Saturday, 3 May 2014

मनुष्य-शरीर पाकर यदि परमात्मा की प्राप्ति नहीं हुई

आत्मोन्नतिमें सहायक बातें -
हमको यह मनुष्य-जन्म मिला है-आत्मा के कल्याण के लिए । किन्तु जो मनुष्य आत्मकल्याण के कार्य को छोड़कर संसार के फंदे में फँस रहा है, उससे बढ़कर मूर्ख और कौन होगा । 

एकान्त में बैठकर नित्य यह विचार करे की ईश्वर क्या है ? मैं कौन हूँ ? मैं कहाँ से आया हूँ ? मैं क्या कर रहा हूँ ? मुझे क्या करना चाहिये ? इस प्रकार विचारकर दिन-पर-दिन अपनी उन्नति में अग्रसर होना चाहिये ।

मनुष्य-शरीर पाकर यदि परमात्मा की प्राप्ति नहीं हुई, उनका तत्वज्ञान नही हुआ तो यह जन्म व्यर्थ ही गया । मानवजन्म का समय बहुत ही दामी है, इसको सोच-समझ कर बिताना चाहिये ।

भगवत्प्राप्ति के जितने भी साधन है, उन सबमे उत्तम-से-उत्तम साधन है-भगवान को हर समय याद रखना । इसके समान और कोई साधन है ही नहीं । चाहे कोई उत्तम-से-उत्तम भी कर्म हो, पर वह भगवतस्मृति के समान नही है । चाहे भक्ति का मार्ग हो, चाहे ज्ञान का, चाहे योग का । सभी मार्गोंमें भगवान की स्मृति की ही परम आवश्यकता है ।मृत्यु आने पर एक क्षण का भी अवसर लाख रूपये देने पर भी नहीं मिल सकता । न रोने से काम बनता है, न सिफारिश चलती है । ऐसी स्थिति में कर्तव्य यह है की जब तक परमात्मा की प्राप्ति न हो, चैन न ले । किसी से बात करने का भी अवकाश न दे । साधन में थोड़ी कमी रह गयी और बिना भगवत्प्राप्ति के जाना पड़ा तो पता नहीं, फिर क्या दशा होगी अर्थात किस योनी में जन्म होगा ।पापी से पापी का भी उद्धार हो जाता है । पर अनन्यमन होना चाहिये । अनन्यभाव से भजना चाहिये । जैसे राजा ने भजा, जैसे प्रहलाद एकनिष्ठ भक्त थे, जैसे पतिव्रता स्त्री पतिपरायण होती है ; उसी प्रकार अव्यभिचारिणी भक्ति होनी चाहिये । 

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