चलती..वह थक कर कहीं न कहीं रुक जाती है श्रद्धा और विश्वास अघटित काम करते हैं..श्रद्धा और विश्वास के बल पर मनुष्य आपार महा विपत्ति को भी पार कर सकता है..
भक्ति उपासना में..श्रद्धा विश्वास में ईमानदार होना बहुत अवश्यक है...अक्सर हम भक्ति में विश्वास में पूर्ण रूप से ईमानदार नहीं होते...यह आत्मचिंतन का विषय है....हम संसार के प्रति ईमानदार रहते हैं...
हम माता पिता ,पति-पत्नी ,बच्चों दोस्तों मित्रों के प्रति तो ईमान दार हैं पर भक्ति उपासना भगवान के प्रति !!!
हम संसार पर अधिक विश्वास करते हैं..भगवान पर नहीं..
भक्ति में एक क्षण के लिए भी हमारा विश्वास डगमगा गया तो हमारी ईमानदारी पर प्रश्न चिन्ह है.... ? विश्वास का अर्थ पूर्ण विश्वास..पूरी ईमानदारी के साथ विश्वास...
प्रह्लाद का विश्वास देखो...पर्वत से सैनिक नीचे गिराने लगे....प्रह्लाद ने संसार को नहीं पुकारा..माँ को नहीं पुकारा ..कि मुझे बचाओ...अटल विश्वास था हरि में..
मीरां ने कोई प्रश्न नहीं किया जहर आया पी गई...पूर्ण ईमानदार थी अपनी भक्ति में..श्रद्धा और विश्वास में...
मूल मन्त्र है भक्ति का ' श्रद्धा और विश्वास ' अपनी भक्ति में ईमानदार होना ही होगा संसार के प्रति कम ईमानदारी से काम चल सकता है परन्तु गोविन्द के प्रति नहीं ...सौ प्रतिशत ईमानदार होना होगा..

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