तात्पर्य यह निकला कि यदि आपको सचमुच साधन करना है तो भाई! जगत् में प्रभु का दर्शन करो। जगत् में प्रभुका दर्शन करनेका फल यह होगा कि कोई और है, कोई गैर है, यह चीज बिलकुल मिट जायगी। कल्पना करो, यदि किसी को विश्वास न हो और जगत् में प्रभु का दर्शन न कर सके तो कम-से-कम वह जगत् का भी दर्शन न करे। जगत् को जगत्-बुद्धिसे देखनेवाला व्यक्ति साधक नहीं हो सकता।
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