एक विधवा बहिन हैं, अच्छे घरकी हैं। भगवान् की प्रेमी हैं, भजन करती हैं। उन्होंने बताया कि ‘ मैं परिवारमें रहती, मेरे बाल-बच्चे होते, देवरानियों-जेठानियोंकी भाँति मैं वस्त्राभूषण पहनती; इस प्रकार मैं संसारमें रम जाती, भजन करनेकी जैसी सुविधा और मन आज है,वैसा तब नहीं रहता। भगवान् की कृपा थी, जिसने मुझे जगत् के सारे प्रलोभन तथा विषयों से दूर कर दिया और इधर लगने का अवसर दिया।’ वास्तवमें यही बात है।(दु;ख में भगवत्कृपा)
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