Thursday, 1 May 2014

मानव जन्म दुर्लभ है, मिले न बारम्बार


‘‘मानव जन्म दुर्लभ है, मिले न बारम्बार।
जैसे तरवर से पत्ता टूट गिरे, बहुर न लगता डार।।’’
(कृप्या पाठक जन पढ़ें और विचार करें - कौन कितने पानी में ?)
कृप्या पढ़ें:- यजुर्वेद अध्याय 36 मन्त्र 3 का भाषा भाष्य अर्थात हिन्दी अनुवाद संत रामपाल जी महाराज द्वारा किया हुआ।

यजुर्वेद अध्याय 36 मन्त्र 3 :- 

भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमही धीयो यो नः प्रचोदयात्।

संधिछेद:- भूः-भुवः-स्वः- तत्- सवित्तुः- वरेण्यम्-भर्गः-देवस्य-धीमही-धीयः- यः-नः- प्रचोदयात्।

अनुवाद:- वेद ज्ञान दाता ब्रह्म कह रहा है कि (स्वः) अपने निज सुखमय (भुवः) अन्तरिक्ष अर्थात् सतलोक व अनामय लोक में (भूः) स्वयं प्रकट होने वाला पूर्ण परमात्मा है। वही (सवितुः) सर्व सुख दायक सर्व का उत्पन्न करने वाला परमात्मा है (तत्) उस परोक्ष अर्थात् अव्यक्त साकार (वरेण्यम्) सर्वश्रेष्ठ (भर्गः) तेजोमय शरीर युक्त सर्व सृष्टि रचनहार (देवस्य) परमेश्वर की (धीमही) प्रार्थना, उपासना शास्त्रानुकूल अर्थात् बुद्धिमता से सोच समझ कर करें (यः) जो परमात्मा सर्व का पालन कर्ता है वह (नः) हम को भ्रम रहित (धीयः) शास्त्रानुकूल सत्य भक्ति बुद्धिमता अर्थात् सद्भाव से करने की (प्रचोदयात्) प्रेरणा करे।

भावार्थ:- इस मन्त्र सं. 3 में यजुर्वेद अ. 40 मन्त्र 8 का समर्थन है कि जो (कविर्मनीषी) पूर्ण विद्वान अर्थात् भूत, भविष्य तथा वर्तमान की जानने वाला कविर्देव (कबीर परमेश्वर) है वह पांच तत्व के शरीर रहित है (स्वयंभूः परिभूः) स्वय प्रकट होने वाला परमात्मा है पूर्ण परमात्मा का शरीर एक तत्व से बना है इसलिए उसे यजुर्वेद अध्याय 1 मन्त्र 15 तथा अध्याय 5 मन्त्र 1में कहा है कि (अग्नेः) परमेश्वर का नूरी अर्थात् तेजोमय (तनूः) शरीर (असि) है। उस सर्व शक्तिमान दयालु सुखमय परमात्मा की भक्ति सच्चे हृदय से शास्त्रानुकूल करें। वह पूर्ण परमात्मा ऊपर सतलोक में प्रकट होता है। उस से विनय है कि वह प्रभु सर्व प्राणियों को शास्त्रानुकूल साधना के लिए प्रेरित करे।


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