बोलो सतगुरु देव की जय
कलयुग में पूर्ण परमात्मा अन्य युगों की भाँति तत्वदर्शी सन्त की भूमिका करने आता है। वह शास्त्राविधि अनुसार सत्य साधना का ज्ञान देता है। जो श्रद्धालु अपनी परमपरागत साधना से लाभ प्राप्त नहीं कर पाता है। जब वह पूर्ण परमात्मा की भक्ति तत्वदर्शी सन्त के बताए अनुसार करता है तो तुरन्त लाभ होता है। वह श्रद्धालु तुरन्त पूर्ण परमात्मा के तत्वज्ञान को ग्रहण कर लेता है। इस कारण से कलयुग में परमेश्वर के मार्ग को अधिक प्राणी ग्रहण करते हैं तथा पूर्ण मोक्ष प्राप्त करते है। इसलिए कबीर परमेश्वर ने काल ब्रह्म को वर दिया था कालब्रह्म ने प्रार्थना की थी कि तीनों युगों, सत्ययुग, त्रेता युग, द्वापर युग में थोड़े जीव पूर्ण प्रभु की शरण में जाऐं कलयुग में जितने चाहे उतने प्राणी आपकी (पूर्ण परमात्मा की) शरण में जाऐं मुझे कोई विरोध नहीं। काल ब्रह्म ने सोचा था कि कलयुग तक सर्व मानव को शास्त्र विधि त्याग कर मनमाने आचरण (पूजा) पर अति आरूढ़ कर दूंगा। देवी-देवों की पूजा व मन्दिर, मसजिद, चर्च, गुरूद्वारों तथा मूर्ति पूजा व तीर्थ स्नान पितर व भूत पूजा आदि पर ही आधारित कर दूँगा।
जिस समय कलयुग में पूर्ण परमात्मा का भेजा हुआ तत्वदर्शी सन्त आएगा वह शास्त्राविधि अनुसार साधना करने को कहेगा। पूर्व वाली पूजा को बन्द करने को कहेगा तो भ्रमित भक्त समाज उस तत्वदर्शी सन्त के साथ झगड़ा करेगा। इस कारण से कलयुग में किसी भी प्राणी को पूर्ण परमात्मा के तत्वज्ञान की प्राप्ति नहीं हो पाएगी। वह तत्वदर्शी सन्त झखमार कर रह जाएगा।
परन्तु पूर्ण परमात्मा को ज्ञान था कि कलयुग में प्राणी महादुःखी हो जाऐंगे। जो साधना वे कर रहे होगें वह शास्त्रविधि के विरूद्ध होने के कारण लाभदायक नहीं होगी। मेरे द्वारा या मेरे अंश (वंश) तत्वदर्शी सन्त द्वारा बताई जाने वाली साधना से वे दुःखी प्राणी महासुख प्राप्त करेंगे। उनके सुखों को देखकर अन्य व्यक्ति भी खिंचे चले आऐंगे। यह तत्वज्ञान विशेषकर उस समय कलयुग में प्रकट किया जाएगा जिस समय सर्व मानव (स्त्री-पुरूष) शिक्षित होगा। जिन शास्त्रों को आधार बताकर उस समय के काल ब्रह्म के प्रचारक उन्हीं शास्त्रों में लिखे उल्लेख के विपरित दन्तकथा (लोकवेद) सुना रहे होंगे तो तत्वज्ञान को जानने वाले शिक्षित व्यक्ति उन ग्रन्थों (पुराणों, वेदों व गीता आदि ग्रन्थों) को स्वयं पढ़कर निर्णय लेगें। जो तत्वदर्शी सन्त द्वारा बताया ज्ञान सर्व सद्ग्रन्थों से मेल करेगा तथा उन काल ब्रह्म के प्रचारकों का लोक वेद सद्ग्रन्थों के विपरित पाएगा तो सर्व बुद्धिमान व्यक्ति तत्परता के साथ शास्त्र विधि विरूद्ध साधना को त्याग कर हमारी शरण में आऐंगे तथा शास्त्र विधि अनुसार भक्ति ग्रहण करके मोक्ष को प्राप्त होंगे। इस प्रकार पूरे विश्व में तत्वज्ञान (कबीर परमेश्वर का ज्ञान) ही कलयुग में रहेगा अन्य लोकवेद अर्थात् अज्ञान नष्ट हो जाएगा।
कबीर, और ज्ञान सब ज्ञानड़ी, कबीर ज्ञान सो ज्ञान ।
जैसे गोला तोब का, करता चले मैदान ।।
वह समय वर्तमान में अब चल रहा है तत्व ज्ञान का सूर्य उदय हो चुका है। सूर्य उदय होने से कुछ ही समय पूर्व जो प्रकाश होता है। तत्वज्ञान प्रचार रूपी प्रकाश हो चुका है। शीघ्र ही यह तत्वज्ञान रूपी सूरज का प्रकाश विश्व में फैलेगा। सर्व मानव समाज सुखी होगा। आपसी प्रेम बढ़ेगा। धन जोड़ने की हाय तौबा नहीं रहेगी। सर्व मानव समाज विकार रहित होगा। पूर्ण परमात्मा की आजीवन भक्ति करने वाले पूर्ण मोक्ष प्राप्त करके सत्यलोक में चले जाऐंगे।
धर्मदास जी को परमेश्वर कबीर बन्दी छोड़ ने बताया हे धर्मदास ! वैसे तो मैं पृथ्वी पर अनेकों बार प्रकट होता हूँ। परन्तु एक मानव सदृश जीवन पृथ्वी पर निवास करके प्रत्येक युग में तत्व ज्ञान (स्वसम वेद) को प्रकट करता हूँ। वर्तमान में (सन् 1398 से सन् 1518 तक) में तत्व ज्ञान को लीपीबद्ध कराने तथा समर्थ की समर्थता का प्रमाण देने के लिए निवास कलयुग में कर रहा हूँ। हे धर्मदास यह तत्वज्ञान उस समय तक छुपा कर रखना है जिस समय बिचली पीढ़ी प्रारम्भ होगी (बीसवीं सदी के मध्य सन् 1950 से तथा संवत् अनुसार इक्कीसवीं सदी के प्रारम्भ से होगी) उस समय मेरा ज्ञान प्रचारक हमारा अंश (वंश) उत्पन्न होगा। उसका जन्म बीसबीं शदी के मध्यम में ( सितम्बर सन् 1951में) होगा उसमें और मुझ में कोई भिन्नता नहीं होगी। मैं सर्वदा उस अपने दास के साथ रहूँगा। वह मेरा ही स्वरूप होगा। जो बारहवें पंथ अर्थात् गरीबदास पंथ का अनुयाई होगा। वह तेरहवां अंश (वंश) होगा। जो सर्व पंथों को समाप्त करके एक परमेश्वर (मेरा) पंथ चलाएगा। बारहवें पंथ के प्रवर्तक सन्त गरीबदास द्वारा मेरी महिमा की वाणी प्रकट होगी परन्तु निर्णायक ज्ञान नहीं होगा। वे बारह पंथों के अनुयाई मेरा ही गुणगान करेंगे परन्तु तत्वज्ञान के अभाव से असंख्य जन्म में भी स्थाई स्थान अर्थात् सत्यलोक में वास नहीं कर सकेगें वे काल पे्ररित होगें।
कलयुग में पूर्ण परमात्मा अन्य युगों की भाँति तत्वदर्शी सन्त की भूमिका करने आता है। वह शास्त्राविधि अनुसार सत्य साधना का ज्ञान देता है। जो श्रद्धालु अपनी परमपरागत साधना से लाभ प्राप्त नहीं कर पाता है। जब वह पूर्ण परमात्मा की भक्ति तत्वदर्शी सन्त के बताए अनुसार करता है तो तुरन्त लाभ होता है। वह श्रद्धालु तुरन्त पूर्ण परमात्मा के तत्वज्ञान को ग्रहण कर लेता है। इस कारण से कलयुग में परमेश्वर के मार्ग को अधिक प्राणी ग्रहण करते हैं तथा पूर्ण मोक्ष प्राप्त करते है। इसलिए कबीर परमेश्वर ने काल ब्रह्म को वर दिया था कालब्रह्म ने प्रार्थना की थी कि तीनों युगों, सत्ययुग, त्रेता युग, द्वापर युग में थोड़े जीव पूर्ण प्रभु की शरण में जाऐं कलयुग में जितने चाहे उतने प्राणी आपकी (पूर्ण परमात्मा की) शरण में जाऐं मुझे कोई विरोध नहीं। काल ब्रह्म ने सोचा था कि कलयुग तक सर्व मानव को शास्त्र विधि त्याग कर मनमाने आचरण (पूजा) पर अति आरूढ़ कर दूंगा। देवी-देवों की पूजा व मन्दिर, मसजिद, चर्च, गुरूद्वारों तथा मूर्ति पूजा व तीर्थ स्नान पितर व भूत पूजा आदि पर ही आधारित कर दूँगा।
जिस समय कलयुग में पूर्ण परमात्मा का भेजा हुआ तत्वदर्शी सन्त आएगा वह शास्त्राविधि अनुसार साधना करने को कहेगा। पूर्व वाली पूजा को बन्द करने को कहेगा तो भ्रमित भक्त समाज उस तत्वदर्शी सन्त के साथ झगड़ा करेगा। इस कारण से कलयुग में किसी भी प्राणी को पूर्ण परमात्मा के तत्वज्ञान की प्राप्ति नहीं हो पाएगी। वह तत्वदर्शी सन्त झखमार कर रह जाएगा।
परन्तु पूर्ण परमात्मा को ज्ञान था कि कलयुग में प्राणी महादुःखी हो जाऐंगे। जो साधना वे कर रहे होगें वह शास्त्रविधि के विरूद्ध होने के कारण लाभदायक नहीं होगी। मेरे द्वारा या मेरे अंश (वंश) तत्वदर्शी सन्त द्वारा बताई जाने वाली साधना से वे दुःखी प्राणी महासुख प्राप्त करेंगे। उनके सुखों को देखकर अन्य व्यक्ति भी खिंचे चले आऐंगे। यह तत्वज्ञान विशेषकर उस समय कलयुग में प्रकट किया जाएगा जिस समय सर्व मानव (स्त्री-पुरूष) शिक्षित होगा। जिन शास्त्रों को आधार बताकर उस समय के काल ब्रह्म के प्रचारक उन्हीं शास्त्रों में लिखे उल्लेख के विपरित दन्तकथा (लोकवेद) सुना रहे होंगे तो तत्वज्ञान को जानने वाले शिक्षित व्यक्ति उन ग्रन्थों (पुराणों, वेदों व गीता आदि ग्रन्थों) को स्वयं पढ़कर निर्णय लेगें। जो तत्वदर्शी सन्त द्वारा बताया ज्ञान सर्व सद्ग्रन्थों से मेल करेगा तथा उन काल ब्रह्म के प्रचारकों का लोक वेद सद्ग्रन्थों के विपरित पाएगा तो सर्व बुद्धिमान व्यक्ति तत्परता के साथ शास्त्र विधि विरूद्ध साधना को त्याग कर हमारी शरण में आऐंगे तथा शास्त्र विधि अनुसार भक्ति ग्रहण करके मोक्ष को प्राप्त होंगे। इस प्रकार पूरे विश्व में तत्वज्ञान (कबीर परमेश्वर का ज्ञान) ही कलयुग में रहेगा अन्य लोकवेद अर्थात् अज्ञान नष्ट हो जाएगा।
कबीर, और ज्ञान सब ज्ञानड़ी, कबीर ज्ञान सो ज्ञान ।
जैसे गोला तोब का, करता चले मैदान ।।
वह समय वर्तमान में अब चल रहा है तत्व ज्ञान का सूर्य उदय हो चुका है। सूर्य उदय होने से कुछ ही समय पूर्व जो प्रकाश होता है। तत्वज्ञान प्रचार रूपी प्रकाश हो चुका है। शीघ्र ही यह तत्वज्ञान रूपी सूरज का प्रकाश विश्व में फैलेगा। सर्व मानव समाज सुखी होगा। आपसी प्रेम बढ़ेगा। धन जोड़ने की हाय तौबा नहीं रहेगी। सर्व मानव समाज विकार रहित होगा। पूर्ण परमात्मा की आजीवन भक्ति करने वाले पूर्ण मोक्ष प्राप्त करके सत्यलोक में चले जाऐंगे।
धर्मदास जी को परमेश्वर कबीर बन्दी छोड़ ने बताया हे धर्मदास ! वैसे तो मैं पृथ्वी पर अनेकों बार प्रकट होता हूँ। परन्तु एक मानव सदृश जीवन पृथ्वी पर निवास करके प्रत्येक युग में तत्व ज्ञान (स्वसम वेद) को प्रकट करता हूँ। वर्तमान में (सन् 1398 से सन् 1518 तक) में तत्व ज्ञान को लीपीबद्ध कराने तथा समर्थ की समर्थता का प्रमाण देने के लिए निवास कलयुग में कर रहा हूँ। हे धर्मदास यह तत्वज्ञान उस समय तक छुपा कर रखना है जिस समय बिचली पीढ़ी प्रारम्भ होगी (बीसवीं सदी के मध्य सन् 1950 से तथा संवत् अनुसार इक्कीसवीं सदी के प्रारम्भ से होगी) उस समय मेरा ज्ञान प्रचारक हमारा अंश (वंश) उत्पन्न होगा। उसका जन्म बीसबीं शदी के मध्यम में ( सितम्बर सन् 1951में) होगा उसमें और मुझ में कोई भिन्नता नहीं होगी। मैं सर्वदा उस अपने दास के साथ रहूँगा। वह मेरा ही स्वरूप होगा। जो बारहवें पंथ अर्थात् गरीबदास पंथ का अनुयाई होगा। वह तेरहवां अंश (वंश) होगा। जो सर्व पंथों को समाप्त करके एक परमेश्वर (मेरा) पंथ चलाएगा। बारहवें पंथ के प्रवर्तक सन्त गरीबदास द्वारा मेरी महिमा की वाणी प्रकट होगी परन्तु निर्णायक ज्ञान नहीं होगा। वे बारह पंथों के अनुयाई मेरा ही गुणगान करेंगे परन्तु तत्वज्ञान के अभाव से असंख्य जन्म में भी स्थाई स्थान अर्थात् सत्यलोक में वास नहीं कर सकेगें वे काल पे्ररित होगें।
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