Friday, 2 May 2014

सुनि रामानंद राम हम

महके बदन खुलास कर, सुनि स्वामी प्रबीन। दास गरीब मनी मरै, मैं आजिज आधीन।।
मैं अविगत गति सैं परै, च्यारि बेद सैं दूर। दास गरीब दशौं दिशा, सकल सिंध भरपूर।।
सकल सिंध भरपूर हूँ, खालिक हमरा नाम। दासगरीब अजाति हूँ, तैं जूं कह्या बलि जांव।।
जाति पाति मेरे नहीं, नहीं बस्ती नहीं गाम। दासगरीब अनिन गति, नहीं हमारे नाम।।
नाद बिंद मेरे नहीं, नहीं गुदा नहीं गात। दासगरीब शब्द सजा, नहीं किसी का साथ।।
सब संगी बिछरू नहीं, आदि अंत बहु जांहि। दासगरीब सकल वंसु, बाहर भीतर माँहि।।
ए स्वामी सृष्टा मैं, सृष्टि हमारै तीर। दास गरीब अधर बसूं, अविगत सत्य कबीर।।
पौहमी धरणि आकाश मैं, मैं व्यापक सब ठौर। दास गरीब न दूसरा, हम समतुल नहीं और।।
हम दासन के दास हैं, करता पुरुष करीम। दासगरीब अवधूत हम, हम ब्रह्मचारी सीम।।
सुनि रामानंद राम हम, मैं बावन नरसिंह। दास गरीब कली कली, हमहीं से कृष्ण अभंग।।
हमहीं से इंद्र कुबेर हैं, ब्रह्मा बिष्णु महेश। दास गरीब धरम ध्वजा, धरणि रसातल शेष।।
सुनि स्वामी सति भाखहूँ, झूठ न हमरै रिंच। दास गरीब हम रूप बिन, और सकल प्रपंच।।
गोता लाऊं स्वर्ग सैं, फिरि पैठूं पाताल। गरीबदास ढूंढत फिरूं, हीरे माणिक लाल।।
इस दरिया कंकर बहुत, लाल कहीं कहीं ठाव। गरीबदास माणिक चुगैं, हम मुरजीवा नांव।।
मुरजीवा माणिक चुगैं, कंकर पत्थर डारि। दास गरीब डोरी अगम, उतरो शब्द अधार।

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