भगवान् के निरंतर नामोच्चार के प्रभाव से जब क्षण-क्षण में रोमांच होने लगते हैं, तब उसके सम्पूर्ण पापों का नाश होकर उसको भगवान् के सिवा और कोई वस्तु अच्छी नहीं लगती | विरह-वेदना से अत्यंत व्याकुल होने के कारण नेत्रोंसे अश्रुधारा बहने लग जाती है तथा जब वह त्रैलोक्य के ऐश्वर्य को लात मारकर गोपियों की तरह पागल हुआ विचरता है और जलसे बाहर निकाली हुई मछली के सामान भगवान् के लिए तड़पने लगता है, उसी समय आनंदकंद प्यारे श्यामसुंदर की मोहिनी मूर्ति का दर्शन होता है | यही है उस भगवान् से मिलने का सच्चा उपाय |
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