पुण्य आत्माओ-- श्री देवी भागवत पुराण , गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित , के पहले स्कन्ध में अध्याय 1 से 8 पृष्ठ 21 से 43 पर प्रमाण है कि महर्षि व्यास जी के परम शिष्य श्री सूत जी से शौनकादि ऋषियों ने प्रश्न किया कि हे सूत जी! कृपा आप देवी पुराण की पावन कथा सुनाऐं। श्री सूत जी ने कहा (पृष्ठ 23) पौराणिकों एवं वैदिकों का कथन है तथा यह भली-भांति विदित भी है कि ब्रह्मा जी इस अखिल जगत् के सृष्टा हैं। साथ ही वे यह भी कहते हैं कि ब्रह्मा जी का जन्म भगवान् विष्णु जी के नाभि कमल से हुआ है। फिर ऐसी स्थिती में ब्रह्मा जी स्वतन्त्र सृष्टा कैसे ठहरे ? भगवान् विष्णु को स्वतन्त्र सृष्टा नहीं कह सकते क्योंकि वे शेष नाग की शय्या पर सोए थे। नाभि से कमल निकला और उस पर ब्रह्मा जी प्रकट हुए। किन्तु वे श्री विष्णु जी भी तो किसी आधार पर अवलम्बित थे। उनके आधार भूत क्षीर समुन्द्र को भी स्वतंत्र सृष्टा नहीं माना जा सकता क्योंकि वह रस है, रस बिना पात्र के ठहरता नहीं कोई न कोई उसका आधार रहना ही चाहिए। अतएव चराचर जगत् की आधार भूता भगवती जगदम्बिका ही सृष्टा रूप में निश्चित हुई’’ (देवी पुराण के पृष्ठ 41 पर लिखा है:-) ऋषियों ने पूछा:- महाभाग सूत जी ! इस कथा प्रसंग को जानकर तो हमें बड़ा ही आश्चर्य हो रहा है, क्योंकि वेद, शास्त्र, पुराण और विज्ञ जनों ने सदा यही निर्णय किया है कि ब्रह्मा, विष्णु और शंकर-ये ही तीनों सनातन देवता हैं। इनसे बढ़कर इस ब्रह्माण्ड में दूसरा कोई देवता है ही नहीं। आपने इस सर्व की सृष्टि कारण भूत जिस जगदम्बिका (दुर्गा) के विषय में कहा है वह कौन शक्ति है उसकी सृष्टि (उत्पति) कैसे हुई? यह सब बताने की कृपा करें।
सूत जी कहते हैं:- मुनिवरों ! चराचर सहित इस त्रिलोकी में कौन ऐसा है जो इस संदेह को दूर कर सके। ब्रह्मा जी के पुत्र नारद, कपिल आदि दिव्य महापुरूष भी इस प्रश्न का समाधान करने में निरूपाय हो जाते हैं। महानुभावों ! यह बड़ा ही गहन और विचारणीय है। इस सम्बन्ध मैं क्या कह सकता हूँ ?
(श्री देवीपुराण के तीसरे स्कन्ध के अध्याय 13 पृष्ठ 115 पर) नारद जी ने अपने पिता ब्रह्मा जी से पूछा ‘‘पिता जी! यह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड कहां से उत्पन्न हुआ है। विभो ! अपने सम्यक प्रकार से इसकी रचना की है? अथवा विष्णु इस विश्व के रचियता हैं ? या शंकर ने इसकी सृष्टि की है ? जगत् प्रभो ! आप विश्व की आत्मा हैं। सच्ची बात बताने की कृपा करें। किस देवता की पूजा करनी चाहिए ? तथा कौन देवता (प्रभु) सबसे बड़ा एवं सर्व समर्थ है? इन सभी प्रश्नों का समाधान करके मेरे हृदय के संदेह को दूर करने की कृपा कीजिए।
ब्रह्मा जी ने कहा - बेटा मैं इस प्रश्न का क्या उत्तर दूँ ? यह प्रश्न बड़ा ही जटिल है। इस संसार में कोई भी रागी पुरूष ऐसा नहीं है जिसे यह रहस्य विदित हो।
(श्री देवी पुराण से लेख समाप्त)
पुण्य आत्माओ ! जिस सृष्टि रचना के विषय में तथा सर्व समर्थ प्रभु के विषय में न व्यास जी जानते हैं न श्री ब्रह्मा जी। उस रहस्य को इस सृष्टि रचना के उल्लेख में निम्न पढ़ें:-
प्रभु प्रेमी आत्माऐं प्रथम बार निम्न सृष्टि की रचना को पढेंगे तो ऐसे लगेगा जैसे दन्त कथा हो, परन्तु सर्व पवित्र सद्ग्रन्थों के प्रमाणों को पढ़कर दाँतों तले ऊँगली दबाऐंगे कि यह वास्तविक अध्यात्मिक अमृत ज्ञान कहाँ छुपा था? कृप्या धैर्य के साथ पढ़ते रहिए तथा इस अमृत ज्ञान को सुरक्षित रखिए। आप की एक सौ एक पीढ़ी तक काम आएगा। पवित्रात्माऐं कृप्या सत्यनारायण (अविनाशी प्रभु अर्थात् सतपुरुष) द्वारा रची सृष्टि रचना अर्थात् अपने द्वारा निर्मित सर्व लोकों की रचना का वास्तविक ज्ञान पढ़ें ।
प्रस्तुत सृष्टि रचना का विस्त्रत वर्णन निम्नोक्त ३ लिंकों में समाहित कर दिया गया है –
सूत जी कहते हैं:- मुनिवरों ! चराचर सहित इस त्रिलोकी में कौन ऐसा है जो इस संदेह को दूर कर सके। ब्रह्मा जी के पुत्र नारद, कपिल आदि दिव्य महापुरूष भी इस प्रश्न का समाधान करने में निरूपाय हो जाते हैं। महानुभावों ! यह बड़ा ही गहन और विचारणीय है। इस सम्बन्ध मैं क्या कह सकता हूँ ?
(श्री देवीपुराण के तीसरे स्कन्ध के अध्याय 13 पृष्ठ 115 पर) नारद जी ने अपने पिता ब्रह्मा जी से पूछा ‘‘पिता जी! यह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड कहां से उत्पन्न हुआ है। विभो ! अपने सम्यक प्रकार से इसकी रचना की है? अथवा विष्णु इस विश्व के रचियता हैं ? या शंकर ने इसकी सृष्टि की है ? जगत् प्रभो ! आप विश्व की आत्मा हैं। सच्ची बात बताने की कृपा करें। किस देवता की पूजा करनी चाहिए ? तथा कौन देवता (प्रभु) सबसे बड़ा एवं सर्व समर्थ है? इन सभी प्रश्नों का समाधान करके मेरे हृदय के संदेह को दूर करने की कृपा कीजिए।
ब्रह्मा जी ने कहा - बेटा मैं इस प्रश्न का क्या उत्तर दूँ ? यह प्रश्न बड़ा ही जटिल है। इस संसार में कोई भी रागी पुरूष ऐसा नहीं है जिसे यह रहस्य विदित हो।
(श्री देवी पुराण से लेख समाप्त)
पुण्य आत्माओ ! जिस सृष्टि रचना के विषय में तथा सर्व समर्थ प्रभु के विषय में न व्यास जी जानते हैं न श्री ब्रह्मा जी। उस रहस्य को इस सृष्टि रचना के उल्लेख में निम्न पढ़ें:-
प्रभु प्रेमी आत्माऐं प्रथम बार निम्न सृष्टि की रचना को पढेंगे तो ऐसे लगेगा जैसे दन्त कथा हो, परन्तु सर्व पवित्र सद्ग्रन्थों के प्रमाणों को पढ़कर दाँतों तले ऊँगली दबाऐंगे कि यह वास्तविक अध्यात्मिक अमृत ज्ञान कहाँ छुपा था? कृप्या धैर्य के साथ पढ़ते रहिए तथा इस अमृत ज्ञान को सुरक्षित रखिए। आप की एक सौ एक पीढ़ी तक काम आएगा। पवित्रात्माऐं कृप्या सत्यनारायण (अविनाशी प्रभु अर्थात् सतपुरुष) द्वारा रची सृष्टि रचना अर्थात् अपने द्वारा निर्मित सर्व लोकों की रचना का वास्तविक ज्ञान पढ़ें ।
प्रस्तुत सृष्टि रचना का विस्त्रत वर्णन निम्नोक्त ३ लिंकों में समाहित कर दिया गया है –
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