जैसे कस्तूरी मृग की नाभि में ही है, किन्तु मूर्ख मृग बाहर पहाड़, पर्वत, घास - फूस में कस्तूरी ढूंढता है | इसी प्रकार मनुष्य के हृदय में ही परमेश्वर का वास है, परन्तु परमेश्वर से विमुखी पशु - तुल्य, खान - पान विषय भोगों में रत्त, अज्ञानी मनुष्य, इस वार्ता को नहीं जानता है कि मेरे हृदय में ही परमेश्वर निवास करते हैं | इसलिए अपने आत्म - स्वरूप में ही ब्रह्म का अनुभव करिये
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