Saturday, 24 May 2014

प्रकट होकर भक्त की रक्षा करते हैं

एक ब्राह्मण मुकलावा - द्विरागमन के समय प्राप्त धन और पत्नी लेकर अपने ग्राम को जा रहा था । मार्ग में ठग मिल गये । उन्होंने ब्राह्मण से राम-राम किया । ब्राह्मण ने राम-राम करके उन से पू़छा - आप लोग कहां जायेंगें । उन लोगों ने कहा - जहां तुम जा रहे हो वहां ही जायेंगे । फिर आगे एक मार्ग वन से जाता था और एक आबादी में होकर जाता था । ब्राह्मण आबादी वाले मार्ग से जाने लगा तब ठगों ने कहा - यह मार्ग चक्कर खाकर आयेगा और यह वन से जाने वाला मार्ग बहुत सीधा जाता है इससे जल्दी पहुँचेंगे । तुम डरो मत हम तुम्हारे साथ हैं । ब्राह्मण ने कहा - मैं तो आप लोगों को जानता नहीं हूँ । ठग - न जानों तो हमारे तुम्हारे बीच में राम है हम आपको आराम से पहूंचा देंगे । फिर भी ब्राह्मण को विश्वास नहीं हुआ तब ब्राह्मण की पत्नी ने कहा - अब क्यों डरते हो ? समर्थ राम को बीच में रख दिया है, अब तो साथ ही चलो । तब ब्राह्मण अपनी पत्नी का राम पर दृढ़ विश्वास जानकर ठगों के साथ वन के मार्ग से चला । आगे निर्जन वन आने पर ठगों ने ब्राह्मण को मार दिया और धन तथा उसकी पत्नी को लेकर चल दिये । तब ब्राह्मणी बार बार पी़छे देखती थी । उस ठगों ने कहा - तेरा पति तो मर गया अब क्या देखती है ? हमारे साथ जल्दी-जल्दी चल नहीं तो तेरी भी वह गति कर देंगे । ब्राह्मणी ने कहा - जिन रामजी को तुमने बीच में रक्खा था उन को देख रही हूँ वे आते ही होंगे । ठगों ने कहा - हमने तो ऐसे ही बहुतों को मारा है वे कभी भी नहीं आये । यह सुनते ही ब्राह्मणी ने अत्यन्त विरह व्यथा से प्रभु को पुकारा तब तत्काल रामजी ने प्रकट होकर ठगों को मारा और ब्राह्मणी के पति को जिवित करके धन के कारण अन्य कोई इन्हें दुःख न दें, इससे अति शीघ्र उनको घर तक पहुँचा कर अन्तर्धान हो गये । 
 जब भक्त पुकार करता है तो प्रभु एक पलक में ही उक्त भक्त ब्राह्मणी के प्रकट हुये वैसे ही प्रकट होकर भक्त की रक्षा करते हैं ।

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