Wednesday 31 December 2014

प्रभु आप तो प्रेम के भूखे हो

सत्य घटना... पंजाब प्रान्त की एक महिला थी जिसका नाम था विमला कौर। वह बिहारी जी की एक बहुत भावुक भक्त थी। एक दिन उसके मन में ठाकुर जी को पोशाक पहनवाने की इच्छा हूई। उसने सोचा मैं ठाकुर जी की पोशाक अपने हाथ से तैयार करूँ और बिहारी जी उसे अगले साल शरद पूर्णिमा को धारण करें। इसी आशा के साथ वह ठाकुर जी के लिये पोशाक बनाने लगी। अगले वर्ष शरद पूर्णिमा का पर्व भी आ गया। वह ठाकुर जी को याद करते-करते वृन्दावन आयी और बहुत खुश होकर गोस्वामी जी को पोशाक देकर बोली:- "गोस्वामी जी आज इस पोशाक को धारण करायें।" गोस्वामी जी बोले:- "आज आपकी पोशाक धारण नहीं हो सकती, क्योंकि आज दतिया के राजा का आदेश है कि उन्हीं की पोशाक धारण होगी। यह सुनकर मानो उस भक्तमती पर वज्र टूट पड़ा। उनके मूँह से निकला :- "प्रभु के दरबार में राजा रंक न कोई।" उस समय उस भक्तमती के हृदय में कितनी गहरी निराशा थी, इसको कोई नहीं समझ सकता था। वो ठाकुर जी के सामने रोने लगी और कहने लगी :- प्रभु आप तो प्रेम के भूखे हो, और आप जानते हो कि ये पोशाक मैंने कितने प्रेम से अपने हाथों से आपके लिए तैयार की है। दतिया के राजा की पोशाक आई भारी-भरकम, जरी के काम से लदी हूई आखिर राजा ने जो बनवायी थी। वह निरन्तर अपने कारीगरों से आगाह करता रहा था कि पोशाक राजा की ओर से बन रही है, ऐसी बननी चाहिए कि लोग देखते ही पहचान जायें कि पोशाक राजा ने बनवायी है। जैसे ही गोस्वामी ने बिहारी जी को पोशाक पहनाने के लिये पायजामा पहनाया-पर यह क्या? इतने बड़े राजा की पोशाक जरी के काम से लदी हूई बिहारी जी की बाहों में नहीं आ रही है। गोस्वामी जी बहुत कोशिश करते रहे। बाहर दर्शनार्थियों की भीड़ जय-जयकार कर रही थी। पर अभी तक जामा भी धारण नहीं हुआ था। गोस्वामी जी घबराकर बिहारी जी के चरणों से लिपट गये, उन्हें यह अहसास हो गया कि प्रभु के लिये सब बराबर हैं चाहे वो राजा हो या रंक। उन्होंने तुरन्त भक्तमती विमला कौर की पोशाक मंगवायी। वह पोशाक ठाकुर जी को बिल्कुल सही आ रही थी और सहज ही ठाकुर जी को पहनने में आ रही थी। थोड़ी ही देर में सारा श्रंगार हो गया दर्शन खुल गये। राजा अपनी पोशाक में श्रीबिहारीजी के दर्शन करने के लिये व्यग्र था, किन्तु यहाँ तो पोशाक दूसरी थी। राजा का अहं सातवें आसमान पर पहुंच गया। उन्होंने गोस्वामी जी से इस बारे में बात की तो गोस्वामी जी ने राजा को बताया की:- आपके द्वारा लायी गयी पोशाक कुछ छोटी थी। गोस्वामी जी ने राजा को बताया कि- ये सब ठाकुर जी की ही लीला है, बिहारीजी प्रेम की मूर्ति हैं। जब ये बात विमला कौर को पता चली तो उसका मन-मयूर नाचने लगा। वह मन्दिर में ठाकुर जी के अपनी पोशाक में दर्शन करके धन्य हो गयी। "बोलिये श्री वृंदावन बिहारी लाल की जय"

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