Saturday 27 December 2014

नही तो जन्मो ऐसे ही चक्रों में फंसे रहोगे।

भागती हुयी जिन्दगी की रफ्तार पकड़ने में इंसान इतना खो गया है की उसे कुछ भी तुरंत हासिल करने हेतु वो गिरता चला जाता है झूठ और धोखे के दलदल में। और जो इस दलदल में गिरता है अपने झूठ और धोखे के भंवर जाल में उलझता जाता है। हर एक झूठ छुपाने के लिए 10 झूठ। धोखे के छुपाने के लिए धोखा। नतीजा झूठ बोलने वाला भी दुखी और जिससे झूठ बोला गया वो भी दुखी।धोखा देने वाला भी दुखी और धोखा खाने वाला भी दुखी। सिर्फ दुखों का ही प्रसार हो रहा है समाज में। सबके पास लाखो सच्चे झूठे तर्क होते है, लेकिन ना वो अपनी और ना ही सामने वाले की अंतरात्मा से इसका बोझ हटा पाते हैं। जीवन भर इस बोझ को ढोते हुए ये बोझ बीमारियों के रूप में भी उभर आती है।
बुद्ध आये उन्होंने कहा "तुम दुखी हो, तुम्हारे दुःख का निदान है मेरे पास" जितने लोगो ने उनके वक्तव्यों को समझा वो दुःख से पार हो गये।
जीसस आये उन्होंने कहा तुम रोगी हो और तुम्हारे रोग का इलाज़ है मेरे पास। और जीसस के मार्ग पर चलकर कई लोग रोगमुक्त हो गये।
किन्तु इंसान की फितरत की उसे महापुरुषों के वक्तव्य दुसरो के लिए अच्छे लगते है। कई उदाहरण देता है दुसरो को लेकिन जीवन में उतारता ही नही। ऐसे ही गुरुनानक देव जी, स्वामी विवेकानन्द की अनेखो अनेखो लेखनियों में से मात्र कुछ पेज ही काफी है जीवन को दुःख और रोग से निकालने के लिए। पढता भी है इंसान तो या तो समझता नही या वो उसे किसी दुसरे पर आजमा कर देखना चाहता है।
ना जाने जीवन के मुलभुत सिद्धांत को देने कितने महापुरुषों को धरती पर आना होगा। जीवन में झूठ, धोखा, लालच,आसक्ति आदि इंसान को सिर्फ दुःख और रोग ही दे सकते है। कब इंसान इन सबके साथ सुखी हुआ है। कब उसने इन सबके साथ जीवन में शान्ति का अनुभव किया है। ये रोग जन्मो साथ जाएगा और सभी जन्मो में बढ़ेगा। क्यों खुद की शान्ति हरते हो और दुसरो की भी। क्या कभी एसा कर बिना कुतर्को के दुसरे के सामने खड़े हो सकते हो? छोटी सोच और अल्पकाल के लाभ का परिणाम है ये झूठ, धोखा, लालच, आसक्ति। यदि दीर्घकाल की सोचोगे तो इन सबसे खुद दूर भागोगे। खुद से नफरत हो जायेगी। सिर्फ सोच की समय सीमा बड़ा कर देखो और विचार करो तुम्हारे कर्म कैसे भीतर ही भीतर तुम्हे खायेंगे। कैसे बचोगे झूठ और धोखा पकडाने पर। अपनी नजरो में लज्जित हो जाओगे। जिस लालच से ये कर्म किया था वो लालच बेआबरू हो जाएगा। और इस बेआबरू होने में सबके बीच में इज्जत तुम्हारी जायेगी। वो आसक्ति समाप्त करो।
और इस उम्मीद में ना रहो तुम सबके उद्धार के लिए अलग अलग कोई बुद्ध या मसीहा आएगा। तुम्हे अपना बुद्ध स्वयं बनना होगा, मसीहा भी खुद को बनाना होगा तभी इस चक्र से निकल पाओगे। नही तो जन्मो ऐसे ही चक्रों में फंसे रहोगे।

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